हरिद्वार धर्म संसद में खुलेआम जनसंहार का आह्वान
विधानसभा चुनाव के पहले साम्प्रदायिक उन्माद
फैलाने की बेशर्म कोशिश में जुटे संघी

– केशव आनन्द

पिछले 17 से 19 दिसम्बर तक हरिद्वार में आयोजित “धर्म संसद” के मंच से हिन्दुत्ववादी फ़ासिस्टों द्वारा खुलेआम मुसलमानों के ख़िलाफ़ भड़काऊ भाषण दिये गये। इन भाषणों में सीधे-सीधे मुसलमानों का क़त्ल कर देने की बात कही गयी। इन भाषणों को देने वाले हिन्दुत्ववादी कट्टरपन्थी संगठन विश्व हिन्दू परिषद्, आरएसएस और भाजपा के नेताओं के साथ-साथ बड़े-बड़े धर्मगुरु थे, जिनके भक्तों की संख्या लाखों में है। भड़काऊ भाषण देने वालों में मुख्य रूप से हिन्दू महासभा की महामंत्री अन्नपूर्णा माँ, धर्मदास महराज आनन्द स्वरूप महराज, सागर सिन्धुराज महराज जैसे लोग थे। भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय भी इस तथाकथित धर्मसंसद में मौजूद था और उसने यति नरसिंहानन्द को “भगवा संविधान” भेंट किया। इतना ही नहीं, एक धर्मगुरु ने मंच पर यह दावा किया कि उसने 10 मुसलमानों को एससी/एसटी क़ानून में फ़र्ज़ी तरीक़े से फँसाया है। ज़ाहिर है, ऐसे भाषणों से इन धर्मगुरुओं की भक्त मण्डली में से एक बड़ी आबादी प्रभावित होती है। और यही लोग आगे चलकर दंगों में मासूम बच्चों से लेकर बूढ़ों तक का बेरहमी से क़त्ल कर देते हैं। गुजरात, मुज़फ़्फ़रनगर, दिल्ली और न जाने कितने ही दंगे इसके जीते जागते उदाहरण हैं।
हम इन लोगों द्वारा दिये गये नफ़रती बयान के कुछ अंश यहाँ दे रहे हैं :
“कॉपी किताबों को रख दो और हाथ में शस्त्र उठा लो, हम सौ मिलकर इनके बीस लाख मार देंगे तो विजयी कहलायेंगे!” – अन्नपूर्णा माँ, निरंजिनी अखाड़े की महामण्डलेश्वर और हिन्दू महासभा की महामंत्री।
“मैं बार-बार दोहराता रहता हूँ कि पाँच हज़ार रुपये का मोबाइल रखो लेकिन एक लाख रुपये का हथियार ख़रीदो। तुम्हारे पास कम से कम लाठी और तलवारें तो होनी ही चाहिए।” – सागर सिंधुराज महाराज
इस घटना के बाद कई जगहों पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं और इन्साफ़पसन्द नागरिकों द्वारा इसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन आयोजित किये गये। कई राजनीतिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने सरकार को धर्म संसद के आयोजन के ख़िलाफ़ पत्र भी लिखे। इसके बावजूद लम्बे समय तक पुलिस और प्रशासन ख़ामोश बैठे रहे और आरएसएस की नफ़रती विचारधारा के वाहक इन धर्मगुरुओं पर किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं की। एक फ़ेसबुक पोस्ट पर देशद्रोह का मुक़दमा लगा देने वाली पुलिस को इन भड़काऊ भाषणों में कोई देशद्रोह नज़र नहीं आया।
यह मामला जब जनता के बीच सोशल मीडिया के ज़रिए वायरल हुआ तब सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को इस मामले पर जाँच के आदेश दिये। जाँच के नाम पर अभी तक केवल दो लोगों की गिरफ़्तारी हुई है, और उन पर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गयी है। यह उस राज्य की बात है, जहाँ संघियों की मात्र झूठी ज़ुबानी शिकायतों पर लोगों को बिना किसी साक्ष्य के गिरफ़्तार कर लिया जाता रहा है। इस पूरे प्रकरण में पुलिस और प्रशासन के भगवाकरण को साफ़ तौर पर देखा जा सकता है। संघ ने एक लम्बे समय में राज्यसत्ता के अंग-उपांग में अपनी इस नफ़रती विचारधारा को पहुँचाया है। पुलिस-प्रशासन और न्यायपालिका की इन दहशतगर्दियों के प्रति पक्षधरता इसी की अभिव्यक्ति है। आज जो लोग भाजपा को चुनावी शिकस्त देकर फ़ासीवाद को हराने के सपने देख रहे हैं, वे आज भी किसी मुग़ालते में जी रहे हैं।
आरएसएस के हिन्दू राष्ट्र के नशे में धुत्त भीड़ यह समझ रही है कि मुसलमानों का क़त्लेआम कर एक हिन्दू राष्ट्र का निर्माण किया जायेगा, जहाँ सारी दुःख तकलीफ़ें ख़त्म हो जायेंगी। लेकिन वह इस बात को नहीं समझ रही है कि धर्म के नाम पर यह अफ़ीम जनता को बाँटने की साज़िश है, ताकि बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी, भुखमरी, ख़राब स्वास्थ्य व शिक्षा व्यवस्था पर लोगों का ध्यान न जाये। बड़ी पूँजी की सेवा करने के लिए इस अफ़ीम का इस्तेमाल इतिहास में हिटलर जैसे फ़ासीवादी नेता ने भी किया था।
आज आरएसएस और भाजपा जनता के बीच मौजूद बदहाली की वजह से उबल रहे ग़ुस्से का इस्तेमाल अपने नफ़रती मंसूबों को पूरा करने में लगी हैं। जनता से किये गये अपने किसी भी चुनावी वायदे को पूरा करने में नाकाम मोदी-योगी सरकार और संघ गिरोह अब पूरी नंगई और बेशर्मी के साथ फिर से धार्मिक उन्माद फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि आने वाले चुनाव में वोटों की फ़सल काटी जा सके।
लेकिन इतिहास में हर बार जनता ने इन फ़ासिस्टों को धूल चटायी है। और आज इन फ़ासीवादी ताक़तों का जवाब हमें अपनी एकजुटता के दम पर देना होगा। और साथ ही इस मुग़ालते से भी बाहर आना होगा कि इन फ़ासिस्टों को केवल चुनावी राजनीति के ज़रिए हराया जा सकता है। हमें गली-गली, मोहल्लों-मोहल्लों से इन्हें खदेड़ना होगा और इनके नफ़रती मंसूबों को नाकाम करना होगा।

मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2022


 

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