इस व्यवस्था को चोट दो!

कपिल, करावल नगर, दिल्ली

यह व्यवस्था पूर्णतः लूट और अन्याय पर आधारित है। इस व्यवस्था में कोई मजदूर कितना भी हाथ पाँव मारेगा वह अपना विकास नहीं कर पायेगा; क्योंकि यह मालिकों की व्यवस्था है। मजदूर को अपने विकास के लिए अलग व्यवस्था बनाना होगा। इसे एक उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है। धान की छँटाई करने वाले हालर का सिस्टम अलग होता है और गेहूँ की पिसाई करने वाली चक्की का सिस्टम अलग होता है। अगर आप चाहेंगे कि धान की छँटाई हम गेहूँ की पिसाई करने वाली चक्की में करें तो यह कतई नहीं होगा; और अगर आप चाहेंगे कि गेहूँ की पिसाई हम धान की छँटाई करने वाले हालर में करें तो यह कतई नहीं होगा। इसलिए हमसफर साथियों! हम मजदूरों को अपने विकास के लिए अलग व्यवस्था बनानी होगी और वह व्यवस्था होगी ‘मजदूर राज’। लेकिन यह अकेले सम्भव नहीं है। कहावत है – हाथी हाथ से ठेला नहीं जा सकता। हम सभी मजदूरों को मिलकर इस सड़ी-गली व्यवस्था पर एक साथ चोट करना होगा!
गीत
फाटल पैर बेवइया हो भैया गर्मी के दुपहरिया में,
खून ई बनल पसीना भैया गरमी की दुपहरिया में;
केतनों काम करीला लेकिन मालिक के संतोष नहीं ,
अहंकार में डूबल हौवै, वोकरे तनिकों होश नहीं;
मजूर कै संगी मजूर हौ, येह दिल्ली नगरिया में ;
फाटल पैर बेवइया हो भैया….
केतनों जाँगर पेरा भैया कम कइके बतावय ला,
आठ बजे तक काम से छोड़े सगरो दिन दौड़ावे ला,
बाद में भैया चक्कर काटीं आस में अपनी माजूरिया के;
फाटल पैर बेवइया हो भैया….

 

मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2015


 

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