आठ हजार गरीब लोगों का नगर के बाहर इकट्ठा होना

बर्तोल्त ब्रेख्त

‘आठ हजार से अधिक बेरोजगार खानकर्मी, अपने बीवी-बच्‍चों समेत बुडापेस्‍ट के बाहर साल्‍गोटार्जन रोड पर जामा हो रहे हैं। उन्‍होंने अपने अभियान में पहली दो रातें बिना कुछ खाये-पिये ही गुजार दी है। उनके शरीर पर बेहद नाकाफी जीर्ण-शीर्ण कपड़े हैं। देखने में वे बस हड्डियों के ढांचे ही भर हैं। अगर वे खाना और काम पाने में नाकाम रहे,  तो उन्‍होंने कसम खा रखी है कि वे बुडापेस्‍ट पर धावा बोल देंगे, भले ही इससे खून-खराबा ही क्‍यों न शुरू हो जाये, उनके पास अब खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। बुडापेस्‍ट क्षेत्र में सैनिक बल तैनात कर दिये गये हैं, तथा उन्‍हें सख्‍त आदेश दे दिये गये हैं कि अगर लेशमात्र भी शांति भंग तो वे अपने आग्‍नेयास्‍त्र इस्‍तेमाल करें।’

हम जा पहुँचे सबसे बड़े शहर में
हममें से 1000 भूख से पीड़ि‍त थे
1000 के पास खाने को कुछ नहीं था
1000 को खाना चाहिए था।
जनरल ने अपनी खिड़की से देखा
तुम यहां मत खड़े हो, वह बोला
घर चले जाओ भले लोगों की तरह
अगर तुम्‍हें कुछ चाहिए, तो लिख भेजो।
हम रुक गये, खुली सड़क पर:
‘हम हल्‍ला मचायें इसके पहले
वे हमें खिला देंगे।’
लेकिन किसी ने ध्‍यान नहीं दिया
जबकि हम देखते रहे उनकी धुंवा देती
चिमनियों को।
लेकिन आ पहुँचा फिर वह जनरल।
हमने सोचा : आ गया हमारा खाना।
जनरल बैठ गया मशीनगन के ऊपर
और पकाया जो था वह इस्‍पात।
जनरल बोला : बहुत भीड़ लगा रखी है
तुम लोगों ने
और गिनने लगा आगे बढ़कर।
हम बोले : बस इतने ही जो तुम्‍हारे सामने हैं
कुछ भी नहीं है आज खाने को।
हम नहीं बना सके अपनी झोपड़-पट्टी
हम नहीं साफ कर सके फिर से अपनी कमीजें
हमने कहा : अब हम और इन्‍तजार
नहीं कर सकते।
जनरल बोला : जाहिर है।
हमने कहा : लेकिन हम सभी मर नहीं सकते
जनरल बोला : क्‍यों नहीं?
हालात गर्म हो रहे हैं, शहर के लोगों ने कहा
जब सुनाई दी उन्‍हें पहली गोली की आवाज


 

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