महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों का रियलिटी शो

नारायण

मुम्बई की फ़ि‍ल्म इण्डस्ट्री कई दशकों से लोगों का मनोरंजन करती आ रही है लेकिन पिछले कुछ दिनों में यह काम महाराष्ट्र के चुनावी नेताओं ने अपने कन्धों पर ले लिया है। 2014 के विधानसभा चुनावों ने अब तक महाराष्ट्र की जनता का कॉमेडी फ़ि‍ल्मों से भी अधिक मनोरंजन किया है। चुनावी मौसम शुरू होते ही जो मनोरंजन का सिलसिला शुरू हुआ था वह अभी तक लगातार जारी है। हिन्दुत्ववाद की तारणहार पार्टियों भाजपा व शिवसेना ने लम्बे समय तक जनता और अपने “निष्ठावान” कार्यकर्ताओं को लटकाये रखने के बाद अलग होने का फ़ैसला किया। दूसरी तरफ़ “सेक्युल्रिज़्म” के समर्थक और “धर्मान्धता” की विरोधक पार्टियों कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी अकेले ही सत्ता प्राप्त करने का ध्येय सामने रखते हुए चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया। साथ ही “दलित मुक्ति” के लिए शिवशक्ति और भीमशक्ति की एकता का नारा देने वाले सांसद रामदास आठवले ने नमक का क़र्ज़ अदा करते हुए भाजपा के साथ जाने का निर्णय लिया। इसके बाद सभी पार्टियों के पोस्टर व होर्डिंग जगह-जगह नज़र आने लगे जो लम्बे समय से छपने की प्रतीक्षा में थे। मोदी के प्रचार अभियान से सीख लेते हुए सभी पार्टियों ने मोदी की ही तर्ज़ पर चमकदार विज्ञापनों और नारों की बाढ़ ला दी। एक तरफ़ भाजपा ‘कुठं नेऊन ठेवलाय माझा महाराष्ट्र’ (कहाँ लाकर रख दिया है मेरा महाराष्ट्र) का नारा लगाकर जनता का ख़ून खौलाने की कोशिश कर रही थी तो दूसरी तरफ़ ‘माझे प्रत्येक मिनिट महाराष्ट्रासाठी’ (मेरा हर मिनट महाराष्ट्र के लिए) कहते हुए स्वयं मुख्यमन्त्री पृथ्वीराज चव्हाण अपने अभिनय के गुण दिखा रहे थे। इन विज्ञापनों को लेकर व्हाट्सअप और फ़ेसबुक पर चुटकुलों की बाढ़ आ गयी थी जो अभी तक थम नहीं पायी है।

neelabhtoons_12noonऐसे गर्माये हुए माहौल में अन्त में भाजपा 122 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी। साथ ही शिवसेना को 63, कांग्रेस को 42, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 41, बहुजन विकास पार्टी और शेतकरी कामगार पार्टी को 3-3, मज़दूरों के हक़ों को “समर्पित” माकपा,“मराठी माणुस” की राजनीति करने वाली राज ठाकरे की मनसे, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय समाज पार्टी, भारिप बहुजन महासंघ, प्रत्येक को 1-1 सीट मिली। 7 सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों को मिली। ए.आई.एम.आई.एम. को मिली 2 सीटों और अन्य जगहों पर इसे मिली वोटों की संख्या ने कईयों को हैरान किया। मोदी की लहर के चलते किसी ने भी अपेक्षा नहीं की थी कि इस लहर की प्रतिक्रियास्वरूप ओवैसी ब्रदर्स की पार्टी को इतना समर्थन मिलेगा। प्रसार माध्यमों के द्वारा खडे़ किये गये लव ज़िहाद के हौव्वे और मुम्बई के कुछ मुस्लिम युवकों के इस्लामिक स्टेट में शामिल होने की ख़बरों के बीच इस पार्टी के उदय का हिन्दुत्ववादी ताक़तें किस तरह से अपने राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल करेंगी यह आने वाला समय ही बतायेगा।

  चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा ने मुख्यमन्त्री की कुर्सी के लिए देवेन्द्र फ़डनवीस को चुन लिया और इस तरह आर.एस.एस. की स्थापना जिस महाराष्ट्र में हुई उस राज्य के सर्वोच्च सत्ता स्थान पर नागपुर के एक “स्‍वयं सेवक” के पहुँचते ही (अपने ऊपर 22 बार दंगे भड़काने के आरोपों के चलते यह सबसे “काबिल” उम्मीदवार थे)पहले भाजपाई मुख्यमन्त्री के अभिनन्दन के होर्डिंग जगह-जगह लग गये। वानखेडे़ स्टेडियम में हुए शपथ ग्रहण समारोह में देश के बड़े उद्योगपति, फिल्मी सितारों और हज़ारों अन्य आमन्त्रितों के बीच फडनवीस ने मुख्यमन्त्री पद की शपथ ग्रहण कर ली। (अन्धश्रद्धा निर्मूलत समिति के नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या के घाव अभी ताज़े ही थे कि इस शपथ ग्रहण समारोह के मंच पर नाणिज के नरेन्द्र महाराज और ऐसे ही अन्य “महापुरुष बाबाओें” का आशीर्वाद देने के लिए उपस्थित होना कई लोगों को परेशान कर रहा था। इसपर स्पष्टीकरण देते हुए यह कहकर कि हमारा विरोध अन्धश्रद्धा को है श्रद्धा को नहीं, नये मुख्यमन्त्री ने अपनी धार्मिक नीति स्पष्ट कर दी है।) लेकिन 100 करोड़ रुपये ख़र्च करके हुए इस “राज्याभिषेक” के बाद भी यह लेख लिखे जाने तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि भाजपा शिवसेना के साथ गठबन्धन बनाकर बहुमत का आँकड़ा पार करेगी या फिर शरद पवार के भरोसे ही सरकार चलायेगी। इसके साथ ही ऐसी ख़बरें भी लोगों के कान लगातार खडे़ कर रही हैं कि शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी साथ मिलकर सरकार बना सकती हैं। इस तरह की फुसफुसाहट भी सुनायी देती है कि कर्नाटक के ‘ऑपरेशन लोटस’ की तरह यहाँ भी अन्य पार्टियों के विधायकों को ख़रीदकर (इस्तीफ़ा दिलवाकर और फिर अपनी सीटों पर लड़ाकर) भाजपा सरकार चला सकती है।

चुनाव से पहले, “मेरे विरोध में प्रचार करने के लिए ख़ुद प्रधानमन्त्री को आना पड़ रहा है, यही इनकी औक़ात है” कहने वाले पूर्व उपमुख्यमन्त्री आर.आर.पाटिल की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा को समर्थन देने का ऐलान किया है। तबसे शिवसेना का “शेर” मुसीबत में पड़ गया है और अब तक नहीं सँभल पाया है। जिन्हें मुख्यमन्त्री बना देखने की इच्छा सभी शिवसैनिक पाल रहे थे, वह उद्धव ठाकरे यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि अपना “मराठी स्वाभिमान” बनाये रखें या भाजपा की पूँछ से लटककर सत्ता में हिस्सेदार बनें। पहले, “जहाँ सम्मान नहीं मिलता वहाँ क्यों जायें” कहने के बाद शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित होकर पहले तो उद्धव ठाकरे ने अपनी सहृदयता का परिचय दिया। उसके बाद एक तरफ़ विपक्ष में बैठने की दहाड़ लगा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ भाजपा के साथ चर्चा जारी रखने की उदारता को भी वह छोड़ नहीं पा रहे हैं। इसी दौरान शिवसेना के सुरेश प्रभु को भाजपा ने कैबिनेट विस्तार के शपथ ग्रहण से एक घण्टा पहले भाजपा का सदस्य बनाकर और रेलवे मिनिस्ट्री देकर शिवसेना के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है। इससे बौखलायी शिवसेना कहने लगी कि भाजपा पहले यह स्पष्ट करे कि क्या वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ सरकार बनायेगी या नहीं, तभी वह अपना निर्णय ले पायेगी। लेकिन साथ ही सत्ता में एक-तिहाई भागीदारी और अहम मन्त्रालयों के ख़्वाब देखने का लोभ भी वह नहीं छोड़ पा रही है। एकनाथ खड़से ने यह कहकर कि वह राज्य के हित के लिए कांग्रेस के अलावा किसी भी पार्टी से समर्थन ले सकते हैं, यह स्पष्ट कर दिया है कि जो पार्टी(राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) भाजपा की नज़रों में सबसे भ्रष्ट पार्टी थी, उसका समर्थन लेने में भी उन्हें कोई समस्या नहीं है। कांग्रेस की तरफ़ से विपक्ष नेता के पद के लिए नामांकन भरे जाने पर शिवसेना ने धोबी का कुत्ता बन जाने के डर से एक तरफ़ सत्ता में भागीदारी के लिए चर्चा जारी रखते हुए दूसरी तरफ़ विपक्ष नेता के लिए एकनाथ शिन्दे का नामांकन भर दिया है।

