कोरोना से हुई मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट ने खोली पोल
मोदी सरकार के निकम्मेपन और लापरवाही ने भारत में 47 लाख लोगों की जान ली

– सुजय प्रकाश

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट के अनुसार कोविड महामारी के कारण दुनियाभर में क़रीब डेढ़ करोड़ लोगों की मौत हुई। इनमें से एक तिहाई, यानी 47.4 लाख लोग अकेले भारत में मरे। भारत के आम लोग अभी वह दिल तोड़ देने वाला दृश्य भूले नहीं हैं, जिसमें नदियों में गुमनाम लाशें बह रही थीं, कुत्ते और सियार इन लाशों को खा रहे थे और श्मशान घाटों व विद्युत शवदाहगृहों के बाहर लोग मरने वाले अपने प्रियजनों की लाशें लिये लाइनों में खड़े थे। ख़ास तौर पर, मोदी सरकार और योगी सरकार ने कोविड महामारी की पहली और दूसरी लहर के दौरान पहचान करने, क्वारण्टाइन करने, और उपचार करने की बजाय ताली और थाली बजाने और अपने झूठे प्रचार पर करोड़ों-करोड़ रुपये ख़र्च किये। अन्य राज्य सरकारों ने भी इस मायने में भयंकर लापरवाही का परिचय दिया। इसके अलावा, मोदी-योगी की फ़ासीवादी जोड़ी ने मरने वालों की असली संख्या को छिपाने के लिए हर तरकीब अपनायी। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने तो अस्पतालों के प्रशासनों को निर्देश दे दिया था कि मृत्यु प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण कोविड न बताया जाये। जो निजी अस्पताल मृत्यु का कारण कोविड बता रहे थे, उनके लाइसेंस रद्द किये जा रहे थे और उनके डॉक्टरों को जेल भेजा जा रहा था। लेकिन मृत्यु की सच्चाई को भला कैसे छिपाया जा सकता था? अन्तत: लाशें नदियों और नालों में बहती हुई मिल रही थीं और श्मशानों में दाह संस्कार के लिए लकड़ी की कमी पड़ गयी थी। ऑक्सीजन के लिए जनता त्राहि-माम कर रही थी और ऑक्सीजन और दवाओं की लालची पूँजीपतियों और उनके दलालों द्वारा कालाबाज़ारी चल रही थी।
इन्हीं सब तरकीबों के ज़रिए भारत सरकार ने भारत में कुल कोविड मौतों का आँकड़ा 4.81 लाख बताया था। दुनियाभर में सभी पूँजीवादी सरकारों द्वारा कुल कोविड मौतों का आँकड़ा भी 54 लाख बताया गया था। लेकिन ये सारे आँकड़े झूठे हैं। आज विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी सच्चाई माननी पड़ी है। उसके अनुसार, दुनिया में 1.5 करोड़ कोविड मौतें हुई हैं और उनमें से 47.4 लाख मौतें यानी कुल मौतों का लगभग एक-तिहाई अकेले भारत में हुआ है। दूसरे शब्दों में, कोविड महामारी के कुप्रबन्धन में तो मोदी सरकार ने भारत को ‘विश्व गुरू’ बना ही दिया, रोज़गार के मामले में भले न बना पायी हो! विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट में बताया गया कि भारत में 8.3 लाख कोविड मौतें तो अकेले 2020 में हुई थीं जबकि कुल मिलाकर क़रीब 47.4 लाख मौतें हुईं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट आने के दो दिन पहले ही भारत सरकार ने 2020 के लिए जन्म और मृत्यु के पंजीकरण का आँकड़ा मुहैया कराया जिसमें पिछले वर्ष से 4.75 लाख अधिक मौतें दर्ज की गयी थीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की पद्धति यह है कि वह अतिरिक्त मौतों को गिनता है, यानी कि औसत मृत्यु दर के ऊपर होने वाली अतिरिक्त मौतों को। औसत मृत्यु दर आम तौर पर अन्य सभी नियमित कारकों से होने वाली मौतों की गणना करती है। किसी महामारी के दौरान महामारी के कारण होने वाली मौतों की संख्या का सही आकलन न होने पर अक्सर ही अतिरिक्त मौतों की संख्या का आकलन किया जाता है जो कि औसत मृत्यु दर के ऊपर होती हैं। निश्चित तौर पर, यह हमें एकदम सटीक संख्या नहीं दे सकता है। लेकिन फिर भी यह एक ठीक-ठाक अनुमान दे देता है। कोविड महामारी के शुरू होने के बाद से यदि अतिरिक्त मौतों की संख्या 47.4 लाख बैठती है, तो यह कहा जा सकता है कि इसका मुख्य कारण कोविड महामारी ही थी। यह भी याद रखना चाहिए कि इस पूरे दौर में ट्रैफ़िक दुर्घटनाओं व अन्य कई बीमारियों से मौतों की संख्या में लॉकडाउन के कारण कमी भी आयी थी। इसके बावजूद यदि अतिरिक्त मौतों की संख्या इस क़दर ज़्यादा है, तो यह माना जा सकता है कि वास्तव में सरकारी उपेक्षा और लापरवाही के चलते लाखों की संख्या में आम लोगों ने कोविड के दौरान अपनी जानें गँवायी हैं।
