लोकतन्त्र की लूट में जनता के पैसे से अफसरों की ऐयाशी 

बिगुल संवाददाता

जनता को बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराने का सवाल उठता है तो केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें तक धन की कमी का विधवा विलाप शुरू कर देती हैं, लेकिन जनता से उगाहे गये टैक्स के दम पर पलने वाले नेता और नौकरशाही अपनी हरामखोरी और ऐयाशी में कोई कमी नहीं आने देते। इसी का एक ताजातरीन नमूना है पंजाब सरकार द्वारा 2006 में कृषि विविधता के लिए शुरू की गयी परियोजना।
पंजाब सरकार द्वारा कृषि में विभिन्नता लाने के लिए 2006 में एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की गयी थी। इस प्रोजेक्ट को शुरू करते समय बड़े-बड़े दावे किये गये; जैसे, कि एक वर्ष के अन्दर यानी 2007 तक 20,000 एकड़ भूमि को बागवानी, और जैविक कृषि के तहत ला दिया जायेगा।

आइये देखें, चार वर्ष गुजर जाने के बाद क्या हासिल हुआ है। लेकिन यह प्रोजेक्ट करोड़ों रुपये के घोटाले की शक्ल ले चुका है। अब तक इस प्रोजेक्ट पर 81 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं, लेकिन सिर्फ 3,800 एकड़ जमीन ही बागवानी और जैविक कृषि के तहत लायी जा सकी है।

अब हुआ यह है कि सरकार के पास इस प्रोजेक्ट के लिए पैसा खत्म हो चुका है और यह प्रोजेक्ट अपनी आखिरी साँसें गिन रहा है। लेकिन इस प्रोजेक्ट ने कुछ लोगों को खूब ऐश करवायी है। कृषि के नाम पर करोड़ों रुपया इस प्रोजेक्ट के अधिकारियों और स्टाफ द्वारा पाँच सितारा होटलों के बिलों, यात्राओं, विदेशी शराब पर उड़ा दिया गया है।

कृषि में विविधता लाने के इस प्रोजेक्ट के तहत चार काउंसिलें बनायी गयी थीं। ये काउंसिले थीं : 1. काउंसिल फॉर सिटरस एण्ड एग्री जूसिंग इन पंजाब (नीबू प्रजाति के फलों और कृषि उत्पादों के जूसों से सम्बन्धित काउंसिल) 2. काउंसिल फॉर वैल्यू एडिड होर्टीकल्चर इन पंजाब (मूल्य युक्त बागबानी से सम्बन्धित काउंसिल) 3. ऑरगैनिक फार्मिंग काउंसिल ऑफ पंजाब (जैविक कृषि से सम्बन्धित काउंसिल) 4. विटीकल्चर काउंसिल ऑफ पंजाब (अंगूरों की खेती से सम्बन्धित काउंसिल)।

इन काउंसिलों का उप-प्रधान आई.ए.एस. अफसर हिम्मत सिंह को बनाया गया था। कृषि विविधता के लिए की गयी यात्राओं के दौरान मुम्बई के ताज होटल का बिल 61,914 रुपये था, जे.डब्ल्यू. मारिओट में ठहरने पर उन्होंने 38,198 रुपये खर्च किये, द ओबराय होटल में ठहरने पर उन्होंने 33,974 रुपये, होटल ट्राइडेण्ट में ठहरने पर 29,355 और होटल द मराठा में ठहरने पर 27,135 रुपये उड़ा दिये।

चारों काउंसिलें उन्हें अब तक यात्राओं, मनोरंजन, आवाजाही और इण्टरनेट के लिए 5.4 लाख रुपये दे चुकी हैं। काउंसिलों से उप-प्रधान हिम्मत सिंह द्वारा की गयी फिजूलखर्ची की सूचना अधिकार कानून के तहत बाहर आयी, लेकिन यह भी अधूरी जानकारी है।

काउंसिलों के सी.ई.ओ. वी.एस. चिमनी अन्य पाँच के साथ पंजाब में कृषि विविधता के लिए जब अमेरिका के दौरे पर गये तो लगभग चालीस लाख रुपये उड़ा कर आये। उन्होंने तो हिम्मत सिंह को भी पीछे छोड़ते हुए एक पाँच सितारा होटल के कमरे का एक दिन का किराया 33,000 रुपये दर्ज करवाया है। काउंसिलों ने पिछले चार वर्षों में महज स्थानीय आवाजाही पर 3 करोड़ रुपये उड़ा दिये। अधिकारियों के पारिवारिक सदस्यों की आवाजाही तक का खर्च काउंसिलें अदा करती रही हैं। सी.ई.ओ. चिमनी साहब हर महीने औसतन 4,000 किलोमीटर का सफर दर्ज करवा चुके हैं। इसके अलावा वे निजी वाहन द्वारा यात्रा के लिए हर महीने 53,000 रुपये खजाने से निकालते रहे हैं।

नींबू प्रजाति से सम्बन्धित फलों के लिए बनी काउंसिल बाग लगाने के लिए किराये पर जमीन लेने के लिए 49 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। लेकिन 14.5 करोड़ रुपये के फल समय पर न तोड़े जाने के कारण बर्बाद हो गये। इस काउंसिल ने बिना टेण्डर निकाले 42.65 लाख रुपये के पौधे सिर्फ एक ही व्यापारी से खरीद लिये। जैविक खेती की काउंसिल द्वारा 2007-08 में 31.46 लाख की चाय और चाय के बैग खरीदे गये, जिसमें से 20,048 की बिक्री 2008-09 में की गयी। 31 लाख रुपये से भी अधिक का बाकी माल कहाँ गया, यह अब भी एक राज बना हुआ है।

काउंसिलों के अफसरों, अधिकारियों और अन्य स्टाफ द्वारा जनता के धन की बर्बादी होती रही, जो अब करोड़ों के घोटाले का रूप ले चुका है और उन्हें पूछने वाला कोई नहीं था। पहले कांग्रेस की कैप्टन सरकार और उसके बाद अकाली दल और भाजपा की बादल सरकार के कान पर जूँ तक न रेंगी। सिर से पैर तक भ्रष्टाचार में डूबे मौजूदा राजनीतिक तन्त्र से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है?

बिगुल, मार्च-अप्रैल 2010


 

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