मुण्डका (दिल्ली) की फैक्ट्री में लगी आग
कौन है इन 31 मौतों का ज़िम्मेदार?

– भारत

बीते दिनों मुण्डका औद्योगिक क्षेत्र में जो हुआ वह महज़ हादसा नहीं है। इससे पहले भी दिल्ली और देश के अलग-अलग फैक्ट्री इलाकों में मज़दूरों की मौत की घटनाएँ सामने आती रहीं हैं और इसके बाद भी थ जारी है। मुण्डका में जिस फैक्टरी में आगजनी की यह भयानक घटना हुई उसमें चार्जर और राउटर बनाने का काम होता था। इस काम के लिए ज्यादा संख्या में महिला मज़दूरों को रखा गया था। आधिकारिक तौर पर 31 मज़दूरों की मौत हुई है, पर कई मज़दूर अभी तक लापता हैं। जाहिरा तौर पर मृत मज़दूरों की संख्या कहीं अधिक है। घटना की वीभत्सता और निर्ममता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मृत मज़दूरों की पहचान बिना डीएनए टेस्ट के सम्भव नहीं है।
दिल्ली के अधिकांश कारखानों-फैक्टरियों में कोई श्रम कानून लागू नहीं होता। बेहद खतरनाक और वीभत्स परिस्थितियों में मज़दूरों को 16-16 घंटे खटवाया जाता है। मुण्डका की इस फैक्टरी में हुई यह घटना इस बात को चीख-चीख कर पुष्ट कर रही है। बिना खिड़की, दरवाज़ों के बनी हुई ऊँची-ऊँची चारदीवारियों में रोशनी और हवा का पहुँचना दूभर होता है, जब आग लगी,कई मज़दूर निकल पाने में असफल रहे। कई मज़दूर तो तीसरी मंज़िल से कूद कर जान बचाने की कोशिश किए लेकिन उसमें वे बुरी तरह घायल हो गए। इस कारखाने में 150-200 करीब मज़दूर काम करते थे,जिनके आने-जाने के लिए भूतल पर सिर्फ़ एक ही दरवाज़ा था। फैक्टरी में कोई आपातकालीन गेट की व्यवस्था नहीं थी। मज़दूरों के लिए फैक्टरी में सुरक्षा के इन्तज़ाम मालिकों और सरकार के लिए प्राथमिक नहीं होते,उनके लिए मज़दूरों की मौत पर भी अपना मुनाफ़ा मायने रखता है।
मुण्डका में हुए अग्निकांड के बाद भी दिल्ली के कारखानों में आग लगने का सिलसिला रुका नहीं। इसके बाद बवाना औद्योगिक क्षेत्र में सेक्टर-2 के एच-15 फैक्ट्री में आग लग गई। जब फैक्ट्री में आग लगी उस समय अन्दर 13 मज़दूर थे। सभी सुरक्षित बाहर निकल गए। फैक्ट्री में टेप बनता था और उसमें कुल 17 मज़दूर 7000-8000 के मासिक वेतन पर काम करते थे। वहीं दूसरी घटना मुस्तफ़ाबाद में हुई। जिस फैक्ट्री में आग लगी थी वहां भट्टी से इलेक्ट्रानिक व इलेक्ट्रिकल सामान पर रंग किया जाता था। आग लगने से एक महिला समेत सात मज़दूर बुरी तरह से झुलस गए। झुलसी हुई हालत में उन्हें जग प्रवेश चंद व जीटीबी अस्पताल में भर्ती करवाया। एक मज़दूर को डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। ये कारखाना अवैध रूप से बिना पंजीकरण के चलाया जा रहा था। मुस्तफ़ाबाद की बात करें तो जिस फैक्ट्री में आग लगी थी वो किसी औद्योगिक इलाके में नहीं बल्कि रिहाइश इलाके में थी। यहां ढेरों ऐसे कारखाने हैं जो बिना पंजीकरण के चल रहे हैं। ऐसे में यहां किसी भी तरह के सुरक्षा मानकों का पालन नहीं होता है। जहां आग लगी उसके कुछ दूरी पर ही आम आदमी पार्टी के विधायक का घर भी है। पर उन्हें इन सब की कोई सुध ही नहीं है। आम आदमी के कई विधायक तो खुद फैक्ट्री मालिक है जो अपनी फैक्ट्री में कोई श्रम कानून लागू नहीं करते।
पूरी दिल्ली में 80 प्रतिशत फैक्टरियां बिना पंजीकरण के चल रही हैं जहां कोई सुरक्षा के इन्तज़ाम नहीं है और जब ऐसी घटनाएं होती हैं तब दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार ट्वीट कर अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने की घटिया कोशिश करते हैं। अगर बात करें तो बीते वर्ष कारखानों में आग लगने से 162 मज़दूरों की मौत हो गई। श्रम मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि बीते पांच वर्षो में 6500 मज़दूर फैक्ट्री, खदानों, निर्माण कार्य में हुए हादसों में अपनी जान गवां चुके हैं। इसमें से 80 प्रतिशत हादसे कारखानों में हुए। 2017-2018 कारखाने में होने वाली मौतों में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
मज़दूरों की मौत के ज़िम्मेदार कोई और नहीं बल्कि फैक्टरी मालिक और उनके चंदे से चलने वाली पूँजीवादी पार्टियों की सरकारें हैं।
