दिल्ली की आँगनवाड़ी महिला मज़दूरों के जारी ऐतिहासिक और जुझारू संघर्ष की रिपोर्ट

प्रियम्वदा

हम ‘मज़दूर बिगुल’ के पन्नों पर पढ़ चुके हैं कि किस तरह 31 जनवरी से दिल्ली में आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों की 38 दिनों तक चली हड़ताल का दमन करते हुए उपराज्यपाल ने हेस्मा लगाया था और दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने 884 लोगों को बदले की भावना से बर्ख़ास्त कर दिया था। हेस्मा व ग़ैर-क़ानूनी बर्ख़ास्तगी के ख़िलाफ़ महिलाकर्मियों ने अपने आन्दोलन को नये स्तर पर जारी रखा हुआ है। इस जुझारु आन्दोलन ने समूची पूँजीवादी व्यवस्था के चरित्र को बेनक़ाब किया है। विधायिका, कार्यपालिका से लेकर न्यायपालिका तक का मज़दूर-विरोधी, स्त्री-विरोधी चरित्र भी महिलाकर्मियों के इस संघर्ष के दौरान खुलकर सामने आया है।
हमने यह भी देखा है कि हड़ताल स्थगित होने के बाद आँगनवाड़ीकर्मियों ने अपने आन्दोलन की गर्मी को बनाये रखा है। पहले ‘नाक में दम करो’ अभियान के ज़रिए आम आदमी पार्टी और भाजपा के नेता-मंत्रियों के घोर महिला-मज़दूर विरोधी चरित्र को उजागर किया और बस्तियों-मोहल्लों में जाकर इन चुनावबाज़ पार्टियों के बहिष्कार का अभियान चलाया। दिल्ली की मेहनतकश आवाम को इनकी असलियत से परिचित कराते हुए वोटबन्दी की अपील की।
इसके बाद, आन्दोलन के अगले पड़ाव ‘संघर्ष पखवाड़े’ के तहत महिलाओं ने कई जीतें हासिल कीं।
महिला एवं बाल विकास विभाग और दिल्ली सरकार को नियमित मानदेय और बढ़ा हुआ मानदेय देने के लिए मजबूर किया। पिछली रिपोर्ट में यह बताया गया था कि हेस्मा जैसे दमनकारी क़ानून लगाये जाने के विरोध में स्त्री कामगारों ने कई बार उपराज्यपाल आवास व दफ़्तर का घेराव किया। अभियान के दूसरे चक्र में महिलाकर्मियों ने उपराज्यपाल को प्रतिनिधिमण्डल से मिलने के लिए बाध्य कर दिया। “महिला सशक्तिकरण” पर भाषणों की झड़ी लगानी वाली भाजपा के नुमाइन्दे उपराज्यपाल को क़रीब पाँच महीने के बाद महिलाओं से मिलने का समय मिला।
दिल्ली के उपराज्यपाल को वार्ता के लिए मजबूर करना संघर्षरत आँगनवाड़ीकर्मियों की एक महत्वपूर्ण राजनीतिक जीत है।
दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में जिस प्रतिनिधिमण्डल की मुलाक़ात उपराज्यपाल से हुई उसने बताया कि “यह वार्ता दिल्ली की आँगनवाड़ी स्त्री मज़दूरों के लम्बे संघर्ष का नतीजा है। बहिष्कार के डर से घबरायी भाजपा के “प्रतिनिधि” उपराज्यपाल को आख़िरकार वार्ता के लिए तैयार होना पड़ा। पिछले 4 महीनों से दिल्ली की सड़कों पर आन्दोलनरत महिलाकर्मियों के दबाव से ही यह वार्ता सम्भव हो सकी है। यदि पूर्व उपराज्यपाल महोदय दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों की 38 दिनों तक चली हड़ताल पर हेस्मा लगाकर एक दिन में उसका दमन कर सकते हैं तो ग़ैर-क़ानूनी व ग़ैर-जनवादी तरीक़े से बर्ख़ास्त की गयी 884 महिलाकर्मियों की पुनः बहाली के आदेश भी तत्काल जारी कर सकते हैं। उपराज्यपाल महोदय ने उक्त वार्ता में यूनियन प्रतिनिधिमण्डल को जल्द ही बुलाने का और इस मसले में जल्द ही हस्तक्षेप का आश्वासन दिया है।”
हड़ताल में सक्रियता से भागीदार रहीं आँगनवाड़ी सहायिका अनिता ने कहा कि “इस वार्ता में उपराज्यपाल को यह क़बूल करना पड़ा कि 884 महिलाकर्मियों की बर्ख़ास्तगी ग़लत है। साथ ही उन्होंने कहा कि यूनियन द्वारा सौंपे गये ज्ञापन पर जल्द कार्रवाई की जायेगी और प्रतिनिधिमण्डल को दुबारा बातचीत के लिए बुलाया जायेगा।”
वार्ता के बाद यूनियन ने यह घोषणा की है कि यदि ज्ञापन पर जल्द कार्रवाई नहीं होती है, तो दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मी एक बार फिर उपराज्यपाल आवास का घेराव करेंगी।
यह दिल्ली की फ़्रण्ट लाइन वर्करों की रोज़ी-रोटी का सवाल है। महज़ आश्वासन लेकर दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मी अपने आन्दोलन को कमज़ोर नहीं होने देंगी। जब तक असंवैधानिक तरीक़े से और बदले की भावना से किये गये यह 884 टर्मिनेशन वापस नहीं होते, हमारा आन्दोलन जारी रहेगा। न्यायालय के ज़रिए तो यह टर्मिनेशन रद्द होने ही हैं, लेकिन यदि केजरीवाल-मोदी सरकार हेस्मा व टर्मिनेशन की दमनकारी नीतियों को वापस नहीं लेती तो दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मी सड़कों पर आन्दोलन के ज़रिए इनका भण्डाफोड़ कर इनके लिए वोट माँगना दूभर कर देंगी।
दिल्ली की आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों के सामने सभी पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टियों का असल चेहरा बहुत पहले ही बेपर्द हो चुका है। इनके झूठे दावों और घड़ियाली आँसुओं के चक्कर में अब ये महिलाकर्मी नहीं फँसेंगी। इस आन्दोलन ने आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा की चुनावी राजनीति का ज़बर्दस्त तरीक़े से भण्डाफोड़ किया।
मज़ेदार बात है कि एक तरफ़ तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों के संघर्ष का “समर्थन” कर रही हैं और कांग्रेस के ही राज्यसभा सांसद व पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी आँगनवाड़ीकर्मियों के ख़िलाफ़ दिल्ली सरकार की ओर से बर्ख़ास्तगी को सही ठहराने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं!
यही नहीं, दिल्ली सरकार के इस मसले को देखने के लिए सिंघवी महोदय कथित तौर पर एक सुनवाई के लिए 20 लाख रुपये शुल्क ले रहे हैं, जिससे दिल्ली सरकार को कोई दिक़्क़त नहीं! परन्तु आँगनवाड़ीकर्मियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी करना इस सरकार को मंज़ूर नहीं था। ख़ैर, केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी की सच्चाई तो दिल्ली आँगनवाड़ीकर्मियों ने अपनी यूनियन के नेतृत्व में सबके सामने ला ही दी है। भाजपा, कांग्रेस, नक़ली लाल झण्डे वाली सीपीएम जैसी अन्य चुनावबाज़ पार्टियों की कलई भी खोल दी है। ज़ाहिर है, कांग्रेस की आँगनवाड़ीकर्मियों के प्रति यह सहानुभुति केवल दिखावा है। कांग्रेस ने हड़ताल के दौरान भी इस मुद्दे को केवल अपने राजनीतिक फ़ायदे (उस वक़्त कई राज्यों में विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र) के लिए ही उठाया था और दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मी इसे भली-भाँति समझ भी रही थीं।
जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है वहाँ आँगनवाड़ी कार्यकर्ता को 7000 रुपये व सहायिका को मात्र 4000 रुपये मानदेय मिलता है। यूनियन ने कहा कि कांग्रेस को सम्मानजनक मानदेय की माँग से इतनी ही हमदर्दी है तो उन राज्यों में स्कीम वर्करों के मानदेय बढ़ाकर 25,000 रुपये व 20,000 रुपये करने में विलम्ब क्यों कर रही है जहाँ सरकार इनकी है?!
मालूम हो कि समेकित बाल विकास परियोजना की शुरुआत ही 1975 में कांग्रेस के शासन में हुई थी। कांग्रेस ने योजनाबद्ध तरीक़े से इस परियोजना में महिलाकर्मियों को “सशक्त” करने के नाम पर उनके श्रम की लूट का उपाय निकाला था। जो देश आज भी विश्व भूख सूचकांक में 116 देशों की सूची में 110वें स्थान पर है वहाँ समेकित बाल विकास परियोजना की आवश्यकता सहज ही समझ आ जाती है। ऐसे में इस स्कीम में ज़मीनी स्तर पर कार्यरत आँगनवाड़ीकर्मियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा न देकर उन्हें “स्वयं सेविकाओं” की उपाधि नवाज़ कर पल्ला झाड़ लेने वाली कांग्रेस आज किस मुँह से दिल्ली सरकार पर उंगली उठा रही है?
दरअसल आँगनवाड़ीकर्मियों के ख़िलाफ़ कांग्रेस भी आम आदमी पार्टी और भाजपा के अपवित्र गठबन्धन में शामिल है।
महिलाकर्मियों के संघर्ष का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए करने में भाजपा और कांग्रेस ने तो कोई कसर नहीं छोड़ी। एक तरफ़ तो दिल्ली में भाजपा का अध्यक्ष आदेश गुप्ता भी आँगनवाड़ीकर्मियों की बर्ख़ास्तगी पर घड़ियाली आँसू बहा रहा है और दिल्ली सरकार के साथ तू-नंगा, तू-नंगा का खेल खेल रहा है जबकि आँगनवाड़ी कामगारों के दमन में भाजपा भी उतनी ही संलग्न है जितनी कि दिल्ली सरकार। आदेश गुप्ता से लेकर भाजपा का हर नेता-मंत्री इस बात पर चुप्पी साध कर बैठा है कि क्यूँ 2018 में जो मामूली बढ़ोत्तरी केन्द्र सरकार द्वारा की गयी थी वो अबतक महिलाकर्मियों तक नहीं पहुँची है? क्यूँ भाजपा सरकार आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों को पक्के कर्मचारी का दर्जा देने की माँग पर चूँ तक नहीं कर रही है?
दिल्ली में 38 दिनों तक चली आँगनवाड़ीकर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल से बुरी तरह घबरायी ‘आप’ और भाजपा ने हड़ताल को दबाने-कुचलने के लिए तो पहले ही हाथ मिला लिया था। एक ओर हड़ताल को तोड़ने के लिए हेस्मा जैसे काले क़ानून को लागू किया गया, वहीं दूसरी ओर काम पर लौट चुकीं 884 आँगनवाड़ीकर्मियों को ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से टर्मिनेशन लेटर सौंप दिये गये। असंवैधानिक तरीक़े से किये गये टर्मिनेशन का मसला जब दिल्ली उच्च न्यायालय में उठाया गया तो ‘आप’ और भाजपा के बाद कांग्रेस भी इस गुट में शामिल हो गयी।
दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में चल रहे इस आन्दोलन ने दिखा दिया कि आँगनवाड़ीकर्मी कांग्रेस, आप और भाजपा के घड़ियाली आँसूओं में नहीं फँसने वाली हैं। इनके दोमुँहेपन का पर्दाफ़ाश अपने जुझारू आन्दोलन से करती रहेंगी और अपना जायज़ हक़ मिलने तक लड़ाई जारी रखेंगी।

मज़दूर बिगुल, अगस्त 2022


 

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