‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ बनाम दिल्ली सरकार और महिला एवं बाल विकास विभाग के दिल्ली हाईकोर्ट में जारी केस की राजनीतिक रपट और हर दिन के साथ उजागर होती ‘सीटू’ की ग़द्दारी और विश्वासघात

ज्ञात हो कि ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ ने दिल्ली सरकार व केन्द्र सरकार द्वारा अन्यायपूर्ण तरीक़े से हेस्मा थोपे जाने के बाद हड़ताल के अस्थायी रूप से स्थगित किये जाने के बाद 14 मार्च 2022 को दिल्ली सरकार और महिला एवं बाल विकास (डब्ल्यूसीडी) विभाग द्वारा 884 आँगनवाड़ी वर्कर्स और हेल्पर्स को ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से टर्मिनेट किये जाने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली सरकार व डब्ल्यूसीडी विभाग पर मुक़दमा (रिट पेटीशन) दायर किया था। (हालाँकि दिल्ली सरकार ने पहले अदालत में संख्या 991 बतायी थी, लेकिन आँगनवाड़ीकर्मियों के सड़क पर जारी ‘नाक में दम करो अभियान’ से घबराकर बाद में उन्होंने यह संख्या बदल दी।)
तब से रिपोर्ट लिखे जाने तक इस मुक़दमे की छह तारीख़ें पड़ चुकी हैं। इस मुक़दमे के दौरान ही ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ ने कई जीतें दर्ज की हैं :
1. दिल्ली सरकार और डब्ल्यूसीडी विभाग ने ज्ञात तौर पर टर्मिनेशन के लिए 11,492 आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स की लिस्ट बनायी थी और 884 टर्मिनेशन के बाद बाक़ी टर्मिनेशन किये जाने थे लेकिन मुक़दमे की पहली तारीख़ यानी 15 मार्च को हाई कोर्ट में हुई सुनवाई में सरकार को यह कहने को मजबूर होना पड़ा कि अन्य कोई टर्मिनेशन आगे नहीं किये जायेंगे और अदालत में यह स्वीकार करने के कारण आगे होने वाले टर्मिनेशनों पर पूर्ण रोक लग गयी। यह ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में पहली बड़ी जीत थी।
2. दिल्ली सरकार और डब्ल्यूसीडी विभाग को 31 मार्च को ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ द्वारा नयी नियुक्तियों के प्रयासों को अदालत की निगाह में लाये जाने के बाद अदालत ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया कि कोई भी नयी नियुक्ति नहीं की जायेगी, जिसके कारण दिल्ली सरकार और डब्ल्यूसीडी विभाग द्वारा टर्मिनेटेड वर्कर्स और हेल्पर्स की जगह नयी नियुक्तियाँ करने की साज़िश नाकाम हो गयी और अब दिल्ली सरकार और उसका यह विभाग नयी नियुक्तियाँ कर ही नहीं सकता है। यह ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में दूसरी बड़ी जीत थी।
3. अदालत ने सीटू जैसे दल्लों और भाजपा के दल्लों की मिलीभगत द्वारा अलग से केस डालने पर ज़बर्दस्त फटकार इन दलालों को लगायी और कहा कि ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों की एकमात्र प्रातिनिधिक यूनियन है और अदालत अन्य किसी तथाकथित यूनियन की कोई भी बात नहीं सुनने वाली है। यह सीटू जैसी दलाल और ग़द्दार यूनियनों के मुँह पर भी एक करारा तमाचा है जो कि अपनी पंजीकरण संख्या को लेकर इठलाते हैं और मज़दूरों-कर्मचारियों से विश्वासघात करते हैं। अदालत के इस रवैये ने दिखला दिया है कि मज़दूरों की असली ताक़त उनका संघर्ष और एकजुटता है, न कि दलाल यूनियनों के दिखावटी पंजीकरण। यह ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में तीसरी बड़ी जीत थी।
