अन्तरराष्ट्रीय सर्वहारा के महान नेता स्तालिन के स्मृति दिवस (5 मार्च 1953) के अवसर पर दो उद्धरण

“सभी देशों के मज़दूर आन्दोलन का अनुभव ही अपने सामान्यीकृत रूप में सिद्धान्त कहलाता है। ज़ाहिर है कि, क्रान्तिकारी व्यवहार से विलग हो जाने पर सिद्धान्त निरुद्देश्य हो जाता है, ठीक वैसे ही जैसे सिद्धान्त का आलोक नहीं मिलने पर व्यवहार अँधेरे में टटोलता रह जाता है। लेकिन अगर सिद्धान्त का निर्माण व्यवहार से अविच्छिन्न रहते हुए किया गया हो तो वह मज़दूर वर्ग के आन्दोलन में एक प्रचण्ड शक्ति बन सकता है; क्योंकि सिद्धान्त और एकमात्र सिद्धान्त ही वह चीज़ है जो आन्दोलन को विश्वास दे सकता है, दिशा की शक्ति दे सकता है और आसपास की घटनाओं के आन्तरिक सम्बन्धों की समझदारी दे सकता है; क्योंकि सिद्धान्त और केवल सिद्धान्त ही वह चीज़ है जो व्यवहार को न सिर्फ़ यह अहसास करने में मदद कर सकता है कि वर्तमान समय में वर्ग कैसे और किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, बल्कि यह भी बताता है कि निकट भविष्य में वे कैसे और किस दिशा में अग्रसर होंगे। लेनिन ने ही इस सर्वविदित उक्ति को कहा था और बार-बार दुहराया था कि, “क्रान्तिकारी सिद्धान्त के बिना कोई क्रान्तिकारी आन्दोलन नहीं हो सकता।”

स्तालिन, लेनिनवाद के मूलभूत सिद्धान्त

 

“स्वतःस्फूर्तता का “सिद्धान्त” एक अवसरवाद का सिद्धान्त है, यह मज़दूर आन्दोलन की स्वतःस्फूर्तता की पूजा करने का सिद्धान्त है; यह एक ऐसा सिद्धान्त है जो वास्तव में, मज़दूर वर्ग के हिरावल की, यानी मज़दूर वर्ग की पार्टी की नेतृत्वकारी भूमिका को ही खारिज करता है।

“स्वतःस्फूर्तता की पूजा करने का सिद्धान्त फैसलाकुन तौर पर मज़दूर वर्ग के आन्दोलन के क्रान्तिकारी चरित्र का विरोधी है; यह मज़दूर वर्ग के आन्दोलन द्वारा पूँजीवाद की बुनियादों के ख़िलाफ़ संघर्ष करने की लाइन अपनाने का विरोधी है; यह इस पक्ष में होता है कि आन्दोलन सिर्फ़ उन्हीं माँगों की लाइन पर आगे बढ़े जिन्हें “हासिल कर पाना मुमकिन” हो, यानी जो पूँजीवाद के लिए “स्वीकार्य” हों; यह पूरी तरह से “न्यूनतम प्रतिरोध की लाइन” के पक्ष में होता है। स्वतःस्फूर्तता का सिद्धान्त ट्रेडयूनियनवाद की विचारधारा होता है।

स्वतःस्फूर्तता की पूजा करने का सिद्धान्त स्वतःस्फूर्त आन्दोलन को राजनीतिक रूप से सचेत और सुनियोजित चरित्र देने का फ़ैसलाकुन तौर पर विरोध करता है। यह इस बात का विरोधी होता है कि पार्टी मज़दूर वर्ग के आगे-आगे मार्च करे, वह जनसमुदाय को राजनीतिक चेतना के स्तर तक ऊपर उठाये, और आन्दोलन का नेतृत्व करे; यह इस बात के पक्ष में होता है कि आन्दोलन  के राजनीतिक रूप से सचेत तत्व आन्दोलन को अपनी राह चलने दें और इसमें कोई बाधा न डालें; यह इस पक्ष में होता है कि पार्टी स्वतःस्फूर्त आन्दोलन में मन लगाकर सिर्फ़ लगी रहे और उसकी पूँछ पकड़कर घिसटती रहे। स्वतःस्फूर्तता का सिद्धान्त आन्दोलन में सचेत तत्वों की भूमिका को तुच्छ बना देने का सिद्धान्त है, यह “ख्वोस्तिज़्म” (पुछल्लावाद) की विचारधारा है और अवसरवाद की सभी किस्मों का तार्किक आधार है।”

स्तालिन, लेनिनवाद के मूलभूत सिद्धान्त

 

 

मज़दूर बिगुल, मार्च 2023


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments