स्तालिन कालीन सोवियत संघ के इतिहास के कुछ तथ्य और नये खुलासों पर एक नज़र

राजकुमार

Lenin and Stalin in Gorkyदुनियाभर के साम्राज्यवादी देशों के आका आधे-अधूरे या बिल्कुल झूठे तथ्यों के माध्यम से स्तालिन-काल में मेहनतकश जनता की संगठित ताक़त द्वारा हासिल सफलताओं को बदनाम करने और विभ्रम की स्थिति पैदा करने के हरसम्भव प्रयास करते रहे हैं। लेकिन इस सारे प्रोपेगेण्डा के बावजूद 8 मई 2014 को डिप़फ़ेंस-वन (http://www.defenseone.com) के एक सर्वे में रूस के 55 फ़ीसदी नौजवानों का मानना था कि सोवियत संघ का न होना उनके लिए दुर्भाग्य है (देखें – Poll: More Than Half of Russians Want the Soviet Union Back)। समाजवादी निर्माण के उस दौर और उसका नेतृत्व करने वाले सर्वहारा के नेता स्तालिन को समझने के लिए सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर इतिहास के इस काल के अब तक ज्ञात सभी तथ्यों को एक साथ रखकर संजीदगी से नज़र डालने की ज़रूरत है। (सभी स्रोतों की सूची अन्त में देखें)

  1. स्तालिन काल की घटनाओं पर एक नज़र

1917 में अक्टूबर क्रान्ति के बाद सोवियत संघ में समाजवादी निर्माण के पहले ऐतिहासिक प्रयोग के दौरान लेनिन और फिर स्तालिन के नेतृत्व में सर्वहारा की संगठित शक्ति ने प्रतिक्रान्तिकारियों द्वारा क्रान्ति का तख्तापलट करने के मंसूबों पर पानी फेरने से लेकर द्वितीय-विश्व युद्ध तक पूरी दुनिया को हिटलर और फासीवाद से मुक्ति दिलाने में अभूतपूर्व सफलता के साथ नेतृत्व किया था। स्तालिन काल में समाजवादी सोवियत संघ में जनता के जीवन स्तर में गुणात्मक वृद्धि हुई, बेरोज़गारी और ग़रीबी जैसी पूँजीवादी बीमारियों को जड़ से समाप्त कर दिया गया था, महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा किसी भी अन्य पूँजीवादी देश से बेहतर रूप में मिला हुआ था, शिक्षा का समान अधिकार हर व्यक्ति को मिल चुका था और नाममात्र की जनसंख्या अशिक्षित बची थी, औद्योगिक- तकनीकी तथा वैज्ञानिक विकास के क्षेत्र में सोवियत संघ अनेक सफलताएँ हासिल कर रहा था। सोवियत संघ के समाजवादी प्रयोगों ने पूरी दुनिया की मेहनतकश जनता के सामने यह सिद्ध कर दिया था कि सर्वहारा वर्ग की समाजवादी सत्ता, जो एक वर्गहीन समाज के निर्माण के लिए संघर्षरत है, मानव समाज के विकास में सभी पुराने वर्ग समाजों की तुलना में आगे की ओर एक लम्बी छलाँग है।

october-revolution 1सोवियत संघ के बारे में आज कई नये तथ्य सामने आ चुके हैं। अमेरिकी शोधकर्ता प्रो. ग्रोवर फ़र और रूसी अनुसन्धानकर्ता यूरी जोखोव जैसे कई इतिहासकारों ने स्तालिन कालीन सोवियत संघ के अभिलेखों के अध्ययन के आधार पर अनेक सबूतों के साथ खुलासे किये हैं। इन दस्तावेज़ों के आधार पर उस दौर में हुईं व्यावहारिक ग़लतियों की पृष्ठभूमि समझने में मदद मिलती है कि किन परिस्थितियों में पार्टी में मौजूद पूँजीवादी तत्वों के विरुद्ध स्तालिन के नेतृत्व में संघर्ष किया जा रहा था। चूँकि सोवियत संघ में पहली बार समाजवादी निर्माण का प्रयोग किया जा रहा था जिसका कोई अनुभव मौजूद नहीं था, ऐसे में उस समय स्तालिन पार्टी में पैदा हो रहे षड्यन्त्रकारियों और पूँजीवादी पथगामियों के पैदा होने की विचारधारात्मक ज़मीन नहीं तलाश सके। स्तालिन ने कुछ उसूली भूलें कीं और कुछ व्यावहारिक कार्यों के दौरान ग़लतियाँ हुईं, और कुछ ग़लतियों से बचा जा सकता था। ग्रोवर फ़र ने अपनी पुस्तक “जनवाद के लिए स्तालिन का संघर्ष” के दो खण्डों में स्तालिन के दौर में पार्टी के भीतर जो संघर्ष चल रहे थे, उनका सन्दर्भ सहित विवरणों का खुलासा किया है।

