राहुल सांकृत्यायन के जन्म दिवस (9 अप्रैल) से स्मृति दिवस (14 अप्रैल) तक ‘भागो नहीं दुनिया को बदलो’ जन अभियान

राहुल सांकृत्यायन के जन्म दिवस 9 अप्रैल से स्मृति दिवस 14 अप्रैल तक उत्तर-पश्चिमी दिल्ली की जागरूक नागरिक मंच और नौजवान भारत सभा द्वारा ‘भागो नहीं दुनिया को बदलो’ जन अभियान की शुरुआत की गयी। पांच दिवसीय इस जन अभियान में जगह-जगह पोस्टर प्रदर्शनी लगायी गयी और पर्चा वितरण किया गया।

2016-04-09-DLI-NW-Rahul-sank-1राहुल सांकृत्यायन ने पूरे समाज में धार्मिक रूढ़ि‍यों और पाखण्डों के खि़लाफ़ लड़ाई लड़ी और आम मेहनतकश जनता को जागरूक किया। आज भी समाज को धर्म और सम्प्रदाय के आधार पर बाँटने वाली शक्तियाँ राहुल सांकृत्यायन के विचारों से डरती हैं। पहले ही दिन सुबह पार्क में पोस्टर प्रदर्शनी लगाते समय संघियों ने इसका विरोध करना शुरू किया लेकिन आम जनता के समर्थन की वजह से वे कुछ करने की हिम्मत नहीं कर सके।

धार्मिक पाखण्डों और साम्प्रदायिक फासिस्टों की कलई खोलने वाले पोस्टर देखकर संघी पहले दिन की तरह दूसरे दिन भी पोस्टर देखकर भड़क गये और पोस्टर फाड़ने और प्रदर्शनी हटाने की कोशिश करने लगे। उन्होंने ‘देश भक्ति और देशद्रोह’ का राग अलापना शुरू किया, लेकिन जनता के समर्थन में खड़े होने की वजह से वे कुछ कर नहीं सके।

प्रदर्शनी अभियान के दौरान आर.एस.एस. के ‘‘देशप्रेमी’’ राहुल सांकृत्यायन और राधामोहन गोकुल जी, प्रेमचन्द और भगतसिंह को विदेशी बताने लगे। इस पर लोगों ने ही सवाल कर दिया कि ये लेखक विदेशी कैसे हैं। तो उन्होंने माओवादी, नक्सली होने का आरोप लगाते हुए हंगामा शुरू किया और कहा कि इनको विदेशों से पैसा आता है। लेकिन इस पर भी जब इनकी दाल नहीं गली और लोगों को अपने विरोध में देखा तो वे वहाँ से निकल लिये।

2016-04-09-DLI-NW-Rahul-sank-8धार्मिक कट्टरता, जातिभेद की संस्कृति और हर तरह की दिमाग़ी ग़ुलामी के ख़ि‍लाफ़ राहुल के आह्वान पर अमल हमारे समाज की आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है। पूँजी की जो चौतरफ़ा जकड़बन्दी आज हमारा दम घोंट रही है, उसे तोड़ने के लिए ज़रूरी है कि तमाम परेशान-बदहाल मेहनतकश आम लोग एकजुट हों और यह तभी हो सकता है जब वे धार्मिक रूढ़ियों और जात-पाँत के भेदभाव से अपने को मुक्त कर लें।

राहुल सांकृत्यायन की परम्परा प्रगति और सामाजिक-सांस्कृतिक क्रान्ति के अविरल प्रवाह की परम्परा है। राहुल उन कुरसीतोड़ समाज चिन्तकों में से नहीं थे जो केवल किताबें और पत्र-पत्रिकाएँ पढ़कर समाज परिवर्तन के ख़याली सिद्धान्त प्रस्तुत कर देते हैं बल्कि वे एक दार्शनिक, विचारक, इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता, साहित्यकार, भाषाशास्त्री और वैज्ञानिक भौतिकवाद के प्रचारक होने के साथ ही लोकप्रिय जन-नेता भी थे जो जनता के संघर्षों से लगातार जुड़े रहे।

‘भागो नहीं, दुनिया को बदलो’ राहुल के जीवन का सूत्रवाक्य था। वे हर तरह की शिथिलता, गतिरोध, कूपमण्डूकता, अन्धविश्वास, तर्कहीनता, यथास्थितिवाद, पुनरुत्थानवाद और अतीतोन्मुखता के खि़लाफ़ निरन्तर संघर्ष करते रहे।

राहुल सांकृत्यायन ने कहा था – ‘‘जगत की गति के साथ हमें भी सरपट दौड़ना चाहिए, किन्तु धर्म हमें खींचकर पीछे रखना चाहते हैं। क्या हमारे पिछड़ेपन से संसार चक्र हमारी प्रतीक्षा के लिए खड़ा हो जायेगा? सामाजिक विषमता के नाश, निकम्मी और अनपेक्षित सन्तान के निरोध, आर्थिक समस्याओं के नये हल।।। सभी बातों में तो यह मजहब प्राणप्रण से हमारा विरोध करते हैं, हमारी समस्याओं को और अधिक उलझाना और प्रगति-विरोधियों का साथ देना ही एकमात्र इनका कर्तव्य रह गया है।’’

मज़दूर बिगुल, मई 2016


 

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