सस्ते श्रम के तौर पर महिलाओं को काम पर लगाया जाता है और निर्मम परिस्थितियों में काम करा कर मालिक अपना मुनाफ़ा पीटते हैं। इन्हीं मालिकों, पूँजीपतियों के पैसे से तमाम चुनावबाज़ पार्टियां चुनाव लड़ती हैं। वे ही इस हत्‍या, लूट और शोषण को कानूनी जामा पहनाते हैं जिसकी वज़ह से ये घटनाएं आम होती जा रहीं हैं। मुण्डका में हुई मौतों पर रोना रोने वाले भाजपा और आम आदमी पार्टी के हमारे हुक्मरान ही असल में इन घटनाओं को प्रश्रय देते हैं। उनके लिए मज़दूरों की मौत महज़ एक संख्या है। ‘आम आदमी पार्टी’ के गिरीश सोनी से लेकर राजेश गुप्‍ता जैसे तमाम नेता-मन्‍त्री स्‍वयं कारखाना-मालिक हैं और किसी श्रम कानून को लागू नहीं करते, मज़दूरों को कोई सुरक्षा उपकरण नहीं देते हैं। सवाल तो यह भी बनता है कि दिल्ली के एमसीडी में मौजूद भाजपा नेतृत्व अतिक्रमण के नाम पर गरीबों की रोजी-रोटी उजाड़ रही है, वहीं तमाम अवैध कारखानों से लेकर फैक्ट्रियों में सुरक्षा इंतजामों की कमी पर चुप्पी साधे हुए है! ऐसा क्यों? क्योंकि इनमें से तमाम फैक्ट्री कारखानों के मालिक भाजपा के नेता या उसके समर्थन ही है। भाजपा के ज्‍यादातर नेता-मंत्री खुद ही कारखाने चलवाते हैं, उन्‍हें लाइसेंस दिलवाते हैं। दिल्‍ली के 15 लाख कारखानों में रोज़ जान हथेली पर रखकर मज़दूर इनकी तिजोरियां भरते हैं।
ये ही कफ़नखसोट दिल्ली में हुई अनाज़मंडी की घटना से लेकर बवाना में मज़दूरों की मौत और अब मुण्डका में हुए इस भीषण मौत के तांडव के ज़िम्मेदार हैं।
दिल्ली में बसे 29 औद्योगिक क्षेत्रों के हालात यह हैं कि किसी भी कारख़ाने में सुरक्षा के नियम-क़ानून लागू नहीं होते। ऊपर से केजरीवाल नौटंकी करता है कि उसने मज़दूरों की ज़िन्दगी बदल दी और उनका वेतन बढ़ा दिया। काग़ज़ों में वेतन बढ़ोत्तरी की घोषणा के बाद अब 8 घण्टे के कार्य दिवस के हिसाब से अकुशल मज़दूरों का वेतन 16,064 से बढ़कर 16,506 रुपये, अर्धकुशल मज़दूरों का वेतन 17,693 से बढ़कर 18,187 रुपये और कुशल मज़दूरों का वेतन 19,473 से बढ़कर 20019 रुपये हो गया है। पर असलियत तो हम सब जानते हैं कि दिल्ली में काम कर रहे करोड़ों मज़दूरों पर इससे रत्ती भर भी फ़र्क़ नहीं पड़ेगा क्योंकि पूरी दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों में श्रम क़ानून लागू ही नहीं होते। दिल्ली के अन्दर एक बड़ी आबादी घरेलू कामगारों की है, जिनके लिए न्यूनतम वेतन एक खोखले शब्द के अलावा कुछ है ही नहीं। एक तरफ़ मज़दूरों से लेकर कामगारों की बड़ी आबादी रोज़ 200 रुपये में अपना हाड़-माँस गलाती है और बदतर हालात में जीने को मजबूर है, वहीं दूसरी तरफ़ केजरीवाल मज़दूरों का ‘मसीहा’ बनने की नौटंकी कर रहा है।
यह है नौटंकीबाज़ केजरीवाल, जिसकी पार्टी असल में दिल्ली के बड़े व्यापारियों, पूँजीपतियों की सेवा करती है, पर वोट लेने के लिए मज़दूरों से झूठे वादे करती है। आजकल जब भी जनता केजरीवाल को उसके वादे याद दिलाती है, तो वह यह कहकर बच निकलने की कोशिश करता है कि केन्द्र में बैठी मोदी सरकार इसे कुछ करने नहीं दे रही है। लेकिन यहाँ ग़ौरतलब बात यह है कि श्रम विभाग केजरीवाल सरकार के पास है और न्यूनतम वेतन लागू करने और सुरक्षा के इन्तज़ाम कारख़ानों में लागू करने के लिए इसे मोदी सरकार से मंज़ूरी लेने की कोई आवश्यकता नहीं है, फिर भी इतने लम्बे कार्यकाल में इन्होंने कहीं भी कोई श्रम क़ानून लागू क्यों नहीं कराया? ज़ाहिर सी बात है कि श्रम क़ानून लागू करने की इस सरकार की कोई मंशा नहीं है, इन्होंने सिर्फ़ नौटंकी की है और मज़दूरों को धोखा देने के अलावा और कोई काम नहीं किया है।
मुंडका में लगी आग के मसले पर भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में अभियान चलाया और मज़दूरों को संगठित कर दिल्ली सचिवालय पर प्रदर्शन किया और ज्ञापन सौंपा। उन्हें चेताया गया कि अगर तत्काल माँगें नहीं मानी जाती तो आने वाले समय में इसके ख़िलाफ़ बड़ा आन्दोलन किया जायेगा। माँगें इस प्रकार थीं:
– कारख़ानों में सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम किये जायें।
– श्रम कानूनों को तत्काल लागू किया जाये।
– दोषी मालिकों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाये।
– मारे गये मज़दूरों के परिवार को 50 लाख रुपये मुआवज़ा दिया जाये।

मज़दूर बिगुल, जून 2022


 

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