1. 1920 में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की 9वीं कांग्रेस में हारने के बाद कई विरोधी तत्व उस समय नेतृत्व में मौजूद नेताओं की हत्या करने और तख्तापलट की षड्यन्त्रकारी कोशिशें कर रहे थे। ख्रुश्चेव ने 20वीं कांग्रेस में अपने गुप्त भाषण में सारी ग़लतियों का दोष स्तालिन पर लगाया, लेकिन 1930 से 1938 के बीच सोवियत संघ में नेतृत्व को बदनाम करने के लिए जनता के दमन की षड्यन्त्रकारियों की गतिविधियाँ चल रही थीं उनका कहीं ज़िक्र नहीं किया गया। (बिन्दु 47, 57, “जनवाद के लिए स्तालिन का संघर्ष खण्ड-2”, ग्रोवर फ़र)

2. दस्तावेज़ों में मिले सबूतों के आधार पर ग्रोवर फ़र ने खुलासा किया है कि द्वितीय विश्व-युद्ध से पहले 1930 से 1938 के बीच और विश्व युद्ध के बाद अपनी मृत्यु से पहले तक स्तालिन राज्य पर से पार्टी के प्रत्यक्ष नियन्त्रण को समाप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनका प्रस्ताव था कि नेतृत्व के चुनाव के लिए गुप्त मतदान होना चाहिए, जिससे व्यापक जन-समर्थन वाले नेताओं को नेतृत्व में लाया जा सके। पार्टी में पहले से मौजूद नेतृत्व के उन लोगों के लिए, जो अपने व्यक्तिगत हितों के चलते विशेषाधिकारों का एक घेरा तैयार कर चुके थे, स्तालिन का यह क़दम ख़तरनाक होता, यही कारण था कि यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। (बिन्दु 113-119, “जनवाद के लिए स्तालिन का संघर्ष, खण्ड-1”, ग्रोवर फ़र)

3. विश्व युद्ध की समाप्ति के दौर में 1947 में स्तालिन और पोलित-ब्यूरो में उनका समर्थन करने वाले सदस्यों ने पार्टी नेतृत्व में मौजूद विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए पार्टी को राज्य के प्रत्यक्ष नियन्त्रण से हटाने और जनवादी चुनावी प्रणाली लागू करने का प्रस्ताव पुनः रखा था जो लागू नहीं हो सका। 1952 में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं कांग्रेस में अन्तिम बार स्तालिन ने इसका प्रयास किया, लेकिन इस कांग्रेस की रिपोर्ट का कोई ज़िक्र ख्रुश्चेव ने अपने गुप्त भाषण में नहीं किया और आज तक यह रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की गयी है। इस कांग्रेस में स्तालिन के भाषण का एक छोटा हिस्सा ही आज तक प्रकाशित किया गया है, जिसके अनुसार स्तालिन पार्टी के पद और संगठनात्मक ढाँचे में बदलाव करना चाहते थे। इन्हीं बदलावों के तहत स्तालिन ने पार्टी के महासचिव का पद समाप्त करने और ख़ुद महासचिव के पद से इस्तीफ़ा देकर 10 पार्टी सचिवों में से एक का हिस्सा बनने का प्रस्ताव रखा था। यदि स्तालिन के प्रस्ताव लागू कर दिये जाते तो उस समय राज्य के नियन्त्रण में मौजूद विशेषाधिकार प्राप्त पूँजीवादी पथगामियों और षड्यन्त्रकारियों का सत्ता में रहना मुश्किल हो जाता। (बिन्दु 2, 16, 17, 19, 21, “जनवाद के लिए स्तालिन का संघर्ष, खण्ड 2”, ग्रोवर फ़र)

4. सोवियत संघ के उस पूरे ऐतिहासिक दौर में स्तालिन द्वारा चलाये जा रहे संघर्षों की रोशनी में इन घटनाओं का विश्लेषण तथा सबूतों के आधार पर ग्रोवर फ़र ने मार्च 1953 में हुई स्तालिन की मृत्यु के बारे में लिखा है, “दौरा पड़ने के बाद या तो स्तालिन को उनके दफ्तर में मरने के लिए छोड़ दिया गया था या ज़हर देकर उनकी  हत्या की गयी थी।” (बिन्दु 43, “जनवाद के लिए स्तालिन का संघर्ष खण्ड 2”, ग्रोवर फ़र)।

