मज़दूरों के बीच सट्टेबाज़ी ऐप्स का बढ़ता ख़तरनाक चलन

– विवेक

पूँजीवादी कुसंस्कृति किस प्रकार से मज़दूरों के बीच अपनी पैठ बनाती है, इसका हालिया नमूना तमाम तरह-तरह के फ़ैण्टेसी टीम व सट्टेबाज़ी ऐप्स हैं। ये सारे ऐप आपको रातों-रात करोड़पति बनाने का वायदा करते हैं। इनके अनुसार, महज़ कुछ पैसा लगायें और अगर “क़िस्मत की देवी” मेहरबान हुई तो फिर आप मालामाल हो जायेंगे। शहरों में काम करने वाले मज़दूरों की आबादी के बीच इन सट्टेबाज़ी ऐप्स का चलन पिछले 3 से 4 वर्षों में काफ़ी बढ़ गया है। पूँजीवाद की शैशावस्था से यानी 19वीं शताब्दी के मध्य से पूँजीपतियों द्वारा जुए और सट्टेबाज़ी को बढ़ावा दिया जा रहा है। विशेषकर इंग्लैण्ड में उस वक़्त खेले जाने वाले खेल जैसे मुक्केबाज़ी, क्रिकेट, रग्बी, घुड़दौड़ आदि में किसी के जीतने और हारने पर सट्टे लगते थे। जुआघरों में इन पर दाँव लगाने वाले मुख्यत: शहरी मज़दूर होते थे, उस वक़्त भी जुआघर के मालिक ऐसे रातों-रात अमीर बना देने का प्रलोभन देते थे। आज भी नये-नये तरीक़ों के माध्यम से यह परिपाटी जारी है।
ड्रीम इलेवन, माय इलेवन सर्किल, एमपीएल जैसे एक दर्जन से ज़्यादा ऐप इस वक़्त मौजूद हैं, जो क्रिकेट मैचों व अन्य खेलों पर फ़ैण्टेसी टीम बनाकर लोगों को पैसा जीतने का प्रलोभन देते हैं। वैसे किसी को भी यह लग सकता है कि भारत में सट्टेबाज़ी गै़र-क़ानूनी है और इसके ख़िलाफ़ क़ानून भी है। तो आख़िर इन ऐप्स को इतनी छूट क्यों है?
तो मसला यह है कि इन ऐप्स में पैसा लगाने और उसके एवज़ में इनाम पाने का फ़ॉर्मेट ऐसा तय किया गया है कि यह विशुद्ध सट्टेबाज़ी के रूप में गिना नहीं जा सकता है। वर्ष 2019 में ड्रीम इलेवन पर दायर एक मुक़दमे की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि ऐसे ऐप किसी भी रूप में सट्टेबाज़ी को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं। इसके पीछे तर्क था कि वास्तविकता में खेल के दौरान किसी टीम के हारने या जीतने पर ऐप के माध्यम से पैसा लगाया नहीं जा रहा है। दरअसल आप यहाँ किसी एक टीम के हारने या जीतने नहीं बल्कि चुनिन्दा खिलाड़ियों की खेल के दौरान परफ़ॉर्मेंस पर पैसे लगाते हैं। रूप के तौर पर हालाँकि यह विशुद्ध सट्टेबाज़ी से अलग है लेकिन अन्तर्वस्तु के तौर पर यह सट्टेबाज़ी ही है। लोगों के विरोध के कारण हालाँकि असम, सिक्किम, नगालैण्ड, ओडिशा, तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश में फ़ैण्टेसी ऐप्स पर प्रतिबन्ध लगा है, पर ज़्यादातर राज्यों में यह बिना रोकटोक जारी है।
इस क़िस्म की सट्टेबाज़ी फ़ैण्टेसी स्पोर्ट्स कहलाती है। वैसे यह बहुत नया चलन नहीं है, 90 के दशक से ही इण्टरनेट की शुरुआत के बाद से अमेरिका में खेली जाने वाली विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं जैसे, मेजर लीग बेसबॉल, नेशनल फ़ुटबाल लीग, एनबीए लीग आदि में विभिन्न वेबसाइटों के द्वारा इस क़िस्म की फ़ैण्टेसी टीमें बनाकर लोगों को रातों-रात अमीर बन जाने का प्रलोभन देना शुरू किया गया था।1990 के दशक में इस क़िस्म की फ़ैण्टेसी इलेवन ऐप्स खेलों के पूरे सत्र के लिए बनायी जाती थीं, जो 2000 के दशक तक आते-आते हर मुक़ाबले तक के लिए ऐसे फ़ैण्टेसी टीम बनाने का चलन शुरू हो गया। भारत में सट्टेबाज़ी ऐप्स का चलन मुख्यत आईपीएल के आने के बाद शुरू हुआ।
वर्ष 2021 में फ़ैण्टेसी स्पोर्ट्स का कुल कारोबार 5200 करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है। यह अनुमान है कि वर्ष 2024 तक फ़ैण्टेसी स्पोर्ट्स का भारत में कुल व्यापार 3.7 अरब डॉलर पार कर जायेगा।
