लुधियाना के टेक्सटाइल मजदूरों के संघर्ष की शानदार जीत

बिगुल संवाददाता

2014-10-15-LDH-2टेक्सटाइल होजरी कामगार यूनियन के नेतृत्व में लुधियाना के लगभग 50 पावरलूम कारखानों के मजदूरों का संघर्ष इस वर्ष 8 से 12 प्रतिशत वेतन/पीस रेट बढ़ोत्तरी और बोनस लेने का समझौता करवाकर जीत से समाप्त हुआ। पिछले पाँच वर्षों से पावरलूम मजदूरों ने संघर्ष करते हुए अब तक वेतन/पीस रेटों में 63 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी करवाई है, ज्यादातर कारखानों में ईएसआई कार्ड बनाने के लिए मालिकों को मजबूर किया और पिछले तीन वर्षों से मालिकों को बोनस देने के लिए भी मजबूर किया है।

लुधियाना में ज्यादातर पावरलूम मज़दूर छोटे-छोटे कारखानों में काम करते हैं। लगभग 15 मुहल्लों में पावरलूम के कारखाने लगे हुए हैं। उनमें से शक्तिनगर, टिब्बा रोड, मेहरबान, कश्मीरनगर, माधोपुरी और गऊशाला में टेक्सटाइल होजरी कामगार यूनियन के नेतृत्व में मजदूर संगठित हैं।

इन कारखानों में कोई भी मालिक श्रम क़ानून लागू नहीं करता। ज्यादातर छोटे मालिक हैं। कुछ मालिकों ने अपने कारखाने अलग-अलग मुहल्लों में लगाये हुए हैं। जब कभी मजदूर अपने माँगों के लिए हड़ताल करते हैं तो उसमें छोटे मालिक समझौते के लिए जल्दी तैयार हो जाते हैं लेकिन बड़े मालिकों के कारखाने दूसरे इलाकों में चलने के कारण वह जल्दी फैसला नहीं लेते हैं और हड़ताल लम्बी हो जाती है। 2011 में 70 दिन लम्बी हड़ताल के बाद अलग-अलग कारखानों के मजदूरों ने अपने-अपने मालिकों से समझौते कर यूनियन कमेटी द्वारा तय फैसले लागू करवाये थे। तब से अब तक ऐसे ही यूनियन कमेटी द्वारा तय माँग-पत्रक पर समझौते करके पावरलूम मजदूर मालिकों को फैसले लेने के लिए मजबूर कर रहे हैं।

2014-10-15-LDH-1पावरलूम मजदूरों का संगठित संघर्ष मालिकों के लिए सिरदर्दी बना हुआ है। उन्होंने संगठन तोड़ने के लिए बहुत सारे हथकंडे अपनायें। संगठन के नेतृत्व के बारे में तरह-तरह की अफवाहें फैलायीं, लेकिन संघर्ष चलने के जनवादी तरीके के कारण मजदूरों का विश्वास नेतृत्व पर बना रहा। संगठन तोड़ने के लिए मालिकों ने अगुआ मजदूरों को काम से निकाला लेकिन हर वर्ष उन कारखानों के मजदूरों ने अपने अधिकार के संघर्ष को जारी रखा। इस बार भी मालिक हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठेंगे। वह लगातार चालें चल रहे हैं। किये हुए समझौतों से मुकरने के बहाने ढूँढ़ रहे हैं। इसलिए मालिकों की इन घटिया चालों के खिलाफ सभी मजदूरों को अपने-अपने कारखानों में संगठन की हिफाजत करनी होगी।

पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी कुछ समस्याएँ बनी हुई हैं। जैसे संगठन का अन्य मुहल्लों में ना फैलना जिससे मालिकों व प्रशासन के ऊपर ज्यादा दबाव बनाकर लंबित माँगें नहीं मनवाई जा सकती हैं। औरतों की भागीदारी इस बार के संघर्ष में भी मामूली रही हैं। मजदूर अपने परिवारां को संघर्ष में शामिल करके मालिकों व श्रम विभाग पर ज्यादा दबाव बना सकते हैं। इस बार भी संगठन के प्रचार कार्यों में ढिलाई रही। सक्रिय कार्यकर्ताओं की संगठन में कमी है जिस कारण ज्यादा बड़े पैमाने पर प्रचार संगठित नहीं हो पा रहा है और हड़ताल का फैलाव भी सीमित रहता है। संगठन भी 2012 से उसी इलाके में सिमटा हुआ है जबकि मालिक लुधियाना की एकता बना चुके हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मजदूरों के संगठन को और मजबूत और फैलाने के लिए उपरोक्त समस्याओं को दूर करना होगा तभी मालिकों के संगठित हमले का मुकाबला किया जा सकता है।

 

मज़दूर बिगुल, नवम्‍बर 2014


 

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