बिगुल पुस्तिका – 1
कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और उसका ढाँचा

(1921 में कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल की तीसरी कांग्रेस द्वारा स्वीकृत “कम्युनिस्ट पार्टियों के संगठन पर प्रस्ताव”)

व्ला.इ. लेनिन

भूमिका (1.9.97)
मज़दूरों और क्रान्तिकारी कार्यकर्ताओं के लिए एक बेहद ज़रूरी पुस्तिका

पेरिस कम्यून से लेकर अब तक के सभी वर्ग-संघर्षों की, रूस और चीन की महान मज़दूर क्रान्तियों सहित पूरी दुनिया की सभी क्रान्तियों की सबसे बुनियादी शिक्षाओं में से एक यह है कि क्रान्ति के लिए एक क्रान्तिकारी पार्टी पहली बुनियादी ज़रूरत है । अपनी एक सच्ची क्रान्तिकारी पार्टी – एक सही कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व के बिना सर्वहारा वर्ग पूँजीपति वर्ग के विरुद्ध अपनी लड़ाई को फ़ैसलाकुन जीत की मंज़िल तक क़तई नहीं पहुँचा सकता।

यही नहीं, राज्यसत्ता हासिल करने के बाद भी, सर्वहारा वर्ग समाजवाद को क़ायम रखने और कम्युनिज़्म की दिशा में आगे बढ़ाने का काम तभी जारी रख सकता है, जब तमाम शोषक वर्गों पर उसका सर्वतोमुखी अधिनायकत्व क़ायम रखने और उनके खि़लाफ़ लगातार वर्ग संघर्ष जारी रखने के काम में उसकी रहनुमाई एक सही क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट पार्टी कर रही हो।

आज एक ऐसी ही सही-सच्ची क्रान्तिकारी पार्टी बनाने का सवाल हमारे देश के मज़दूर वर्ग के सामने है और दुनिया के अधिकांश देशों के मज़दूरों के सामने है।

आज रूस, चीन सहित पूरी दुनिया में समाजवाद की जो हार हुई है, वह अन्तिम नहीं है। सर्वहारा वर्ग के विद्रोह और संघर्ष पूरी दुनिया में पूँजीवाद के किलों के दरवाजों पर दस्तक दे रहे हैं। पूँजीवाद का संकट भी बता रहा है कि यह अमर तो दूर, दीर्घजीवी भी नहीं है। बढ़ती बेरोज़गारी, छँटनी-तालाबन्दी, महँगाई, दमन और अधिकारों के छिनने के लगातार जारी सिलसिले के खि़लाफ़ मेहनतकश जनता को उठ खड़ा होना ही है। पर विद्रोह अपने आप क्रान्ति नहीं बन सकते। इसके लिए एक नेतृत्व की ज़रूरत होती है, एक ऐसे हरावल दस्ते की ज़रूरत होती है जो क्रान्ति के विज्ञान की समझ से लैस होता है। सर्वहारा वर्ग की अपनी इंक़लाबी पार्टी का होना ही इस बात की पहली गारण्टी है कि तमाम जनकार्रवाइयों और आन्दोलनों में, जनता के तमाम वर्गों के संयुक्त मोर्च की अगुवाई सर्वहारा वर्ग करे और पूँजीवाद-साम्राज्यवाद की सत्ता को चकनाचूर करने वाली फ़ैसलाकुन आम बगावत की पूरी तैयारी की लम्बी प्रक्रिया में, सही समय पर मेहनतकश अवाम को हथियारबन्द भी किया जा सके।

मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी पार्टी सिर्फ़ इसी बात से नहीं बन जायेगी कि उसमें शामिल लोग नीयतन इंक़लाबी हैं या कि वे समाजवाद लाना चाहते हैं। शोषक वर्गों की सुसंगठित राज्यसत्ता से टकराने के लिए जनता की उतनी ही सुसंगठित इंक़लाबी शक्ति की ज़रूरत होती है। इसीलिए एक क्रान्तिकारी पार्टी शुरू से ही इस बात की पूरी तैयारी रखती है कि वक़्त पड़ने पर वह दुश्मन के हर हमले का सामना करके ख़ुद को बिखरने से बचा सके, अन्यथा जनता नेतृत्वविहीन हो जायेगी। वह अपनी क़तारों को पूरी तरह तैयार करती है कि जन संघर्ष के सबसे कठिन दौरों में भी वे अपनी सूझबूझ और साहस के दम पर लोगों की अगुवाई कर सके।

जिस पार्टी का लक्ष्य इस व्यवस्था को नष्ट करने के लिए राज्यसत्ता से टकराना है, वह एकदम खुले दरवाज़े से भर्ती करने वाली, चवन्निया मेम्बरी बाँटने वाली एक “जन-पार्टीय” नहीं हो सकती। उसे बहुत छांट-बीनकर, क्रान्तिकारी भर्ती करनी होगी, जाँचना-परखना होगा और शिक्षित करना होगा। ऐसी पार्टी सिर्फ़ तपे-तपाये, अनुशासित, कर्मठ कार्यकर्ताओं की ही पार्टी हो सकती है, जिसके मेरुदण्ड के रूप में पेशेवर क्रान्तिकारियों की (पूरा-वक़्ती कार्यकर्ताओं की) टीम हो। ऐसी पार्टी पूँजीवादी जनवाद का लाभ तो उठायेगी, लेकिन वह किसी भी हालत में पूरी तरह खुले ढाँचे वाली और महज चुनाव लड़ने वाली या महज आर्थिक माँगों को लेकर लड़ने के लिए ट्रेड यूनियनों की दुकानदारी चलाने वाली पार्टी नहीं हो सकती। ऐसा होने का मतलब है कि वह पार्टी महज नाम की कम्युनिस्ट पार्टी है, वास्तव में उसे इसी व्यवस्था के दायरे में जीना है, मज़दूरों के लिए कुछ रियायतें माँगते रहना है और नक़ली लाल झण्डा दिखाकर मज़दूर वर्ग को भरमाकर पूँजीपतियों-साम्राज्यवादियों का हित साधते रहना है।

एक सच्ची क्रान्तिकारी पार्टी तमाम खुले और क़ानूनी संघर्षों में भागीदारी करते हुए हर कठिनाई के लिए तैयार रहती है और अपना गुप्त ढाँचा अनिवार्यतः बरकरार रखती है। परिस्थिति होने पर वह संघर्ष के उन रूपों को भी अवश्य अपनाती है जो क़ानून-संविधान को मंजूर नहीं होते और निर्णायक संघर्ष की तैयारी वह हरदम जारी रखती है क्योंकि वह जानती है कि इतिहास में कभी भी शोषक वर्गों ने अपनी मर्जी से सत्ता त्यागकर ख़ुद अपनी कब्र नहीं खोदी है। कभी भी उनका हृदय-परिवर्तन नहीं हुआ है। राज्यसत्ता तो बलपूर्वक ही छीनी जाती है।

एक सच्ची कम्युनिस्ट पार्टी मज़दूर वर्ग के साथ ही पूरी जनता के रोज़मर्रा के तमाम संघर्षों में हिस्सेदारी करती है और उनकी आर्थिक माँगों को लेकर संघर्ष करती है, पर वह हमेशा साथ-साथ राजनीतिक माँगों को लेकर भी लड़ती है क्योंकि अन्तिम फ़ैसला राजनीति से ही होगा, क्योंकि निर्णायक प्रश्न राज्यसत्ता का प्रश्न है।

एक क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट पार्टी विचारधारा पर सर्वाधिक ज़ोर देती है और इसी के आधार पर वह ठोस परिस्थितियों का ठोस विश्लेषण करती है, दोस्त-दुश्मन की सही पहचान करती है तथा संयुक्त मोर्चा बनाकर क्रान्ति के कार्यक्रम को अमली जामा पहनाती है। वह जनवादी केन्द्रीयता के सिद्धान्तों पर काम करती है। उसमें फौलादी अनुशासन और आन्तरिक जनवाद का सन्तुलनकारी तालमेल होता है, न तो नौकरशाहाना दबाव होता है और न ही मनमानापन। ऐसे सांगठनिक ढाँचे में सामूहिक समझ प्रयोगों में काम करती है, दो लाइनों का संघर्ष लगातार चलता रहता है और उसके ज़रिये गन्दगी की, विजातीय तत्वों की लगातार छँटाई-सफ़ाई भी होती रहती है।

भारत के मज़दूर वर्ग को आज अपनी क्रान्तिकारी पार्टी का पुनर्गठन करना है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का नक़ली कम्युनिज़्म तो अरसे पहले बेनकाब हो चुका था। अब बंगाल-केरल से लकर केन्द्र तक की राजनीति में उनका सबसे गन्दा रूप भी नंगा हो चुका है। वे कैसा समाजवाद और किस रास्ते से लाना चाहते हैं — यह सामने है! और अब क्रान्तिकारी शिविर से निकलकर भा.क.पा. (मा-ले) (विनोद मिश्र गुट) जैसे संगठन भी इसी झुण्ड में शामिल हो चुके हैं। कई ऐसे संगठन हैं जो क्रान्तिकारी होने का दावा करने के बावजूद व्यवहार में एकदम संशोधनवादी आचरण कर रहे हैं। चिन्ता की बात तो यह है कि देश के विभिन्न हिस्सों में काम करने वाले बहुतेरे क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट ग्रुप भी आज सांगठनिक सिद्धान्तों और व्यवहार के मामले में बेहद ढिलाई बरत रहे हैं। वे या तो मध्यमवर्गीय अराजकतावादियों और दुस्साहसवादियों जैसा आचरण कर रहे हैं या फिर संशोधनवादियों जैसा। प्रायः वे ढीला-ढाला सामाजिक जनवादी आचरण कर रहे हैं और एक सही, चुस्त-दुरुस्त, क्रान्तिकारी सांगठनिक ढाँचा खड़ा करने के बारे में गम्भीर नहीं दिखायी दे रहे हैं। ट्रेड यूनियनों और अन्य जनसंगठनों में पार्टी-कार्य के तौर-तरीक़ों की मार्क्सवादी शिक्षाएँ भुला दी गयी हैं। पार्टी-भर्ती की सही पद्धति की उपेक्षा की जा रही है। आर्थिक संघर्ष, राजनीतिक संघर्ष और राजनीतिक प्रचार एवं शिक्षा की कार्रवाइयों में सही तालमेल का अभाव है।

ऐसे में हम लेनिन के इस ऐतिहासिक दस्तावेज़ को मज़दूर वर्ग और क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट कार्यकतार्ओं की शिक्षा के लिए बेहद ज़रूरी समझकर पुस्तिका के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। ‘बिगुल’ अख़बार में यह पहले ही नौ किश्तों में छप चुका है। यह जानना ज़रूरी है कि आज सर्वहारा वर्ग को किस तरह की क्रान्तिकारी पार्टी की ज़रूरत है, वह पार्टी जनता में किस प्रकार कार्य करेगी, उसका ढाँचा और आन्तरिक कार्य-पद्धति कैसी होगी, ट्रेड यूनियन आन्दोलन को वह किस प्रकार क्रान्तिकारी दिशा देगी… आदि-आदि। यह बेशकीमती पुस्तिका काफ़ी हद तक इस मामले में कार्यकर्ताओं के लिए एक गाइड-बुक का काम करेगी और सांगठनिक ढाँचे सम्बन्धी उन बुनियादी उसूलों से हमें परिचित करायेगी, जिन्हें नक़ली, संसदमार्गी कम्युनिस्टों ने हमेशा छिपाया है या तोड़-मरोड़कर पेश किया है।

लेनिन ने ही पहली बार, समग्र रूप में एक क्रान्तिकारी सर्वहारा पार्टी के निर्माण एवं गठन तथा स्वरूप एवं प्रकृति से सम्बन्धित सिद्धान्त प्रतिपादित किये। इन्हीं सिद्धान्तों पर उन्होंने मेंशेविकों से अपना रास्ता अलग कर लिया और बोल्शेविक पार्टी की स्थापना की । सांगठनिक ढाँचा विषयक बोल्शविक उसूलों से और मेंशेविकों से उनके मतभेदों से परिचित होने के लिए क्या करें? पुस्तक पढ़ना ज़रूरी है। उसका आज ऐतिहासिक महत्त्व है।

यह पुस्तिका लेनिन द्वारा प्रतिपादित बुनियादी सांगठनिक उसूलों को सरल रूप में और साथ ही सूत्रवत् प्रस्तुत करती है। दरअसल इसे 1921 में कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल की तीसरी कांग्रेस में कम्युनिस्ट पार्टियों के संगठन पर प्रस्ताव शीर्षक से दस्तावेज़ के रूप में प्रस्तुत किया गया था और पारित किया गया था। इसका मसविदा स्वयं लेनिन ने तैयार किया था। आज यह दुर्लभ दस्तावेज़ विश्व कम्युनिस्ट आन्दोलन की धरोहर बन चुका है। इसका महत्त्व न सिर्फ़ ऐतिहासिक है बल्कि मज़दूर वर्ग के लिए तथा कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के लिए आज भी यह एक बेहद ज़रूरी किताब है।

वे तमाम मज़दूर साथी और कार्यकर्ता कॉमरेडगण जो आज नये सिरे से एक क्रान्तिकारी पार्टी बनाने के बारे में संजीदगी के साथ सोचते हैं, उनसे हमारी पुरज़ोर सिफ़ारिश है कि इस पुस्तिका को ज़रूर पढ़ें और कई बार पढ़ें और इसे आज अपने देश की परिस्थितियों से जोड़कर देखें।

                                                                                इंक़लाबी सलामी के साथ,
सम्पादक
नयी समाजवादी क्रान्ति का उद्घोषक बिगुल


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ये पुस्तक राहुल फाउण्डेशन, लखनऊ द्वारा प्रकाशित की गयी है। प्रिण्ट कापी ऑर्डर करने के लिए यहाँ क्लिक करें 


I.

सामान्य सिद्धान्त

सर्वहारा का अगुआ दस्ता

1. पार्टी के संगठन को परिस्थितियों और उसके कार्य के उद्देश्य के अनुकूल ढालना चाहिए। क्रान्तिकारी वर्ग संघर्ष के सभी दौर में तथा समाजवाद की स्थापना यानी साम्यवादी समाज की पहली मंज़िल की ओर अग्रसर होते हुए उसके बाद के संक्रमण काल में कम्युनिस्ट पार्टी को अगुआ दस्ते का, सर्वहारा वर्ग की अग्रिम चौकी का काम करना चाहिए।

2. कम्युनिस्ट पार्टियों के संगठन का कोई पूरी तरह से अचूक और कभी न बदला जा सकने वाला स्वरूप नहीं होता। सर्वहारा के वर्ग संघर्ष की परिस्थितियाँ विकास की निरन्तर प्रक्रिया के क्रम में परिवर्तनशील होती हैं तथा सर्वहारा के अगुआ दस्ते के संगठन को इन परिवर्तनों के अनुरूप स्वरूपों की खोज भी निरन्तर जारी रखनी चाहिए। इसी तरह से सम्बन्धित पार्टी के संगठन के विशेष बदले हुए स्वरूप का निर्धारण भी प्रत्येक अलग-अलग देश की विशेष परिस्थितियाँ करेंगी।

किन्तु संगठन के इस प्रकार के विभेदीकरण की निश्चित सीमाएँ होती हैं। इन सारी विशेषताओं के बावजूद, विभिन्न देशों में और सर्वहारा क्रान्ति की विभिन्न मंज़िलों में परिस्थितियों की समानता का अन्तर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के लिए बुनियादी महत्त्व है। इससे सभी देशों में कम्युनिस्ट पार्टियों के संगठन के लिए समान आधार तैयार होता है।

इस आधार पर यह आवश्यक है कि कम्युनिस्ट पार्टियों के संगठन को विकसित किया जाये। किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि मौजूदा पार्टियों की जगह पर नयी आदर्श पार्टियाँ स्थापित की जायें तथा संगठन के किसी पूरी तरह से सही स्वरूप और आदर्श विधान बनाने का उद्देश्य सामने रखा जाये।

क्रान्ति का माध्यम

3. अधिकांश कम्युनिस्ट पार्टियों के लिए, तथा विश्व भर के क्रान्तिकारी सर्वहारा के संयुक्त दल के रूप में कम्युनिस्ट इन्टरनेशनल के लिए उनके संघर्ष की हालतों में यह समान लक्षण होता है कि उन्हे अभी भी हावी पूँजीपति वर्ग के विरूद्ध लड़ना है। इन सबके लिए जब तक स्थिति आगे न बढ़ जाये, निर्णायक और निर्देशक लक्ष्य है पूँजीपति वर्ग को हराना तथा उसके हाथ से सत्ता को छीन लेना। इसलिए, पूँजीवादी देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों के संगठन सम्बन्धी कार्यों का निर्णायक तत्व ऐसे संगठनों को खड़ा करना होना चाहिए जो सत्तारूढ़ वर्गों के ऊपर सर्वहारा क्रान्ति की विजय को सम्भव तथा सुनिश्चित बना देंगे।

नेतृत्व का संगठन

4. किसी भी कार्य के लिए नेतृत्व एक आवश्यक शर्त होती है। किन्तु विश्व के इतिहास के सबसे बड़े संघर्ष के लिए तो वह सबसे अधिक अनिवार्य है। कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन सर्वहारा क्रान्ति में कम्युनिस्ट नेतृत्व का संगठन है।

अच्छा नेता बनने के लिए स्वयं पार्टी के पास अच्छा नेतृत्व होना चाहिए। इसलिए हमारे संगठनात्मक कार्य का मूल उद्देश्य होना चाहिए – सर्वहारा वर्ग के क्रान्तिकारी आन्दोलन में नेतृत्वकारी स्थान ग्रहण करने के लिए सुयोग्य नेतृत्वकारी कमेटियों के अन्तर्गत कम्युनिस्ट पार्टियों को संगठित और प्रशिक्षित करना।

5. अधिक से अधिक सम्भावित प्रहार शक्ति तथा संघर्ष की सदा बदलती हुई हालतों में कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी नेतृत्वकारी कमेटियों में अपने को इन हालतों के अनुकूल ढालने की क्षमता — इन दोनो का जीवित योगदान ही क्रान्तिकारी वर्ग संघर्ष में नेतृत्व का मतलब है। इसके अलावा सफल नेतृत्व के लिए सर्वहारा जनता के साथ निकटतम सम्बन्ध नितान्त आवश्यक है। इस प्रकार के सम्बन्ध के बग़ैर नेतृत्व जनता की अगुआई नहीं करेगा। ज़्यादा से ज़्यादा वह जनता के पीछे-पीछे चल सकता है।

कम्युनिस्ट पार्टी के संगठन के अन्दर सजीव एकता जनवादी केन्द्रीयता के द्वारा हासिल की जानी चाहिए।

