हरियाणा में बिजली के बढ़े हुए दामों के विरोध में प्रदर्शन!

नौजवान भारत सभा के बैनर तले आज बिजली के बढ़े हुए दामों के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया. शहर भर से आम आबादी बड़ी संख्या में उक्त प्रदर्शन में शामिल हुई. नौभास के संयोजक रमेश खटकड़ ने बताया कि हरियाणा में पिछले एक साल के अन्दर बिजली के दामों में बढ़ोत्तरी हुई है। अलग-अलग मदों में की गयी दामों की बढ़ोत्तरी 30 से 100 प्रतिशत तक की है। ध्यान रहे यह वही भाजपा है जो दिल्ली में चुनाव से पहले 30 प्रतिशत बिजली के दाम कम करने की बात कर रही थी। मोदी-खट्टर चुनाव में शोर मचा रहे थे ‘‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’। लेकिन सत्ता में आने बाद भाजपा सरकार ने महँगाई के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिये हैं। मोदी सरकार ने 1.5 साल में ही रेल किराये में 14 प्रतिशत बढ़ोत्तरी कर दी, सभी वस्तुओं व सेवाओं पर सर्विस टैक्स को 14.6 प्रतिशत कर दिया। साथ ही दालों से लेकर प्याज के रेट आज आसमान छू रहे हैं। आज महँगाई की मार ने मध्यमवर्ग आबादी की भी कमर तोड़ दी है। अब जले पर नमक छिड़कते हुए बिजली के दामों को बढ़ाकर जनता की जेब पर सरेआम डाकेजनी है। ऐसे में पहले से ही महँगाई की मार झेल रही जनता के लिए यह ‘जले पर नमक छिड़कने’ के समान है. वैसे तो सभी सरकारों ने जनता की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी ज़रूरतों को बाजार की अन्धी ताकतों के हवाले करने का काम किया है. अब भाजपा की सरकार इस प्रक्रिया को और भी तेज़ कर रही है. नरवाना शहर के लोग बिजली, सीवरेज, साफ़-सफ़ाई, स्वच्छ पेयजल आदि से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं लेकिन सरकार की तरफ़ से केवल सूखी बयानबाजी ही हो रही है. शहर की जनता सरकार के द्वारा बिजली के दामों में की गयी बढ़ोत्तरी से बेहद क्षुब्ध है.
आज मोदी-खट्टर सरकार कांग्रेस की ही लूटेरी उदारीकरण-निजीकरण नीतियों को आगे बढ़ा रही है, असल में सभी चुनावी पार्टियों के झण्डे-नारे अलग दिखते हैं लेकिन सबकी नीतियां एक है-टाटा को एक नैनो कार पर 60 हजार रुपये की सब्सीडी मिलती है, मोदी के चुनाव प्रचार का खर्च उठाने वाले गौतम अदानी को सरकार ने हज़ारों एकड़ जमीन 1 रुपये के हिसाब से दी है। साथ ही मोदी सरकार ने 5.90 लाख करोड़ की छूट बजट में दी है। जबकि जनता के बुनियादी शिक्षा, स्वास्थ्य पर बजट का मात्र 2 प्रतिशत खर्च करती है वही खट्टर सरकार ने शिक्षा, खेल और कला के लिए बजट का मात्र 1.7 प्रतिशत खर्च किया है। जबकि दूसरी तरफ हरियाणा के आम गरीब किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। बिजली, डीजल से लेकर खाद के दाम बढ़ रहे हैं। छोटी खेती वाले किसानों की फसलें लगातार बर्बाद होने के कारण ऋण के बोझ तले दबकर आम गरीब किसान आत्महत्या करने को मज़बूर हैं। सरकार बड़े ऋण भी धनी किसान आबादी को देती है ऐसे में साफ है सभी चुनावी पार्टियों की नीति है- ‘‘पूँजीपतियों को पूजो आबाद करो, मेहनतकशों को लूटो बर्बाद करो।’’
नौजवान भारत सभा के अजय ने कहा कि क्या अब सरकारों का काम जनता से टैक्स वसूलना ही रह गया है? बिजली के मामले में मौजूदा सरकार जनता की मेहनत की कमाई से पाई-पाई निचोड़कर बिजली कम्पनियों से जुड़े पूँजीपतियों के वारे-न्यारे कर रही है. नरवाना की समस्त जनता खट्टर सरकार के इस जन-विरोधी कदम की कड़े शब्दों में निन्दा करती है और सरकार से यह माँग करती है कि सरकार अपने इस जन-विरोधी कदम को बिना शर्त वापस ले और सबको 24 घण्टे सस्ती बिजली मुहैया कराये. तथा साथ ही मौजूदा बढ़े हुए बिलों में सुधार किया जाये, फ्यूल चार्ज के नाम पर की जा रही धाँधली बन्द की जाये. यदि सरकार अपने जनविरोधी क़दम पीछे नहीं हटाती तो जनान्दोलन को और भी तेज किया जायेगा. अन्त में उक्त प्रदर्शन व धरने के द्वारा एस. डी. एम. के माध्यम से बिजली मन्त्री और मुख्यमन्त्री तक भी अपनी न्यायसंगत माँगों को पहुँचाया गया।

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर-नवम्‍बर 2015


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments