ऐतिहासिक अन्याय, विश्वासघात और षड्यंत्र के ख़िलाफ़ जारी है फ़िलिस्तीनी जनता का संघर्ष!
एक दिन नदी से समुद्र तक, आज़ाद होगा फ़िलिस्तीन!!

लता

दरिन्दे नेतन्याहू की ख़ूनी सेना के ख़िलाफ़ गाज़ा और फ़िलिस्तीन की जनता पूरी बहादुरी से संघर्ष कर रही है। चारों तरफ़ फैले युद्ध, तबाही, बर्बादी और बम से उठते धूल-धुएँ और राख के बीच गाज़ा के जाँबाज़ बच्चे मुस्कुराते हुए दिख जाते हैं। अपने बचे खिलौनों और बॉल के साथ मलबे और तम्बुओं के बीच दौड़ते-भागते दिख जायेंगे ये बच्चे। इन्हीं जाँबाज़ बच्चों में से पैदा हुए लड़ाकू आज गाज़ा की आज़ादी के लिए जान क़ुर्बान कर रहे हैं। वे लड़ रहे हैं आत्मसम्मान के लिए, लड़ रहे हैं गरिमा का जीवन जीने के लिए, लड़ रहे हैं ऐतिहासिक अन्याय, फ़रेब, धोखेबाज़ी और विश्वासघात के ख़िलाफ़।

7 अक्टूबर 2023 को इन योद्धाओं ने गाज़ा की अपमानजनक, घुटनभरी इज़रायली घेरेबन्दी के ख़िलाफ एक ज़बर्दस्त प्रतिरोध किया जिसके जवाब में इज़रायल की सेटलर उपनिवेशवादी, नस्लवादी सत्ता ने फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ़ एक बर्बर हमलावर युद्ध की शुरुआत की। यह लेख लिखे जाने तक इस संघर्ष के 162 दिन हो चुके हैं। झूठे नेतायाहू के तमाम दावों के पलट फ़िलिस्तीनी योद्धा डटकर लड़ रहे हैं, युद्ध में इज़रायली सेना को धूल चटा रहे हैं। इज़रायल अपने मारे गये सैनिकों के बारे में लगातार झूठ बोल रहा है। सच्चाई यह है कि इज़रायल की बतायी जा रही संख्या से 4 या 5 गुना ज़्यादा इज़रायली सैनिक मारे जा चुके हैं। इज़रायल के दर्जनों टैंक, बख्तरबन्द वाहनों को गाज़ा के योद्धाओं ने ज़मींदोज़ कर दिया है। इज़रायल अपनी इस हार से बौखला कर गाज़ा की जनता का कत्लेआम कर रहा है। सिर्फ़ इसलिए कि वह गाज़ा के योद्धाओं से टकरा ही नहीं सकता। इज़रायल की सेना को दुनिया की सबसे डरपोक और कायर सेना के रूप में सारी दुनिया पहचान रही है। गाज़ा की जनता भी सालों की घेरेबन्दी को समाप्त करने के लिए कमर कसे है। 

यह युद्ध है, लेकिन एकतरफ़ा क्योंकि उपनिवेशवादी सेटलर इज़रायल की तरफ़ से यह नरसंहार है। यह नरसंहार है क्योंकि हमास को ख़त्म करने के नाम पर इज़रायली सेना आम जनता को निशाना बना रही है। इज़रायल स्कूलों, अस्पतालों यहाँ तक संयुक्त राष्ट्र केंद्रों पर हमले कर रहा है। इन जगहों पर हमले कर वह कहता है वह छुपे हमास के नेता को निशाना बना रहा है। लेकिन ऐसे हमलों के बाद आज तक किसी भी हमास के नेता को इज़रायल दिखा नहीं सका है। लेकिन इस नाम पर हज़ारों मासूम बच्चों की यह हत्या अब तक वह कर चुका है। हमास को जड़-मूल से समाप्त करने का प्रण लिए नेतन्याहू सरकार हमास को ख़त्म तो नहीं कर पा रही है लेकिन झल्लाहट में जनता में ख़ौफ़ पैदा करने के लिए अपनी पूरी सामरिक शक्ति गाज़ा के मासूम बच्चों, औरतों और बुज़ुर्गों के ख़िलाफ़ झोंक रही है। दुनिया भर के हुक्मरानों विशेषकर पश्चिमी देश और अमेरिका के हुक्मरानों के हाथ फ़िलिस्तीनी बच्चों, महिलाओं, बीमार-लाचार बुजुर्गों के ख़ून से रंगें हैं। ये हुक्मरान हत्यारे नेतन्याहू को धन, ख़ुफ़िया तंत्र, हथियार और यहाँ तक सेना से मदद कर रहे हैं। लेकिन इन्हीं देशों और दुनिया भर की जनता फ़िलिस्तीनी संघर्ष और गाज़ा पर हो रहे वहशी हमले के ख़िलाफ़ सड़कों पर लाखों की संख्या में उतर कर इन हुक्मरानों की नींद ज़रूर हराम कर रही है। 

