गंगासागर मेले में फिर से कोरोना फैलाने की इजाज़त

– भारत

पिछले वर्ष जब हज़ारों लोग कोरोना और सरकार की लापरवाही के कारण मर रहे थे, तब भाजपा सरकार ने कुम्भ मेले का आयोजन किया था, जहाँ लाखों की तादाद में भीड़ इकट्ठा हुई थी और यह भी उस दौरान कोरोना के फैलने का एक कारण था। इसी राह पर चलते हुए पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने गंगासागर मेले का आयोजन कराया। यह मेला हर वर्ष मकर संक्रान्ति के अवसर पर 8-16 जनवरी के बीच लगता है। ज्ञात हो कि इस मेले में लाखों की संख्या में पूरे देश से लोग आते हैं। इस समय यह बीमारी फैलने का एक बड़ा स्थल बन सकता था। इस दौरान पश्चिम बंगाल में ही रोज़ 18,000 केस आ रहे थे। यही समय था जब पूरे देश में कोरोना के केसों में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा था। इसके बावजूद इन सब की अनदेखी करते हुए ममता सरकार ने इस मेले का आयोजन किया। यह साफ़ दर्शाता है कि ममता सरकार भी धर्म के नाम पर राजनीति करने में किसी सरकार से पीछे नहीं है।
किसी बुर्जुआ सेक्युलर लोकतांत्रिक राज्य को न तो कोई धार्मिक आयोजन करना चाहिए और न ही उसे प्रोत्साहित करना चाहिए। राज्य की ज़िम्मेदारी केवल प्रशासनिक व्यवस्था सँभालना है। लेकिन यहाँ तो सरकारें धार्मिक मेलों के आयोजक की भूमिका में होती हैं। साथ ही इन धार्मिक आयोजनों के बहाने हिन्दू धर्मावलम्बियों के इस जमघट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद्, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, संस्कार भारती और वनवासी कल्याण आश्रम आदि कैम्प लगाकर, हिन्दू प्रतीकों का इस्तेमाल करके, नुक्कड़ नाटक, और विभिन्न माध्यमों से अपने हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिक एजेण्डे का खुलकर बेरोकटोक प्रचार करते हैं। बढ़ती बेरोज़गारी, छात्रों-कर्मचारियों, मज़दूरों-किसानों के आन्दोलनों से बेनक़ाब होती भाजपा से लेकर ममता सरकार के पास वोट की फ़सल को सींचने के लिए कुम्भ, राम मन्दिर, गंगा सागर हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर बँटवारे को और तीखा करने, राष्ट्रवाद, सेना और युद्धोन्माद के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। यही कारण है कि ये सरकारें करोड़ों इन मेलों की तैयारी में लगा देती हैं। जबकि आज कोरोना काल में इसे जनता के हालात को बेहतर करने में प्रयोग करना चाहिए। पिछले वर्ष जब कोरोना अपने चरम पर था तब कुम्भ मेले के लिये बाक़ायदा स्पेशल ट्रेनें चलायी गयीं। वहीं ये ट्रेनें सरकार ने उस समय नहीं चलायीं जब करोड़ों मज़दूर अपने घरों को लौटने के लिए हज़ारों किलोमीटर पैदल चलने के लिए मजबूर थे।
इस मुद्दे पर मीडिया भी चुप्पी साधे है और यह कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है। सरकार की लापरवाही लोग न देख पायें इसलिए पहली लहर में बढ़ते केसों के समय इन्होंने मरकज़ में आये मुसलमानों को कोरोना फैलाने वाला बताया और जब बढ़ते केसों में कुम्भ व गंगासागर मेले का आयोजन किया जाता है तब गोदी मीडिया इसकी हिमायती बन जाती है। यह इनके दोगलेपन की पुष्टि करता है।
कोरोना के समय जब सरकारों को ख़ास तौर पर जनता को इलाज, राशन, रोज़गार, आर्थिक सुरक्षा मुहैया कराने को प्राथमिकता देनी चाहिए, पर इन सब पर सभी सरकारों को साँप सूंघ जाता है चाहे वो कांग्रेस हो, भाजपा, सपा, बसपा या टीएमसी। सभी सरकारें जनता को धर्म की अफ़ीम देने और उनके अधिकारों को छीनने के लिए हमेशा एकजुट रहती हैं।

मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2022


 

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