गुड़गाँव-मानेसर से लेकर धारूहेड़ा-बावल तथा नीमराना-ख़ुशखेड़ा-भिवाड़ी की औद्योगिक पट्टी के हालात
तालाबन्दी, मज़दूरों की छँटनी जारी है

शाम मूर्ति

पिछले एक साल में आठ औद्योगिक इकाइयाें की आंशिक व पूर्ण बन्दी के चलते 2300 से अधिक मज़दूरों की रोज़ी-रोटी छिन गयी। जिसमें धारूहेड़ा की ओमैक्स के लगभग 250 मज़दूर, रीको ऑटो इण्डस्ट्री के 104 मज़दूर, बिनौला की ऑटोमैक्स के 150 मज़दूर, मानेसर की ओमैक्स के 500 मज़दूर, (इण्ड्युरेंस टेक्नोलॉजिस के 400 मज़दूर, डानूका ऐग्रीटेक, गुड़गाँव की नेपिनो ऑटोस एण्ड इलेक्टाॅनिस के 146 मज़दूर, एसएलआरके मज़दूरों की आंशिक व पूर्ण बन्दी के नाम पर छँटनी व तथाकथित रिटायरमेण्ट कर दी गयी है।

रीको कम्पनी के 104 परमानेण्ट मज़दूरों की छँटनी :

पिछले महीने यानी जून 2018 (मंगलवार) की 26 तारीख़ को दुपहिया वाहन निर्माता इकाई के लिए स्पेयर पार्टस बनाने वाली रीको ऑटो (धारूहेड़ा) कम्पनी के 15-20 साल से काम कर रहे 104 परमानेण्ट मज़दूरों को उत्पादन कम होने का बहाना बनाकर उनका हिसाब करके उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया। और पूरे परिवार की रोज़ी-रोटी छिनकर उन्हें सड़क पर ला दिया। मशीन शॉप की लाइन नम्बर एक बन्द करके आंशिक बन्दी घोषित की गयी और 104 कर्मचारियों की नामों की सूची कम्पनी गेट पर लगा दी। और मज़दूरों की नौकरी एक झटके में छीन ली। 27 तारीख़ की सुबह को कम्पनी में भारी पुलिस फोर्स लगाकर मज़दूरों को अन्दर आने से रोक दिया। जिस पर हरियाणा राज्य‍ में भाजपा की खट्टर सरकार ने अपनी मोहर भी लगा दी है। फि़लहाल मज़दूरों ने श्रम विभाग से लेकर हार्इ कोर्ट तक में इसे चैलेंज किया है। निकाले गये 104 स्थायी मज़दूरों द्वारा कम्पनी के गेट के आगे 28 जून से विरोध-प्रदर्शन जारी है। मज़दूर रीको कम्पनी और हरियाणा सरकार के छँटनी और आंशिक तालाबन्दी के फै़सले का विरोध कर रहे है। खट्टर सरकार से इसे वापस लेने के लिए कह रहे हैं। रिपोर्ट लिखने तक मज़दूरों का प्रदर्शन जारी है।

कारण : रीको कम्पनी के निदेशक राकेश कपूर कम्पनी में उत्पादन कम होने तथा ख़राब आर्थिक स्थिति के चलते मजदूरों को निकाले जाने की बात कर रहे हैं, जोकि किसी भी तरह से वास्तविक स्थिति से मेल नहीं खाती है। आज की तारीख़ में अगर रीको ऑटो के मार्च के अन्त के तिमाही नतीजे देखे जायें ((4QFY18) तो नेट मुनाफ़ा 180 करोड़ रुपये यानी 179.2% बढ़ा है। और दूसरी ओर सेल पर निगाह डालें तो वह 3 बिलियन यानी 21.0% ऊपर गया है। लेकिन ऐसी हवा बनाकर कम्पनी ने भविष्य और तबादले का डर दिखाकर 100 के क़रीब मज़दूरों का वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना) दे दिला दिया।

असली वजह : इस बात का विरोध करते हुए रीको धारूहेड़ा यूनियन के प्रधान राजकुमार ने कम्पनी की इस बात को नकारते हुए कहा कि न तो कम्पनी की आर्थिक स्थिति ख़राब है और न ही उत्पादन की समस्या है। रीको के गुड़गाँव (गुरुग्राम) स्थित प्लाण्ट में उत्पादन और मशीनों को शिफ़्ट कर दिया गया है।

समर्थन : ऑटो मोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रेक्ट वर्कर्स यूनियन की तरफ़ से शाम ने आज सेक्टरगत एकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि मालिकों की तानाशाही को ऑटो सेक्टर के मज़दूरों की एकता के दम पर टक्कर दी जा सकती है। कम्पनी किसी भी तरह से घाटे में नहीं है। उसका शेयर 100 फ़ीसदी से ऊपर जा रहा है और कम्पनी का एक्सपोर्ट भी बढ़ा है। आने वाले दिनों में कम्पनी डिफेंस के लिए काम करेगी। तो फिर कैसे कम्पनी घाटे में चल रही है? यह सब बहानेबाज़ी है, असली मंशा तो परमानेण्ट मज़दूरों को बाहर करने की और यूनियन को ख़त्म करने की तथा ठेका प्रथा को बढ़ाना है। कम्पनी अपना माल गुड़गाँव प्लाण्ट से ले जाकर अन्य प्लाण्टों में जारी रखे हुए है। आज बड़ा फै़क्टरी मालिक या कारपोरेट यही चाल चल रहे हैं। उत्पादन कम होने, कम्पनी का आकार कम करने, घाटा होने का बहाना बनाकर मज़दूरों को निकाला जा रहा है और सस्ते मज़दूरों से काम करवाने के लिए ठेका प्रथा को बढ़ावा दिया जा रहा है। चाहे ‘फि़क्स्ड टर्म नियुक्ति’ के क़ानून को लागू करवाने का मामला हो या स्थायी प्रकृति के काम पर ठेका प्रथा को लागू करने का मामला हो या सीधे मालिकों द्वारा मज़दूरों को ठेके पर रखने का मामला हो। ये सब अपना मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए लगे हुए हैं। ठेका प्रथा के नाम पर भी ठेका प्रथा क़ानून को किसी भी तरह से लागू नहीं किया जा रहा है। आज फै़क्टरी में काम करने वाला मज़दूर अच्छी तरह से जानता है कि छिमाही और दिहाड़ी के हिसाब से मज़दूरों को रखा जाता है और हिसाब दिया जा रहा है। न पहचान पत्र, न पेमेण्ट रसीद। कही पर तो पीएफ़, पेंशन तक नहीं दिया जाता है। फि़लहाल कोर्ट में दो बार तारीख़ पड़ चुकी है। बाहर छँटनी किये मज़दूरों द्वारा प्रदर्शन जारी है। और बाक़ी परमानेण्ट मज़दूर कम्पनी के अन्दर काम कर रहे हैं। बिगुल के लिए रिपोर्ट लिखने तक रीको यूनियन के पधाधिकारियों को कहना है कि वक़्त आने पर आन्दोलन को तेज़ किया जायेगा।

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2018


 

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