हमारे देश में फिलिस्तीन के मसले को लेकर आम मेहनतकश लोगों में बहुत कम जानकारी है। लेकिन मौजूदा अभूतपूर्व नरसंहार ने सभी की आत्मा को झकझोरा है और भारतीय जनता का एक हिस्सा भी इस बात को समझ रहा है कि इज़रायल कोई देश, कोई राष्ट्र नहीं है, बल्कि पश्चिमी साम्राज्यवाद द्वारा फिलिस्तीनी जनता की जगह-ज़मीन छीनकर खड़ा किया गया एक सेटलर उपनिवेश है, जिसमें यूरोप, अमेरिका आदि से आपराधिक प्रवृत्ति के ज़ायनवादी नस्लवादी यहूदियों को बसाया गया है। स्वयं मध्य-पूर्व के यहूदियों के प्रति वे नस्लवादी हैं और पश्चिमी दुनिया के भी जनवादी, प्रगतिशील और सेक्युलर यहूदी इज़रायल में बसने की सोच के धुर विरोधी हैं और इज़रायल को नात्सी जर्मनी और हिटलर जितना ही नरसंहारक मानते हैं। हमारे देश में लोग ज़ायनवादी इज़रायल के साथ गलबँहियाँ करने वाली फ़ासीवादी मोदी सरकार के झूठ-फ़रेब से निकलकर इस सच्चाई को धीरे-धीरे समझ रहे हैं।

गाज़ा और वेस्ट बैंक की वर्तमान स्थिति (15 मार्च 2024)

कायर इज़रायली सेना बेगुनाह नागरिकों और बच्चों को निशाना बना रही है जो संयुक्त राष्ट्र के एक मात्र बचे मानवीय सहायता केंद्र पर भोजन और पानी के लिए एकत्र हो रहे हैं। युद्ध की वजह से गाज़ा के बाज़ार बन्द हैं, किसी भी तरह की मदद, राशन, दवाइयाँ, टेंट आदि पहुँचने के सारे रास्तों पर इज़रायल सख़्त घेरेबन्दी बनाये हुए है। लोग भूख-प्यास से परेशान हैं। मानवीय सहायता की क़तार में लगे लोगों पर हुए बुज़दिल इज़रायली हमलों में अभी तक लगभग 400 लोगों की जान जा चुकी है। हमलों के दौरान मौजूद लोगों का कहना है कि रक्तपिपासु इज़रायली सेना मानवीय सहायता की क़तार में लगे लोगों पर हेलीकॉप्टर, टैंक, ड्रोन आदि से हमले करती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार युद्ध के छठे महीने में गाज़ा की आधी आबादी से अधिक, लगभग 576,000 लोग भुखमरी के शिकार हैं। 

इस लेख के लिखे जाने तक 31,341 होगों की हत्या ज़ायनवादी फ़ासीवादी नेतन्याहू की सेना कर चुकी थी जिसमें 12,300 बच्चे, 8,400 औरतें शामिल है। घायलों की संख्या 73,134 है जिसमें 8,663 बच्चे, 6,327 औरतें हैं। 8000 से अधिक लोग लापता हैं जिसमें अधिकतर की मौत मलबों के नीचे दब कर होने की संभावना जताई जा रही है। लगातार इज़रायली बमबारी जारी रहने की वजह से मलबों के नीचे दबी लाशों को निकाल पाना असंभव है। वहीं वेस्ट बैंक में भी इज़रायल ने हमले बढ़ा दिये हैं। वहाँ अब तक 433 लोगों की हत्या हुई है जिसमें 116 बच्चे हैं और घायलों की संख्या 4,650 है।   