चुनाव से पहले महाराष्ट्र की जनता के सामने यह विश्वास प्रकट करने वाले कि अगर जनता की इच्छा हो तो वह मुख्यमन्त्री के पद पर भी बैठ जायेंगे, राज ठाकरे चुनाव में केवल एक सीट मिलने के बाद अपना अस्तित्च बचाये रखने के लिए आजकल दलितों के विरुद्ध अत्याचार के “विरोध” में भी झण्डा उठाये फिर रहे हैं। 15 साल के बाद सत्ता हाथ से निकलने के बाद राकांपा और कांग्रेस के कुछ विधायक और नेता किसानों के “हक़ की लड़ाई” के लिए रास्ते पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं। नयी सरकार अगर अकाल घोषित कर किसानों के लिए फसल का बीमा मंजूर नहीं करवाती तो “आन्दोलन” छेड़ने का इशारा उन्होंने दे दिया है।

शिवसेना का “प्रस्ताव” ठुकराने के बाद शरद पवार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने नेताओं को जाँच से छुटकारा दिलाने के लिए नहीं बल्कि महाराष्ट्र की जनता को स्थिर सरकार देने के लिए भाजपा को समर्थन देने के लिए तैयार हैं! लेकिन इस सवाल पर कि ये समर्थन कब तक टिकेगा वह यह याद दिलाना नहीं भूलते कि इसका जवाब देने के लिए वह कोई ज्योतिषी नहीं हैं।

शिवसेना दहाड़ते हुए भाजपा की गोद में बैठ जायेगी या फिर भाजपा भ्रष्ट राकांपा के सहयोग से “स्थिर सरकार” बनायेगी? केवल 28 प्रतिशत लोगों की वोट पाने वाली पार्टी का मुख्यमन्त्री कब तक और किस तरह सरकार चलायेगा, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। इन चुनावों ने जनता का मनोरंजन तो ख़ूब किया ही है लेकिन एक बार फिर नग्न रूप में यह सामने ला दिया है कि अलग-अलग झण्डों और नारों वाली सभी चुनावी पार्टियों की न तो किसी विचारधारा के प्रति कोई निष्ठा है और न ही जनता के प्रति कोई सरोकार। सत्ता का फ़ल चखना ही सभी चुनावी पार्टियों का एकमात्र मकसद है। 88 फ़ीसदी करोड़पति विधायकों और 165 आपराधिक पृष्ठभूमि से आने वाले विधायकों से क्या उम्मीद की जा सकती है यह जनता को ही तय करना पड़ेगा।

 

 

मज़दूर बिगुल, नवम्‍बर 2014


 

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