II

जनवादी केन्द्रीयता के बारे में

वर्ग संघर्ष के लिए पार्टी में जनवाद और केन्द्रीयता का वास्तविक मेल ज़रूरी

6. कम्युनिस्ट पार्टी के संगठन में जनवादी केन्द्रीकरण का एकमात्र मतलब है सर्वहारा जनवाद और केन्द्रीयता का वास्तविक मेल, इन दोनों का एक-दूसरे के साथ मिला होना। इस प्रकार का सम्मिलन, सिर्फ़ पार्टी के समूचे संगठन द्वारा लगातार सामान्य कार्रवाइयों के आधार पर, निरन्तर सामान्य संघर्षों के आधार पर ही सम्भव हो सकता है। कम्युनिस्ट पार्टी संगठन में केन्द्रीकरण का मतलब रस्मी और मशीनी केन्द्रीकरण नहीं होता, बल्कि वह कम्युनिस्ट कार्रवाइयों का केन्द्रीकरण होता है, यानी इसका मतलब एक ऐसे नेतृत्व का निर्माण होता है जो युद्ध के लिए तैयार हो और साथ-साथ अपने को हर परिस्थिति के अनुकूल ढालने की क्षमता रखता हो। औपचारिक या यान्त्रिक केन्द्रीकरण एक ऐसी औद्योगिक नौकरशाही के हाथों में “सत्ता” का केन्द्रीकरण होता है जो बाकी सदस्यों और संगठन के बाहर के क्रान्तिकारी सर्वहारा जनसमुदाय पर हावी होती है। सिर्फ़ कम्युनिज़्म के दुश्मन ही यह कह सकते हैं कि सर्वहारा वर्ग-संघर्ष का संचालन करती हुई और कम्युनिस्ट नेतृत्व को केन्द्रीकृत करती हुई, कम्युनिस्ट पार्टी सर्वहारा वर्ग पर शासन करने की कोशिश कर रही है। ऐसा दावा करना एक झूठ है। पार्टी के भीतर सत्ता के लिए होड़ या प्रभुत्व के लिए टकराव कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल द्वारा स्वीकृत जनवादी केन्द्रीयता के बुनियादी सिद्धान्तों से बिलकुल मेल नहीं खाता।

नौकरशाही और औपचारिक जनवाद — दोनों नहीं

पुराने, ग़ैरक्रान्तिकारी मज़दूर आन्दोलन के संगठन में एक उसी क़िस्म की सर्वव्यापी द्विविधता (या द्वैतवाद) विकसित हो गयी है जैसी कि बुर्जुआ राज्य में; यानी कि नौकरशाही और “जनता” के बीच की द्विविधता। पूँजीवादी माहौल के सुविचारित प्रभाव के अन्तर्गत, कामों का एक ख़ास क़िस्म का बँटवारा विकसित हो गया है, साझा उद्यमों के जीवन्त सहमेल की जगह एक बांझ क़िस्म के औपचारिक जनवाद ने ले ली है और संगठन एक ओर सक्रिय पदाधिकारियों और दूसरी ओर निष्क्रिय जनता में बँट गया है। क्रान्तिकारी मज़दूर आन्दोलन ने भी पूँजीवादी माहौल से कुछ हद तक द्विविधता की इस रुझान को अनिवार्य रूप से विरासत में हासिल कर लिया है।

व्यवस्थित ढंग से और लगातार जमकर किये गये राजनीतिक और सांगठनिक कार्य के ज़रिये और लगातार सुधार और परिष्कार के द्वारा कम्युनिस्ट पार्टी को बुनियादी तौर से इस विरोध को समाप्त कर देना चाहिए।

7. एक समाजवादी जन पार्टी को एक कम्युनिस्ट पार्टी में बदलते समय, पार्टी को पुरानी व्यवस्था को अपरिवर्तित छोड़कर अपने को केन्द्रीय नेतृत्व के हाथों में प्राधिकार (अथॅारिटी) के संकेन्द्रण मात्र तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। केन्द्रीकरण महज कागजों पर ही नहीं मौजूद रहना चाहिए, बल्कि वास्तव में अमल में आना चाहिए और यह केवल तभी सम्भव हो सकता है जबकि आम सदस्य यह महसूस करें कि यह केन्द्रीय ‘अथॉरिटी’ उनकी आम कार्रवाइयों और संघर्षो का एक मूलभूत रूप से प्रभावी उपकरण है। अन्यथा, यह जनता को पार्टी के भीतर नौकरशाही के रूप में दिखायी देगी और इसलिए, हर प्रकार के केन्द्रीकरण, हर प्रकार के नेतृत्व और सभी अनुवर्ती अनुशासन के विरोध को बल प्रदान करेगी, नौकरशाही के विपरीत ध्रुव पर अराजकता को बल प्रदान करेगी।

संगठन में महज औपचारिक जनवाद न तो नौकरशाही और न ही अराजकता की प्रवृत्ति को दूर कर सकता है, बल्कि इसके विपरीत इन प्रवृत्तियों के लिए यही औपचारिक जनवाद उपजाऊ जमीन का काम करता है। इसलिए, एक मजबूत नेतृत्व तैयार करने के उद्देश्य में संगठन का केन्द्रीकरण तब तक सफल नहीं हो सकता, जब तक कि उसे औपचारिक जनवाद के आधार पर हासिल करने की कोशिश की जायेगी। पार्टी के भीतर, उसके निर्देशक निकायों (यानी नेतृत्वकारी कमेटियों – सं.) और सदस्यों के बीच तथा पार्टी और पार्टी के बाहर के सर्वहारा जनसमुदाय के बीच जीवन्त साहचर्य और आपसी सम्बन्धों को विकसित करना और बनाये रखना इसकी आवश्यक पूर्वशर्त है।

III

कम्युनिस्ट क्रियाकलाप के कर्तव्य

पार्टी-सदस्य का सर्वोपरि कर्तव्य

8. कम्युनिस्ट पार्टी को क्रान्तिकारी मार्क्सवाद का प्रशिक्षण देने वाली पाठशाला होना चाहिए। संगठन के विभिन्न अंगों और सदस्यों के बीच जैविक (या जीवन्त) सम्बन्ध पार्टी-गतिविधियों के दैनन्दिन आम कार्यों के ज़रिये स्थापित होते हैं।

क़ानूनी हालात के अन्तर्गत काम करने वाली कम्युनिस्ट पार्टियों में, आज भी रोज़मर्रा के पार्टी-कार्यों में अधिकांश सदस्य नियमित रूप से हिस्सा नहीं लेते। इन पार्टियों की यही सबसे बड़ी कमज़ोरी है जो इनके विकास में लगातार अस्थिरता बने रहने का बुनियादी कारण है।

9. मज़दूर वर्ग की प्रत्येक पार्टी के कम्युनिस्ट रूपान्तरण की पहली मंज़िल में उसके सामने यह ख़तरा मौजूद रहता है कि वह महज एक कम्युनिस्ट कार्यक्रम को स्वीकार करके, अपने प्रचार में पुराने सिद्धान्तों के स्थान पर कम्युनिस्ट शिक्षाओं को शामिल करके और विरोधी शिविर के पदाधिकारियों को हटाकर उनकी जगह कम्युनिस्ट पदाधिकारियों को बहाल करके ही सन्तुष्ट हो जाये। कम्युनिस्ट कार्यक्रम को मान लेने का मतलब सिर्फ़ कम्युनिस्ट बनने के इरादे को ज़ाहिर करना है। यदि कम्युनिस्ट क्रियाशीलता का अभाव है और आम सदस्यों की निष्क्रियता बनी रहती है; तो पार्टी कम्युनिस्ट कार्यक्रम को स्वीकार करते समय अपने लिए जो प्रतिज्ञा करती है उसका एक मामूली सा हिस्सा भी पूरा नहीं कर पाती। ऐसा इसलिए कि इस कार्यक्रम को लागू करने की पहली शर्त ही यह है कि पार्टी के निरन्तर दैनिक कार्यों में उसके सभी सदस्य भाग लें।

कम्युनिस्ट संगठन की कला इस क्षमता में निहित है कि यह सर्वहारा वर्ग-संघर्ष के लिए प्रत्येक का इस्तेमाल करे, सभी पार्टी-सदस्यों में पार्टी कार्यों का बँटवारा करे तथा अपने सदस्यों के ज़रिये क्रान्तिकारी आन्दोलन की ओर सर्वहारा जनसमुदाय के बड़े से बड़े हिस्से को लगातार आकर्षित करे। इसके अतिरिक्त, उसे पूरे आन्दोलन की बागडोर अपने हाथों में सिर्फ़ अपनी शक्ति के बल पर ही नहीं बल्कि अपनी प्रतिष्ठा (अथॉरिटी), ऊर्जा, अपेक्षतया अधिक अनुभव, अपेक्षतया अधिक सर्वतोमुखी जानकारी और क्षमताओं के बल पर बनाये रखना होता है।

10. एक कम्युनिस्ट पार्टी को हरचन्द कोशिश करनी चाहिए कि उसके पास केवल सही मायने में सक्रिय सदस्य रहें तथा उसे प्रत्येक आम पार्टी-कार्यकर्ता से यह माँग करनी चाहिए कि वह मौजूद हालात में जहाँ तक उसके लिए सम्भव हो, अपनी पूरी ताक़त और समय पार्टी को दे और इस तरह की सेवाओं में अपनी सर्वोत्तम शक्तियों को समर्पित कर दे।

स्वाभाविक तौर पर, कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता के लिए कम्युनिस्ट विश्वासों के अतिरिक्त औपचारिक पंजीकरण, पहले एक उम्मीदवार के रूप में और फिर एक पूर्ण सदस्य के रूप में तथा इसके साथ ही निर्धारित शुल्क की नियमित अदायगी, पार्टी पत्र की सदस्यता आदि अनिवार्य शर्तें हैं। लेकिन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है प्रत्येक सदस्य का पार्टी के रोज़मर्रा के कार्यों में हिस्सा लेना।

प्रत्येक सदस्य को किसी न किसी पार्टी-इकाई का सदस्य होना चाहिए

11. पार्टी कार्य को सम्पन्न करने के उद्देश्य से प्रत्येक सदस्य को, नियम के तौर पर, किसी छोटे वर्किंग ग्रुप, किसी कमेटी, किसी आयोग, किसी बड़े ग्रुप, फ्रैक्शन या केन्द्रक (न्यूक्लियस) का भी सदस्य होना चाहिए। सिर्फ़ इसी तरह से पार्टी कार्य का समुचित रूप में बँटवारा हो सकेगा, निर्देशन हो सकेगा तथा उसे पूरा किया जा सकेगा।

निस्सन्देह, यह कहने की आवश्यकता नहीं कि स्थानीय संगठन के सदस्यों की आम बैठक में सदस्यों को उपस्थित रहना चाहिए। पार्टी के क़ानूनी अस्तित्व के हालात में, क़ानूनी परिस्थितियों में होने वाली इन नियमित आम बैठकों के बजाय स्थानीय प्रतिनिधियों की बैठकों को उनका विकल्प बना देना क़तई बुद्धिमानी नहीं होगी। सभी सदस्यों के लिए नियमित रूप से इन बैठकों में मौजूद रहना अनिवार्य होना चाहिए। पर किसी भी हालात में सिर्फ़ यही काफ़ी नहीं है। इन बैठकों की तैयारियों का मतलब ही है छोटे-छोटे ग्रुपों में काम या इस उद्देश्य के लिए नियुक्त किये गये कॉमरेडों द्वारा किया गया काम, मज़दूरों की आम सभा, प्रदर्शनों तथा जनकार्रवाइयों की तैयारी तथा प्रभावशाली ढंग से तैयारी के इस अवसर का इस्तेमाल। इन सारी गतिविधियों से जुड़े असंख्य कार्यभारों का ध्यानपूर्वक अध्ययन छोटे-छोटे ग्रुपों में ही हो सकता है और घनीभूत ढंग से ये कार्यभार छोटे-छोटे ग्रुपों द्वारा ही सम्पन्न किये जा सकते हैं। कार्यकर्ताओं के असंख्य छोटे-छोटे ग्रुपों में बँटी हुई समूची सदस्यता द्वारा इस तरह के लगातार जारी रहने वाले रोज़मर्रा के कार्यों को लगातार चलाये बग़ैर, सर्वहारा के वर्ग-संघर्ष में भाग लेने के लिए अत्यन्त परिश्रम से किया गया प्रयास भी हमें केवल इन संघर्षों को प्रभावित करने के कमज़ोर और निरर्थक प्रयत्नों तक ही ले जायेगा। यह हमें सर्वहारा की महत्त्वपूर्ण क्रान्तिकारी शक्तियों को एक एकीकृत प्रभावी कम्युनिस्ट पार्टी के रूप में संघटित करने के आवश्यक कार्य की ओर नहीं ले जायेगा।

कारख़ानों में बने पार्टी-सेलों (छोटी कमेटियों) का महत्त्व

12. सामयिक आन्दोलनात्मक कार्रवाई (एजिटेशन), पार्टी-शिक्षा, समाचार-पत्रों के कार्य, साहित्य-वितरण, सूचना-सेवाओं और अन्य नियमित पार्टी-सेवाओं आदि पार्टी-गतिविधियों की हर शाखाओं के रोज़मर्रा के कार्यों के लिए पार्टी-सेलों का गठन अनिवार्य है।

कारख़ानों और वर्कशापों में, ट्रेड यूनियनों में, सर्वहारा एसोसियेशनों में, सैनिक इकाइयों आदि में जहाँ कहीं भी कम्युनिस्ट पार्टी के कम से कम कुछ सदस्य या उम्मीदवार सदस्य हैं, रोज़मर्रा के कम्युनिस्ट कार्यों के निष्पादन के लिए बुनियादी ग्रुप (कर्नेल ग्रुप) कम्युनिस्ट केन्द्रक (न्यूक्लियस) होते हैं। यदि एक ही कारख़ाने या एक ही यूनियन आदि में पार्टी सदस्यों की संख्या अधिक होती है तो केन्द्रक को एक फ्रैक्शन के रूप में विस्तारित कर दिया जाता है तथा इसके कार्यों का निर्देशन बुनियादी ग्रुपों द्वारा किया जाता है।

यदि एक अधिक व्यापक स्तर पर आम प्रतिपक्षी फ्रैक्शन बनाना या पहले से ही मौजूद ऐसे किसी फ्रैक्शन में भाग लेना आवश्यक हो जाये तो कम्युनिस्टों को उसके अन्दर विशेष केन्द्रक (स्पेशल न्यूक्लियस) बनाकर नेतृत्व अपने हाथ में लेने की कोशिश करनी चाहिए।

किसी कम्युनिस्ट केन्द्रक को, जहाँ तक उसके आसपास के परिवेश का सवाल है, उसमें खुला होकर या यहाँ तक कि आम जनता के सामने खुले तौर पर काम करना चाहिए या नहीं, यह बात विशेष मामले की विशेष स्थिति पर, ऐसा करने में निहित ख़तरों और कायदों के गम्भीर अध्ययन के नतीजों पर निर्भर करेगी।

13. पार्टी के अन्दर आम अनिवार्य कार्यों की व्यवस्था लागू करना और ऐसे छोटे वर्किंग ग्रुपों को संगठित करना कम्युनिस्ट जन-पार्टियों के लिए एक विशेष रूप से कठिन कार्य है। यह काम एक झटके में नहीं किया जा सकता। यह अनथक अध्यवसाय, परिपक्व चिन्तन और अधिक ऊर्जा की माँग करता है।

यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है कि संगठन के इस नये रूप को प्रारम्भ से ही सावधानी के साथ और भली-भाँति सोच-विचारकर लागू किया जाये। एक औपचारिक स्कीम के अनुसार प्रत्येक संगठन के सभी सदस्यों को छोटे-छोटे केन्द्रकों और ग्रुपों में बाँट देना तथा इन्हें आम दैनिक पार्टी-कार्य करने का आदेश दे देना तो बहुत ही आसान काम होगा। पर इस क़िस्म की शुरुआत तो कोई शुरुआत न करने से भी बुरी होगी। इससे इन महत्त्वपूर्ण नये परिवर्तनों के प्रति पार्टी सदस्यों में असन्तोष और नाराजगी ही पैदा होगी।

कम्युनिस्ट सेलों का संगठन कैसे किया जाये

उपयुक्त यह होगा कि पार्टी ऐसे अनेक योग्य संगठनकर्ताओं से सलाह ले जो सिद्धान्तों में तर्कपूर्ण आस्था रखने वाले और उनसे प्रेरित कम्युनिस्ट हों तथा जो देश के विभिन्न केन्द्रों के आन्दोलनों से पूरी तरह परिचित हों, और तब इन नये परिवर्तनों को (यानी नया क्रान्तिकारी सांगठनिक ढाँचा बनाने विषयक निर्णयों को) लागू करने के लिए एक विस्तृत आधार की रूपरेखा तैयार करे। इसके बाद प्रशिक्षित संगठनकर्ताओं या सांगठनिक कमेटियों को मौक़े पर सीधे काम सम्हाल लेना चाहिए, ग्रुपों के प्रथम नेताओं का चुनाव कर लेना चाहिए तथा प्राथमिक चरणों का काम शुरू कर देना चाहिए। फिर पार्टी के सभी संगठनों, वर्किंग ग्रुपों, केन्द्रकों और अलग-अलग सदस्यों को ठोस, स्पष्ट रूप में परिभाषित कार्यभार सौंपे जाने चाहिए और इन कार्यभारों को इस तरह प्रस्तुत किया जाना चाहिए कि तत्काल ही वे उपयोगी, वांछनीय और पूरा करने के क़ाबिल मालूम पड़ें। जहाँ भी आवश्यक हो उन्हें व्यावहारिक प्रदर्शनों द्वारा बताया जाना चाहिए कि इन कार्यभारों को किस प्रकार पूरा किया जाना है! साथ ही साथ उन्हें उन ग़लत क़दमों के बारे में चेतावनी भी दे दी जानी चाहिए जिनसे ख़ासतौर पर बचना है।

14. पुनर्गठन के इस कार्य को व्यवहार में क़दम-ब-क़दम पूरा किया जाना चाहिए। शुरू में स्थानीय संगठन में कार्यकर्ताओं के बहुत अधिक केन्द्रक या ग्रुप नहीं बनाये जाने चाहिए। पहले छोटे मामलों में यह सिद्ध किया जाना चाहिए कि अलग-अलग महत्त्वपूर्ण कारख़ानों और ट्रेड-यूनियनों में गठित केन्द्रक सही ढंग से काम कर रहे हैं तथा पार्टी-क्रियाशीलता की अन्य प्रमुख शाखाओं में भी कार्यकर्ताओं के ज़रूरी ग्रुप गठित किये जा चुके हैं और कुछ हद तक उनका सुदृढ़ीकरण भी हो चुका है (मिसाल के तौर पर, सूचना, संचार, नारी आन्दोलन, एजिटेशन का विभाग, समाचारपत्र के कार्य, बेरोज़गार आन्दोलन आदि में)। इससे पहले कि नया सांगठनिक ढाँचा एक सुनिश्चित सीमा तक व्यवहार में आ जाये; संगठन के पुराने ढाँचे को बिना सोचे-विचारे नहीं तोड़ना चाहिए।

इसके साथ ही, कम्युनिस्ट संगठन के इस बुनियादी कार्यभार को हर जगह अधिकतम ऊर्जा लगाकर पूरा किया जाना चाहिए। यह न केवल एक क़ानूनी पार्टी के लिए बल्कि एक ग़ैरक़ानूनी पार्टी के लिए भी काफ़ी मेहनत का काम है।