4. दिल्ली सरकार व डब्ल्यूसीडी विभाग के बार-बार ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ द्वारा केस दर्ज किये जाने पर एतराज़ करने के बावजूद दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ ने ही हड़ताल का नेतृत्व और संगठन किया था और इसलिए दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों की एकमात्र नुमाइन्दा होने के चलते उसे ही यह मुक़दमा करने का अधिकार है। यहाँ तक कि दिल्ली सरकार ने भी अतीत में हमारी यूनियन से पत्राचार और वार्ताएँ की हैं और अब वह उसे पूर्ण रूप से मान्यता देने के लिए मजबूर है। यह ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में चौथी बड़ी जीत थी।
5. एक राजनीतिक उपलब्धि यह भी रही कि इस मुक़दमे में दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों व उनकी यूनियन ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के विरुद्ध आम आदमी पार्टी के साथ भाजपा और कांग्रेस भी एकजुट हो गये, जो कि इस बात से पता चलता है कि जारी मुक़दमे को ख़राब करने के इरादे से भाजपा के वकीलों ने अलग से केस दायर करने की कोशिश की (जिसे दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ज़बर्दस्त फटकार के साथ ख़ारिज कर दिया) और आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार की ओर से केस लड़ने का काम कांग्रेस के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी कर रहे हैं। कोई ताज्जुब नहीं है कि पूँजीवादी राजनीति में कांग्रेस का बीमार शरीर ताबूत में लेटा हुआ है। जब हरकतें ऐसी होंगी तो नतीजा भी वैसा ही होगा। भाजपा ने भी इस आन्दोलन को लपकने की सीटू के ही समान बहुत कोशिशें कीं लेकिन उनकी भी दाल नहीं गली। वजह यह है कि ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ किसी पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टी की पिछलग्गू यूनियन नहीं है, बल्कि यह एक स्वतंत्र क्रान्तिकारी यूनियन है जिसे दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों ने ख़ुद बनाया है। यह ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में पाँचवी बड़ी जीत थी।
6. जारी मुक़दमे के दौरान ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ ने अदालत की निगाह में यह बात भी लायी कि दिल्ली सरकार ने जो मामूली-सी मानदेय बढ़ोत्तरी हड़ताल के दबाव में आकर की थी, उसका भी अभी तक आँगनवाड़ीकर्मियों को भुगतान नहीं किया गया है और अधिकांश आँगनवाड़ी‍कर्मियों का मानदेय भुगतान चार से छह महीने से ज़्यादा समय से बकाया पड़ा हुआ है। अदालत ने इस बारे में भी दिल्ली सरकार से जवाबदेही माँगी। इसी बाबत 18 अप्रैल को डब्ल्यूसीडी विभाग पर ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ द्वारा एक भारी प्रदर्शन भी किया गया जिसमें अधिकारियों को मानदेय भुगतान एक सप्ताह के भीतर करने का वायदा करना पड़ा। अब आँगनवाड़ी वर्कर्स और हेल्पर्स का बकाया मानदेय उनके बैंक खाते में आना शुरू हो चुका है हालाँकि इस प्रक्रिया पर यूनियन क़रीबी से निगाह रखे हुए है। यह ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में छठी बड़ी जीत थी।
मुक़दमे की अगली तारीख़ 4 मई 2022 है। जिस प्रकार हम अभी तक इस मुक़दमे में जीतें हासिल करते आये हैं, उसी तरह हम आख़िरी जीत मिलने तक आगे बढ़ते जायेंगे, यानी सारे ग़ैर-क़ानूनी टर्मिनेशन वापस कराने के लक्ष्य को हासिल करने तक यह लड़ाई आगे बढ़ती जायेगी।