युद्ध शुरू होने के बाद इज़रायली सेना ने गाज़ा की जनता को धकेलते-धकेलते पहले ख़ान यूनुस और अब रफ़ा शहर में क़ैद कर दिया है। लेकिन उत्तरी गाज़ा में फिलिस्तीन के मुक्तियोद्धा अभी भी इज़रायली सेना को लगातार धूल चटा रहे हैं। युद्ध के पहले रफ़ा की आबादी तीन लाख थी लेकिन अभी यहाँ 14 लाख लोग रह रहे हैं। ये लोग सड़कों पर टेंट या खुले में रहने को मजबूर हैं। आधी आबादी एक समय भोजन कर रही है और कइयों को वह भी नहीं मिल रहा। युद्ध के अलावा गाज़ा में भुखमरी मौत का मुख्य कारण बनती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार गाज़ा अकाल की कगार पर खड़ा है। 

अब इज़रायल ने रफ़ा में भी ज़मीनी हमले का ऐलान कर दिया है। नस्लवादी इज़रायली राज्य गाज़ा की जनता को समाप्त करना चाहता है इसलिए मासूम बच्चों और औरतों को सीधा निशाना बनाने के अलावा गाज़ा में भोजन-पानी के लिए परेशान लोगों के साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेल रहा है। नित नये-नये “सुरक्षित-ज़ोन” का ऐलान करता है। पर्चों में इन “ज़ोन” का नाम घोषित कर बँटवाता है और फिर ऑनलाइन “ज़ोन” बदल देता है। गाज़ा में न बिजली सही ढंग से आ रही है और न इंटरनेट ऐसे में कब कोई क्षेत्र असुरक्षित हो जाता है लोगों को पता नहीं चलता। कोई भी स्पष्ट सूचना नहीं होती। लेकिन इज़रायली सेना को सब पता होता है। अधिक से अधिक लोगों को निशाना बनाने के लिए मक्कार इज़रायली सेना जानबूझ कर सुरक्षा क्षेत्र बदल देती है। इसतरह का घृणित कुकृत्य उसके घोर मानवद्रोही और परपीड़क चरित्र को दर्शाता है। 

फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (पीएलओ) का विश्वासघात 

जिस तरह विश्व के सामने अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी के हुक्मरानों के मानवद्रोही और रक्तपिपासु चेहरे सामने आ रहे हैं उसी तरह पैलिस्टीनिअन अथॉरिटी फ़िलिस्तीनी (पीएलओ) जनता के सामने हर रोज़ और बेनक़ाब होती जा रही है। किस प्रकार वह न केवल वेस्ट बैंक में प्रतिरोध का दमन करने में इज़रायल की मदद कर रही है बल्कि गाज़ा में भी हमास के ख़िलाफ़ कार्रवाई में लिप्त है, इसे फिलिस्तीनी जनता नफ़रत के साथ देख और समझ रही है। समाचार चैनल अल जज़ीरा के अनुसार पीएलओ के खुफ़िया तंत्र प्रमुख माजीद फ़राज़ ने एक साक्षात्कार में खुले तौर पर इज़रायल के साथ मिल कर काम करने की बात कही है। फ़राज़ ने कहा कि उसके नेतृत्व वाले सुरक्षा तंत्र ने इज़रायल के ख़िलाफ़ होने वाले कम से कम 200 हिंसक हमलों को रोका है और इन हमलों को करने वाले 100 से अधिक फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार किया है। शायद महमूद अब्बास के बाद अगले राष्ट्रपति बनने की चाहत में फ़राज़ द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इज़रायल समर्थक देशों को खुश करने के मक़सद से कही गई है। लेकिन यह बात पीएलओ के इज़रायल समर्थक घृणित चरित्र को बेनक़ाब करती है। विज्ञान बताता है कोई भी चीज़ अपनी जगह रुकती नहीं है ओसलो एकॉर्ड के समझौते से शुरू हुआ विश्वासघात पीएलओ को पतन के गर्त में गहरे डुबोता जा रहा है और आज वह पूरी तरह इज़रायल की गोद में जा बैठा है। वेस्ट बैंक में भी हमास के तेज़ी से बढ़ते प्रभाव की वजह पीएलओ की बड़ती ग़द्दारी है। साफ़ दिख रहा है कि 1980 तक सेक्युलर और प्रगतिशील पीएलओ अपनी ग़द्दारी की वजह से हमास के लिए जगह बना रहा है। वेस्ट बैंक में भी गाज़ा के समर्थन में हो रहे प्रतिरोध प्रदर्शनों में नौजवान हमास के झण्डे ले कर सड़कों पर उतर रहे हैं। ज़ाहिर है, मुक्ति के लिए तड़प रही जनता हमेशा उस ताक़त के साथ खड़ी होगी जो गुलाम बनाने वाली औपनिवेशिक ताक़त के ख़िलाफ़ हथियारबन्द तरीके से और समझौताविहीन तरीके से लड़ने को तैयार हो।