जब तक कि सर्वहारा वर्ग-संघर्ष के सभी केन्द्रीय स्थानों पर कम्युनिस्ट केन्द्रकों, फ्रैक्शनों और कार्यकर्ताओं के ग्रुपों का एक व्यापक ताना-बाना (नेटवर्क) काम नहीं करने लग जाता; जब तक कि प्रत्येक पार्टी-सदस्य अपने हिस्से का दैनिक क्रान्तिकारी कार्य पूरा नहीं करने लग जाता और यह उसके लिए स्वाभाविक तथा आदत का हिस्सा नहीं बन जाता, तब तक पार्टी इस कार्यभार को पूरा करने के कठिन श्रमसाध्य मुहिम में चैन से नहीं बैठ सकती।

काम की जाँच-पड़ताल

15. यह बुनियादी सांगठनिक कार्यभार पार्टी के नेतृत्वकारी निकायों पर पार्टी-कार्य का लगातार निर्देशन करने और उस पर सुनियोजित प्रभाव डालने की ज़िम्मेदारी डाल देता है। यह पार्टी के संगठनों के नेतृत्व में सक्रिय कॉमरेडों से बहुविध क़िस्म के बोझ उठाने की माँग करता है। जो लोग कम्युनिस्ट गतिविधियों के लिए ज़िम्मेदार बनाये गये हैं उनका काम सिर्फ़ यही देखना नहीं है कि सभी स्त्री-पुरुष कॉमरेड सामान्य तौर पर पार्टी कार्यों में लगे हुए हैं, बल्कि उन्हें व्यवस्थित ढंग से और परिस्थिति-विशेष में एक आम दिशा की समझ के साथ कार्य-विशेष की अपनी व्यावहारिक जानकारी के आधार पर उन कॉमरेडों की सहायता करनी चाहिए और ऐसे कामों का निर्देशन करना चाहिए। अपने अर्जित अनुभवों के आधार पर उन्हें स्वयं अपने कामों के दौरान हुई ग़लतियों को ढूँढ़ निकालने की कोशिश करनी चाहिए, काम के तरीक़ों में लगातार सुधार करना चाहिए और एक क्षण के लिए भी संघर्ष के उद्देश्यों को आँखों से ओझल नहीं करना चाहिए।

ऊपर से नीचे तक रिपोर्टिंग — नेतृत्व की एक मुख्य ज़िम्मेदारी

16. हमारे समूचे पार्टी कार्य का दायित्व या तो सैद्धान्तिक अथवा व्यावहारिक धरातलों पर प्रत्यक्ष संघर्ष या फिर इस संघर्ष की तैयारी है। अभी तक इस काम में विशेष दक्षता हासिल करने के मामले में बहुतेरी खामियाँ रही हैं। काम के कई ऐसे पर्याप्त महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जिनमें पार्टी गतिविधियाँ सिर्फ़ कभी-कभी संचालित होती हैं। मिसाल के तौर पर, क़ानूनी स्थितियों में काम करने वाली पार्टियों ने ख़ुफ़िया पुलिस के आदमियों का मुक़ाबला करने के क्षेत्र में नहीं के बराबर काम किया है। पार्टी कॉमरेडों की शिक्षा का काम आम तौर पर एक दूसरे दर्जे के काम की तरह सिर्फ़ कभी-कभी किया जाता है और वह भी इतने सतही तौर से कि सदस्यों के बहुत बड़े भाग को पार्टी के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रस्तावों में से अधिकांश की, यहाँ तक कि पार्टी कार्यक्रम और कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल के प्रस्तावों तक की जानकारी नहीं है। पार्टी संगठनों की एक पूरी व्यवस्था के द्वारा पार्टी की सभी कार्यकारी कमेटियों के अन्दर शिक्षा का काम नियमित रूप से और लगातार जारी रहना चाहिए। तभी जाकर लगातार उच्चतर स्तर की विशेष दक्षता हासिल की जा सकती है।

17. कम्युनिस्ट क्रियाशीलता के कर्तव्यों में कामों की रिपोर्टें देना भी शामिल है। यह पार्टी के सभी संगठनों और सभी अंगों का तथा साथ ही प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य है। छोटी-छोटी समयावधियों की आम रिपोर्टें होनी चाहिए। पार्टी की विशेष कमेटियों के कामों की विशेष रिपोर्टें होनी चाहिए। यह आवश्यक है कि रिपोर्टिंग के काम को इस तरह व्यवस्थित कर दिया जाये कि यह कम्युनिस्ट आन्दोलन की सर्वश्रेष्ठ परम्परा के रूप में एक स्थापित कार्यविधि बन जाये।

प्रत्येक संगठन अपनी नेतृत्वकारी कमेटियों को रिपोर्ट देता है

18. पार्टी को अपनी तिमाही रिपोर्ट कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल के नेतृत्वकारी निकाय को देनी होती है। पार्टी के प्रत्येक संगठन को अपनी रिपोर्ट अपने ठीक ऊपर की नेतृत्वकारी कमेटी को देनी होती है (उदाहरण के तौर पर. स्थानीय शाखाओं की मासिक रिपोर्टें उनसे सम्बन्धित पार्टी कमेटी को)।

प्रत्येक केन्द्रक, फ्रैक्शन या कार्यकर्ताओं के ग्रुप को उस पार्टी निकाय को अपनी रिपोर्ट भेजनी होती है, जिसके नेतृत्व के अन्तर्गत उसे रखा गया है। अलग-अलग सदस्य अपनी रिपोर्ट उस केन्द्रक या कार्यकर्ताओं के ग्रुप को (यानी उसके नेता को) देते हैं जिसके वे सदस्य हैं। किसी विशेष रूप से सौंपी गयी ज़िम्मेदारी को पूरा करने पर वे उस पार्टी निकाय को रिपोर्ट करते हैं जिसके द्वारा उक्त काम का आदेश दिया गया हो।

रिपोर्ट, जितना शीघ्र हो सके, देनी चाहिए। वह भरसक जुबानी होनी चाहिए जब तक कि पार्टी कमेटी या व्यक्ति जिसने आदेश दिये हों, लिखित रिपोर्ट न माँगे। रिपोर्ट संक्षिप्त और निर्दिष्ट कार्य पर केन्द्रित होनी चाहिए। रिपोर्ट पाने वाले व्यक्ति की यह ज़िम्मेदारी है कि उन रिपोर्टों को जो प्रकाशित न की जा सकती हों सुरक्षित रखा जाये तथा महत्त्वपूर्ण रिपोर्टें अविलम्ब सम्बन्धित नेतृत्वकारी पार्टी कमेटियों को प्रेषित कर दी जायें।

रिपोर्टें कैसी हों

19. ये सभी रिपोर्टें, स्वाभाविक तौर पर, सिर्फ़ रिपोर्ट भेजने वाले के अपने द्वारा किये गये कार्यों के विवरण तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए। इन रिपोर्टों में उन परिस्थितियों के बारे में भी सूचना होनी चाहिए जिनकी जानकारी काम के दौरान होती है और जिनका हमारे संघर्ष के लिए कुछ महत्त्व होता है, विशेषकर ऐसी जानकारियाँ जिनके आधार पर हमारे भविष्य के कामों में परिवर्तन या सुधार किये जा सकते हों। इन रिपोर्टों में काम के सुधार के उन सुझावों को भी शामिल कर देना चाहिए जिनकी काम के दौरान ज़रूरत महसूस हुई हो।

कम्युनिस्ट पार्टी के सभी केन्द्रकों, फ्रैक्शनों और कार्यकर्ताओं के ग्रुपों में, उन सारी रिपोर्टों पर जो उनके भीतर प्रस्तुत की गयीं हों या जो उनके द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली हों; विस्तृत बहस होनी चाहिए। ऐसी बहसें एक नियमित आदत बना ली जानी चाहिए।

केन्द्रकों और कार्यकर्ताओं के ग्रुपों में यह सावधानी बरती जानी चाहिए कि विरोधी संगठनों, ख़ासतौर पर निम्न पूँजीवादी मज़दूर संगठनों और मुख्य तौर पर समाजवादी पार्टियों के संगठनों पर ध्यान रखने और उनकी रिपोर्ट देने के लिए ज़िम्मेदार अलग-अलग पार्टी-सदस्यों या सदस्यों के समूहों को नियमित रूप से बदल दिया जाये (यानी ये ज़िम्मेदारियाँ बदल-बदलकर सौंपी जायें)।

IV

हमारा प्रचार क्रान्तिकारी है

20. खुले क्रान्तिकारी संघर्ष से जुड़ा हुआ हमारा मुख्य आम कर्तव्य है क्रान्तिकारी प्रचार (प्रोपेगेण्डा) और आन्दोलन (एजिटेशन) चलाना। यह कार्य और इस का संगठन, अभी भी मुख्यतः जनसभाओं में समय-समय पर दिये जाने वाले भाषणों के ज़रिये पुराने रस्मी ढंग से चलाया जाता है तथा भाषणों और लेखों में अन्तर्निहित क्रान्तिकारी सारतत्व पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।

मज़दूरों के आम हितों और आकांक्षाओं के आधार पर, ख़ासकर उनके आम संघर्षों के आधार पर, कम्युनिस्ट प्रचार और आन्दोलन की कार्रवाई को इस प्रकार चलाना चाहिए कि वह मज़दूरों के अन्दर अपनी जड़ें जमा ले।

याद रखने लायक सबसे अहम नुक्ता यह है कि कम्युनिस्ट प्रचार का चरित्र क्रान्तिकारी होना चाहिए; इसलिए कम्युनिस्ट नारे और ठोस प्रश्नों पर अपने समग्र कम्युनिस्ट रुख़ के बारे में हमें विशेष ध्यान देना चाहिए और ख़ासतौर पर सोचना-विचारना चाहिए।

एक सही रुख़ तक पहुँचने के लिए, न केवल पेशेवर प्रचारकों और आन्दोलनकर्ताओं को, बल्कि सभी दूसरे पार्टी-सदस्यों को भी सावधानीपूर्वक निर्देशित (शिक्षित) किया जाना चाहिए।

कम्युनिस्ट प्रचार और नारों के प्रमुख रूप

21. कम्युनिस्ट प्रचार के प्रधान रूप ये हैं: (क) व्यक्तिगत रूप से किया गया मौखिक प्रचार, (ख) औद्योगिक और राजनीतिक मज़दूर आन्दोलन में भागीदारी और (ग) पार्टी की पत्र-पत्रिकाओं और साहित्य के वितरण के द्वारा प्रचार। क़ानूनी या ग़ैरक़ानूनी पार्टी के हर सदस्य को प्रचार के इन रूपों में से किसी एक या दूसरे में नियमित रूप से भागीदारी करनी होगी।

व्यक्तिगत प्रचार की कार्रवाई कार्यकर्ताओं के विशेष ग्रुपों द्वारा सुव्यवस्थित ढंग से घर-घर जाकर बातचीत के द्वारा समझाने-बुझाने, सहमत करने की कार्रवाई के रूप में चलाई जानी चाहिए। प्रचार की ऐसी कार्रवाई इस तरह चलाई जानी चाहिए कि पार्टी-प्रभाव के क्षेत्र में एक भी घर छूटने न पाये। अपेक्षाकृत बड़े नगरों में पोस्टरों और पर्चों के वितरण का विशेष रूप से संगठित किया गया प्रचार अभियान आम तौर पर सन्तोषजनक परिणाम देता है। इसके अतिरिक्त वर्कशापों के अन्दर साहित्य के वितरण के साथ-साथ फ्रैक्शनों को नियमित रूप से व्यक्तिगत आन्दोलनात्मक प्रचार (एजिटेशन) की कार्रवाई चलानी चाहिए।

जिन देशों में आबादी में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक भी शामिल हैं, वहाँ इन अल्पसंख्यकों के सर्वहारा हिस्सों में प्रचार और आन्दोलन चलाने की दिशा में आवश्यक ध्यान देना पार्टी का कर्तव्य है। ज़ाहिर है कि प्रचार और आन्दोलन की यह कार्रवाई उक्त राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों की भाषाओं में ही चलायी जानी चाहिए जिसके लिए पार्टी को आवश्यक विशेष निकायों का निर्माण करना चाहिए।

22. उन पूँजीवादी देशों में जहाँ सर्वहारा वर्ग का विशाल बहुमत क्रान्तिकारी चेतना के स्तर पर अभी नहीं पहुँच पाया है, कम्युनिस्ट आन्दोलनकारियों को इन पिछड़े हुए मज़दूरों की चेतना को ध्यान में रखते हुए और क्रान्तिकारी क़तारों में इनका प्रवेश आसान बनाने के लिए लगातार कम्युनिस्ट प्रचार के नये रूपों की खोज करते रहना चाहिए। अपने नारों के ज़रिये कम्युनिस्ट प्रचार को उन प्रस्फुटित होती हुई, अचेतन, अपूर्ण, ढुलमुल और अर्द्धपूँजीवादी क्रान्तिकारी प्रवृत्तियों को उभारना और सामने लाना चाहिए जो मज़दूरों के दिमागों में पूँजीवादी परम्पराओं और अवधारणओं के ऊपर हावी होने के लिए संघर्ष कर रही होती हैं।

साथ ही, कम्युनिस्ट प्रचार को सर्वहारा जनसमुदाय की सीमित एवं अस्पष्ट माँगों और आकांक्षाओं तक ही सीमित रहकर सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। इन माँगों और आकांक्षाओं में क्रान्तिकारी भ्रूण मौजूद रहते हैं और ये सर्वहारा वर्ग को कम्युनिस्ट प्रचार के प्रभाव के अन्तर्गत लाने का साधन होती हैं।

मज़दूर वर्ग के रोज़मर्रा के संघर्षों का नेतृत्व करो

23. सर्वहारा जनसमुदाय के बीच कम्युनिस्ट आन्दोलन (या आन्दोलनात्मक प्रचार) का काम इस प्रकार चलाया जाना चाहिए कि संघर्षरत सर्वहारा हमारे कम्युनिस्ट संगठन को साहसी, बुद्धिमान, ऊर्जस्वी और यहाँ तक कि अपने ख़ुद के मज़दूर आन्दोलन के हर हमेशा वफादार नेता के रूप में जाने।

इसे हासिल करने के लिए कम्युनिस्टों को मज़दूरों के सभी प्रारम्भिक संघर्षों और आन्दोलनों में भाग लेना चाहिए तथा काम के घण्टों, काम की परिस्थितियों, मज़दूरी आदि को लेकर उनके और पूँजीपतियों के बीच होने वाले सभी टकरावों में मज़दूरों के हितों की हिफाजत करनी चाहिए। कम्युनिस्टों को मज़दूर वर्ग के जीवन के ठोस प्रश्नों पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्हें इन प्रश्नों की सही समझदारी हासिल करने में मज़दूरों की सहायता करनी चाहिए। उन्हें मज़दूरों का ध्यान सर्वाधिक स्पष्ट अन्यायों की ओर आकर्षित करना चाहिए तथा अपनी माँगों को व्यावहारिक तथा सटीक रूप से सूत्रबद्ध करने में उनकी सहायता करनी चाहिए। इत तरह वे मज़दूर वर्ग के भीतर एकजुटता की स्पिरिट और देश के सभी मज़दूरों के भीतर एक एकीकृत मज़दूर वर्ग के रूप में, जो कि सर्वहारा की विश्व सेना का एक हिस्सा है, सामुदायिक हितों की चेतना जागृत कर पायेंगे।

सिर्फ़ इस प्रकार के रोज़मर्रा के प्रारंभिक कर्तव्यों की पूर्ति करके तथा सर्वहारा के सभी संघर्षों में भाग लेकर ही कम्युनिस्ट पार्टी एक सच्ची कम्युनिस्ट पार्टी के रूप में विकसित हो सकती है। सिर्फ़ इस प्रकार के तरीक़ों को अपनाकर ही वह घिसे-पिटे, तथाकथित शुद्ध समाजवादी प्रचार करने वाले, सिर्फ़ नये सदस्य भर्ती करने वाले तथा सुधारों और सभी संसदीय सम्भावनाओं का इस्तेमाल कर पाने की सम्भावनाओं या असम्भावनाओं की बातें करते रहने वाले प्रचारकों से अपने को अलग कर सकेगी। शोषकों के विरुद्ध चलने वाले शोषितों के रोज़मर्रा के संघर्षों और विवादों में पार्टी-सदस्यों का आत्मत्यागपूर्ण और चेतन सहयोग न केवल सर्वहारा अधिनायकत्व की विजय के लिए बल्कि उससे भी अधिक, इस अधिनायकत्व को क़ायम रखने के लिए नितान्त आवश्यक है। पूँजीवाद के हमलों के खि़लाफ़ छोटे-छोटे संघर्षों में मेहनतकश अवाम का नेतृत्व करके ही कम्युनिस्ट पार्टी पूँजीपति वर्ग के ऊपर प्रभुत्व स्थापित करने के संघर्ष में सर्वहारा वर्ग का सुव्यवस्थित नेतृत्व कर पाने की क्षमता प्राप्त करते हुए मेहनतकश जनसमुदाय का हिरावल दस्ता बन सकेगी।

प्रत्येक संघर्ष की अगली क़तार में

24. ख़ासतौर पर हड़तालों, तालाबन्दियों और मज़दूरों की बड़े पैमाने पर बर्खास्तगी को लेकर होने वाले मज़दूर आन्दोलनों में भागीदारी के लिए, कम्युनिस्टों को पूरी ताक़त झोंककर लामबन्द होना चाहिए।

मज़दूरों द्वारा काम करने की परिस्थितियों में मामूली सुधारों की माँग को लेकर चलाये जाने वाले आन्दोलनों के प्रति तिरस्कार का रुख़ अपनाना या कम्युनिस्ट कार्यक्रम और अन्तिम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सशस्त्र क्रान्तिकारी संघर्ष की आवश्यकता के नाम पर उनके प्रति निष्क्रियता का रुख़ अपनाना कम्युनिस्टों के लिए भारी भूल होगी। मज़दूर अपनी जिन माँगों को लेकर पूँजीपतियों से लड़ने के लिए तैयार और रजामन्द हों, वे चाहे कितनी भी छोटी या मामूली क्यों न हों, कम्युनिस्टों को संघर्ष में शामिल न होने के लिए उन माँगों के छोटी होने का बहाना नहीं बनाना चाहिए। हमारी आन्दोलनात्मक गतिविधियों के खि़लाफ़ इस तरह के इल्जाम की गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए कि हम मज़दूरों को मूर्खतापूर्ण हड़तालों या अन्य नासमझी भरी कार्रवाइयों के लिए उभाड़ते और उकसाते हैं। संघर्षरत जनता के बीच कम्युनिस्टों को यह प्रतिष्ठा अर्जित करने की चेष्टा करनी चाहिए कि वे हिम्मत वाले और संघर्षो में कारगर भूमिका निभाने वाले लोग हैं।

आंशिक माँगों के लिए लड़ना सीखो

25. रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के कुछ सबसे मामूली सवालों पर ट्रेड यूनियन आन्दोलन के भीतर काम करने वाले कम्युनिस्ट सेलों (या फ्रैक्शनों) ने व्यवहार में अपने आप को लगभग असहाय सिद्ध किया है। कम्युनिज़्म के सामान्य सिद्धान्तों के बारे में प्रवचन करते जाना और उसके बाद जब ठोस सवाल सामने आयें तो साधारण सिण्डिकलिस्टों (संघाधिपत्यवादियों) के नकारात्मक दृष्टिकोण के चक्कर में फँस जाना आसान तो है पर उपयोगी नहीं है। यह व्यवहार केवल पीले आम्स्टर्डम इण्टरनेशनल[*] के हाथों में खेलने के बराबर है।