सीटू की ग़द्दारी की नयी मिसालें, प्रमाण समेत

अब जबकि इस मुक़दमे में दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों का पक्ष लगातार मज़बूत होता जा रहा है, तो सीटू के दल्ले अपने दस-बारह लग्गू-भग्गुओं को लेकर यहाँ-वहाँ घूमते नज़र आ रहे हैं, ताकि ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के संघर्ष को टर्मिनेशन वापसी की जीत मिलने के साथ ही यह दावा कर सकें कि इसमें उनकी भी कोई भूमिका थी! लेकिन अफ़सोस उनके इस झाँसे में दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मी नहीं आ रही हैं। इसकी वजह भी साफ़ है।
सीटू के दल्लों की थोड़ी ज़ुबान फिसल गयी और अपनी यूनियन के फ़ेसबुक पेज से उन्होंने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने डब्ल्यूसीडी विभाग के अधिकारियों से यह शिकायत की थी कि टर्मिनेशन करने के लिए विभाग ने जो सूची बनायी उसमें लापरवाही बरती गयी और यह भी कि सीटू ने स्वयं ही टर्मिनेशन के लिए एक लिस्ट विभाग और सरकार को सौंपी थी ताकि हड़ताल को तोड़ा जा सके! यानी कि सीटू के दल्लों का एतराज़ टर्मिनेशन पर नहीं था, बल्कि इस बात पर था कि विभाग को टर्मिनेशन के लिए सूची ढंग से बनानी चाहिए थी और बिना फेरबदल सीटू द्वारा सौंपी गयी सूची पर ही अमल करना चाहिए था! वजह यह है कि विभाग ने इनके दो-चार पिछलग्गुओं को भी बर्ख़ास्त कर दिया, जो कि कभी हड़ताल में शामिल नहीं हुई थीं और सीटू के इशारे पर हड़ताल को तोड़ने की साज़िश में शुरू से लगी हुई थीं।
इससे वह बात भी साबित हो गयी जो कि ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ शुरू से ही देश के अन्य राज्यों की आँगनवाड़ीकर्मियों को बताती आयी थी। सीटू ने 9 मार्च को हड़ताल के अस्थायी रूप से स्थगित होने के पहले ही डब्ल्यूसीडी विभाग और उसके मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम को मिलकर मुख़बिरी की थी और टर्मिनेशन हेतु आँगनवाड़ीकर्मियों की लिस्ट सौंपी थी। सीटू के दलालों की अब यही तो शिकायत है कि दिल्ली सरकार और उसके इस विभाग ने इस लिस्ट पर हूबहू अमल नहीं किया और उसमें कुछ फेरबदल कर दिया।
सीटू के दलाल न सिर्फ़ मज़दूर वर्ग के ग़द्दार हैं, बल्कि मूर्ख भी हैं। यही कारण है कि इन बेचारों की ज़ुबान अपने यूनियन के फ़ेसबुक पेज की पोस्ट में फिसल गयी और ये ग़लती से यह बात मान बैठे कि इन्होंने विभाग से माँग नहीं की कि सारे टर्मिनेशन रद्द करने का तो बस ज़ुबानी जमाख़र्च करके नौटंकी की और असल बात यह है इन्होंने यह शिकायत दर्ज करायी कि टर्मिनेशन के लिए बनायी गयी लिस्ट में लापरवाही की गयी है। यानी किये गये टर्मिनेशनों में ये अधिकांश टर्मिनेशनों को सही मानते हैं! मानें भी क्यों न? मूल लिस्ट तो सीटू के इन दल्लों ने ख़ुद ही बनायी थी!
दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों ने तो सीटू की असलियत को अच्छी तरह से समझ लिया है और वे उनके झाँसे में कभी नहीं आने वाली हैं। यही तो वजह है कि दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों ने 2015 में जूते मारकर सीटू को अपने बीच से भगा दिया था। लेकिन ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व ने देश की आँगनवाड़ी‍कर्मियों से यह अपील की कि वे भी सीटू के समझौतापरस्तों, ग़द्दारों और दलालों को अपने आन्दोलन में रत्ती भर भी पाँव न जमाने दें, जहाँ कहीं सीटू के दलाल मौजूद हों, उन्हें अपने आन्दोलन से जूते मारकर बाहर करें और अपनी सशक्त स्वतंत्र क्रान्तिकारी यूनियनों का निर्माण और गठन करें।
दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेलपेर्स यूनियन की अध्यक्षा ने बताया की “ये जीत तो महज़ शुरुआत हैं। पहले सारे टर्मिनेशन वापस करवाये जायेंगे, फिर हेस्मा को रद्द करवाया जायेगा, सारे बकाया मानदेय का भुगतान करवाया जायेगा और मामूली मानदेय बढ़ोत्तरी को पर्याप्त बनाने के लिए फिर से हड़ताल की शुरुआत की जायेगी।”

मज़दूर बिगुल, मई 2022


 

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