फ़िलिस्तीन के समर्थन में और हत्यारे इज़रायली ज़ायनवादियों के ख़िलाफ़ देशभर में विरोध प्रदर्शनों को कुचलने में लगी फ़ासीवादी मोदी सरकार

भारत

बीते 7 अक्टूबर की सुबह हमास के नेतृत्व में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध योद्धाओं द्वारा इज़रायल पर एक अभूतपूर्व हमला किया गया। निश्चय ही, सर्वहारा वर्ग के नज़रिये से हमास की विचारधारा का कतई समर्थन नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह हमला एक प्रकार से जेल तोड़ने जैसा था। गाज़ा को पिछले डेढ़ दशक से भी ज़्यादा समय से इज़रायल ने अपने हत्यारे ब्लॉकेड से एक जेल में तब्दील कर रखा है। कौमी दमन के शिकार फ़िलिस्तीन की जनता ने कभी हार नहीं मानी। गाज़ा उसके प्रतिरोध का प्रतीक बन चुका है। ऐसी स्थितियों में, जनता को उसके प्रतिरोध में जो नेतृत्व देने आगे आता है, वह उसके साथ चलती है, भले ही वह उससे विचारधारात्मक व राजनीतिक तौर पर अन्तर रखती हो। 7 अक्टूबर को गाज़ा की जनता ने जेल तोड़ी और औपनिवेशिक कब्ज़ा करने वाली ताक़त ज़ायनवादी इज़रायल पर हमला किया।

उसके बाद से इज़रायल द्वारा जारी नरसंहार में अब तक क़रीब 10,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं। ज़ाहिर है कि दुनिया भर के साम्राज्यवादी देशों ने विशेषकर पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों ने और पश्चिमी मीडिया ने इज़रायल पर हमले को “आतंकी हमला” बताकर उसकी निन्दा की है और इज़रायल के साथ एकजुटता ज़ाहिर की है। साथ ही, दुनिया भर के धुर दक्षिणपन्थी व फ़ासीवादी सत्ताधारियों ने भी इज़रायल के ज़ायनवादी उपनिवेशवाद के साथ एकजुटता जतायी है, मसलन, भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने। भारत का ऐसा स्टैण्ड भाजपा के सत्ता में आने के साथ ही हुआ है क्योंकि ज़ायनवादी नस्लवादियों की भारत के साम्प्रदायिक फ़ासीवादियों के साथ नैसर्गिक एकता बनती ही है।

वहीं इसके बरक्स पूरी दुनिया में फ़िलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं। अमेरिका, लंदन, जर्मनी से लेकर इण्डोनेशिया, फ्रांस और अन्य देशों की जनता फ़िलिस्तीन के समर्थन में उतर गयी है। लाखों-लाख लोग इन प्रदर्शनों में देखे जा सकते हैं। भारत में भी भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी, दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा, स्त्री मुक्ति लीग और अन्य संगठनों द्वारा फ़िलिस्तीन के समर्थन में और इज़रायल द्वारा किये जा रहे क़त्लेआम के खिलाफ़ देश भर में प्रदर्शन आयोजित किये गये। इसके तहत 13 अक्टूबर को देशव्यापी प्रदर्शन का आह्वान किया गया था।

ये प्रदर्शन दिल्ली, मुम्बई, पुणे, हैदराबाद, बनारस, विज़ाग, इलाहाबाद, पटना, चण्डीगढ़, हरियाणा में प्रदर्शन किये गये। 13 अक्टूबर को हुए इस देशव्यापी प्रदर्शन को रोकने के लिए मोदी सरकार ने एड़ी-चोटी तक का ज़ोर लगाया। प्रदर्शन से पहले ही भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी और अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं को हाउस अरेस्ट से लेकर डिटेन किया गया।

दिल्ली में शिवानी कौल, इलाहाबाद में प्रसेन और मुम्बई में अक्षय, बबन और धनंजय इन सभी साथियो को प्रदर्शन से ठीक पहले पुलिस द्वारा डिटेन या हाउस अरेस्ट कर लिया गया। इसके बावजूद निर्धारित जगहों पर प्रदर्शन किये गये। पर पुलिस ने इन प्रदर्शनों को भी तुरन्त समाप्त करवाने की कोशिश की और सभी लोगो के साथ मारपीट की गयी और उन्हें डिटेन कर लिया गया। दिल्ली, हैदराबाद, मुम्बई, बनारस, इलाहाबाद में प्रदर्शन स्थल से सभी लोगो को डिटेन कर लिया गया। 13 अक्टूबर को ही मुम्बई में आयोजित प्रदर्शन में साथी रुचिर और सुप्रीत को पुलिस द्वारा निर्मम तरीके से मारा-पीटा गया। इस दौरान रुचिर के सर पर गम्भीर चोटें आयी। इसके बाद दोनो साथियों को गिरफ़्तार कर लिया गया और 332 व 353 धारा लगायी गयी। पुलिस द्वारा पीटे जाने के सबूत होने के बावजूद दोनों साथियो को कोर्ट के आदेश पर हफ़्ते भर तक जेल में रखा गया। वहीं दिल्ली में दिशा छात्र संगठन की उपाध्यक्ष प्रियम्बदा, नौरीन, नौजवान भारत सभा के अध्यक्ष आशीष, तुषार, रिहान, शीर्षवो और अन्य साथियो को डिटेन कर मन्दिर मार्ग थाने में रखा गया। उत्तर प्रदेश में दिशा छात्र संगठन के अध्यक्ष अविनाश, अम्बरीश, धर्मराज और आकाश को भी डिटेन किया गया और एक दिन बाद छोड़ा गया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भी साथी अमित को प्रदर्शन के दौरान डिटेन किया गया। तेलंगाना में भार्गवी, हीना, सृजा, महिपाल, अनिता और आनन्द को डिटेन किया गया।

इसके बाद 9 नवम्बर को दिल्ली के इज़ारयल दूतावास पर भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी द्वारा दोबारा प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शन में इज़रायल के झण्डे जलाये गये और नेतन्याहू-बाइडेन का पुतला फूँका गया। यहाँ भी पुलिस ने सभी प्रदर्शनकारियों को डिटेन कर लिया और प्रदर्शन में मौजूद लोगो के साथ मारपीट की। मोदी सरकार का यह दमनकारी रवैया दर्शाता है कि ज़ायनवादियों और फ़ासीवादियों की कितनी प्रगाढ़ एकता है।

साथ ही यह बताते चले कि भारत इज़रायल के हथियारों का सबसे बड़ा ख़रीदार है। वहीं दोनो के खुफिया तन्त्र में भी काफ़ी समानता है। ज्ञात हो कि जासूसी उपकरण पेगासस भारत को देने वाला देश इज़रायल ही है। यह भी एक कारण है कि मोदी सरकार देश भर में जारी इज़रायल के प्रतिरोध से घबरायी हुई है, कि कहीं इससे उनके ज़ायनवादी दोस्त नाराज़ न हो जायें। वहीं फ़िलिस्तीन मसले पर इन्दिरा गाँधी के दौर तक भारत ने कम-से-कम औपचारिक तौर पर फ़िलिस्तीनी मुक्ति के लक्ष्य का समर्थन किया था और इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीनी ज़मीन पर औपनिवेशिक क़ब्ज़े को ग़लत माना था। 1970 के दशक से प्रमुख अरब देशों का फ़िलिस्तीन के मसले पर पश्चिमी साम्राज्यवाद के साथ समझौतापरस्त रुख़ अपनाने के साथ भारतीय शासक वर्ग का रवैया भी इस मसले पर ढीला होता गया और वह “शान्ति” की अपीलों और ‘दो राज्यों के समाधान’ की अपीलोंमें ज़्यादा तब्दील होने लगा। अभी भी औपचारिक तौर पर तो भारत फ़िलिस्तीन का समर्थन करता है, पर वह सिर्फ़ नाम के लिए ही है।

दुनिया के कुछ अन्य प्रतिक्रियावादी शासनों के विपरीत, भारत में अभी भी ज़ायनवादी इज़रायल के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन और बहिष्कार-विनिवेश-प्रतिबन्ध (बीडीएस, दुनिया भर में इज़रायल का आर्थिक बहिष्कार के लिए चलाया जा रहा आन्दोलन) आन्दोलन को प्रतिबन्धित करने के लिए कोई क़ानून नहीं है। इसके बावजूद फ़ासीवादी मोदी सरकार द्वारा सारी संवैधानिकता और वैधानिकता को ताक़ पर रखकर फ़िलिस्तीन के समर्थन में हो रहे प्रदर्शनों को कुचला गया। इससे यह सवाल उठता है कि जब भारत में फ़िलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों या बीडीएस अभियानों पर रोक लगाने वाला कोई क़ानून नहीं है, तो मोदी सरकार किस आधार पर इन कार्रवाइयों को अंजाम दे रही है? वास्तव में देशभर में ऐसे किसी भी विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए सीधे गृह मन्त्रालय द्वारा आदेश जारी किए जा रहे है। इसलिए मोदी सरकार अपने ज़ायनवादी इज़रायली दोस्तों के ख़िलाफ़ विरोध की आवाज़ों को दबाने के लिए हर तरह के दमनकारी उपायों का सहारा ले रही है।

दुनिया भर के उत्पीड़क और शासक हमेशा से यह सोचते रहे हैं कि वे असहमति की आवाज़ को दबा सकते हैं और उसका दमन कर सकते हैं। लेकिन सच तो यह है कि दमन से ही प्रतिरोध पैदा होता है। दुनिया भर में, करोड़ों लोग ज़ायनवादी इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़े के ख़िलाफ़, अपने शासक वर्गों के ख़िलाफ़ और अधिक मज़बूती से उठ रहे हैं और फ़िलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के साथ एकजुटता से खड़े हो रहे हैं। आने वाले दिनों में भी लड़ाई निश्चित रूप से और अधिक तेज़ी से जारी रहेगी क्योंकि न्याय नहीं है तो शान्ति कैसे हो सकती है!

 

मज़दूर बिगुल, नवम्‍बर 2023


 

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