इसके विपरीत कम्युनिस्टों को अपने व्यवहार में प्रत्येक प्रश्न के व्यावहारिक पहलू के सावधानीपूर्वक किये गये अध्ययन से ही निर्देशित होना चाहिए।

मिसाल के तौर पर, सभी कामकाजू समझौतों (वेतन और काम के हालात से सम्बन्धित) का सैद्धान्तिक रूप से या उसूली तौर पर विरोध करके अपने को सन्तुष्ट कर लेने के बजाय उन्हें आम्स्टर्डम इण्टरनेशनल के नेताओं की सिफ़ारिश के मुताबिक हुए विशेष प्रकार के समझौतों (वेतन सम्बन्धी समझौतों) को लेकर होने वाले संघर्ष का नेतृत्व करना चाहिए। बेशक यह ज़रूरी है कि सर्वहारा की क्रान्तिकारी तत्परता की राह में खड़ी की जाने वाली किसी भी बाधा की भर्त्सना की जाये और उसका प्रतिरोध किया जाये और यह भी सर्वविदित है कि पूँजीपतियों और उनके आम्स्टर्डमपन्थी भाड़े के टट्टुओं का मकसद ही यह होता है कि हर क़िस्म के कामकाजू समझौतों में मज़दूरों के हाथ बाँध दिये जायें। इसलिए यह कम्युनिस्टों का कर्तव्य है कि वे इस तरह के समझौतों की असलियत के बारे में मज़दूरों को आगाह करें। कम्युनिस्ट ऐसे समझौतों की वकालत करके, जिनसे मज़दूरों की राह में बाधा न पड़े, इस काम को सबसे अच्छे ढंग से अंजाम दे सकते हैं।

ट्रेड यूनियन संगठनों द्वारा बेरोज़गारी, बीमारी और अन्य मामलों में हासिल की गयी सुविधाओं के बारे में भी यही किया जाना चाहिए। संघर्ष-कोष की स्थापना और हड़ताली तनख़्वाह देना आदि अपने आप में ऐसे क़दम हैं जिनका समर्थन किया जाना चाहिए।

इसलिए, ऐसी कार्रवाइयों का उसूली तौर पर विरोध करना ग़लत होगा। लेकिन कम्युनिस्टों को मज़दूरों के सामने यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि इस तरह के कोषों के संग्रह करने और उनके इस्तेमाल करने के आम्स्टर्डमपन्थी नेताओं द्वारा बताये गये तरीक़े मज़दूर वर्ग के सभी हितों के खि़लाफ़ हैं। बीमारी के लाभ (सिक बेनिफ़िट) वग़ैरह के सम्बन्ध में कम्युनिस्टों को मज़दूरों की तनख़्वाह से उसका एक हिस्सा लेने की व्यवस्था तथा स्वेच्छा के आधार पर जमा किये जाने वाले कोषों के सम्बन्ध में लागू की गयी सभी अनिवार्यता की शर्तों को ख़त्म करने पर ज़ोर देना चाहिए। फिर भी कुछ ट्रेड यूनियन सदस्य स्वयं अंशदान करके बीमारी के लाभ हासिल करने के इच्छुक हों तो इसे इस लिए सीधे रोका नहीं जाना चाहिए कि इससे लोगों द्वारा हमें ग़लत समझे जाने का अन्देशा रहेगा। घनीभूत व्यक्तिगत प्रचार द्वारा ऐसे मज़दूरों को उनकी निम्न पूँजीवादी धारणाओं से मुक्त करके अपने पक्ष में करना आवश्यक होगा।

संशोधनवादी और सुधारवादी ट्रेडयूनियन नेताओं का ठोस ढंग से पर्दाफ़ाश करो

26. सामाजिक जनवादियों और निम्न पूँजीवादी ट्रेड यूनियन नेताओं तथा विभिन्न लेबर पार्टियों के नेताओं के खि़लाफ़ संघर्ष में समझाने-बुझाने से अधिक कामयाबी की उम्मीद नहीं की जा सकती। उनके खि़लाफ़ संघर्ष अधिकतम ज़ोर-शोर के साथ चलाया जाना चाहिए और इसका सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि उन्हें उनके अनुयाइयों से अलग कर दिया जाये और मज़दूरों को इन ग़द्दार समाजवादी नेताओं के, जो पूँजीवाद के हाथों में खेल रहे हैं, असली चरित्र से परिचित करा दिया जाये। कम्युनिस्टों को इन तथाकथित नेताओं को बेनकाब करने की पुरज़ोर कोशिश करनी चाहिए और इन पर सर्वाधिक प्रचण्ड तरीक़े से हमले करने चाहिए।

इन आम्स्टर्डमपन्थी नेताओं को सिर्फ पीला कह भर देना किसी भी हालत में काफ़ी नहीं है। लगातार तथा व्यावहारिक उदाहरणों के द्वारा इनके “पीलेपन” को प्रमाणित करना होगा। ट्रेड यूनियनों में, लीग आपॅफ़ नेशन्स के अन्तरराष्ट्रीय श्रमिक ब्यूरो में, पूँजीवादी मन्त्रिपरिषदों में तथा प्रशासनों में उनकी गतिविधियों में, सम्मेलनों और संसदों में उनके ग़द्दारी भरे भाषणों में, उनके ढेरों प्रेस वक्तव्यों और लिखित सन्देशों में झाड़े गये उपदेशों में और सबसे अधिक, (वेतन में बेहद मामूली बढ़ोत्तरी तक के संघर्ष सहित) सभी संघर्षों में उनके ढुलमुलपन और हिचकिचाहट भरे रवैये में हमें लगातार ऐसे अवसर मिल जायेंगे कि सीधे-सादे भाषणों और प्रस्तावों के द्वारा उनके ग़द्दाराना बर्ताव का पदार्फाश किया जा सके।

फ्रैक्शनों को अपनी व्यावहारिक हिरावल गतिविधियाँ सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करनी चाहिए। कम्युनिस्टों को ट्रेड यूनियनों के उन छोटे पदाधिकारियों द्वारा किये जाने वाले बहानों को अपने प्रगति अभियान में बाधा नहीं बनने देना चाहिए, जो अपने नेक इरादों के बावजूद सिर्फ अपनी कमज़ोरी के कारण नियम-क़ानूनों, यूनियन के फ़ैसलों और अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों के निर्देशों की आड़ लिया करते हैं। इसके विपरीत, उन्हें नौकरशाही मशीनरी द्वारा मज़दूरों के रास्ते में खड़ी की गयी सभी वास्तविक और काल्पनिक बाधाओं को हटाने के मामले में निचले अधिकारियों द्वारा सन्तोषप्रद कार्य पर ज़ोर देना चाहिए।

फ्रैक्शनों को किस प्रकार काम करना चाहिए

27. ट्रेड यूनियन संगठनों के सम्मेलनों या मीटिंगों में कम्युनिस्टों की भागीदारी के लिए फ्रैक्शनों को सावधानी से तैयारी करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर, उन्हें प्रस्तावों का सविस्तार प्रतिपादन करना चाहिए, वक्ताओं और वकीलों का ठीक-ठीक चुनाव करना चाहिए तथा चुनावों में सक्षम, अनुभवी और ऊर्जावान (चुस्त-दुरुस्त व मेहनती) कॉमरेडों को खड़ा करना चाहिए।

कम्युनिस्ट संगठन को, अपने फ्रैक्शनों के माध्यम से मज़दूरों की सभी मीटिंगों, चुनाव सभाओं, प्रदर्शनों, राजनीतिक उत्सवों और विरोधी संगठनों के ऐसे ही सभी आयोजनों के सम्बन्ध में सावधानी के साथ तैयारी करनी चाहिए। जहाँ भी कम्युनिस्ट, मज़दूरों की अपनी मीटिंगें आयोजित करें, उन्हें श्रोताओं के बीच पर्याप्त संख्या में ग्रुपों में कम्युनिस्टों को फैला देना चाहिए तथा प्रचार के सन्तोषजनक परिणाम को सुनिश्चित बनाने के लिए सभी तैयारियाँ करनी चाहिए।

मज़दूरों के सभी संगठनों में काम करो

28. कम्युनिस्टों को यह भी सीखना चाहिए कि असंगठित और पिछड़े हुए मज़दूरों को पार्टी क़तारों में स्थायी तौर पर कैसे शामिल किया जाये। अपने फ्रैक्शनों की सहायता से हमें मज़दूरों को ट्रेड यूनियनों में शामिल होने और अपनी पार्टी के मुखपत्रों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए। अन्य संगठनों को, जैसे कि शिक्षा समितियों, स्टडी सर्किलों, खेलकूद क्लबों, नाट्य समितियों, सहकारी समितियों, उपभोक्ता संघों या युद्ध-पीड़ितों के संघों आदि का अपने (यानी कम्युनिस्ट पार्टी) और मज़दूरों के बीच मध्यवर्ती के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। जहाँ कम्युनिस्ट पार्टी ग़ैरक़ानूनी ढंग से काम कर रही हो, वहाँ इस तरह की मज़दूर यूनियनें पार्टी के बाहर पार्टी के सदस्यों की पहलक़दमी से और नेतृत्वकारी पार्टी कमेटियों की सहमति से और उन्हीं के नियन्त्रण में (हमदर्दों की यूनियनें) गठित की जा सकती हैं।

राजनीति के प्रति असम्पृक्त, सर्वहारा वर्ग के बहुतेरे लोगों में दिलचस्पी जगाने और फिर कालान्तर में उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी में लाने में कम्युनिस्ट युवा संगठन और नारी संगठन भी लाभदायक हो सकते हैं। यह काम ये संगठन अपने शैक्षिक पाठ्यक्रमों, अध्ययन चक्रों, सैर-सपाटे के कार्यक्रमों, समारोहों और रविवासरीय भ्रमणों आदि के माध्यम से, पर्चों के वितरण के ज़रिये और पार्टी मुखपत्र की खपत बढ़ाने आदि के द्वारा कर सकते हैं। आम आन्दोलनों में भागीदारी करके ही मज़दूर अपने निम्न पूँजीवादी (यानी मध्यमवर्गीय) रुझानों से मुक्त हो सकेंगे।

निम्न-पूँजीवादी हिस्सों को अपने पक्ष में लाओ

29. क्रान्तिकारी सर्वहारा के हमदर्दों के रूप में मज़दूरों के अर्द्धसर्वहारा हिस्सों को अपने पक्ष में लाने के लिए तथा मध्यवर्ती समूहों का सर्वहारा वर्ग के प्रति अविश्वास दूर करने के लिए कम्युनिस्टों को भूस्वामियों, पूँजीपतियों और पूँजीवादी राज्य के साथ उनके विशेष शत्रुतापूर्ण अन्तरविरोधों का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए उनके साथ लम्बी बातचीत की उनकी आवश्यकताओं के प्रति सूझबूझ भरी हमदर्दी की तथा परेशानियों के समय उन्हें मुफ़्त सहायता और परामर्श देने की ज़रूरत पड़ सकती है। इन सबसे कम्युनिस्ट आन्दोलन के प्रति उनमें विश्वास पैदा होगा। कम्युनिस्टों को उन विरोधी संगठनों के हानिकारक प्रभावों को समाप्त करने के लिए काम करना चाहिए जो उनके ज़िलों में वर्चस्वकारी स्थिति में हों या जिनका मेहनतकश किसान आबादी पर, घरेलू उद्योगों में काम करने वाले लोगों पर या अन्य अर्द्धसर्वहारा वर्गों पर प्रभाव हो। शोषितगण अपने स्वयं के कड़वे अनुभवों से जिन लोगों को सम्पूर्ण अपराधी पूँजीवादी व्यवस्था का प्रतिनिधि या साक्षात मूर्तरूप समझते हैं, उन लोगों को बेनकाब करना ज़रूरी है। कम्युनिस्ट आन्दोलन (या आन्दोलनपरक प्रचार) के दौरान रोज़मर्रा की उन सभी घटनाओं का होशियारी के साथ और ज़ोरदार ढंग से इस्तेमाल किया जाना चाहिए जो राज्य नौकरशाही और निम्न पूँजीवादी जनवाद और न्याय के आदर्शों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न करती हैं।

प्रत्येक स्थानीय ग्रामीण संगठन को अपने ज़िले के सभी गांवों, वासस्थानों और बिखरी हुई बस्तियों में कम्युनिस्ट प्रचार-प्रसार के लिए घर-घर घूमकर प्रचार करने का काम सावधानीपूर्वक अपने सदस्यों में बाँट देना चाहिए।

सशस्त्र सेनाओं में कार्य

30. पूँजीवादी राज्यों की सशस्त्र सेनाओं और नौसेनाओं के बीच प्रचार के तरीक़े प्रत्येक देश की विशेष परिस्थितियों के अनुकूल होने चाहिए। शान्तिवादी प्रकृति का सैन्यवाद विरोधी आन्दोलन (या आन्दोलनपरक प्रचार) अत्यन्त हानिकारक होता है और सर्वहारा वर्ग को निश्शस्त्र करने के पूँजीपति वर्ग के प्रयासों की मदद करता है। सर्वहारा वर्ग, उसूली तौर पर पूँजीपति वर्ग की हर तरह की सामरिक (या सैन्य) संस्थाओं को ख़ारिज़ करता है और आम तौर पर पूरी ताक़त के साथ उनका मुक़ाबला करता है। लेकिन फिर भी मज़दूरों को भविष्य की क्रान्तिकारी लड़ाइयों का सैनिक प्रशिक्षण देने के लिए वह इन संस्थाओं (सेना, राइफल, क्लब, नागरिक सुरक्षा संगठन आदि) का इस्तेमाल करता है। इसलिए घनीभूत राजनीतिक आन्दोलन (या आन्दोलनपरक प्रचार) की धार नौजवानों और मज़दूरों के सैनिक प्रशिक्षण के विरुद्ध नहीं बल्कि सैन्यवादी सत्ता और अफ़सरों के प्रभुत्व के विरुद्ध केन्द्रित होनी चाहिए। मज़दूरों को हथियारों से लैस करने की प्रत्येक सम्भावना का बड़ी तत्परता के साथ लाभ उठाना चाहिए।

अफ़सरों की भौतिक रूप से सुविधाजनक स्थितियों, साधारण सैनिकों के प्रति ख़राब व्यवहार और उनके जीवन की सामाजिक असुरक्षा आदि के रूप में प्रकट होने वाले वर्ग अन्तरविरोधों को सैनिकों के बीच ज़्यादा से ज़्यादा स्पष्ट किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त आन्दोलनपरक प्रचार के ज़रिये आम सैनिकों के बीच यह तथ्य स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि उनका भविष्य अटूट रूप से शोषित वर्गों की नियति के साथ जुड़ा हुआ है। प्रारम्भिक क्रान्तिकारी उद्वेलन के अपेक्षाकृत उन्नत दौर में साधारण सैनिकों और नौसैनिकों द्वारा अपने अफ़सरों का जनवादी ढंग से चुनाव करने और सैनिक परिषदों का गठन करने की माँग पूँजीवादी शासन की बुनियाद को कमज़ोर करने में विशेष लाभदायक सिद्ध हो सकती है।

पूँजीपति वर्ग द्वारा वर्ग युद्ध में इस्तेमाल की जाने वाली चुनिन्दा सैनिक टुकड़ियों और विशेषकर सशस्त्र स्वयंसेवक जत्थों के खि़लाफ़ आन्दोलनात्मक प्रचार की कार्रवाई के समय सर्वाधिक सतर्कता और अधिकतम सावधानी बरतने की हमेशा आवश्यकता होती है।

जब भी इन सेनाओं और जत्थों की सामाजिक संरचना और भ्रष्ट आचरण के चलते ऐसा अवसर उत्पन्न हो जाये; तो (सेना में) विघटन की स्थिति उत्पन्न करने के लिए आन्दोलनात्मक प्रचार के हर अनुकूल क्षण का पूरा उपयोग किया जाना चाहिए। जहाँ पर भी इसका पूँजीवादी चरित्र एकदम उजागर हो, मिसाल के तौर पर अफ़सरों की कोर में, वहाँ पूरी जनता के सामने उसे बेनकाब करना चाहिए तथा उन्हें इतनी अधिक घृणा और सार्वजनिक तिरस्कार का पात्र बना देना चाहिए कि अपने ख़ुद के अलगाव के कारण वे भीतर से ही विघटन के शिकार हो जायें।

V

राजनीतिक संघर्ष का संगठन

राजनीतिक अभियान कैसे चलाये जायें

31. कम्युनिस्ट पार्टी के लिए ऐसा कोई समय नहीं हो सकता जब उसका पार्टी संगठन राजनीतिक कार्रवाई नहीं कर सके। प्रत्येक राजनीतिक और आर्थिक परिस्थिति का, और इन परिस्थितियों में पैदा होने वाले सभी मौक़ों का इस्तेमाल करने के उद्देश्य से, सांगठनिक रणनीति और रणकौशल विकसित किये जाने चाहिए। पार्टी चाहे कितनी भी कमज़ोर क्यों न हो, फिर भी वह सुव्यवस्थित ढंग से चलाये जाने वाले और कुशलतापूर्वक संगठित उग्रपरिवर्तनवादी (रैडिकल) प्रचार के द्वारा उत्तेजनकारी राजनीतिक घटनाओं या समूचे अर्थतन्त्र को प्रभावित करने वाली व्यापक हड़तालों का लाभ उठा सकती है। एक बार यदि पार्टी किसी परिस्थिति-विशेष का इस्तेमाल करने का फ़ैसला ले ले तो उसे अपने सभी सदस्यों और पार्टी इकाइयों की ऊर्जा इस अभियान में केन्द्रित कर देनी चाहिए।

इसके अलावा, पार्टी अपने केन्द्रकों और मज़दूर ग्रुपों के काम के ज़रिये जो भी सम्पर्क बनाती है, उन सबका इस्तेमाल राजनीतिक महत्त्व के केन्द्रों पर जनसभाएँ आयोजित करने और हड़तालों के अनुवर्ती कामों (फॉलो-अप) के लिए किया जाना चाहिए। पार्टी-वक्ताओं को इस बात की पूरी कोशिश करनी चाहिए कि वे श्रोताओं को यह विश्वास दिला दें कि केवल कम्युनिज़्म ही उनके संघर्ष को कामयाबी के मुक़ाम तक पहुँचा सकता है। पार्टी के विशेष आयोगों को इन मीटिंगों की पूरी तैयारी करनी चाहिए। यदि किन्ही कारणों से पार्टी ख़ुद अपनी मीटिंगें आयोजित न कर सके तो उसे हड़तालियों द्वारा या संघर्षरत सर्वहारा वर्ग के किसी भी अन्य हिस्से द्वारा आयोजित आम सभाओं को सम्बोधित करने के लिए उपयुक्त कॉमरेडों को ज़रूर भेजना चाहिए।

जहाँ कहीं भी इस बात की सम्भावना हो कि किसी मीटिंग के बहुमत को या उसके एक बड़े हिस्से को हमारी माँगों के समर्थन के लिए राजी किया जा सकता हो, तो इन माँगों को भली भाँति सूत्रबद्ध कर लिया जाना चाहिए और मंजूरी के लिए पेश किये जाने वाले प्रस्तावों और संकल्पों के पक्ष से सही-सटीक ढंग से दलीलें पेश की जानी चाहिए। यदि ऐसे प्रस्ताव पारित हो जाते हैं तो हरचन्द कोशिश यह होनी चाहिए कि उसी मसले पर उसी जगह या दूसरी जगह होने वाली सभी मीटिंगों में ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में ऐसे प्रस्ताव या संकल्प स्वीकार किये जायें या कम से कम एक मजबूत अल्पमत द्वारा उनका समर्थन किया जाये। इस तरह से हम आन्दोलन में मेहनतकश अवाम को जत्थेबन्द करने में सफल हो सकेंगे, उसे अपने नैतिक प्रभाव के अन्तर्गत ला सकेंगे और उसके बीच अपने नेतृत्व को मान्यता दिला सकेंगे।

ऐसी मीटिंगों के बाद, जिन कमेटियों ने इनकी सांगठनिक तैयारियों में भाग लिया हो और ऐसे अवसरों का लाभ उठाया हो, उन्हें पार्टी की नेतृत्वकारी कमेटी के सामने पेश करने के लिए एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए, तथा अनुभवों या सम्भावित ग़लतियों से, भविष्य के लिए उचित नतीजे निकालने के लिए, सम्मेलन आयोजित करना चाहिए। हर ऐसी परिस्थिति-विशेष के अनुसार मज़दूरों की व्यावहारिक माँगों को लेकर पोस्टर, पर्चे और इश्तहार निकाले जाने चाहिए, उन्हें मज़दूरों के बीच बाँटकर इन माँगों का प्रचार किया जाना चाहिए और उनकी ख़ुद की माँगों के ज़रिये उनके बीच यह साबित कर दिया जाना चाहिए कि किस तरह से कम्युनिस्ट नीतियाँ उनकी परिस्थिति से मेल खाती हैं तथा उन पर लागू होती हैं। पोस्टरों के सही बँटवारे के लिए तथा उनको लगाने के लिए उपयुक्त स्थान और उचित समय का चुनाव करने के लिए विशेष रूप से संगठित ग्रुपों की आवश्यकता होती है। पर्चों का वितरण कारख़ानों के अन्दर या उनके सामने तथा उन सभा-भवनों में होना चाहिए जहाँ मज़दूर इकट्ठा होते हैं। पर्चों के वितरण के साथ-साथ आकर्षक नारे लगाये जायें और बहसें की जायें, जिससे बातें मेहनतकश अवाम के हर आदमी के दिमाग में बैठ जायें। विस्तार से लिखे गये पर्चे भरसक सभा-भवनों, कारख़ानों, रिहाइशी जगहों या ऐसे ही अन्य स्थानों पर बाँटे जाने चाहिए जहाँ लोग छपी हुई चीजों को उचित रूप से ध्यान देकर पढ़ सकें।

इस प्रकार के प्रचार के साथ-साथ संघर्ष के दौरान ट्रेड यूनियन की तमाम मीटिंगों और कारख़ानों की सभी मीटिंगों में समान्तर कार्रवाई भी की जानी चाहिए। इस तरह की मीटिंगों में, उपयुक्त वक्ताओं और बहस करने वालों को जनसमुदाय के सामने हमारे दृष्टिकोण की व्याख्या करने का कोई मौक़ा हाथ से जाने नहीं देना चाहिए चाहे ये मीटिंगें हमारे कॉमरेडों द्वारा बुलाई गयी हों या फिर अन्य किसी कारण से हमारे अनुकूल हों। हमारी पार्टी के अख़बारों को इस प्रकार के विशेष आन्दोलनों की ख़बरों तथा उनके पक्ष में दिये गये अच्छे तर्कों को छापने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा स्थान उपलब्ध कराना चाहिए। वास्तव में पूरे पार्टी संगठन को, कुछ समय के लिए, इस प्रकार के आन्दोलन के सामान्य उद्देश्य की सेवा में सन्नद्ध कर दिया जाना चाहिए ताकि हमारे कॉमरेड अनथक शक्ति के साथ काम कर सकें।

कारख़ानों के केन्द्रकों पर आधारित सचल नेतृत्व और संगठन सफल प्रदर्शन की कुंजी है!

32. प्रदर्शनों के लिए अत्यन्त सचल और आत्मत्यागी नेतृत्व की आवश्यकता होती है जो किसी विशेष कार्रवाई के लक्ष्य की पूर्ति के लिए दृढ़संकल्प हो और किसी भी समय यह आँकने की क्षमता रखता हो कि अमुक प्रदर्शन अपनी उच्चतम सम्भव प्रभावकारिता तक पहुँच चुका है या उस विशेष परिस्थिति में जनता के किसी क़दम – प्रदर्शन, हड़ताल या अन्ततोगत्वा आम हड़तालों के ज़रिये आन्दोलन को आगे विस्तारित करके और अधिक घनीभूत किया जा सकता है। युद्ध के दौरान शांति के लिए किये गये प्रदर्शनों ने हमें सिखाया है कि ऐसे प्रदर्शनों के विसर्जित हो जाने के बाद भी, यदि वह प्रश्न वास्तविक महत्त्व का हो और व्यापक जनसमुदाय के लिए उसके और अधिक दिलचस्पी का प्रश्न बन जाने की सम्भावना हो, तो एक सच्ची सर्वहारा पार्टी को, चाहे वह कितनी छोटी या ग़ैरक़ानूनी क्यों न हो, न तो अपने रास्ते से हटना चाहिए और न ही चुप बैठना चाहिए। सड़कों पर किये जाने वाले प्रदर्शन तभी अधिकतम प्रभावी हो पाते है जब उन्हें बड़े कारख़ानों के आधार पर संगठित किया जाता है। जब हमारे केन्द्रकों (न्यूक्लियस) और कार्यकर्ता ग्रुपों ने मौखिक और पर्चों के माध्यम से किये गये प्रचार के द्वारा काफ़ी अच्छी तैयारी करके किसी परिस्थिति-विशेष में विचार और कार्रवाई की एक निश्चित एकता हासिल कर ली हो, तब प्रबन्धक कमेटी को कारख़ानों के गुप्त पार्टी सदस्यों, और केन्द्रकों तथा कार्यकर्ता ग्रुपों के नेताओं का एक सम्मेलन, निर्धारित तिथि पर आयोजित होने वाली मीटिंग का समय एवं कार्यक्रम तय करने के लिए तथा साथ ही, नारे तय करने और आन्दोलन को घनीभूत करने की सम्भावनाओं, उसे समाप्त करने या तितर-बितर करने के समय आदि के बारे में फ़ैसला लेने के उद्देश्य से बुलाना चाहिए। प्रदर्शन का मेरुदण्ड, निश्चत तौर पर, सुप्रशिक्षित, अनुभवी और लगनशील पदाधिकारियों का ग्रुप होना चाहिए जो कारख़ानों से प्रदर्शन के आरम्भ होने से लेकर प्रदर्शन के विसर्जित होने के समय तक जनसमुदाय के साथ घुला-मिला रहे।

ज़िम्मेदार पार्टी कार्यकर्ताओं को जनसमुदाय के बीच व्यवस्थित ढंग से बिखेर दिया जाना चाहिए ताकि पदाधिकारीगण एक-दूसरे से सक्रिय सम्पर्क बनाये रख सकें और आवश्यक राजनीतिक निर्देश देते रह सकें। प्रदर्शन के इस तरह के सचल और राजनीतिक तौर पर संगठित नेतृत्व के होने से ही यह प्रभावी ढंग से सम्भव हो पाता है कि ऐसे प्रदर्शनों को लगातार नये-नये रूप दिये जा सकें और उनके परिणामस्वरूप ये घनीभूत होकर और बड़े स्तर की जन-कार्रवाई का रूप ले सकें।

मज़दूर वर्ग के संयुक्त संघर्षों का संगठन तथा सुधारवादियों का अलगाव

33. जो कम्युनिस्ट पार्टियाँ अन्दरूनी तौर पर दृढ़ हैं, जिनमें तपे-तपाये पदाधिकारियों की एक टुकड़ी मौजूद है और जनता के बीच जिसका पर्याप्त आधार मौजूद है, उन पार्टियों को व्यापक अभियान चलाकर मज़दूर वर्ग के ग़द्दार समाजवादी नेताओं के प्रभाव को पूरी तरह समाप्त कर देने और कम्युनिस्ट झण्डे तले मेहनतकश जनसमुदाय की बहुसंख्या को गोलबन्द करने की हरचन्द कोशिश करनी चाहिए। अभियानों को विभिन्न तरीक़ों से इस बात को ध्यान में रखते हुए संगठित किया जाना चाहिए कि परिस्थिति सचमुच वास्तविक लड़ाई के अनुकूल है, या अभी अस्थायी ठहराव का काल चल रहा है। यदि परिस्थिति सचमुच वास्तविक लड़ाई के अनुकूल हो तो कम्युनिस्ट सक्रिय हो जाते हैं और अपने को सर्वहारा आन्दोलन की अगली क़तार में खड़ा कर लेते हैं।

ऐसी कार्रवाइयों के लिए सांगठनिक पद्धतियों का चुनाव करते समय पार्टी की अन्दरूनी बनावट भी एक निर्णायक उपादान के रूप में काम करती है।

मिसाल के तौर पर, जर्मनी में सर्वहारा वर्ग के सामाजिक रूप से निर्णायक हिस्सों को जर्मन कम्युनिस्ट पार्टी के पक्ष में, जो कि एक नयी जन-पार्टी थी, ला खड़ा करने के लिए तथाकथित “खुला पत्र” प्रकाशित करने का तरीक़ा इस्तेमाल किया गया था जो कि अन्य देशों की तुलना में वहाँ के लिए अधिक कारगर था। यह तरीक़ा अपनाकर जर्मनी की कम्युनिस्ट पार्टी ने बढ़ती हुई निराशा और तीखे होते हुए वर्ग-संघर्षों के काल में ग़द्दार समाजवादी नेताओं को बेनकाब करने के लिए सर्वहारा वर्ग के अन्य जन संगठनों को सम्बोधित किया जिसका उद्देश्य यह था कि पूरे सर्वहारा वर्ग के सामने उनसे साफ़-साफ़ पूछा जाये कि क्या वे (ग़द्दार समाजवादी नेता) सर्वहारा वर्ग की स्पष्ट दिखायी पड़ने वाली बर्बादी के खि़लाफ़ और उसकी छोटी से छोटी माँग के लिए भी, यहाँ तक कि रोटी के चन्द टुकड़ों के लिए भी अपने तथाकथित शक्तिशाली संगठनों को साथ लेकर कम्युनिस्ट पार्टी के साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर संघर्ष के मैदान में आने को तैयार हैं?

कम्युनिस्ट पार्टी जहाँ कहीं भी इस तरह के अभियान की शुरुआत करती है तो उसे अपनी ऐसी कार्रवाई की पहुँच मज़दूर वर्ग की व्यापक आबादी तक बनाने के लिए मुकम्मिल तौर पर सांगठनिक तैयारियाँ कर लेनी चाहिए।

कारख़ानों के सभी पार्टी ग्रुपों और पार्टी के ट्रेड यूनियन पदाधिकारियों को चाहिए कि वे पार्टी द्वारा उठाई गयी माँगों पर, जो कि सर्वहारा वर्ग की सबसे ज़रूरी माँगों का प्रतिनिधित्व करती हैं, अपनी अगली फैक्ट्री या ट्रेड यूनियन मीटिंगों मे तथा सभी सार्वजनिक सभाओं में भी, इस तरह की मीटिंगों के लिए पूरी तैयारी करके, बहस करवायें। जन-समुदाय की अनुकूल मानसिक स्थिति का लाभ उठाने के लिए सभी जगहों पर पर्चे, इश्तिहार और पोस्टर बाँटे जाने चाहिए। जहाँ हमारे न्यूक्लियस और ग्रुप जन-समुदाय को हमारी माँगों के पक्ष में ला खड़ा करने की कोशिश कर रहे हों, उन सभी जगहों पर यह काम असरदार ढंग से होना चाहिए। हमारे पार्टी-प्रेस (यानी पार्टी की पत्रिकाओं व प्रकाशनों को) को, ऐसे अभियान के समूचे दौर में आन्दोलन की समस्याओं पर, रोज़ाना लिखे गये छोटे-बड़े लेखों के ज़रिये, हर सम्भव दृष्टिकोण से समस्या के हर पहलू से देखते हुए, लगातार प्रकाश डालना चाहिए। संगठन को चाहिए कि ऐसे लेखों के लिए वे पार्टी की पत्रिकाओं को लगातार मसाला देते रहें और इस बात पर गहरी नजर रखे कि पार्टी के इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए किये जा रहे प्रयास में पत्रिकाओं के सम्पादकगण कहीं पीछे न छूट जायें। ऐसे संघर्षों को आगे बढ़ाने के लिए पार्टी के संसदीय ग्रुपों और म्युनिसिपल प्रतिनिधियों को भी व्यवस्थित ढंग से काम करना चाहिए। विभिन्न संसदीय निकायों में, पार्टी नेतृत्व के निर्देशों के अनुसार प्रस्ताव या संकल्प पेश करने के ज़रिये उन्हें इस आन्दोलन को बहस का मुद्दा बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इन प्रतिनिधियों के चाहिए कि वे ख़ुद को संघर्षरत जनसमुदाय का सचेत सदस्य और वर्ग-दुश्मनों के खेमे में उनके हितों का प्रवक्ता समझें तथा ज़िम्मेदार पदाधिकारी और पार्टी-कार्यकर्ता समझें।

यदि पार्टी की समस्त शक्तियों की एकताबद्ध और संगठनात्मक रूप से सुदृढ़ कार्रवाइयाँ चन्द हफ्ऱतों के अन्दर हमारी माँगों के समर्थन में बडी संख्या में और लगातार बढ़ती तादाद में प्रस्ताव मंजूर करवाने में कामयाब हो जाती हैं तो हमारी पार्टी का यह गम्भीर सांगठनिक कार्यभार होगा कि वह हमारी माँगों के प्रति समर्थन प्रकट करने वाले जनसमुदाय को जत्थेबन्द कर ले। यदि आन्दोलन ने एक विशेष ट्रेड यूनियन चरित्र अपना लिया हो तो सबसे ज़्यादा ज़रूरी यह है कि ऐसे प्रयास किये जायें जिससे ट्रेड यूनियनों में हमारा सांगठनिक प्रभाव बढ़ जाये।

इस लिहाज से ट्रेड यूनियनों के भीतर काम करने वाले हमारे ग्रुपों को, स्थानीय ट्रेड यूनियन नेताओं के खि़लाफ़ पूरी तैयारी के आधार पर प्रत्यक्ष कार्रवाई करनी चाहिए जिससे या तो इन नेताओं का प्रभाव ही समाप्त हो जाये और नहीं तो ये हमारी पार्टी की माँगों के आधार पर एक संगठित संघर्ष छेड़ने के लिए बाध्य हो जायें। जहाँ कहीं भी फैक्ट्री कौंसिलें, औद्योगिक कमेटियाँ या ऐसी अन्य संस्थाएँ मौजूद हैं, वहाँ हमारे ग्रुपों को इनके पूर्णाधिवेशनों (प्लेनरी मीटिंग) को इसके लिए प्रभावित करने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए कि वे संघर्ष का समर्थन करने के पक्ष में फ़ैसला लें। यदि कई एक स्थानीय संगठनों को, कम्युनिस्ट नेतृत्व में सर्वहारा वर्ग द्वारा चलाये जा रहे महज रोज़ी-रोटी के आन्दोलन का समर्थन करने के लिए प्रभावित किया जा चुका हो तो फिर उन सबको आम सम्मेलनों में एकत्र किया जाना चाहिए जिनमें फैक्ट्री-मीटिंगों के विशेष प्रतिनिधि भी शामिल हों; और ऐसे सम्मेलनों में आन्दोलन के पक्ष में प्रस्ताव पारित किये जाने चाहिए।

VI

नया नेतृत्व

इस ढंग से, कम्युनिस्ट प्रभाव के अन्तर्गत सुदृढ़ीकृत नया नेतृत्व संगठित मज़दूरों के सक्रिय ग्रुपों के इस प्रकार के जुटाव से नयी शक्ति हासिल करता है; और इस नयी शक्ति का उपयोग समाजवादी पार्टियों और ट्रेड यूनियनों के नेतृत्व को नयी स्फूर्ति प्रदान करने में या फिर उसे पूरी तरह बेनकाब करने में किया जाना चाहिए।

उन औद्योगिक क्षेत्रें में जहाँ हमारी पार्टी के अपने सबसे अच्छे संगठन मौजूद हैं। और जहाँ उसने अपनी माँगों के पक्ष में अधिकतम समर्थन हासिल कर लिया है, वहाँ हमें स्थानीय ट्रेड यूनियनों और औद्योगिक परिषदों पर संगठित दबाव डालकर इन क्षेत्रें के सभी छिटपुट आर्थिक संघर्षों तथा अन्य ग्रुपों के विकसित हो रहे आन्दोलनों को एकताबद्ध करके एक समन्वित संघर्ष का रूप देने में निश्चित तौर पर सफलता अर्जित करनी चाहिए।

इसके बाद इस आन्दोलन की ओर से, अलग-अलग धन्धों के विशिष्ट हितों से एकदम अलग हटकर, कुछ निश्चित आम बुनियादी माँगों को सूत्रबद्ध किया जाना चाहिए और तब ज़िले में मौजूद तमाम संगठनों की एकताबद्ध शक्ति का इस्तेमाल करते हुए इन माँगों को हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए। तभी इस प्रकार के आन्दोलनों में कम्युनिस्ट पार्टी अपने को संघर्ष के लिए तैयार सर्वहारा वर्ग का नेता सिद्ध कर सकेगी, जबकि ट्रेड यूनियन नौकरशाही और समाजवादी पार्टी जो इस एकताबद्ध, संगठित संघर्ष का विरोध करेंगी, वे अपने असली रंग में, न केवल राजनीतिक तौर पर, बल्कि व्यावहारिक सांगठनिक दृष्टिकोण से भी बेनकाब हो जायेंगी।

तीव्र संकट के समय घटनाक्रम को कैसे प्रभावित किया जाये

34. ऐसे गम्भीर राजनीतिक और आर्थिक संकटों के दौरान, जिनके परिणामस्वरूप नये आन्दोलन जन्म लेते हैं, कम्युनिस्ट पार्टी को जनसमुदाय पर अपना नियन्त्रण क़ायम करने की कोशिश करनी चाहिए। कुछ ख़ास माँगों को उठाने के बजाय समाजवादी पार्टियों और ट्रेड यूनियनों के सदस्यों से सीधे यह अपील करना व उन्हें समझाना शायद बेहतर होगा कि उनके नौकरशाह नेताओं द्वारा निर्णायक संघर्ष से कतराकर बच निकलने की कोशिशों के बावजूद किस तरह मुसीबत और जुल्म ने उन्हें मालिक के खि़लाफ़ अनिवार्य संघर्षों में झोंक दिया है।