वास्तव में इस तरह की सट्टेबाज़ी आभासी पूँजी की अवधारणा के इर्द-गिर्द घूमती है। सट्टेबाज़ी की पूरी प्रक्रिया में कोई भी वास्तविक मूल्य पैदा नहीं होता है। यहाँ बस मूल्य का स्थानान्तरण होता है। ये तमाम ऐप्स जीतने पर बड़े इनाम का दावा करते हैं, इन ऐप्स पर अपनी फ़ैण्टेसी टीम बनाने के लिए एक निश्चित शुल्क भी लिया जाता है। यह ज़ाहिर है कि इन ऐप्स पर फ़ैण्टेसी टीम बनाकर सट्टा लगाने वाला प्रत्येक व्यक्ति तो नहीं जीतेगा, बल्कि एक असम्भव प्रतीत होने वाले बेहद छोटे प्रतिशत लोगों को ही इससे जीत का मुनाफ़ा मिलता है। असली जीत इन ऐप्स को ही होती है, जिनका कारोबार अरबों डॉलर तक पहुँच चुका है। एक अनुमान के मुताबिक़ अकेले ड्रीम इलेवन ऐप का ही पिछले वर्ष का कारोबार 150 मिलियन डॉलर तक का था।
कई अध्ययनों में यह बात सामने आयी है कि इन फ़ैण्टेसी टीम ऐप्स में पैसा लगाने वाले लोग अधिकतर 19 से 25 आयु वर्ग के छात्र-युवा, प्रवासी मज़दूर ही हैं। कई मामलों में मज़दूर उधार लेकर इन फ़ैण्टेसी ऐप्स में पैसे लगाते हैं, और जब वे पैसे हार जाते हैं, तो फिर उधार न चुका पाने की सूरत में कई बार उन्हें आत्महत्या करने को भी मजबूर होना पड़ता है। इसके हालिया उदाहरण भी हमारे सामने हैं। वर्ष 2020 में तेलंगाना में मज़दूरी करने वाले झारखण्ड के 19 वर्षीय मज़दूर ने ऐसी किसी ऐप पर पैसे हारने के बाद आत्महत्या कर ली थी। इसी वर्ष पुड्डुचेरी में एक युवक ने भी ऐसे ही फ़ैण्टेसी स्पोर्ट्स ऐप में पैसे हारने के बाद आत्महत्या कर ली व एक ऑडियो क्लिप भी छोड़ी जिसमें उसने ऐसे ऐप्स पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग की।
आज पूँजीवादी व्यवस्था के पास लोगों को देने के लिए महँगाई और बेरोज़गारी के अतिरिक्त कुछ नहीं है। इन ऐप्स के ज़रिए इस व्यवस्था द्वारा यह प्रयास किया जा रहा है कि लोग जल्दी अमीर बनने के भ्रमजाल में फँसे रहें और अपनी समस्याओं के मूल कारण के बारे में न सोचें। इन्हें इसी तरह से प्रचारित भी किया जाता है। बड़े नामचीन खिलाड़ी इनके विज्ञापनों में नज़र आते है, लोगों से अपील करते हैं कि एक बार पैसे लगाओ और फिर मालामाल बन जाओ,आपकी सारी वित्तीय और आर्थिक समस्याओं का समाधान आपके स्मार्टफ़ोन में ही मौजूद है! बड़े पैमाने पर मज़दूर इन लुभावने विज्ञापनों की चकाचौंध में फँस जाते हैं, और कालान्तर में इन फ़ैण्टेसी टीम ऐप्स की लत में पड़ जाते हैं। ये ऐप्स मज़दूरों को सिर्फ़ वित्तीय तौर पर पंगु नहीं बनाते बल्कि उनकी राजनीतिक सचेतनता को भी भोथड़ा कर देते हैं। इस लत में पड़कर वे अलगाव के शिकार हो जाते हैं, एक ऐसा कृत्रिम व आभासी जीवन जीने लग जाते हैं जो वास्तव में है ही नहीं।
आज मज़दूर वर्ग के बीच लगातार यह प्रचारित करने की आवश्यकता है कि इस क़िस्म के प्रलोभन खोखले हैं। ऐसे सट्टेबाज़ी ऐप्स आपकी समस्याओं का हल करने का कोई विकल्प नहीं हैं बल्कि पूँजीवाद का ही एक आर्थिक और सांस्कृतिक जाल है। अगर उन्हें अपने जीवन स्तर में सुधार चाहिए तो फिर मालिकों की जमात यानी पूँजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ अपने रोज़मर्रा की माँगों को लेकर एकजुट होना होगा। साथ ही, ऐसे फ़ैण्टेसी टीम ऐप्स जो मूल रूप से सट्टेबाज़ी ऐप्स ही हैं, उन पर पूर्ण प्रतिबन्ध की माँग के लिए भी मौजूदा सरकार पर दबाव बनाना होगा।

मज़दूर बिगुल, मई 2022


 

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