संघ-भाजपा के फ़र्ज़ी देशप्रेम की कलई फिर खुली!
आरएसएस से जुड़ा डीआरडीओ का वैज्ञानिक गोपनीय सूचनाएँ बेचने के आरोप में गिरफ़्तार

विवेक

इस माह की शुरुआत में महाराष्ट्र राज्य आतंक विरोधी दस्ते द्वारा डीआरडीओ में वैज्ञानिक पद पर कार्यरत पी.एम. कुरुलकर को पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी के साथ गोपनीय सूचनाएँ साझा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। यह जानना ज़रूरी है कि उक्त वैज्ञानिक का सम्बन्ध नरेन्द्र मोदी और भाजपा के आका संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से है। खुद कुरुलकर ने कहा है कि उसके परिवार की चार पीढ़ियाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी हुई हैं। वह स्वयं भी नियमित रूप से संघ की शाखा में जाता रहा है। पी.एम. कुरुलकर हाई प्रोफाइल वैज्ञानिक है। वह देश के मिसाइल निर्माण कार्यक्रम से भी जुड़ा हुआ है। एटीएस ने शुरुआती जाँच के बाद कहा कि कुरुलकर ने मिसाइलों से जुड़ी जानकारी एक सन्दिग्ध महिला के साथ साझा की है, जिसके तार पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी से जुड़े हैं । एटीएस के अनुसार यह प्रकरण कुरुलकर को उक्त महिला द्वारा हनी ट्रैप (प्रेम या सेक्स के प्रस्ताव के ज़रिये धोखे से सूचना हासिल करना) में फँसाने से शुरू हुआ था। 

परन्तु, इतने बड़े मसले को गोदी मीडिया द्वारा दबा दिया गया। राष्ट्रीय अख़बारों व समाचार चैनलों पर इसकी कहीं कोई चर्चा तक नहीं की गई। गोदी मीडिया से यह उम्मीद भी नहीं थी कि वह अपने असली मालिकों के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की ख़बर को जनता तक पहुँचने दे। पर फिर भी यह सवाल तो है कि हमेशा देशभक्ति का ढोल पीटने वाले आरएसएस व भाजपा से जुड़े लोगों का ही नाम ऐसे प्रकरणों में क्यों आता है?

वैसे यह कोई पहला मामला नहीं है जब आरएसएस या भाजपा से जुड़े किसी व्यक्ति का नाम देश की रक्षा से सम्बन्धित सूचनाओं को दूसरे देश की ख़ुफ़िया एजेंसी को लीक करने में आया है। इसके पहले आरएसएस से जुड़े ध्रुव सक्सेना को भी एटीएस ने आईएसआई के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ़्तार किया था। जब यह बात सामने आयी कि ध्रुव सक्सेना भाजपा के आईटी सेल का जिला कॉर्डिनेटर है, तो फिर भाजपा ने यह रोना रोया कि विदेशी ताकतें भाजपा में घुसपैठ कर रही है तथा ध्रुव सक्सेना से उसका कोई लेना देना नहीं है। पी. एम. कुरुलकर के मामले में भी आरएसएस व भाजपा ने चुप्पी साध रखी है।

देशभक्ति व राष्ट्रवाद का ढोल पीटने वाली भाजपा व आरएसएस का यही असली चाल, चेहरा और चरित्र है। देश के साथ गद्दारी का इनका इतिहास काफ़ी पुराना है। आज़ादी से लगभग 22 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई। तब से लेकर आज़ादी मिलने के 22 वर्षों के दौरान संघ ने अंग्रेजों के खिलाफ चूँ तक नहीं की। जब अंग्रेजों के ख़िलाफ़ देश की जनता लड़ रही थी तब संघी, हिन्दू आबादी का ध्रुवीकरण कर आज़ादी की लड़ाई को कमज़ोर करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे थे। आरएसएस के संस्थापक सह संघचालक केशव बलिराम हेडगेवार, दूसरे संघचालक एम.एस गोलवलकर और हिन्दुत्व के प्रचारक विनायक दामोदर सावरकर ने आज़ादी की लड़ाई से लगातार अपने को दूर रखा। इन भगवा फ़ासीवादियों के वैचारिक गुरु विनायक दामोदर सावरकर ने जेल से अंग्रेजों को कई माफ़ीनामे लिखे और यह विश्वास दिलाया कि वह उनका वफ़ादार रहेगा। और उसने किया भी ठीक ऐसा ही, जेल से निकलने के उपरान्त सावरकर ने अंग्रेजों के खिलाफ़ चल रहे किसी भी आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया और अंग्रेज़ों से पेन्शन ली। इसके अलावा, सावरकर देश के स्वाधीनता आन्दोलन को कमज़ोर करने की कोशिश में शामिल रहा, लगातार अपनी लेखनी के जरिये देश की जनता की एकता को साम्प्रदायिक आधार पर तोड़ने का प्रयास करता रहा। यही नहीं भाजपा के बड़े नेता रहे व सात दशकों तक संघ में कार्यकर्ता रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान अंग्रेजी सरकार के समक्ष मुखबिरी की थी। उसके बयान के कारण आन्दोलन मे शामिल लोगों की गिरफ्तारी हुई थी।

आज हमें संघ-भाजपा के ‘राष्ट्रवाद’ और इसकी तथाकथित ‘देशभक्ति’ की असलियत को पहचानने की ज़रूरत है। इनके लिए देशभक्ति केवल जनता को भरमाने का जुमला है, इसलिए उनके झूठे छलावे में आए बगैर देशभक्ति के सच्चे मायने समझने होंगे। देशभक्ति का अर्थ है देश की मेहनतकश जनता से एकजुटता, उनके दुःख-तकलीफ़ से वास्ता और उनके संघर्ष के साथ एकरूप होना। देशभक्ति की बात करते हुए अगर इस देश की आज़ादी की लड़ाई पर नज़र डाली जाये तो आज भी जिन सच्चे देशभक्तों के  के नाम हमारे मस्तिष्क में आते हैं वे हैं – शहीद भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, चन्द्रशेखर आज़ाद, अशफ़ाक-उल्ला, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ व इनके अन्य साथी। आज हमें भी इन्हीं की विरासत को लेकर आगे बढ़ना है व इन भगवा फ़ासीवादियों के नकली देशभक्ति के बरक्स सच्ची देशभक्ति के उदाहरणों से आम मेहनतकश आबादी को परिचित कराना है।

 

मज़दूर बिगुल, जून 2023


 

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