पार्टी के मुखपत्रों, ख़ासकर दैनिक अख़बारों को तो रोज़-ब-रोज़ इस बात पर ज़ोर देना चाहिए कि कम्युनिस्ट मुसीबतज़दा मज़दूरों के आने वाले और वास्तविक संघर्षों में नेतृत्व देने के लिए तैयार हैं, कि उनका जुझारू संगठन किसी भी गम्भीर परिस्थिति में, जहाँ कहीं भी मुमकिन है, सभी उत्पीड़ितों को मदद देने के लिए तैयार है। प्रतिदिन इस बात की ओर भी इंगित किया जाना चाहिए कि पुराने संगठनों द्वारा इन संघर्षों से बच निकलने और उनमें रुकावटें डालने की कोशिशों के बावजूद, इन संघर्षों के बग़ैर मज़दूरों के जीने लायक परिस्थितियों के निर्माण की कोई सम्भावना नहीं है।

ट्रेड यूनियनों और औद्योगिक संगठनों के अन्दर काम करने वाले कम्युनिस्ट फ्रैक्शनों को कम्युनिस्टों की आत्मत्यागपूर्ण तत्परता पर लगातार ज़ोर देते रहना चाहिए और उन्हें अपने साथी मज़दूरों के सामने भी यह साफ़ कर देना चाहिए कि संघर्ष से बचा नहीं जा सकता। किन्तु मुख्य कार्य यह है कि इस परिस्थिति से पैदा होने वाले संघर्षों और आन्दोलनों को एकताबद्ध किया जाये और मजबूत बनाया जाये। उद्योगों और दस्तकारियों के उन केन्द्रकों और फ्रैक्शनों को जो संघर्षों के दायरे में खिंच आये हैं, न सिर्फ़ एक-दूसरे के साथ घनिष्ठतम सांगठनिक सम्बन्ध बनाये रखना चाहिए बल्कि ज़िला कमेटियों और केन्द्रीय कमेटी के द्वारा ऐसे पदाधिकारियों और ज़िम्मेदार कार्यकर्ताओं को उपलब्ध कराकर सभी आन्दोलनों का नेतृत्व भी करना चाहिए जो उन संघर्षों में पहले से लगे लोगों के कन्धे से कन्धा भिड़ाकर आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान कर सकते हों, संघर्ष को व्यापक और घनीभूत बना सकते हों तथा अधिक बड़े क्षेत्र में उसका प्रसार कर सकते हों। हर जगह संगठन का मुख्य कर्तव्य यह है कि वह सभी विभिन्न प्रकार के संघर्षों के समान चरित्र को बतायें और उसपर ज़ोर दें, ताकि आवश्यकता पड़ने पर, राजनीतिक साधनों के द्वारा प्रश्न के आम समाधान के विचार को आगे बढ़ाया जा सके। जैसे-जैसे संघर्ष अधिक घनीभूत और सामान्य चरित्र वाले होते जाते हैं, वैसे-वैसे यह आवश्यक हो जाता है कि संघर्षों के नेतृत्व के लिए एक ही प्रकार के साधन या अवयव निर्मित किये जायें। जहाँ कहीं भी हड़ताल का नौकरशाहाना नेतृत्व असफल हो चुका हो वहाँ कम्युनिस्टों को फ़ौरन सामने आना चाहिए और एक दृढ़संकल्प जुझारू नेतृत्व को सुनिश्चित बनाना चाहिए। जहाँ अलग-अलग संघर्षों को एकजुट करने में सफलता हासिल की जा चुकी हो, वहाँ आम कार्यकारी प्रारम्भिक संगठन पर ज़ोर दिया जाना चाहिए और यही वह जगह है जहाँ कम्युनिस्ट अनिवार्यतः नेतृत्व हासिल करने की कोशिश करते हैं। सक्षम प्रारम्भिक संगठन के अन्तर्गत, आम (साझा) कार्यकारी संगठन के निर्माण में कामयाबी तभी हासिल हो सकती है, जबकि फ्रैक्शनों और औद्योगिक परिषदों की मीटिंगों में, तथा साथ ही सम्बन्धित उद्योगों की जनसभाओं में लगातार इसकी वकालत की जाये।

जब आन्दोलन व्यापक हो जाता है और मालिकों के संगठनों के हमलों के कारण तथा सरकारी हस्तक्षेप के कारण राजनीतिक चरित्र अपना लेता है; तो मज़दूर परिषदों के चुनाव के लिए शुरुआती प्रचार और सांगठिनक कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिए, क्योंकि ऐसे चुनाव उस समय मुमकिन, या यहाँ तक कि ज़रूरी भी हो जा सकते हैं।

यही वह मुक़ाम है, जहाँ पार्टी के सभी अवयवों-मुखपत्रों को इस विचार पर ज़ोर देना चाहिए कि क्यों संघर्ष के अपने ख़ुद के हथियार तैयार करके ही मज़दूर वर्ग अपनी वास्तविक मुक्ति हासिल कर सकता है। इस प्रचार में ट्रेड यूनियन नौकरशाही या पुरानी समाजवादी पार्टियों के प्रति जरा भी मुरव्वत नहीं की जानी चाहिए।

35. शक्ति अर्जित कर चुकी कम्युनिस्ट पार्टियों को, और विशेषकर बड़ी जन-पार्टियों को, अनिवार्यतः जन-कार्रवाइयों के लिए तैयार किया जाना चाहिए। सभी राजनीतिक और आर्थिक जन-आन्दोलनों को और साथ ही स्थानीय कार्रवाइयों को इन आन्दोलनों के अनुभवों को संगठित करने की दिशा में निर्देशित करना चाहिए ताकि व्यापक जन-समुदाय के साथ घनिष्ठ एकता क़ायम की जा सके। सभी बड़े आन्दोलनों द्वारा अर्जित अनुभवों पर, नेतृत्वकारी पदाधिकारियों, ज़िम्मेदार पार्टी कार्यकर्ताओं के विस्तृत सम्मेलनों में, बड़े और मंझोले उद्योगों के विश्वस्त ट्रेडयूनियन प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श होना चाहिए। इस तरीक़े से सम्पर्को का नेटवर्क लगातार विस्तारित और मजबूत होता जायेगा तथा उद्योगों के (ट्रेड यूनियनों के) प्रतिनिधि संघर्ष की भावना से ज़्यादा से ज़्यादा ओत-प्रोत होते जायेंगे। नेतृत्वकारी पदाधिकारियों और ज़िम्मेदार पार्टी-कार्यकर्ताओं के बीच तथा उन दोनो का कारख़ाने के विभागीय स्तर के पदाधिकारियों के साथ आपसी विश्वास का रिश्ता ही इस बात की सबसे बड़ी गारण्टी है कि परिस्थिति और पार्टी की वास्तविक शक्ति के मद्देनजर कोई अपरिपक्व राजनीतिक जन-कार्रवाई नहीं की जायेगी।

पार्टी संगठन और बड़े एवं मझोले उद्यागों में काम करने वाले सर्वहारा जनसमुदाय के बीच घनिष्ठतम सम्बन्ध के बिना कम्युनिस्ट पार्टी किसी भी बड़ी जनकार्रवाई या वास्तविक क्रान्तिकारी आन्दोलन को अंजाम नहीं दे सकती। पिछले वर्ष (1920 में) इटली में जो असंदिग्ध रूप से क्रान्तिकारी उभार आया था और जिसकी सर्वाधिक सशक्त अभिव्यक्ति कारख़ानों पर कब्जा करने के रूप में सामने आई थी; उसकी असामयिक विफलता के लिए निश्चित तौर पर और काफ़ी हद तक ट्रेड यूनियन नौकरशाही की ग़द्दारी और राजनीतिक पार्टी नेताओं की अविश्वसनीयता ज़िम्मेदार थी, लेकिन यह हार आंशिक रूप से इस कारण भी हुई कि पार्टी संगठन और उद्योगों के बीच राजनीतिक सूझबूझ और पार्टी की भलाई में दिलचस्पी रखने वाले विभागीय प्रतिनिधियों के ज़रिये घनिष्ठ सम्बन्धों का पूर्णतः अभाव था। और निस्सन्देह, इसी चीज के नितान्त अभाव के कारण इस वर्ष (1921 में) हुई अंग्रेज कोयला-खनिकों की हड़ताल को भी असाधारण नुकसान उठाना पड़ा है।

VII

पार्टी की पत्र-पत्रिकाओं के बारे में

कम्युनिस्ट पत्र को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए

36. पार्टी को अनथक परिश्रम करके कम्युनिस्ट पत्र-पत्रिकाओं का विकास करना चाहिए और उनका लगातार परिष्कार करना चाहिए। कोई भी पत्र जब तक अपने को पार्टी के निर्देशन के अधीन न कर दे, तब तक उसे कम्युनिस्ट मुखपत्र के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती।

पार्टी को बहुत सारे पत्र प्रकाशित करने की जगह बेहतर पत्र प्रकाशित करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। प्रत्येक कम्युनिस्ट पार्टी के पास एक अच्छा, और यदि सम्भव हो सके तो दैनिक केन्द्रीय मुखपत्र होना चाहिए।

37. एक कम्युनिस्ट अख़बार को किसी भी हालत में पूँजीवादी प्रतिष्ठान (अण्डरटेकिंग) नहीं बनना चाहिए जैसे कि बुर्जुआ अख़बार और ज़्यादातर “समाजवादीय” अख़बार होते हैं। हमारा अख़बार तमाम तरह की पूँजीवादी ऋण-संस्थाओं से स्वतन्त्र होना चाहिए। विज्ञापन इकट्ठा करने की सांगठनिक दक्षता क़ानूनी रूप से काम करने वाली जन-पार्टियों के लिए अख़बार के अस्तित्व को क़ायम रखना सम्भव बनाती है, पर इससे बड़े विज्ञापनदाताओं पर हमारी निर्भरता क़तई नहीं पैदा होनी चाहिए। इसके विपरीत सर्वहारा वर्ग के तमाम सामाजिक प्रश्नों पर उस अख़बार का अटल रुख़ ही हमारी तमाम जन-पार्टियों के बीच उसके प्रति अधिक सम्मान की भावना पैदा करेगा।

हमारे अख़बार को सनसनीखेज ख़बरों की आम जनता की ख़्वाहिश को पूरा करने का या उसे मनोरंजन की सामग्री मुहैया करने का काम नहीं करना चाहिए। उसे निम्न-पूँजीवादी लेखकों या विशेषज्ञ पत्रकारों की आलोचनाओं के सामने झुकना नहीं चाहिए और न ही उनकी नजरों में “सम्माननीयय” बनने की कोशिश करनी चाहिए।

38. कम्युनिस्ट अख़बार को सर्वोपरि तौर पर उत्पीड़ित और जंगजू मज़दूरों के हितों का ख्याल करना चाहिए। उसे हमारा सर्वोत्तम आन्दोलनकर्ता (एजिटेटर) और सर्वहारा क्रान्ति का नेतृत्वकारी प्रचारक बनना चाहिए।

पार्टी-सदस्यों की कार्रवाइयों के सभी बेशकीमती अनुभवों को इकट्ठा करना और उसे कम्युनिस्ट कार्य-पद्धति के लगातार सुधार और परिष्कार के मार्गदर्शन के लिए अपने कॉमरेडों के सामने प्रस्तुत करना हमारे अख़बार का उद्देश्य होना चाहिए। इस तरह यह हमारे क्रान्तिकारी काम का सर्वोत्तम संगठनकर्ता बन जायेगा।

किसी कम्युनिस्ट अख़बार और ख़ासकर हमारे मुख्य अख़बार के हर क़िस्म के, चौतरफा सांगठनिक कार्यों के ज़रिये ही, और उपरोक्त निश्चित लक्ष्य को दिमाग में रखकर ही, हम कम्युनिस्ट पार्टी में जनवादी केन्द्रीयता क़ायम कर सकेंगे और कामों का दक्षतापूर्वक बँटवारा भी कर सकेंगे ताकि पार्टी अपने ऐतिहासिक मिशन को पूरा करने के क़ाबिल बन जाये।

कम्युनिस्ट अख़बार का संगठन

39. कम्युनिस्ट अख़बार को एक कम्युनिस्ट प्रतिष्ठान बनने की कोशिश करनी चाहिए, यानी उसे एक लड़ाकू सर्वहारा संगठन होना चाहिए, उसे क्रान्तिकारी मज़दूरों, अख़बार में नियमित लिखने वाले कार्यकर्ताओं, सम्पादकों, कम्पोजिटरों, मुद्रकों और वितरकों, स्थानीय सामग्री एकत्र करने और अख़बार में उसपर चर्चा करने वाले लोगों तथा अख़बार के प्रचार में हर दिन सक्रिय रहने वाले लोगों का एक क्रियाशील समुदाय होना चाहिए। अख़बार को एक सच्चे लड़ाकू मुखपत्र के रूप में ढालने के लिए और उसे कम्युनिस्टों का एक मजबूत क्रियाशील समुदाय बनाने के लिए कई व्यावहारिक क़दम उठाने आवश्यक हैं।

एक कम्युनिस्ट को अपने अख़बार के साथ घनिष्ठतम सम्पर्क बनाये रखना चाहिए। उसे उसके लिए काम करना होगा, उसके लिए त्याग करना होगा। यह उसका रोज़मर्रा का हथियार है जिसे इस्तेमाल के लिए हर हमेशा तैयार रखने के लिए रोज़ाना, बराबर कसते और तेज करते रहना चाहिए। कम्युनिस्ट अख़बार का अस्तित्व बनाये रखने के लिए बड़ी-बड़ी भौतिक और आर्थिक कुर्बानियों की बराबर ज़रूरत पड़ती रहेगी। इसका मतलब यह है कि जब तक एक क़ानूनी, जन-पार्टी के अन्दर इस अख़बार के काफ़ी व्यापक वितरण और उसके एक ऐसे सुदृढ़ संगठन बनने की स्थिति न आ जाये कि वह ख़ुद कम्युनिस्ट आन्दोलन के लिए एक शक्तिशाली आधार बन जाये, तब तक इस अख़बार के विकास और आन्तरिक सुधार के लिए सभी संसाधन पार्टी-सदस्यों की क़तारों के बीच से ही जुटाने होंगे।

सिर्फ़ इतना ही काफ़ी नहीं है कि अख़बार का सक्रिय प्रचारक और पक्षपोषक बना जाये। यह भी आवश्यक है कि उसके लिए लिखने वाला भी बना जाये।

दुर्घटना से लेकर मज़दूरों की आम सभा तक, एक अप्रेण्टिस के प्रति दुर्व्यवहार से लेकर प्रतिष्ठान की वित्तीय रिपोर्ट तक — वर्कशाप के अन्दर की सामाजिक और आर्थिक दिलचस्पी की प्रत्येक घटना की रिपोर्ट अख़बार को फ़ौरन भेजी जानी चाहिए। ट्रेड यूनियन फ्रैक्शनों को अपने सभी महत्त्वपूर्ण फ़ैसले, अपनी बैठकों और सेक्रेटेरियटों के प्रस्ताव तथा साथ ही दुश्मनों की किसी भी विशेष कार्रवाई की सूचना तत्काल भेजनी चाहिए। बाहर सड़कों पर और आम सभाओं में सार्वजनिक जीवन सतर्क पार्टी सदस्यों को अक्सर यह मौक़ा मुहैया करायेगा कि वे विस्तार से सामाजिक पहलुओं की समालोचना प्रस्तुत कर सकें। यह समालोचना हमारे अख़बार में छपने पर, दिलचस्पी न लेने वाले पाठक भी यह सोचने लगेंगे कि हम जीवन की दैनिक आवश्यकताओं पर भी कितनी नजदीकी नजर रखते हैं।

मज़दूरों की चिट्ठियाँ

मज़दूरों की जीवन-स्थितियों के बारे में मज़दूरों द्वारा और मज़दूर वर्ग के संगठनों द्वारा भेजे गये संवादों/ख़बरों को सम्पादक मण्डल द्वारा विशेष सावधानी और लगाव के साथ देखा जाना चाहिए। उनका इस्तेमाल ऐसी संक्षिप्त नोटिसों के रूप में किया जा सकता है जो हमारे अख़बार और मज़दूरों के जीवन के बीच के अन्तरंग सम्बन्धों की भावना को प्रकट करती हो; अथवा, उन्हें मज़दूरों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से लिये गये ऐसे व्यावहारिक उदाहरणों के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए जो कम्युनिज़्म के सिद्धान्तों की व्याख्या करने में मदद करते हों। यह व्यापक मेहनतकश अवाम को कम्युनिज़्म के महान आदर्शों के निकट लाने का सबसे छोटा रास्ता है। जहाँ कहीं भी सम्भव हो, सम्पादक-मण्डल को दिन के किसी सुविधाजनक समय में ऐसे कुछ घण्टे उन मज़दूरों से बातचीत करने के लिए निर्धारित कर लेना चाहिए जो उनसे मिलने आयें और उस समय उन्हें मज़दूरों की आकांक्षाओं एवं ज़िन्दगी की परेशानियों के बारे में उनकी शिकायतों आदि को सुनना चाहिए, ज़रूरत हो तो उन्हें नोट करना चाहिए और पूरी पार्टी की जानकारी बढ़ाने के लिए उनका इस्तेमाल करना चाहिए।

प्रावदा का उदाहरण

बेशक इस पूँजीवादी व्यवस्था में तो यह असम्भव ही होगा कि हमारे अख़बार कम्युनिस्ट मज़दूरों के आदर्श समुदाय बन जायें। फिर भी, कठिनतम परिस्थितियों में भी एक ऐसे क्रान्तिकारी अख़बार के संगठन में एक हद तक की सफलता हासिल की जा सकती है। 1912-13 के दौरान हमारे रूसी कॉमरेडों द्वारा प्रकाशित ‘प्रावदा’ के उदाहरण से यह बात साबित हो चुकी है। यह अख़बार वास्तव में सबसे महत्त्वपूर्ण रूसी केन्द्रों के सचेतन, क्रान्तिकारी मज़दूरों के स्थायी और सक्रिय संगठन का प्रतिनिधित्व करता था। कॉमरेडों ने इस पत्र के सम्पादन, प्रकाशन और वितरण के लिए अपनी सामूहिक शक्ति का इस्तेमाल किया और उनमें से बहुत से कॉमरेडों ने तो यह काम अपने जीविकोपार्जन के काम के साथ-साथ किया और पत्रिका के लिए आवश्यक धन अपनी आमदनी में से निकाला। इसके बदले में अख़बार ने उन्हें वे सर्वोत्तम चीजें मुहैया कराईं, जिनकी उन्हें चाहत थी, जिनका वे अपने कामों में और अपने संघर्ष में उस समय इस्तेमाल कर सकते थे और आज भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह के अख़बार को वास्तव में और सच्चे अर्थों में तमाम पार्टी-सदस्य और बहुतेरे क्रान्तिकारी मज़दूर कह सकते हैं: “हमारा अख़बार।”

जन-अभियानों को चलाने का हथियार

40. जुझारू कम्युनिस्ट अख़बारों को पार्टी द्वारा चलाये जाने वाले अभियानों में प्रत्यक्ष भागीदारी करनी चाहिए। यदि किसी निश्चित समय में पार्टी की सक्रियता किसी ख़ास अभियान पर केन्द्रित हो तो पार्टी-मुखपत्र का कर्तव्य हो जाता है कि वह न सिर्फ़ अपने सम्पादकीय पृष्ठों को, बल्कि अपने सभी विभागों को उस विशेष अभियान की सेवा में सन्नद्ध कर दे। सम्पादक मण्डल को इस अभियान को मदद पहुँचाने के लिए सभी स्रोतों से सामग्री मुहैया करनी चाहिए तथा अख़बार की अन्तर्वस्तु और रूप — दोनों में यह सामग्री मौजूद रहनी चाहिए।