5. स्तालिन की मृत्यु के बाद सोवियत संघ का भविष्य पूरी तरह से पार्टी नेतृत्व में बैठे संशोधनवादियों के हाथों में आ गया। इस गुट ने राज्य और आर्थिक क्षेत्र के सभी पदों पर अपनी इज़ारेदारी सुनिश्चित कर ली और किसी भी पूँजीवादी राज्य की तरह परजीवी के रूप में ख़ुद को सत्ता में स्थापित कर लिया। ख्रुश्चेव, गोर्बाचेव, येल्तसिन से लेकर पुतिन तक यही इज़ारेदार नेतृत्व आज तक रूस की सत्ता में मौजूद है। (बिन्दु 45, 46, वही)

इस पूरे दौर का घटनाक्रम दर्शाता है कि अक्टूबर 1917 में क्रान्ति के बाद सोवियत संघ में पार्टी के अन्दर विशेषाधिकार प्राप्त पूँजीवादी पथगामी लगातार पैदा हो रहे थे और पहले समाजवादी राज्य की रक्षा में इन भ्रष्ट तत्वों के विरुद्ध स्तालिन के दौर में लगातार संघर्ष चलाया गया। लेकिन संघर्ष के सही विचारधारात्मक स्वरूप का विस्तार न कर पाने के कारण पूरा भरोसा राज्य के पदाधिकारियों पर किया गया और उनकी मदद से सज़ा देने का काम किया गया, जिससे पार्टी में मौजूद षड्यन्त्रकारियों को अतिशय रूप से सज़ा देकर स्तालिन तथा राज्य को बदनाम करने का मौक़ा मिल गया। इन सभी ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर देखें तो पार्टी और दुश्मन तथा जनता के बीच अन्तरविरोधों को हल करने की जो विचारधारात्मक समझ चीनी पार्टी ने महान बहस में प्रस्तुत की, वह सही है कि स्तालिन उस दौर में इन अन्तरविरोधों को हल करने की सही लाइन विकसित नहीं कर सके, यह स्तालिन की ग़लती नहीं बल्कि उस दौर की एक व्यावहारिक सीमा थी।

  1. सोवियत संघ की 20वीं पार्टी कांग्रेस (1956) में ख्रुश्चेव के गुप्त भाषण से शुरू हुआ स्तालिन काल के दौरान हासिल सफलताओं को झूठे तथ्यों के आधार पर बदनाम करने का सिलसिला, जो आज भी जारी है

स्तालिन काल का मूल्यांकन और उस दौर के बारे में अब जितने खुलासे हुए हैं, उनके आधार पर हम ख्रुश्चेव के गुप्त भाषण के पीछे छिपे मूल मकसद को समझ सकते हैं। स्तालिन काल की महान सफलताओं में स्तालिन के नेतृत्व की मान्यता के रहते ख्रुश्चेव के चारों ओर संगठित हुए विशेषाधिकार प्राप्त भ्रष्ट गुटों और पूँजीवादी पथगामियों के लिए अपनी संशोधनवादी मार्क्सवाद- लेनिनवाद विरोधी नीतियाँ लागू करना सम्भव नहीं होता। ऐसी स्थिति में पार्टी के नेतृत्व पर काबिज इस संशोधनवादी गुट के लिए अपनी सर्वहारा विरोधी सुधारवादी नीतियों पर पर्दा डालने के लिए पहले  स्तालिन और स्तालिन के पूरे दौर को बदनाम करना ज़रूरी था। 1953 में स्तालिन की मृत्यु के बाद ख्रुश्चेव ने 1956 तक सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के अन्दर इस संशोधनवादी खेमे के समर्थन के आधार का विस्तार किया और 1956 की 20वीं पार्टी कांग्रेस में अपना गुप्त भाषण पढ़ा जिसमें व्यक्ति पूजा समाप्त करने के नाम पर स्तालिन पर अनेक झूठे आरोप लगाये और सोवियत संघ के समाजवादी संक्रमण के दौरान हुई सभी ग़लतियों के लिए स्तालिन को दोषी ठहराकर उनका पूर्ण निषेध कर दिया।

अपने भाषण में स्तालिन पर कीचड़ उछालकर ख्रुश्चेव ने सर्वहारा वर्ग के नेता के रूप में स्तालिन को ही नहीं बल्कि उस पूरे दौर में लागू की गयी नीतियों, सर्वहारा अधिनायकत्व और समाजवादी संक्रमण के मूल मार्क्सवादी- लेनिनवादी सिद्धान्त को पूरी दुनिया में बदनाम करने की कोशिश की, जिसने पूरे विश्व के कम्युनिस्ट आन्दोलनों में सैद्धान्तिक स्तर पर एक विभ्रम की स्थिति पैदा कर दी थी। इस वक्तव्य के माध्यम से ख्रुश्चेव ने समाजवाद को बदनाम करने का एक और मौक़ा साम्राज्यवादियों की झोली में डाल दिया।