इज़रायल और हमास के बीच युद्ध विराम वार्ता 

इज़रायल के ख़िलाफ़ प्रतिरोध युद्ध लड़ने वाले हिज़बुल्ला, हूती व अन्य ताकतों ने स्पष्ट कर दिया है कि गाज़ा में युद्ध विराम जब तक नहीं हो जाता उनकी लड़ाई जारी रहेगी। उनकी तरफ़ से भी समझौता हमास ही करेगा। वहीं क़तर, मिस्र और अमेरिका युद्ध विराम वार्ता का प्रयास कर रहे हैं। अरब विश्व की जनता अपने हुक्मरानों पर गाज़ा के पक्ष में खड़े होने का सशक्त दवाब बना रही है। वहीं अमेरिका में हो रहे विशाल विरोध प्रदर्शन बाइडेन के दुबारा राष्ट्रपति चुने जाने की उम्मीद के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहे हैं। अपनी-अपनी मजबूरियों को देखते हुए इन्हें इज़रायल पर युद्ध विराम वार्ता के लिए दबाव बनाना पड़ रहा है। अमेरिका के युद्ध विराम वार्ता प्रयासों पर हम आगे लिखेंगे पहले इस वार्ता पर चर्चा कर लेते हैं। इज़रायल इस बात को समझता है कि उसका अस्तित्व मध्य-पूर्व के देशों में पश्चिमी साम्राज्यवाद के लिए ज़रूरी है। इसलिए इस समय वह अमेरिका साम्राज्यवादियों और यूरोपीय साम्राज्यवादियों की भी पूरी तरह से नहीं सुन रहा है। वह जानता है कि ये पश्चिमी साम्राज्यवादी इज़रायल को हथियारों की सप्लाई जारी रखेंगे क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प फिलहाल नहीं है। लेकिन हर चीज़ की एक सीमा होती है। यदि पश्चिमी सामा्रज्यवाद को इज़रायल से होने वाले फ़ायदे की तुलना में इज़रायली ज़ायनवाद ज़्यादा नुकसान पहुँचाता दिखेगा, तो यह समर्थन कम भी होता जा सकता है।

फिलहाल, अमेरिका की मजबूरी और क़तर-मिस्र की सत्ताओं के उनके अपने कारणों से अमेरिकी साम्राज्यवाद का पिछलग्गू होने की सच्चाई को भाँपते हुए अभी इज़रायल अपनी शर्तों पर अड़ गया है। उसे लग रहा है कि अभी इन देशों के माध्यम से वह हमास पर इज़रायल की शर्तों को मनाने के लिए दबाव बना सकता है। इज़रायल शर्त रख रहा है कि वह छः सप्ताह तक युद्ध को विराम देगा बदले में हमास सारे इज़रायली बंधकों को रिहा करे। हमास इस शर्त से साफ़ इंकार कर रहा है। हमास का कहना है कि एक बार बंधकों के रिहा होने के बाद इज़रायल अपना हमला जारी कर देगा। नेतन्याहू के वर्तमान रवैये को देखते हुए इसी की सम्भावना है।  

15 मार्च तक की हालिया जानकारी के अनुसार क़ाहिरा में हो रही वार्ता का हिस्सा इज़रायल नहीं बना लेकिन क़तर व मिस्र उसके संपर्क में हैं। हमास के अधिकारी वार्ता में शामिल हैं और उनका कहना है कि इज़रायल वार्ता में शामिल हो या नहीं उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता वे अपनी अवस्थिति स्पष्ट करने आये हैं। हमास के नेता इस्माइल हानिये ने पहले भी शर्त रखी है कि हमास की माँग है स्थाई तौर पर पूर्ण युद्ध विराम और इज़रायली बंधकों के बदले जेल में क़ैद फ़िलिस्तीनियों को रिहा करे। उनकी यह भी शर्त है कि इज़रायल पूरे गाज़ा पट्टी से अपनी सेना वापस बुला ले ताकि उत्तर गाज़ा के सभी लोग घर वापस लौट सकें।   

अभी इस समझौता वार्ता में कोई ठोस निर्णय होता नज़र नहीं आ रहा है। लेकिन यह निश्चित है कि अमेरिका इज़रायल पर वार्ता के लिए दबाव बनाएगा।  

गाज़ा नरसंहार और जो बाइडेन का चुनाव प्रचार 

इज़रायल को पालने-पोसने का काम अमेरिका करता है। मध्य-पूर्व में अपनी भूराजनीतिक फ़ायदों को देखते हुए ब्रिटेन के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवाद ने इज़रायल को अपने सैन्य चेक-पोस्ट की तरह विकसित किया है और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के दौर में पश्चिमी साम्राज्यवाद का मुखिया बनने के बाद मुख्य तौर पर अमेरिका अपने साम्राज्यवादी मंसूबों के लिए उसका इस्तेमाल करता रहा है। आज यह अमेरिका का बिगड़ैल बच्चा तबाही मचा रहा है। अमेरिका और यूरोपीय देश इसके नख़रे उठाते हैं।

सात अक्टूबर गाज़ा में युद्ध की शुरुआत के बाद विश्व के कोने-कोने में फ़िलिस्तीन में हो रहे नरसंहार के ख़िलाफ़ हज़ारों-लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरे हैं। अमेरिका के अलग अलग शहरों में बड़े-बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित किये जा रहे हैं। अमेरिका की जनता जानती है कि हर साल 3.8 अरब डॉलर इज़रायल को सैन्य सहायता के तौर पर मिलता है और इस वर्ष बाइडेन सरकार ने 14.1 अरब डॉलर का अतिरिक्त सहयोग इज़रायल को देना तय किया है। स्पष्ट तौर पर गाज़ा में मर रहे मासूम बच्चों और असहाय नागरिकों के खून से अमेरिकी सरकार के हाथ रंगे हैं। नवम्बर महीने में हज़ारों-हज़ार की संख्या में प्रदर्शनकारियों ने बाइडेन सरकार के विरोध में अमेरिका के “वाल स्ट्रीट” में नारे लगायें। एक नारा जो सबसे अधिक लगा है,“अमेरिका पैसे देता है, इज़रायल बम गिरता है, बताओ आज कितने बच्चों की हत्या की तुमने”। आम जनता की शक्ति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि बाइडेन सरकार मजबूर है कि वह दिखाये कि वह गाज़ा के लिए भी कुछ कर रही है।

बाइडेन सरकार के ऊपर अमेरिकी सैनिक, आरोन बशनेल द्वारा 25 फ़रवरी को इज़रायली दूतावास के सामने फ़िलिस्तीन के समर्थन में आत्मदाह करने की वजह से दबाव और बढ़ गया है। बशनेल के आत्मदाह ने युद्ध का एक और पहलू उजागर किया है। बाइडेन सरकार अभी तक दावा कर रही थी कि अमेरिकी सैनिक गाज़ा युद्ध में शामिल नहीं है। लेकिन बशनेल के संदेश से साफ़ ज़ाहिर हो रहा है कि अमेरिकी सैनिक गाज़ा युद्ध में शामिल है। इससे बाइडेन सरकार अमेरिकी जनता के सामने और नंगी हो गई है। मतलब सिर्फ़़ पैसों और हथियार नहीं बल्कि अमेरिकी सेना भी गाज़ा के मासूमों की हत्या में शामिल है। 

इन आरोपों के बीच बाइडेन सरकार चुनावों के पहले अपनी छवि सुधारने के प्रयास में लगी है। युद्ध विराम वार्ता में शामिल होने के लिए इज़रायल पर दबाव बना रही है। साथ में गाज़ा में राहत समान पहुँचाने के लिए गाज़ा के तट पर गोदी बनाने की घोषणा भी की है। इसके लिए सामग्री ले कर अमेरिकी समुद्री जहाज़ निकल चुके हैं। लेकिन कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह गाज़ा में सैनिक उतारने और हथियार भेजने के मक़सद से बनायी गई योजना है। 