41. “अपने अख़बार” के लिए सहयोग जुटाने के लिए एक पूरी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। इसके लिए सबसे पहली ज़रूरी बात यह है कि मज़दूरों में उद्वेलन (हलचल) के हर मौक़े का, हर ऐसी परिस्थिति का पूरा इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जब किसी ख़ास घटना की वजह से मज़दूरों की राजनीतिक और सामाजिक चेतना जागृत हो गयी हो। इस तरह की प्रत्येक बड़ी हड़ताल, आन्दोलन या तालाबन्दी के बाद, जिनके दौरान हमारे अख़बार ने खुलेआम और पुरज़ोर तरीक़े से मज़दूरों के हितों की रक्षा की हो, इन आन्दोलनों में शामिल होने वालों के बीच प्रचार का कार्य संगठित किया जाये और चलाया जाये। अख़बार के चन्दे की सूचियाँ और ग्राहक फार्मों को ऐसे तमाम कारख़ानों में बाँटा जाना चाहिए जहाँ कम्युनिस्टों का अपना काम हो; उन्हें ऐसे कारख़ानों के ट्रेड यूनियन फ्रैक्शनों के बीच भी बाँटा जाना चाहिए जहाँ के मज़दूरों ने हड़तालों में भाग लिया हो, इसके अलावा जहाँ कहीं भी सम्भव हो, ग्राहक फार्मों को अख़बार का प्रचार करने वाले मज़दूरों के विशेष दलों द्वारा घर-घर बाँटा जाना चाहिए।

इसी तरह, प्रत्येक ऐसे चुनाव अभियान के बाद, जिसने मज़दूरों में जागृति पैदा की हो, इस उद्देश्य के लिए विशेष दस्ते तैनात करना चाहिए जो मज़दूर अख़बार के लिए व्यवस्थित प्रचार चलाते हुए मज़दूरों के घर-घर जायें।

महँगाई, बेरोज़गारी और मज़दूरों की व्यापक आबादी को प्रभावित करने वाली अन्य कठिनाइयों के रूप में प्रकट होने वाले प्रच्छन्न राजनीतिक या आर्थिक संकटों के दौरान, पेशागत आधार पर संगठित विभिन्न उद्योगों के मज़दूरों को अपने साथ लेने की हर सम्भव कोशिश की जानी चाहिए और उन्हें ऐसी सक्रिय टोलियों में संगठित किया जाना चाहिए जो अख़बार के लिए व्यवस्थित ढंग से घर-घर जाकर प्रचार कर सकें। अनुभव बताते हैं कि इस तरह के प्रचार-कार्य के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रत्येक महीने का अन्तिम सप्ताह होता है। यदि कोई स्थानीय ग्रुप किसी महीने के अन्तिम सप्ताह को ऐसे प्रचार के लिए इस्तेमाल किये बिना गुजर जाने देता है तो वह कम्युनिस्ट आन्दोलन के प्रसार के सम्बन्ध में गम्भीर अपराध करता है।

अख़बार का प्रचार करने वाली किसी कार्यकर्ता टोली को हर सार्वजनिक सभा या प्रदर्शन में शुरू से लेकर अन्त तक ग्राहक फार्मों के साथ मौजूद रहना चाहिए। यही काम प्रत्येक ट्रेड यूनियन फ्रैक्शन को यूनियन की हर मीटिंग में करना होगा और प्रत्येक पार्टी-ग्रुप या फ्रैक्शन को अलग-अलग विभागों की मीटिंगों में करना होगा।

पार्टी-प्रेस की रक्षा करो

42. प्रत्येक पार्टी-सदस्य को अपने अख़बार को सभी विरोधियों के हमलों से लगातार बचाते रहना होगा तथा पूँजीवादी अख़बारों के खि़लाफ़ ज़ोरदार अभियान चलाते रहना होगा। उन्हें पूँजीवादी प्रेस की नीचता, झूठ-फरेब, ख़बरों को दबाने जैसी हरकतों और दुरंगेपन को बेनकाब करना चाहिए और लोगों का ध्यान उस ओर खींचना चाहिए।

तुच्छ गुटबन्दी के वाद-विवाद में फँसे बग़ैर, सामाजिक-जनवादी और स्वतन्त्र पत्र-पत्रिकाओं द्वारा रोज़मर्रा के एकदम प्रत्यक्ष वर्ग-संघर्षों पर पर्दा डालने के ग़द्दाराना रुख़ का लगातार पर्दाफाश करते हुए तथा बराबर हमलावर ढंग से उनकी आलोचना करते हुए, उन पर जीत हासिल की जानी चाहिए। ट्रेड यूनियन फ्रैक्शनों और अन्य क़िस्म के फ्रैक्शनों को चाहिए कि वे संगठित तरीक़े से ट्रेड यूनियनों और अन्य मज़दूर संगठनों के सदस्यों को इन सामाजिक जनवादियों के गुमराह करने वाले और पंगु बना देने वाले प्रभाव से मुक्त करें। इसके अलावा हमारे अख़बारों के लिए घर-घर जाकर प्रचार करने के काम को, ख़ासकर औद्योगिक मज़दूरों के बीच प्रचार के काम को सामाजिक जनवादी अख़बारों के विरुद्ध प्रचार की दिशा में, कुशलतापूर्वक निर्देशित किया जाना चाहिए।

VIII

पार्टी संगठन के ढाँचे पर

43. चारों ओर फैलते हुए और ख़ुद को मजबूत बनाते हुए पार्टी संगठन को महज भौगोलिक बँटवारे की किसी स्कीम के आधार पर नहीं बल्कि किसी ज़िला विशेष की वास्तविक आर्थिक व राजनीतिक और यातायात की परिस्थितियों को दृष्टि में रखकर संगठित किया जाना चाहिए। उसका गुरुत्व केन्द्र प्रमुख शहरों में और बडे़ औद्योगिक केन्द्रों में होना चाहिए।

एक नयी पार्टी का निर्माण करते समय आम तौर पर एक प्रवृत्ति यह सामने आती है कि पार्टी संगठन को फ़ौरन पूरे देश में फैला दिया जाये। इस प्रकार, इस बात का ख्याल रखे बग़ैर कि पार्टी के पास कार्यकर्ताओं की संख्या अत्यन्त सीमित है, इन थोडे़-से कार्यकर्ताओं को चारो ओर बिखेर दिया जाता है। इससे पार्टी की नये कार्यकर्ताओं की भर्ती की क्षमता कम हो जाती है और पार्टी का विकास मद्धिम पड़ जाता है। इन हालात में पार्टी-कार्यालयों का एक व्यापक तन्त्र तो ज़रूर फलता-फूलता दिखायी देता है पर पार्टी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण औद्योगिक शहरों में भी अपना प्रभाव-क्षेत्र क़ायम करने में कामयाब नहीं हो पाती।

प्रान्तीय तथा ज़िला संगठन

44. पार्टी के कामों को सर्वोच्च सम्भव सीमा तक केन्द्रीकृत करने के लिए, यह उचित नहीं होगा कि पार्टी नेतृत्व को पदानुक्रम (ऊपर-नीचे पदों की श्रेणियों में) के अनुसार इस तरह बाँट दिया जाये कि एक के नीचे दूसरे की मातहती की कई श्रेणियाँ बन जायें। लक्ष्य यह होना चाहिए कि हर बड़े शहर में जो आर्थिक, राजनीतिक गतिविधियाँ और यातायात-परिवहन का केन्द्र होता है, संगठनों का ताना-बाना खड़ा किया जाये और उसके आसपास के विस्तृत क्षेत्र में और अगल-बगल के आर्थिक-राजनीतिक महत्त्व के ज़िलों में फैला दिया जाये। इस बड़े केन्द्र की पार्टी कमेटी ही पार्टी के सामान्य निकाय की शीर्ष कमेटी होनी चाहिए और क्षेत्र के पार्टी सदस्यों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध बनाये रखते हुए ज़िले की सांगठनिक गतिविधियों का संचालन करना चाहिए और नीति-निर्देशन का काम करना चाहिए।

ज़िला सम्मेलन द्वारा निर्वाचित और पार्टी की केन्द्रीय कमेटी द्वारा अनुमोदित ऐसे ज़िले के संगठनकर्ताओं के लिए स्थानीय संगठन के पार्टी जीवन में सक्रिय भागीदारी करना अनिवार्य होगा। ज़िले की पार्टी कमेटी को उस स्थान के पार्टी-कार्यकर्ताओं के बीच से सदस्यों का चुनाव कर ख़ुद को लगातार मजबूत बनाते रहना चाहिए ताकि उस ज़िले के व्यापक जनसमुदाय और कमेटी के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध बना रहे। जैसे-जैसे संगठन विकसित होता जाये, ऐसे प्रयास किये जाने चाहिए कि ज़िले की नेतृत्वकारी कमेटी उस स्थान विशेष का नेतृत्वकारी राजनीतिक निकाय भी बन जाये। इस तरह, पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के साथ ज़िले की पार्टी कमेटी को सामान्य पार्टी संगठन के वास्तविक नेतृत्वकारी अवयव की भूमिका निभानी चाहिए।

एक पार्टी ज़िला (पार्टी-डिस्ट्रिक्ट) की सीमा रेखाएँ स्थान-विशेष के भौगोलिक क्षेत्र तक प्राकृतिक रूप से सीमित नहीं रहतीं। उसकी सीमा इस बात से तय होनी चाहिए कि ज़िला कमेटी उस ज़िले की सभी स्थानीय संगठनों की गतिविधियों को समान रूप से निर्देशित करने की स्थिति में है अथवा नहीं। जब कभी यह असम्भव हो जाये, तो ज़िले को विभाजित कर दिया जाना चाहिए और नये पार्टी ज़िले बना दिये जाने चाहिए।

अधिक बडे़ देशों में यह भी ज़रूरी है कि केन्द्रीय कमेटी और विभिन्न ज़िला कमेटियों के बीच, तथा साथ ही विभिन्न ज़िला कमेटियों और स्थानीय कमेटियों के बीच भी, सम्पर्क रखने वाली कड़ी के रूप में कुछ मध्यवर्ती संगठन बनाये जायें। किन्हीं हालात में यह भी सलाह दी जा सकती है कि कुछ मध्यवर्ती संगठनों को, मसलन किसी बड़े शहर के मजबूत सदस्यता वाले किसी संगठन को, नेतृत्वकारी भूमिका सौंप दी जाये, लेकिन सामान्य नियम के तौर पर इससे बचना चाहिए क्योंकि इससे विकेन्द्रीकरण का ख़तरा रहता है।

स्थानीय संगठन

45. बडे़ मध्यवर्ती संगठन स्थानीय पार्टी-संगठनों के बीच से ही गठित किये जाते हैं, जैसे देहाती क्षेत्रों के पार्टी-ग्रुपों से या छोटे नगरों के और ज़िलों के या बडे़ शहर के विभिन्न भागों के पार्टी-ग्रुपों से।

कोई भी स्थानीय पार्टी-संगठन जब इस हद तक विकसित हो चुका हो कि वह क़ानूनी संगठन की तरह अस्तित्व में आ जाये या अपने सभी सदस्यों की आम मीटिंगें न कर सके तो उसे विभाजित कर देना चाहिए।

हर पार्टी-संगठन में सदस्यों को रोज़मर्रा की पार्टी-कार्रवाइयों के लिए ग्रुपों में संगठित कर देना चाहिए। बडे़ संगठनों में यह सुझाव दिया जा सकता है कि विभिन्न ग्रुपों को सामूहिक निकायों में मिला दिया जाये। नियमानुसार ऐसे सदस्यों को अपने काम के स्थान पर अन्य किसी ऐसे स्थान पर ग्रुप में शामिल किया जाना चाहिए जहाँ उन्हें रोज़मर्रा के कामों के दौरान एक-दूसरे से मिलने का अवसर प्राप्त होता हो। इस तरह के सामूहिक ग्रुप का उद्देश्य है — पार्टी कार्रवाइयों को विभिन्न छोटे-छोटे कार्यकारी ग्रुपों में बाँट देना, विभिन्न पदाधिकारियों से रिपोर्टें प्राप्त करना और सदस्यता के लिए उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करना।

कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल से पार्टी के रिश्ते

46. पूरी पार्टी को कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल के मार्गदर्शन में काम करना होता है। सम्बद्ध पार्टी की कार्य-पद्धतियों को प्रभावित करने वाले इण्टरनेशनल की कार्यकारिणी के निर्देशों और प्रस्तावों को सर्वप्रथम, या तो (i) उक्त पार्टी की केन्द्रीय कमेटी को, या (ii) उस कमेटी के ज़रिये किसी विशेष कमेटी को, या (iii) पार्टी के तमाम सदस्यों को भेजा जाना चाहिए।

इण्टरनेशनल के निर्देश एवं प्रस्ताव पार्टी के लिए और स्वाभाविक तौर पर, तमाम पार्टी-सदस्यों के लिए अनिवार्य रूप से मान्य हैं।

केन्द्रीय कमेटी और पोलित ब्यूरो

47. पार्टी की केन्द्रीय कमेटी पार्टी कांग्रेस में चुनी जाती है और उसी के प्रति जवाबदेह होती है। केन्द्रीय कमेटी राजनीतिक और सांगठनिक कामों के लिए अपने बीच से एक और छोटा निकाय (पोलित ब्यूरो) चुनती है जिसकी दो उपकमेटियाँ होती हैं। ये दोनों उपकमेटियाँ पार्टी के राजनीतिक कामों और रोज़मर्रा की कार्रवाइयों के लिए उत्तरदायी होती हैं। ये उपकमेटियाँ या ब्यूरो पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के नियमित रूप से होने वाले संयुक्त अधिवेशनों की व्यवस्था करती हैं जहाँ फ़ौरी महत्त्व के निर्णय पारित किये जाते हैं। सामान्य और राजनीतिक परिस्थितियों का अध्ययन करने के लिए और पार्टी की अन्दरूनी स्थिति की स्पष्ट समझ क़ायम करने के लिए यह ज़रूरी है कि जब कभी भी पूरी पार्टी के जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णय लिये जायें, तो केन्द्रीय कमेटी में विभिन्न इलाकों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति आवश्यक हो। और इसी कारण से, यदि रणकौशल के प्रश्न पर मतभेद उठ खडे़ हों और वे गम्भीर प्रकृति के हों तो केन्द्रीय कमेटी को उन्हें दबाना नहीं चाहिए। इसके विपरीत इन (विभिन्न) मतों का प्रतिनिधित्व केन्द्रीय कमेटी में होना चाहिए। लेकिन छोटे ब्यूरो (पोलित ब्यूरो) का कामकाज समान लाइन के आधार पर संचालित होना चाहिए और एक दृढ़ व निश्चित नीति को लागू करने के लिए उसे अपने ख़ुद के प्राधिकार पर और साथ ही केन्द्रीय कमेटी के अच्छे-ख़ासे बहुमत पर निर्भर करना चाहिए।

पार्टी की केन्द्रीय कमेटी, इस आधार पर काम करके, ख़ासकर क़ानूनी ढंग से काम करने वाली पार्टियों में, कम से कम समय में अनुशासन की एक मजबूत बुनियाद डाल सकेगी जिसके लिए पार्टी सदस्यों का बिना शर्त विश्वास हासिल करना ज़रूरी होता है। साथ ही, इस ढंग से काम करने पर वे भटकाव और ढुलमुलपन भी सामने आ जायेंगे जो ज़िम्मेदार कार्यकर्ताओं में पैदा होते रहते हैं और जिन्हें पहचानना होता है तथा समाप्त करना होता है। इस तरह, पार्टी में इस क़िस्म की गड़बड़ियों को उस सीमा तक पहुँचने से पहले ही दूर किया जा सकता है, जब उन्हें फ़ैसले के लिए पार्टी कांग्रेस के पास ले जाना अनिवार्य हो जाये।

48. हर नेतृत्वकारी पार्टी कमेटी को कार्य की विभिन्न शाखाओं में महारत हासिल करने के लिए अपने सदस्यों के बीच काम करना चाहिए। इसके लिए कई विशेष कमेटियों के गठन की ज़रूरत पड़ सकती है। मसलन, प्रचार कमेटी, सम्पादकीय कार्य के लिए कमेटी, ट्रेड यूनियन अभियान के लिए कमेटी, सम्पर्क कमेटी इत्यादि। हर विशेष कमेटी या तो केन्द्रीय कमेटी के मातहत होती है या ज़िला कमेटी के।

सभी कमेटियों की गतिविधियों पर तथा उनकी संरचना पर नियन्त्रण क़ायम रखने की ज़िम्मेदारी ज़िला कमेटी के हाथों में, या फिर अन्ततः केन्द्रीय कमेटी के हाथों में होनी चाहिए। यह सुझाव दिया जा सकता है कि समय-समय पर विभिन्न क़िस्म के पार्टी कार्यों से जुडे़ लोगों के, जैसे सम्पादकों, संगठनकर्ताओं, प्रचारकों आदि के, कार्य एवं पद बदल दिये जायें, बशर्ते कि इससे पार्टी के काम-काज में कोई अवरोध न पैदा होता हो। सम्पादकों और प्रचारकों को किसी न किसी पार्टी ग्रुप द्वारा चलाये जा रहे नियमित पार्टी कार्य में अवश्य हिस्सा लेना चाहिए।

49. पार्टी की केन्द्रीय कमेटी का, और साथ ही कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल का भी यह अधिकार है कि वे किसी भी समय सभी कम्युनिस्ट संगठनों से, उनके किसी भी निकाय या कमेटी से और अलग-अलग सदस्यों से पूरी रिपोर्ट की माँग कर सकती हैं। केन्द्रीय कमेटी के प्रतिनिधि या उसके द्वारा अधिकृत कॉमरेड किसी भी मीटिंग या अधिवेशन में अनिवार्यतः निर्णायक अधिकार के साथ शामिल किये जाते हैं। पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के पास हमेशा अधिकार प्राप्त प्रतिनिधि (कमिसार) उपलब्ध होने चाहिए, यानी विभिन्न ज़िलों और अंचलों के नेतृत्वकारी निकायों को निर्देश और सूचनाएँ सिर्फ़ सर्कुलरों और पत्रों द्वारा ही नहीं भेजी जानी चाहिए बल्कि राजनीति और संगठन के सवालों पर सीधे जु़बानी और ज़िम्मेदार माध्यमों के ज़रिये भी यह काम किया जाना चाहिए।

पार्टी के प्रत्येक संगठन और प्रत्येक शाखा तथा प्रत्येक सदस्य का यह अधिकार है कि वह पार्टी की केन्द्रीय कमेटी या इण्टरनेशनल के पास किसी भी समय अपनी ख़्वाहिश, सुझाव, राय व शिकायतें सीधे भेज सकता है।

नीचे की कमेटी ऊपर की कमेटी के मातहत होगी

50. नेतृत्वकारी पार्टी निकायों के निर्देश व फ़ैसले मानना मातहत संगठनों और अलग-अलग संस्थाओं के लिए अनिवार्य है। नेतृत्वकारी निकायों के दायित्व और उनकी नेतृत्वकारी स्थिति के दुरुपयोग या ग़लत इस्तेमाल को रोकने के कर्तव्य का निर्वाह औपचारिक ढंग से सिर्फ़ आंशिक ही हो सकता है। औपचारिक तौर पर उनकी जवाबदेही जितनी कम हो (मिसाल के तौर पर ग़ैरक़ानूनी घोषित कर दी गयी पार्टियों में), उतना ही अधिक अनिवार्य उनका यह दायित्व हो जाता है कि वे पार्टी-सदस्यों की राय का अध्ययन करें, नियमित और ठोस सूचना प्राप्त करें तथा परिपक्व ढंग से और विस्तृत रूप से सोच-विचार और विमर्श के बाद ही अपने ख़ुद के फ़ैसले तय करें।

51. पार्टी सदस्यों के लिए यह अनिवार्य है कि वे अपनी तमाम सार्वजनिक कार्रवाइयों में एक जुझारू संगठन के अनुशासित सदस्यों के समान आचरण करें। कार्य का उचित तरीक़ा क्या है — इस सवाल पर यदि मतभेद सामने आयें तो जहाँ तक सम्भव हो, इसे पार्टी संगठन में पहले हुई बहस के आधार पर हल किया जाना चाहिए और बहस में जिस निर्णय पर पहुँचा गया हो, उसी आधार पर काम किया जाना चाहिए। यदि शेष अन्य सदस्यों की राय में संगठन या पार्टी कमेटी का निर्णय ग़लत भी लगे तो इन कॉमरेडों को अपनी तमाम सार्वजनिक गतिविधियों में इस तथ्य को कदापि नहीं भूलना चाहिए कि सामान्य मोर्चे की एकता को नुकसान पहुँचाना या एकदम तोड़ देना अनुशासनहीन आचरण का सबसे भद्दा रूप है और सैनिक दृष्टि से सबसे संगीन ग़लती है।

हर पार्टी सदस्य का यह सर्वोपरि कर्तव्य है कि वह कम्युनिस्ट पार्टी की और सबसे बढ़कर कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल की, कम्युनिज़्म के तमाम दुश्मनों के खि़लाफ़ हिफाजत करे। इसके विपरीत, जो व्यक्ति इस बात को भुला देता है और पार्टी या कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल पर सार्वजनिक रूप से हमला करता है, वह एक घटिया कम्युनिस्ट है।

52. पार्टी के संविधान की धाराएँ इस प्रकार तैयार की जानी चाहिए कि वे नेतृत्वकारी पार्टी निकायों के मार्ग में, सामान्य पार्टी संगठनों के सतत विकास के मार्ग में और पार्टी सक्रियता के निरन्तर प्रगति के मार्ग में बाधा न बनें बल्कि सहायक बनें। तमाम सम्बद्ध पार्टियों द्वारा कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल के निर्णयों का फ़ौरन पालन किया जाना चाहिए, यहाँ तक कि उस स्थिति में भी जबकि कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल के फ़ैसलों के अनुसार पार्टी के मौजूदा संविधान और पार्टी निर्णयों में ज़रूरी परिवर्तन बाद की किसी तारीख पर ही कर पाना सम्भव हो।

IX

क़ानूनी और ग़ैरक़ानूनी कार्य

तत्परता

53. पार्टी को इस तरह संगठित होना चाहिए कि वह हमेशा संघर्ष की स्थितियों में पैदा होने वाले सभी बदलावों के अनुसार अपनेआप को तेजी से ढाल लेने की स्थिति में रहे। कम्युनिस्ट पार्टी को अपनेआप को एक ऐसे जुझारू संगठन के रूप में विकसित करना चाहिए जो किसी एक स्थान पर केन्द्रित दुश्मन की भारी शक्ति से खुला मोर्चा लेने से बच निकलने में सक्षम हो। लेकिन दूसरी ओर, दुश्मन की ताक़त के ऐसे किसी केन्द्रीकरण का निश्चित तौर पर लाभ उठाते हुए, उस पर ऐसी जगह हमला किया जाना चाहिए, जहाँ उसे इसका सबसे कम अन्देशा हो। यह पार्टी-संगठन के लिए सबसे बड़ी ग़लती होगी कि वह किसी एक विद्रोह में और सड़क पर होने वाले संघर्ष में या सिर्फ़ घोर दमन की परिस्थितियों में अपनी सारी ताक़त दाँव पर लगा दे। कम्युनिस्ट लोग हमेशा तैयार रहने की सोच के आधार पर अपने प्रारम्भिक क्रान्तिकारी काम को ज़्यादा से ज़्यादा दोषमुक्त बनाते जाते हैं क्योंकि बहुधा शान्त और तूफानी दौरों की बदलती लहरों का पूर्वानुमान लगा पाना असम्भवप्राय होता है। और अगर ऐसा सम्भव भी हो तो पार्टी-कार्यों के पुनर्गठन के बहुतेरे मामलों में इस दूरन्देशी का कोई इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि नियम के तौर पर, बदलाव तेजी से आता है, और प्रायः, अचानक आता है।

54. पूँजीवादी देशों की क़ानूनी कम्युनिस्ट पार्टियाँ सशस्त्र संघर्ष के लिए, या आम तौर पर ग़ैरक़ानूनी संघर्ष के लिए, यथोचित रूप से तैयार रहने के पार्टी-कार्यभार के महत्त्व को समझ पाने में असफल रहती हैं। कम्युनिस्ट संगठन अपने अस्तित्व के स्थायी क़ानूनी आधार पर भरोसा करने और क़ानूनी कार्यभारों की आवश्यकताओं के अनुसार अपने कामों को संचालित करने की ग़लती प्रायः किया करते हैं।

दूसरी ओर, ग़ैरक़ानूनी पार्टियाँ प्रायः क़ानूनी गतिविधियों की उन सभी सम्भावनाओं का इस्तेमाल कर पाने में असफल हो जाती हैं, जिनका लाभ एक ऐसे पार्टी संगठन के निर्माण के लिए उठाया जा सकता है, जिसका क्रान्तिकारी जनसमुदाय से लगातार जीवन्त सम्पर्क बना रहे। ऐसे भूमिगत संगठनों के सामने, जो इन महत्त्वपूर्ण सच्चाइयों की उपेक्षा करते हैं, यह ख़तरा मौजूद रहता है कि वे महज ऐसे षड्यन्त्रकारियों के ग्रुपों में तब्दील हो जायें जो निरर्थक कामों में अपना श्रम नष्ट करते रहते हैं।

ये दोनों ही रुझानें ग़लत हैं। हर क़ानूनी कम्युनिस्ट संगठन के लिए यह जानना ज़रूरी है कि अपने अस्तित्व को भूमिगत रूप से बनाये रखने के लिए और सर्वोपरि तौर पर क्रान्तिकारी विस्फोटों के लिए अपनी पूरी तैयारी को किस तरह सुनिश्चित बनाया जाये। दूसरी ओर, प्रत्येक ग़ैरक़ानूनी कम्युनिस्ट संगठन को, घनीभूत पार्टी-सक्रियता द्वारा महान क्रान्तिकारी जनता का संगठनकर्ता और वास्तविक नेता बनने के लिए, क़ानूनी मज़दूर आन्दोलन द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सभी सम्भावनाओं का पूरा-पूरा इस्तेमाल करना चाहिए।

ग़ैरक़ानूनी और क़ानूनी काम के बीच अभेद्य दीवार नहीं होती

55. क़ानूनी और भूमिगत — दोनों ही पार्टी-सर्किलों में ग़ैरक़ानूनी कम्युनिस्ट संगठनात्मक कार्यों को बाकी पार्टी-संगठन और कार्यों से अलग, शुद्ध सैनिक संगठन के रूप में स्थापित करने और बनाये रखने की ओर अग्रसर होने की एक रुझान मौजूद रहती है। यह बिल्कुल ग़लत है। इसके विपरीत, पूर्व-क्रान्तिकारी काल में हमारे सैनिक संगठन के गठन का काम मुख्यतः कम्युनिस्ट पार्टी के आम कार्यों के द्वारा ही किया जाना चाहिए। समूची पार्टी को ही क्रान्ति के लिए जुझारू संगठन के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।

पूर्व-क्रान्तिकारी काल में, अपरिपक्व ढंग से बनाये गये, अलग-थलग क्रान्तिकारी सैनिक संगठनों में, प्रत्यक्ष और उपयोगी पार्टी-कार्य के अभाव में, विघटन की ओर प्रवृत्त होने की रुझानें मौजूद रहती हैं।

56. निस्सन्देह, एक ग़ैरक़ानूनी पार्टी के लिए यह अति आवश्यक है कि वह अपने सदस्यों और पार्टी-संस्थाओं को अधिकारियों की नजरों में आ जाने से बचाये और पंजीकरण, लापरवाही से चन्दा एकत्र करने और बिना सूझ-बूझ के क्रान्तिकारी सामग्री के वितरण जैसी किसी भी कार्रवाई द्वारा ऐसी कोई गुंजाइश पैदा ही न होने दे कि पार्टी सदस्य या पार्टी-संस्थाओं की गुप्तता भंग हो। इन कारणों से वह (यानी ग़ैरक़ानूनी पार्टी) खुले सांगठनिक तरीक़ों का उस हद तक इस्तेमाल नहीं कर सकती जिस हद तक एक क़ानूनी पार्टी कर सकती है। फिर भी, इस मामले में व्यवहार के ज़रिये वह अधिक से अधिक दक्षता प्राप्त कर सकती है।

दूसरी ओर, एक क़ानूनी जन-पार्टी को ग़ैरक़ानूनी कामों और संघर्ष के दौरों के लिए पूरी तरह तैयार रहना चाहिए। किसी भी स्थिति में उसे अपनी तैयारियों में ढील नहीं देनी चाहिए (मिसाल के तौर पर, उसके पास सदस्यों की फाइलों की प्रतिलिपियाँ छुपाने के लिए सुरक्षित स्थान अवश्य होने चाहिए, अधिकांश मामलों में चिट्ठी-पत्री नष्ट कर देनी चाहिए, महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों को सुरक्षित जगहों पर रखना चाहिए तथा सन्देशवाहकों को षड्यन्त्रकारी कामों की ट्रेनिंग देनी चाहिए)।

क़ानूनी और ग़ैरक़ानूनी — दोनों ही पार्टी-सर्किलों में प्रायः यह मान लिया जाता है कि ग़ैरक़ानूनी संगठनों को लाजिमी तौर पर बिल्कुल अलग और पूरी तरह एक सैनिक संस्था के रूप में होना चाहिए जो पार्टी के अन्दर भी एकदम अलग-थलग स्थिति में मौजूद रहे। ऐसा मानना बिल्कुल ग़लत है। पूर्व-क्रान्तिकारी काल में हमारे लड़ाकू संगठन का निर्माण मुख्यतः कम्युनिस्ट पार्टी के आम पार्टी-कार्य पर निर्भर होना चाहिए। समूची पार्टी को ही क्रान्ति के लिए लड़ाकू संगठन के रूप में ढाला जाना चाहिए।

क्रान्ति की आवश्यकतानुसार एक लड़ाकू पार्टी-संगठन तैयार करना चाहिए

57. इसलिए सामान्य पार्टी-कार्य का बँटवारा इस ढंग से किया जाना चाहिए कि पूर्व-क्रान्तिकारी काल में ही क्रान्ति की ज़रूरतों के मुताबिक बनाये जाने वाले एक लड़ाकू संगठन की स्थापना और सुदृढ़ीकरण की गारण्टी हो जाये। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कम्युनिस्ट पार्टी की तमाम गतिविधियों में इसकी निर्देशक संस्था क्रान्तिकारी आवश्यकताओं के द्वारा निर्देशित हो और जहाँ तक सम्भव हो, पार्टी यह स्पष्टतः जानने की कोशिश करे कि ये आवश्यकताएँ क्या हो सकती हैं। ज़ाहिर है कि यह आसान काम नहीं है लेकिन महज इस वजह से कम्युनिस्ट संगठनात्मक नेतृत्व के इस अति महत्त्वपूर्ण मुद्दे की अनदेखी नहीं की जा सकती।

सबसे अच्छी तरह से संगठित पार्टी को भी यदि खुले क्रान्तिकारी उभारों के दौर में अपने कामों में भारी रद्दोबदल करना पड़े तो उसके सामने बेहद कठिन और पेचीदा कार्यभार आ खड़ा होता है। यह बिलकुल सम्भव है कि हमारी राजनीतिक पार्टी को चन्द दिनों के भीतर ही अपनी तमाम शक्तियों को क्रान्तिकारी संघर्ष के लिए गोलबन्द करना पड़ जाये। यह भी सम्भव है कि उसे पार्टी शक्तियों के अतिरिक्त अपनी रिजर्व शक्तियों, हमदर्द संगठनों, यानी असंगठित क्रान्तिकारी जनसमुदाय को भी संगठित करना पड़ जाये। एक नियमित लाल सेना गठित करने का अभी तक सवाल नहीं उठता। हमें पहले से संगठित सेना के बग़ैर ही, पार्टी के नेतृत्व में जनता के द्वारा विजय प्राप्त करनी है।

यही कारण है कि यदि हमारी पार्टी ऐसे मौक़े के लिए पूरी तरह से तैयार और संगठित नहीं है तो हमारी सबसे बहादुराना कोशिशें भी कामयाबी नहीं हासिल कर पायेंगी।

विशेष गुप्त ढाँचा खड़ा करना ज़रूरी है

58. ऐसा देखने में आया है कि क्रान्तिकारी केन्द्रीय निर्देशक कमेटियाँ क्रान्तिकारी परिस्थितियों का सामना करने में असमर्थ सिद्ध हुई हैं। जहाँ तक छोटे-मोटे कार्यभारों का सवाल है, सर्वहारा वर्ग आम तौर पर महान क्रान्तिकारी संगठन खड़ा कर लेने में सफल रहा है, लेकिन उसके सदर मुक़ाम (हेडक्वार्टर्स) में हमेशा अव्यवस्था, भ्रम और अराजकता की स्थिति बनी रही है। कभी-कभी तो काम-काज का एकदम बुनियादी क़िस्म का बँटवारा भी नहीं किया जाता। ख़ुफ़िया विभाग अक्सर इतनी बुरी तरह से संगठित होता है कि फायदे के बजाय नुकसान ज़्यादा पहुँचाता है। डाक व अन्य संचार-साधन एकदम भरोसे के क़ाबिल नहीं होते। डाक और यातायात के सभी गुप्त प्रबन्ध, गुप्त स्थान और छापाखाना आदि आमतौर पर सौभाग्य या दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के रहमो-करम पर होते हैं तथा दुश्मन ताक़तों के “भड़काऊ एजेण्टोंय” के लिए सुनहरे मौक़े मुहैया कराते हैं।

इन सभी दोषों को तब तक ठीक नहीं किया जा सकता जब तक कि पार्टी इस ख़ास काम के लिए अपने प्रशासनिक तन्त्र में एक विशेष शाखा न संगठित कर ले। सैनिक ख़ुफ़िया सेवा के लिए अभ्यास, विशेष प्रशिक्षण और जानकारी की ज़रूरत होती है। राजनीतिक पुलिस के विरुद्ध ख़ुफ़ियागीरी के मामले में भी यही बात लागू होती है। लम्बे अरसे के अमल के द्वारा ही सन्तोषजनक ढंग से ख़ुफ़िया विभाग तैयार किया जा सकता है। हर क़ानूनी कम्युनिस्ट पार्टी को, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, इन तमाम विशिष्ट क्रान्तिकारी कार्यों के लिए गुप्त तैयारियाँ अवश्य करनी चाहिए। अधिकांश मामलों में ऐसा गुप्त ढाँचा पूर्णतः क़ानूनी गतिविधि के ज़रिये ही खड़ा किया जा सकता है।

मिसाल के तौर पर, पहले से तय की गयी कोड-व्यवस्था के द्वारा, सावधानी से बाँटे गये पर्चों और अख़बारों में लिखे जाने वाले पत्रों के ज़रिये गुप्त डाक व्यवस्था तथा यातायात-संचार व्यवस्था स्थापित करना बिल्कुल सम्भव है।

हर पार्टी-सदस्य और हर क्रान्तिकारी मज़दूर भावी क्रान्तिकारी सेना का सम्भावित सिपाही है

59. कम्युनिस्ट संगठनकर्ता को पार्टी के हर सदस्य को और हर क्रान्तिकारी मज़दूर को भावी क्रान्तिकारी सेना के सम्भावित सैनिक के रूप में देखना चाहिए। इस कारण से, संगठनकर्ता द्वारा उसे पार्टी में ऐसा स्थान दिया जाना चाहिए, जो उसकी भावी भूमिका के अनुरूप हो। उसकी वर्तमान पार्टी-गतिविधि वर्तमान पार्टी-कार्य के लिए ज़रूरी और उपयोगी सेवाओं के रूप में होनी चाहिए न कि महज ग़ैरज़रूरी कवायद के रूप में, जिसे आज एक व्यावहारिक कार्यकर्ता ख़ारिज़ कर देता है। यह बात कत्तई नहीं भूलनी चाहिए कि इस तरह की गतिविधि प्रत्येक कम्युनिस्ट के लिए अन्तिम संघर्ष की आवश्यकताओं के लिए सबसे अच्छी तैयारी है।

[*] आम्स्टर्डम इंटरनेशनल” दूसरे इंटरनेशनल का ही एक और नाम है। कार्ल काउत्स्की व अन्य की सामाजिक जनवाद की विचारधारा को मानने वाली यूरोपीय पार्टियों का अन्तरराष्ट्रीय संघ था जिसने प्रथम महायुद्ध के दौरान विश्व सर्वहारा क्रान्ति के लक्ष्य के साथ ग़द्दारी करके ‘पितृभूमि की रक्षा’ का अन्धराष्ट्रवादी नारा दिया था और साथ ही राज्य और क्रान्ति विषयक मार्क्सवाद की बुनियादी शिक्षाओं और सर्वहारा अन्तरराष्ट्रीयतावाद का परित्याग करके मध्यमार्गी या दक्षिणपन्थी अवसरवादी या संशोधनवादी अवस्थिति अपना ली थी। ट्रेड यूनियन आन्दोलन में ये कुलीन मज़दूरों का व मध्यमवर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे और इनकी यूनियनें महज अर्थवादी संघर्ष और सुधार-समझौते की राजनीति करके सर्वहारा वर्ग की क्रान्तिकारी चेतना और राजनीतिक संघर्ष की धार भोथरी करके पूँजीपति वर्ग की सेवा किया करती थीं और आज भी कर रही हैं। भारत में भाँति-भाँति के समाजवादी इन्हीं के वारिस हैं। ख्रूश्चेव से लेकर देङ सियाओ-पिङ मार्का “मार्क्सवाद” को मानने वाली भारत की चुनावबाज संशोधनवादी कम्युनिस्ट पार्टियाँ भी आज दूसरे इण्टरनेशनल की पार्टियों के ही नक्शेक़दम पर चल रही हैं और उनके यूनियन नेताओं का आचरण भी आम्स्टर्डमपन्थी नेताओं जैसा ही है। कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल के ‘लाल’ सर्वहारा चरित्र के समान्तर दूसरे इण्टरनेशनल के पूँजीवादी चरित्र को नंगा करने के लिए लेनिन उसे “पीला इण्टरनेशनल” भी कहा करते थे। – सं.


 

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