मृत्यु का जो ताण्डव कोविड के दौरान हुआ, उसे तो आम मेहनतकश जनता ने अपनी आँखों से भी देखा। कितने ही लोग बिना बीमारी की पहचान के ही गाँवों और क़स्बों में मारे गये, इसका आकलन तो अभी होना बाक़ी है। शहरों तक में अस्पतालों में जगह न मिल पाने के कारण हज़ारों-लाखों लोग घर में ही बीमार रहे और फिर मर गये। इसका आकलन भी नहीं हो सका है। ऐसे में, अतिरिक्त मौतों का आकलन महामारी में मारे जाने वाले लोगों की संख्या का एक मोटा-मोटी सही आकलन मुहैया कराता है। ऐसा वैज्ञानिक संस्थाओं ने महज़ कोविड महामारी के दौरान ही नहीं किया है, बल्कि कई देशों में तमाम महामारियों के दौरान असली मृत्यु दर के अनुमान के लिए इसी पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है।
मोदी सरकार अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की पद्धति पर सवाल उठा रही है, लेकिन जो सच है, उसे जनता ने भी पिछले लगभग तीन वर्षों में देखा है। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ये आँकड़े जारी नहीं भी किये होते तो जनता जानती है कि किसी भी पैमाने से देखा जाये तो यह साफ़ हो जाता है कि मोदी सरकार और सभी राज्य सरकारों ने कोविड के कारण होने वाली मौतों की संख्या को बेहद कम करके दिखलाया है।
यही कारण है कि सभी राज्यों की सरकारें यहाँ तक कि उन राज्यों की भी जहाँ भाजपा शासन में नहीं है, मोदी सरकार की हाँ में हाँ मिला रही हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन को यह आँकड़े जारी करने के लिए कोस रही हैं। जहाँ जनता के साथ हुई नाइन्साफ़ी को छिपाने का सवाल है, वहाँ सभी पूँजीवादी पार्टियाँ एकजुट हो गयी हैं!
विश्व स्वास्थ्य संगठन को ये आँकड़े पेश करने की क्या आवश्यकता है? आवश्यकता इसलिए है क्योंकि हुक्मरानों को अपनी हुकूमत को चलाने के लिए भी सही सूचनाओं व आँकड़ों की आवश्यकता होती है। यह दीगर बात है कि आँकड़ों पर ख़ुद ही तमाम पूँजीवादी दल और पूँजीवादी सरकारें दुनियाभर की सियासत करती हैं। लेकिन पूँजीपति वर्ग और उसके नुमाइन्दों और विशेष तौर पर उसकी राज्यसत्ताओं को भी हर मुद्दे पर सही सूचनाओं और आँकड़ों की आवश्यकता होती है। जो शासक वर्ग सूचनाओं के प्रति लापरवाह नज़रिया रखता है, वह कभी जनता पर अपने शासन को दीर्घजीवी नहीं बना सकता है। इसलिए जहाँ जनता से ठोस आँकड़ों को कई बार शासक वर्ग छिपाता है, वहीं उसके आपसी अन्तरविरोधों के चलते कई बार ये सूचनाएँ और आँकड़े जनता के सामने भी आ जाते हैं। कुछ आँकड़े तो पूँजीवादी सरकारें जुटाती हैं, लेकिन उन्हें कभी जनता से साझा नहीं किया जाता है। इतना साफ़ है कि दुनिया की सभी पूँजीवादी सरकारों ने लेकिन विशेष तौर पर दक्षिणपन्थी व फ़ासीवादी सरकारों ने, जैसे कि मोदी सरकार, कोविड महामारी का सबसे जनविरोधी और जनद्रोही कुप्रबन्धन किया जिसकी क़ीमत लाखों आम लोगों को अपनी जानें चुका कर देनी पड़ी। इस बात को हम मेहनतकशों को कभी भूलना नहीं चाहिए कि कोविड महामारी के समय हमारे सामने मौजूदा फ़ासीवादी व्यवस्था ने दो विकल्प रख दिये थे: कोविड से मरो, या भूख से मरो। न तो हमारे रोज़गार, जीविकोपार्जन, भोजन आदि की समुचित व्यवस्था की गयी थी और न ही हमारे चिकित्सा और इलाज की। इसका क्या नतीजा हुआ, आज यह सामने आ चुका है।

मज़दूर बिगुल, मई 2022


 

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