दिल्ली में पानी की समस्या से जूझती जनता

अदिति

एक तरफ़ देश जहाँ चाँद पर पानी ढूँढ रहा है, वहीं देश के कई इलाक़ों में मेहनतकश जनता अभी पृथ्वी पर ही पीने योग्य पानी ढूँढ रही है।

इसी का एक उदाहरण है देश की राजधानी दिल्ली में पानी की समस्या। केजरीवाल साहब चुनाव में आने से पहले घोषणा कर रहे थे, हर घर में 700 लीटर मुफ़्त पानी पहुँचाया जायेगा। लेकिन तमाम वायदों की तरह केजरीवाल के इस वायदे में भी जनता को निराशा ही हासिल हुई है। आलम यह है कि दिल्ली के लोगों को पानी के लिए रातभर पहरा देना पड़ता है। उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के समयपुर बादली के पास में सूरज पार्क इलाक़े में लोग रात 3 बजे से ही पानी भरने के लिये उठे रहते है। यही हालात तमाम मज़दूर इलाक़ों का है। इसी के साथ शाहाबाद-डेरी इलाक़े में भी यही हाल है। लोगों को पानी की पर्याप्त आपूर्ति नहीं दी जा रही। आज भी लोगों को पानी के लिए पानी के टैंकर पर निर्भर रहना पड़ रहा है। इसी इलाक़े के आस-पास रहने वाली धनी व उच्च मध्यवर्ग की आबादी को यह दिक्कत नहीं आती। उनके पास पानी का कनेक्शन है, सुबह-शाम पानी आता है और उसके अलावा जब ज़रूरत होती है तो वह सबमर्सिबल मोटर के ज़रिये भूजल का दोहन कर लेते हैं।

एक तरफ़ एक दिन की बारिश में देश की राजधानी जलमग्न हो जाती है, दूसरी तरफ़ दिल्ली के मज़दूर इलाक़ों में लोग पीने के पानी को तरसते रहते हैं। दिल्ली जल बोर्ड जनसंख्या को समस्या बताकर अपना पल्ला झाड़ लेता है। दिल्ली में यमुना नदी ख़तरे के निशान के ऊपर बह रही होती है, लेकिन लोगों के लिए पानी की आपूर्ति नहीं होती।

दिल्ली में मुख्यतः तीन वॉटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट हैं : वज़ीराबाद, चन्द्रावल और ओखला। ये तीनों वॉटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट दिल्ली जल बोर्ड के अधीन संचालित हैं। जुलाई में ये तीनों ही प्लाण्ट बन्द पड़े थे, जिसके पीछे कारण बताया गया यमुना का जल स्तर बढ़ना। इन वॉटर ट्रीटमेंट प्लाण्ट से यमुना से पानी लेकर उसे साफ़ करके आगे सप्लाई किया जाता था, ऐसे में जुलाई में यमुना में बाढ़ जैसी स्थिति थी तो ये प्लाण्ट्स यमुना से पानी नहीं ले रहे थे जिसका कारण है कि बाढ़ के पानी में गाद, पत्ते और अन्य कचरा आ रहा था,जिसके कारण प्लाण्ट्स की मशीन काम नहीं कर रही थी। तकनोलॉजी इस समस्या का भी समाधान कर सकती है, लेकिन जब समस्या जनता की हो, तो समस्याओं के समाधान में पूँजीपतियों की नुमाइन्दगी करने वाली सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं होती।

राजधानी के बड़े हिस्से में पीने के पानी की आपूर्ति करने वाले वॉटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट्स में स्वच्छता की स्थिति दयनीय है। वज़ीराबाद बैराज के पीछे जलाशय के तालाब की सफाई में दिल्ली जल बोर्ड ने लापरवाही बरती है, जो वज़ीराबाद और चन्द्रावल जल उपचार संयन्त्रों को पानी की आपूर्ति करता है। इसके कारण दिल्ली में 9 लाख मिलियन गैलन से अधिक पानी बर्बाद हो गया क्योंकि तालाब से गाद नहीं निकाली गयी।

वॉटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट्स और तालाब क्षेत्र की गम्भीर उपेक्षा की गयी, जिसके परिणामस्वरूप पानी की भयंकर कमी हो रही है। साथ ही प्लाण्ट्स में कचरे से भरे जलाशय, ज़ंग लगी पाइपलाइनें, गाद से ढँके उपकरण और बिजली से चलने वाले पानी के पम्प इनकी ख़स्ताहालत बयान करते हैं।

2013 से गाद निकालने का ठेका होने के बावजूद, गाद नहीं निताली गयी, जिसके परिणामस्वरूप पिछले आठ वर्षों के दौरान तालाब की गहराई 4.26 मीटर से घटकर मात्र 0.42 मीटर रह गयी है। सितम्बर 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के एक स्थगन आदेश के कारण गाद निकालने का काम रोक दिया गया था और 2015 में स्थगन हटाये जाने के बाद इसे फिर से शुरू किया गया था। यहाँ यह रेखांकित करने योग्य है कि यहां 2013 से 2014 के बीच लगभग नौ महीनों में पाँच लाख क्यूबिक मीटर गाद हटायी गयी थी।

पानी की आपूर्ति पर भाजपा और आम आदमी पार्टी के नेता मन्त्रियों के बीच खूब ज़ुबानी जंग चल रही है। इन तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच भाजपा और आम आदमी पार्टी का चेहरा नंगा हो जाता है। उपराज्यपाल और जल मन्त्री दोनों अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़कर दिल्ली में पानी की कमी का कारण जनसंख्या और झुग्गी-बस्तियों के विस्तार होने को बता रहे हैं। ज़ाहिरा तौर पर, अपनी नाकामी छिपाने में लिये तू नंगा तू नंगा का खेल खेल रहे हैं और सारी समस्या का ठीकरा स्वयं मेहनतकश जनता के सिर फोड़ रहे हैं, जो दिल्ली में सबकुछ चलाती है और सबकुछ बनाती है और जिसकी मेहनत की लूट के दम पर यहाँ के धन्नासेठों, नेताओं-मन्त्रियों और नौकरशाहों की कोठियाँ चमक रही हैं। भाजपा और आम आदमी पार्टी जनता के लिये कितनी सवेंदनशील है ये साफ नज़र आता है।

केजरीवाल सरकार ने 700 लीटर मुफ़्त पानी देना का जो वायदा किया उसे केवल एक ख़ास वर्ग के लिए निभाया है। एक तरफ़ दिल्ली के मध्यम और उच्च-मध्यम वर्ग की सोसायटी में पानी की दिक्कत होने पर उसे तुरन्त प्रभाव से ठीक कर दिया जाता है। उनके कुत्ते और गाड़ी धोने के लिए भी पर्याप्त पानी सप्लाई किया जाता है। इसके विपरीत दिल्ली के मज़दूर इलाक़ों में पीने के पानी के लिये भी लम्बी कतारें देखने को मिलती हैं। मज़दूर आबादी सप्ताह भर के लिए पानी स्टोर करके रखती है। इस पानी की गुणवत्ता भी पीने लायक नहीं है। इन इलाक़ों में 350 से 450 टीडीएस के बीच पानी की सप्लाई होती है। लेकिन दिल्ली के मज़दूर इलाक़ों में पानी की समस्या के लिए कोई समाधान नहीं किया जाता। मज़दूर इलाक़ों में पानी को लेकर जनता के जुझारू आन्दोलन संगठित करने की आवश्यकता है और इस दिशा में प्रयास चल भी रहे हैं।

मज़दूर बिगुल, सितम्‍बर 2023


 

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