लेनिन ने अपने दौर में आन्दोलन में मौजूद ग़लत प्रवृत्तियों के प्रति बहसों का हवाला देते हुए कहा था कि “कभी-कभी गरुड़ मुर्गियों से नीचे उड़ सकते हैं, लेकिन मुर्गियाँ कभी भी गरुड़ की ऊँचाई तक नहीं उठ सकतीं।” (महान बहस, पृष्ठ 93) इस उद्धरण को स्तालिन और ख्रुश्चेव के सन्दर्भ में आसानी से समझा जा सकता है। चीनी पार्टी ने ख्रुश्चेव द्वारा स्तालिन के पूर्ण निषेध के पीछे मूल कारण के बारे में कहा था, “स्‍तालिन के प्रति इस गाली-गलौज में, ख्रुश्चेव, दरअसल, सोवियत व्यवस्था और राज्य की अन्धाधुन्ध भर्त्सना कर रहे हैं। इस सन्दर्भ में उनका भाषण काउत्सी, त्रत्स्की, टीटो और जिलास जैसे भगौड़ों की भाषा से किसी भी तरह कमज़ोर नहीं, बल्कि वास्तव में, उनसे भी तीक्ष्ण है।” (महान बहस, पृष्ठ 97)

ख्रुश्चेव ने अपने गुप्त वक्तव्य में स्तालिन को “हत्यारा”, “निरंकुश शासक”, “इतिहास का सबसे बड़ा तानाशाह” जैसे सम्बोधनों से नवाज़ा था और व्यक्ति-पूजा के अनेक आरोप लगाये थे। आज यह पर्दा हट चुका है कि स्तालिन पर ख्रुश्चेव ने अपने गुप्त भाषण में जो भी आरोप लगाये थे, सारे झूठ थे। इसका विस्तृत विवरण तथ्यों के साथ ग्रोवर फ़र की पुस्तक “ख्रुश्चेव के 61 झूठ” में देखा जा सकता है, जो पूरी सोवियत संघ के अभिलेखागार के दस्तावेज़ों में मिले तथ्यों के अध्ययन पर आधारित है।

पूरी दुनिया में आज तक आधुनिक संशोधनवादी, त्रत्स्की-पन्थी व अराजकतावादी ख्रुश्चेव द्वारा तैयार किये गये “स्‍तलिन की ग़लतियों” के पर्दे की आड़ लेकर सर्वहारा वर्ग के साथ अपनी ग़द्दारी को छुपाने का काम कर रहे हैं। सर्वहारा वर्ग के प्रति ख्रुश्चेव की इस ग़द्दारी के झण्डे को उठाकर पूरी दुनिया के साम्राज्यवादी-पूँजीवादी आज तक कम्युनिस्ट आन्दोलनों को बदनाम करने और पूँजीवादी समाज में दमन-उत्पीड़न से जूझ रही मेहनतकश जनता के बीच समाजवाद के प्रति सन्देह पैदा करने के लिए हरसम्भव कोशिश में लगे हैं, ताकि आने वाले समय में कम्युनिस्ट आन्दोलनों को दिग्भ्रमित किया जा सके और व्यापक मेहनतकश जनता की लूटमार और शोषण पर खड़े अपने स्वर्ग के टापू को उजड़ने से बचाया जा सके। लेकिन यह झण्डा इतिहास के तथ्यों की मार से लगातार चिथड़ा होता जा रहा है और दुनिया की जनता के दिलों से स्तालिन को मिटाने की उनकी हर कोशिश नाकाम रही है।

स्रोत सूची:

1) महान बहस, अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशन

2) Documents of Great Debate (3 Volumes), International Publication

3) Political Economy (Sangai Political Text Book)

4) Khrushchev Lied by Grover Furr

5) “Stalin and the Struggle for Democratic Reform, Part 1 and 2” by Grover Furr

6) Documents of Great Proletarian Cultural Revolutions and Great Leap Forward on http:èkèkwww.revcom.us

7) http://www.thisiscommunism.org

8) Documents of marxist.org

9) Reject the Revisionist Theses of the XX Congress of the Communist Party of the Soviet Union and the Anti-Marxist Stand of Krushchev’s Group! Uphold Marxism-Leninism!” by Enver Hoxha, Moscow, 16 November, 1960

 

 

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2015

 


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments