पुरोला की घटना और भाजपा के “लव जिहाद” की सच्चाई!

अपूर्व

भाजपा और आरएसएस की राजनीति हिन्दुत्व की साम्प्रदायिक राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती है। भाजपा और संघ परिवार लगातार ऐसे मुद्दों को उभारते रहते हैं जो उनकी साम्प्रदायिक फसल के लिए खाद-पानी का काम करें। ऐसे मुद्दे खड़े करने और उनके नाम पर लोगों को भड़काने के लिए उनके पास आनुषंगिक संगठनों और अन्धभक्त उन्मादी कार्यकर्त्ताओं की पूरी फ़ौज मौजूद है। ये प्राकृतिक घटनाओं तक से लेकर किसी भी प्रकार की सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक घटना को साम्प्रदायिक रंग देने में माहिर हैं। सत्ता के संरक्षण में ये उन्मादी अन्धभक्त, संघ और भाजपा के एजेण्डा को पूरा करने के अभियान में जुटे रहते हैं। पूरा का पूरा गोदी मीडिया हर झूठ को सौ तरह से पेश करने और नफ़रत फैलाने में इनका साथ देता है।

इनके साम्प्रदायिक प्रयोग का एक केन्द्र आजकल उत्तराखण्ड भी बना हुआ है। यहाँ पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में चल रही भाजपा सरकार अपनी नाकामियों को ढँकने के लिए लगातार “लव जिहाद” और “लैंड जिहाद” का झूठा खड़ा कर रही है। पिछले कुछ महीनों से जबसे उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने “लव और लैंड जिहाद” का  मुद्दा उछाला है, तबसे यहाँ के स्थानीय अख़बारों से लेकर सोशल मीडिया तक में तथाकथित “लव जिहाद” और “लैंड जिहाद” की ख़बरें और वीडियो छायी हुई हैं। हालाँकि इन घटनाओं का कोई पुलिस रिकॉर्ड नहीं है। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) तो पहले ही कह चुकी है कि देश में “लव जिहाद” का कोई मामला नहीं मिला है। फिर भी सत्ता की शह पर इस फ़र्ज़ी मुद्दे को सुर्ख़ियों में बनाये रखा गया है।

इसी तरह पिछले दिनों यहाँ पुरोला की एक घटना को साम्प्रदायिक रंग देकर इसे “लव जिहाद” का मामला बनाने की भरपूर कोशिश हिन्दुत्ववादी ताकतों ने की।

क्या है पुरोला की घटना? उत्तरकाशी ज़िले के एक छोटे-से कस्बे पुरोला में बीते 26 मई को एक नाबालिग लड़की के “अपहरण” की कोशिश का मामला सामने आया। नाबालिग लड़की को भगाने की कोशिश करने के आरोप में जितेन्द्र सैनी और उबैद खान नाम के दो लड़कों को अगले ही दिन 27 मई को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया। आम जानकारी यह है कि वह लड़की और जितेन्द्र सैनी एक-दूसरे को पसन्द करते थे। उबैद, जितेन्द्र का दोस्त होने के नाते उसके साथ पुरोला गया था। लेकिन हिन्दुत्ववादी संगठनों ने हिन्दू लड़के का नाम हटाकर केवल मुस्लिम लड़के का नाम आगे करके इसे “लव जिहाद” की घटना बताकर प्रचार शुरू कर दिया। इस घटना के तीन दिन बाद 29 मई को पूरे पुरोला में इस घटना के ख़िलाफ़ जुलूस निकाला गया।

“लव जिहाद” के नाम पर मुस्लिमों के ख़िलाफ़ इन विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला पुरोला तक ही नहीं रुका बल्कि आगे बढ़कर बड़कोट, चिन्यासीसौड़ और भटवाटी क़स्बों तक पहुँच गया। इन जुलूसों के दौरान मुस्लिम दुकानदारों की दुकानों को निशाना बनाया गया! उनमें तोड़-फोड़ की गयी! मुसलमानों को दुकान और इलाक़ा खाली करने की चेतावनी दी गयी! उनकी दुकानों पर धमकी भरे पोस्टर चिपकाये गये! इन घटनाओं के बाद पुरोला में 14 मुस्लिम दुकानदारों ने अपनी दुकानों से सामान हटा लिया जबकि 12 दुकानदारों ने पुरोला पूरी तरह छोड़ दिया। जो मुस्लिम परिवार वहाँ पर किराये पर रह रहे हैं, उन पर दुकानें और मकान ख़ाली करने का दबाव बनाया जा रहा है। मुसलमानों के ख़िलाफ़ कुछ इसी तरह की घटनाएँ हरिद्वार, रुड़की, उधमसिंह नगर और पौड़ी में भी हुई हैं। 

पुरोला में मुस्लिमों को निशाना बनाया जाना और उनके ख़िलाफ़ चेतावनी जुलूस निकाला जाना यह बताता है कि संघ और भाजपा अपने साम्प्रदायिक एजेण्डे को बहुत ही व्यवस्थित तरीके से फैलाने में सफल हुए हैं। एक छोटे से कस्बे पुरोला की घटना ने राष्ट्रीय पैमाने पर सुर्खियाँ बटोरीं और भाजपा व संघ के एजेण्डे को व्यापक हिन्दू आबादी में स्थापित करने का काम किया। वे लगातार यह प्रचार कर रहे हैं कि मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है और उत्तराखण्ड में ‘डेमोग्राफ़ी’ (आबादी का अनुपात) बदल रही है। पढ़े-लिखे जाहिलों और ख़ुद को प्रबुद्ध बताने वालों का भी एक हिस्सा इस आधारहीन बकवास की चपेट में है।

उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के “लव जिहाद” जैसे बयान के बाद आये दिन सोशल मीडिया और स्थानीय अखबारों में छायी इसकी ख़बरों से इस फ़ासिस्ट प्रोपेगेण्डा को लोग वास्तव में सच समझने लगे हैं। एक व्यापक हिन्दू आबादी को “लव जिहाद” एक वास्तविकता लगने लगी है। भले ही इसका सच्चाई से दूर- दूर तक का रिश्ता न हो! पुरोला में जिस नाबालिग लड़की के साथ यह घटना घटी, उसके परिवार का ही कहना है कि यह मामला “लव जिहाद” का नहीं है। वह खुद भी इसे साम्प्रदायिक रंग देने के ख़िलाफ़ हैं। लड़की के मामा ने मीडिया बताया कि इस घटना के बाद से ही अनेक हिंदुत्ववादी संगठन के नेताओं के उनके पास फ़ोन आते रहे और वे उनके ऊपर इसे “लव जिहाद” का रूप देने के लिए दबाव डालते रहे! जब उन्होंने इन्कार कर दिया तो नेताओं ने ख़ुद ही इसे “लव जिहाद” के रूप के प्रचारित कर दिया।

जहाँ तक “लव जिहाद” जैसे शब्द और अवधारणा की बात है तो ये हिन्दुत्ववादी दक्षिणपंथी संगठनों की तरफ से मुस्लिमों के ख़िलाफ़ फैलाया गया एक मिथ्या प्रचार है। इसकी पूरी अवधारणा ही साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली, घोर स्त्री-विरोधी और हिन्दुत्व की जाति व्यवस्था की पोषक अवधारणा है। इसके अनुसार मुस्लिम युवक अपना नाम और पहचान बदलकर हिन्दू लड़की को बरगलाकर, बहला-फुसलाकर अपने जाल में फँसाता है और उसके बाद जबरन हिन्दू लड़की का धर्म परिवर्तन करवाता है। यानी इस अवधारणा के अनुसार स्त्री का कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व और विचार ही नहीं होता! स्त्रियों को कोई भी बहला-फुसलाकर अपने जाल में फँसा सकता है! “लव जिहाद” के अनुसार मुस्लिम युवक जानबूझकर अपना “नाम” बदलते हैं ताकि “हिन्दू लड़कियों को फँसा सकें”। यानी प्यार “नाम” पर टिका है। जैसे दो व्यक्तियों का कोई व्यक्तित्व ही न हो! उनकी अपनी पसन्दगी-नापसन्दगी ही न हो! “नाम” अगर मुस्लिम होगा तो प्यार नहीं होगा! हिन्दू होगा तो हो जायेगा!

इस पूरी अवधारणा का इस्तेमाल हिन्दुत्ववादी संगठन लगातार करते आ रहे हैं। इसे इन्होंने अपने लगातार झूठे प्रचार से व्यापक हिन्दू आबादी में स्थापित भी कर दिया है। हालाँकि यह शब्द अपने आप में ग़ैर-संवैधानिक और अमान्य है। जहाँ तक किसी स्त्री-पुरुष के प्रेम का मामला है तो भारतीय संविधान किसी भी जाति-धर्म के स्त्री-पुरुष को आपस में प्रेम करने और उसे अपना जीवनसाथी चुनने की पूरी आजाद़ी देता है। अलग-अलग धर्मों-जातियों-संस्कृतियों के लोगों के बीच प्रेम-सम्बन्ध तो किसी भी समाज को ज़्यादा स्वस्थ और सुन्दर बनाते हैं। हमारे देश में भी तमाम पूर्वाग्रहों के बावजूद लाखों लोग जाति-धर्म के बन्धनों को तोड़कर प्यार और शादी करते रहे हैं और थोड़े-बहुत विरोध के बाद उन्हें स्वीकार कर लिया जाता रहा है। लेकिन पिछले एक दशक के दौरान संघ और भाजपा ने इस ख़ूबसूरत बात को भी ज़हर और नफ़रत फैलाने का ज़रिया बना डाला है। उत्तराखण्ड राज्य का मुख्यमंत्री तक “लव जिहाद” जैसे शब्दों का खुलकर अपने भाषणों और वक्तव्यों में इस्तेमाल करता है।

सवाल यह उठता है कि इस तरह के मुद्दे से भाजपा और संघ को क्या मिलने वाला है? दरअसल, ये मुद्दे व्यापक हिन्दू आबादी के बीच संघ द्वारा फैलाये गये उस “डर” को स्थापित करने का काम करते हैं जिसके मुताबिक़ अगर भाजपा या संघ न हों तो “हिन्दुओं का जीना तक मुश्किल” हो जायेगा! इन मुद्दों को उछालकर और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करके भाजपा अपना वोट बैंक बढ़ाने और उसे सुदृढ़ करने में कामयाब होती है। दूसरे, आज जब पूरे देश में ही शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, महँगाई जैसे सबसे ज़रूरी मसलों पर भाजपा सरकार नाकाम हो चुकी है, तो ये मुद्दे जनता की एकता को तोड़ने और लोगों का ध्यान भटकाने के लिए सबसे कारगर हथियार भी हैं।

मज़दूर बिगुल, जून 2023


 

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