सड़क पर तो हम जीते ही थे, अब न्यायालय में भी जीत के क़रीब है दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों का संघर्ष!
दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के आन्दोलन पर एक अपडेट

वृषाली (यूनियन संवादाता)

पिछले वर्ष दिल्ली में 38 दिनों तक चली आँगनवाड़ीकर्मियों की ऐतिहासिक हड़ताल के बाद संघर्ष का सिलसिला अब तक भी जारी है। दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के बैनर तले चली इस हड़ताल से ख़ौफ़ज़दा दिल्ली व केन्द्र सरकार ने आपसी सहमति से दिल्ली के उपराज्यपाल माध्यम से इस ऐतिहासिक हड़ताल पर ‘हेस्मा’ लगवा दिया था। इसके अलावा हड़ताल स्थगित हो जाने के बाद विभाग द्वारा 884 महिलाकर्मियों को ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से बर्ख़ास्त कर दिया गया था। इन बर्ख़ास्तग़ियों के ख़िलाफ़ 15 मार्च 2022 को यूनियन द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में केस दायर किया गया था। इसके साथ ही सड़कों पर आन्दोलन भी जारी है। लगातार भाजपा और ‘आप’ के नेताओं-मन्त्रियों का भण्डाफोड़ कर आँगनवाड़ी स्त्री कामगारों ने इनकी नाक में दम कर रखा है।

इसी बीच कानूनी संघर्ष में भी ग़ैर-क़ानूनी बर्ख़ास्तगी के ख़िलाफ़ चल रहे इस आन्दोलन में आँगनवाड़ीकर्मियों ने जीत की ओर एक और क़दम बढ़ा दिया है। अदालत में हो रही जिरह में दिल्ली के महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रतिनिधियों को बगलें झाँकने को मजबूर होना पड़ रहा है। इस दौरान 15 फ़रवरी को विभाग ने खानापूर्ति के लिए पुनः बहाली के नाम पर एक बेहद घटिया शर्तों वाला महिलाकर्मी विरोधी ऑर्डर जारी किया। इस ऑर्डर में सभी 884 महिलाकर्मियों की व्यक्तिगत जाँच-पड़ताल की शर्त के अलावा उन्हें नयी भर्तियों के तौर पर रखने व पिछले सारे रिकॉर्ड व बकाये को शून्य कर देने के प्रावधान थे। पुनः बहाली की एक शर्त यह भी थी कि बहाली के उपरान्त भी महिलाकर्मी निगरानी के अधीन रहेंगी।

इस ऑर्डर के जारी होने के अगले ही रोज़ दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में सैकड़ों आँगनवाड़ीकर्मियों ने महिला एवं बाल विकास विभाग के दफ़्तर के ऐन सामने इस ऑर्डर की प्रति के साथ-साथ ऑर्डर जारी करने वाले संयुक्त निदेशक नवलेन्द्र कुमार और मनीष सिसोदिया के पुतले फूँके। दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के आन्दोलन से बौखलाये महिला एवं बाल विकास विभाग और दिल्ली सरकार के तलवे चाटने वाली सीटू से सम्बन्धित जेबी व काल्पनिक “यूनियन” ने विभाग के इस ऑर्डर की न केवल भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए विभाग को “प्रेम-पत्र” सौंपे बल्कि उन्हें व्यक्तिगत जाँच करने का सुझाव पिछले साल ही दे देने के लिए ख़ुद अपनी पीठ भी थपथपा ली। ज़ाहिर है कि मज़दूर आन्दोलन के ये विभीषण, मीर जाफ़र और जयचन्द प्रशासन के बचाव के लिये पूरी वफ़ादारी से खड़े हैं। सीटू की इस “यूनियन” का दिल्ली में आन्दोलन से ग़द्दारी का पुराना रिकॉर्ड है। आज फिर जब दिल्ली सरकार और विभाग बेबसी का शिकार हो रहे हैं तो सीटू की जेबी “यूनियन” विभाग स्तरीय जाँच की इस नयी नौटंकी के समर्थन में विभाग के अधिकारियों के सुर में सुर मिला रही है। दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग और सीटू की तमाम उम्मीदों पर पानी फेरते हुए अदालत की जिरह में दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के प्रतिनिधियों ने 15 फ़रवरी के उक्त ऑर्डर की धज्जियाँ उड़ाते हुए प्रतिशोध की भावना से लैस इस आदेश को ख़ारिज करवा दिया। यह यूनियन के संघर्ष की एक अहम जीत थी।

दिल्ली सरकार, महिला एवं बाल विकास विभाग और उसके दलालों की बेचैनी इस बात का सबब है कि दिल्ली सरकार के सामने अब कोई रास्ता नहीं बचा है। कुछ वक़्त पहले तक इन्हीं बर्ख़ास्तगियों को सही ठहराने वाला महिला एवं बाल विकास विभाग ऑर्डर जारी कर पुनः बहाली की नौटंकी करने को मजबूर हुआ। लेकिन अनर्गल शर्तों से भरे इस ऑर्डर को महिलाकर्मियों ने नामंज़ूर कर अपने संघर्ष को तब तक जारी रखने का ऐलान किया है जब तक सभी 884 ग़ैर-क़ानूनी टर्मिनेशन रद्द नहीं कर दिये जाते हैं। दिल्ली की आँगनवाड़ीकर्मियों का संघर्ष न केवल टर्मिनेशन के ख़िलाफ़ है बल्कि न्यूनतम मज़दूरी, कर्मचारी का दर्जा, एरियर का भुगतान व ग्रैच्युटी समेत अन्य कई वाजिब माँगों के लिए भी है। महिलाकर्मियों के संघर्ष के दमन के ज़िम्मेदार आम आदमी पार्टी व भाजपा के ख़िलाफ़ दिल्ली निगम चुनाव में चला व्यापक बहिष्कार आन्दोलन भी आगे जारी रहेगा। न्यायालय में हमारा पक्ष इसीलिए मज़बूत है क्योंकि हमारी एकजुटता ठोस है और हम सड़क पर मज़बूत हैं।

 

मज़दूर बिगुल, मार्च 2023


 

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