चुनावबाज़ पार्टियों के खोखले वादों को पहचानना होगा और आम मेहनतकश जनता को आगे की लड़ाई के लिए तैयार होना होगा!

4 जुलाई को वज़ीरपुर के मछली मार्किट स्थित डी-3 फ़ैक्टरी के पास की चार झुग्गियों पर डीडीए द्वारा बुलडोज़र चलाकर उन्‍हें ज़मींदोज कर दिया गया। दोपहर के 12:30 बजे डीडीए के अधिकारियों ने झुग्गीवासियों से आधे घण्टे के अन्दर अपना सारा सामान समेट लेने को कहा। झुग्गीवालों ने वहाँ मौजूद अधिकारियों को अपने राशन कार्ड, आधार कार्ड, बिजली के बिल लाकर दिखाये और बताया कि वे 20 साल से और कुछ तो 35 साल से वहाँ पर रह रहे हैं, तब भी वहाँ खड़े अधिकारियों ने झुग्गीवालों की बात को अनसुना कर दिया। झुग्गीवालों के बार-बार अधिकारियों से उन्हें समय देने और उनकी बात सुनने की गुहार लगाने के बावजूद अधिकारियों ने गुण्डों और पुलिस की मदद से जबरन सामान बाहर फेंकवाना शुरू कर दिया। इस पूरी कार्यवाही के दौरान एक परिवार की गुल्लक से 4000 और एक के बैग से 8000 रुपये ग़ायब हो गये। झुग्गियों के टूटने से पहले झुग्गीवासी किसी तरह बारिश में अपना जीवनयापन कर रहे थे, मगर अब उनके सिर से छत ही छीन ली गयी है और उन्हें फूटपाथ पर जीने के लिए पटक दिया गया है। चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ने वायदा किया था कि पाँच साल तक एक भी झुग्गी नहीं टूटेगी और झुग्गी के बदले पक्के मकान दिये जायेंगे, मगर सरकार बनने के बाद से सिर्फ़ वज़ीरपुर में ही यह झुग्गियाँ टूटने की तीसरी घटना है। सत्ता में आने के 100 दिन के भीतर ही आम आदमी पार्टी के चुनावी वादों की पोल अब जनता के सामने खुल रही है। झुग्गीवासियों के दम पर 70 में से 67 सीट जीतने वाली आप की सरकार आज उसी को ख़ून के आँसू रुला रही है। जहाँ दिसम्बर की ठण्ड में आज़ादपुर की पटरी के पास रेलवे द्वारा 10 झुग्गियाँ तोड़ी गयी थीं, उसके बाद जेलर बाग में एक स्कूल और उससे लगी झुग्गियाँ तोड़ी गयी थीं और अभी भी पूरी दिल्ली भर के अलग-अलग इलाक़ों (शहादरा, खजूरी, मुकुन्दपुर) में भी झुग्गियों को तोड़े जाने की घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं।

दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा, कांग्रेस, आप, नक़ली लाल झण्डे वाली पार्टियाँ झुग्गीवालों के बीच उनके हमदर्द होने का दम भर रही थीं। मगर जब ग़रीबों के घरों को बेदर्दी से कुचला जा रहा था, तब इनमें से कोई वहाँ झुग्गीवालों की मदद करने या उनको सहारा देने नहीं पहुँचा। जब झुग्गीवालों ने फ़ोन कर सबको बुलाया तो कुछ कोरे आश्वासन देकर चले गये और कुछ ने तो जुबानी कवायद करना भी ज़रूरी नहीं समझा। चुनाव से पहले भाजपा सरकार के भूमि अधिग्रहण क़ानून में किये संशोधन की निन्दा करते हुए केजरीवाल साहब ने चाणक्यपुरी के बस्तीवालों से वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो झुग्गियों की जगह उन्हें पक्की रिहाइश मुहैया करायी जायेगी और सभी अनियमित कॉलोनियों और झुग्गियों को नियमित किया जायेगा। मगर आम आदमी की सरकार दिल्ली में बन जाने के बावजूद झुग्गियों पर हो रहे हमले बदस्तूर जारी हैं। 4 जुलाई को झुग्गियाँ टूटने के बाद वज़ीरपुर के विधायक ने वहाँ पहुँचकर जायजा लेना भी ज़रूरी नहीं समझा। बजट में रेडियो पर विज्ञापनों पर 526 करोड़ का ख़र्च निर्धारित करने वाली आम आदमी की सरकार ने मज़दूरों की झुग्गियों को बचाने के लिए कोई ख़ास इन्तज़ामात नहीं किये। हर बार की तरह इस बार भी किसी न किसी तकनीकी व क़ानूनी जुगत की दुहाई देते हुए केजरीवाल साहब ख़ुद को झुग्गीवालों की मदद करने में अक्षम बता रहे हैं, नहीं तो क्यों अब तक उन्होंने कोई ठोस क़दम नहीं उठाया। दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन ने घटनास्थल पर पहुँचकर तथ्यों की जानकारी इकट्ठा की, क़ानूनी सहायता से लेकर झुग्गियों के पुनर्निर्माण के लिए संघर्ष का रास्ता झुग्गीवालों के सामने रखा। झुग्गियों को तोड़ने और बेघर हुए झुग्गीवालों को बसाने के बारे में बने क़ानून इतने लचर और गोलमोल हैं कि सरकार क़ानूनी दाँवपेचों में फँसाकर आम मेहनतकश जनता को उलझाये रखती है। 1960 के बाद से लेकर अब तक झुग्गियों के पुनर्वासन के बारे में जितने भी क़ानून हैं, उनमें पारदर्शिता की कमी होने के चलते सबसे ज़्यादा नुक़सान झुग्गीवालों को उठाना पड़ता है। झुग्गीवालों को छत दिलाने की ज़िम्मेदारी राज्य की है, अप्रत्यक्ष कर के रूप में सरकार हर साल खरबों रुपया आम मेहनतकश जनता से वसूलती है, ऐसे में यह आम मेहनतकश जनता की ग़लती नहीं है। बल्कि यह राज्य की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह लोगों को रोज़गार मुहैया कराये और उनके रहने के लिए छत का इन्तज़ाम करे। दिल्ली के व्यापारियों के टैक्स माफ़ी के लिए तो केजरीवाल सरकार ने तत्परता दिखाते हुए सरकार बनने के कुछ समय के भीतर ही क़ानून में तब्दीली कर दी। मगर झुग्गीवालों से किये वादों को अमली जमा पहनाने में सरकार बिलकुल तत्पर नहीं दिख रही। दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन ने पूरे इलाक़े में पर्चा बाँटकर झुग्गीवालों को अपने हक़ के लिए एकजुट होने का सन्देश दिया क्योंकि जब तक पूरे इलाक़े के मज़दूर एक होकर सरकार पर दबाव नहीं बनायेंगे, तब तक हमारी बस्तियों में बुलडोज़र घरों को रौंधते रहेंगे। झुग्गियों का टूटना रुकवाने और पक्के मकानों का वादा पूरा करवाने के लिए इलाक़ाई एकजुटता ही एकमात्र रास्ता है। बिना व्यापक एकजुटता के सरकार पर दबाव बना पाना मुश्किल है। अगर हम अलग-थलग होकर लड़ते रहेंगे तो नुक़सान हमारा ही होगा।

 

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2015


 

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