राहत सामग्री के लिए बन्दरगाह बनाने की क्या ज़रूरत है? इसे बनाने में 60 दिन लगेंगे लेकिन गाज़ा में अकाल की स्थिति देखते हुए राहत सामग्री के लिए यह बहुत देर हो चुकी होगी। वहीं यदि राहत सामग्री पहुँचाना ही  अमेरिका की मंशा है तो यह काम तो सड़क माध्यम से भी हो सकता है। जॉर्डन और मिस्र के बॉर्डर जिसे इज़रायल ने बन्द किया हुआ है उसे खोल कर राहत सामग्री आसानी से गाज़ा में पहुँचाई जा सकती है। अभी राहत सामग्री से भरे सैकड़ों ट्रक इन सीमा चेक पोस्ट पर खड़े हैं जिन्हें इज़रायल ने आने से रोका हुआ है। अगर सही में बाइडेन सरकार चाहती है राहत पहुँचाना तो ज़्यादा आसान है सड़क का रास्ता। 

कह सकते हैं शायद यह योजना लाल सागर में हूती लड़ाकुओं को झाँसा देने के लिए हो कि अमेरिकी जहाज़ इज़रायल के लिए हथियार नहीं बल्कि गाज़ा के लिए राहत सामग्री ले जा रहे हैं, या हो सकता है कि यह महज़ अमेरिकी जनता के ग़ुस्से को शान्त करने के लिए एक फ़ैन्स योजना का ऐलान है। जो भी हो अगर राहत की तत्काल ज़रूरत है और उसे तत्काल पहुँचाने का आसान तरीक़ा और रास्ता भी मौजूद है तो पहले बन्दरगाह 60 दिनों में बनाना और फिर राहत पहुँचना किसी भी तरह से गाज़ा की जनता के पक्ष में लिया गया निर्णय नहीं लग रहा है। 

हिज़बुल्ला, हूती व अन्य समूहों का इज़रायल के ख़िलाफ़ संघर्ष   

गाज़ा में चल रहे इज़रायली नरसंहार ने विश्व की आम जनता के बीच फ़िलिस्तीन के प्रति एकजुटता और समर्थन को बढ़ाया है और साथ ही अरब विश्व की एकजुटता को बेहद ऊँचे स्तर तक पहुँचा दिया है। सऊदी अरब, क़तर, बहरेन और अरब लीग के देशों की जनता जम कर सड़कों पर है। जनता के दबाव में ही क़तर और मिस्र लगातार युद्ध विराम के प्रयासों में मध्यस्तता कर रहे हैं। वहीं हिज़बुल्ला और हूती जैसी अन्य इस्लामिक कट्टरपंथी लेकिन जनता में समायी हुई शक्तियाँ गाज़ा की जनता के समर्थन में और इज़रायल के ख़िलाफ़ जम कर लड़ रही हैं। कह सकते हैं कि ये शक्तियाँ जनता में समायी हुई हैं, तो उसका मुख्य कारण विचारधारात्मक नहीं है, यानी समूची जनता का इस्लामिक कट्टरपंथी होना नहीं है, बल्कि पश्चिमी साम्राज्यवाद के विरुद्ध अरब जनता की अथाह नफ़रत है। ऐसे में, जो भी उन्हें पश्चिमी साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ता दिखता है, वह उसके साथ खड़ी होती है। बहरहाल, हमास, हिज़बुल्ला व हूतियों की ‘प्रतिरोध की धुरी’ इज़रायली सेना के होश उड़ाये हुए है। हम पहले भी अपने लेखों में लिखते रहे हैं कि आज अरब विश्व में प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और क्रान्तिकारी शक्तियों के बिखरे और कमज़ोर होने की स्थिति में जनता के सामने विकल्पहीनता की स्थिति है। लेकिन चाहे हिज़्बुल्लाह या हमास उनका चरित्र वही नहीं रह गया है जो इनकी स्थापना के दौरान अमेरिकी नियंत्रण में था। ये जनता के संघर्ष और जनता की महत्वाकांक्षाओं के साथ खड़े रहते हुए समय के साथ सीमित अर्थों में अपने को बदल भी रही हैं। आज इनके नेतृत्व में अरब देशों की जनता इज़रायल के ख़िलाफ़ लड़ रही है।

  हिज़बुल्ला ने 2006 में इज़रायल को करारी शिकस्त दी थी। गाज़ा पर हमले के प्रतिरोध में हिज़बुल्ला इज़रायल पर हमले जारी रखे है। हिज़बुल्लाह स्रोतों के अनुसार गाज़ा युद्ध के शुरुआती 120 दिनों में हिज़बुल्लाह ने लगातार सैन्य कार्रवाही जारी रखी है और गाज़ा में बढ़ते जनसंहार देखते हुए आने वाले दिनों में हमले की तीव्रता बढ़ाने की बात भी कर रहा है। जैसा कि हमने ऊपर बताया, इज़रायल अपने घायल या मृत सैनिकों की पूरी जानकारी नहीं दे रहा है। इस तरह ही हमास के हाथों गाज़ा में घायल या मृत इज़रायली सैनिकों की पूरी जानकारी भी इज़रायल नहीं देता है। वहाँ भी ज़मीनी लड़ाई में कई इज़रायली सैनिक घायल हो रहे हैं और मारे जा रहे हैं लेकिन इज़रायल की आधिकारिक संख्या मात्र 590 है। इज़रायली सेना बुरी तरह से चारों तरफ़ उलझ गई है। वेस्ट बैंक में भी प्रतिरोध जारी है। अल-अक्सा मस्जिद में प्रतिरोध के तौर पर नमाज़ अदा करने पहुँची 80,000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों की भारी भीड़ इज़रायली नियंत्रण से बाहर जा रही है। उधर लेबनान सीमा पर हिज़बुल्ला के साथ लड़ाई जारी है। हर रोज़ हिज़बुल्ला के रॉकेट इज़रायल पर दागे जा रहें हैं जिससे हज़ारों इज़रायली उपनिवेशवादी सेटलर बेघर और विस्थापित हो रहे हैं कइयों की मौत हुई है। लेकिन सही आँकड़े इज़रायल जारी नहीं कर रहा। वहीं हूतियों ने इज़रायल से सम्बन्धित समुद्री जहाज़ों पर लगातार हमला जारी रखा है। जर्मनी, फ़्रांस से लेकर अमेरिका के यमन पर बढ़ते हमलों के बावजूद हूतियों ने अपने लड़ाकुओं का नुक़सान झेल कर भी लाल सागर से गुज़रने वाले इन देशों और अन्य इज़रायल समर्थक देशों के समुद्री यातायात को भयंकर रूप से प्रभावित किया हुआ है। पिछले कुछ दिनों से हूतियों की अक्रामकता भी बढ़ी है। हिज़बुल्ला ने चेतावनी दी है कि यदि इज़रायल रफ़ा में ज़मीनी युद्ध शुरू करेगा तो वह लेबनान सीमा पर युद्ध और तीव्र करेगा। इसतरह रुस, चीन और तुर्की के हस्तक्षेप को देखते हुए संभावना है कि इज़रायल पूरे मध्य-पूर्व को किसी बड़े युद्ध में घसीट सकता है।   

 वैसे इज़रायल अमेरिका और पश्चिमी देशों के बूते शेर बनता है वरना अपने पर आ बने तो मुँह से आग उगलने वाले नेतन्याहू और उसके मंत्री व इज़रायल के तमाम ज़ायनवादिओं की ज़ुबान से एक चूँ तक नहीं निकलेगी। अमेरिका के पैसे, और पश्चिमी देशों के हथियारों के दम पर कूदने वाले कायर ज़ायनवादी इज़रायली दो-दो पासपोर्ट रखते हैं। ख़तरे की घंटी बजती नहीं है कि इज़रायल छोड़ कर भाग निकलते है । फ़िलिस्तीनी जनता लड़ रही है अपने हक़, अधिकार, मिट्टी, ज़मीन और ज़ैतून के बागों के लिए। इज़रायलियों ने इनपर क़ब्ज़ जमाया हुआ है। उन्हें भी पता है कि वे उत्पीड़क हैं इसलिए ख़ौफ़ज़दा रहते हैं।   

विश्व का मुख्य धारा मीडिया और जाँबाज़ फ़िलिस्तीनी पत्रकार

बीबीसी, रायटर जैसे बड़े मीडिया हाउस से लेकर तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्म खुल कर इज़रायल का पक्ष ले रहे हैं। फ़िलिस्तीन और गाज़ा से सम्बन्धित खबरें पूर्वाग्रहों से भरी व पक्षपातपूर्ण होती हैं। ब्रिटेन में एक सर्वे के किया गया जिसमें 7 मीडिया प्रसार हाउस और 28 मीडिया वेबसाइट के इज़रायल और फ़िलिस्तीन सम्बन्धी समाचारों, वीडियों और लेखों का विश्लेषण किया गया। विश्लेषण से पता चला कि इन सब में इज़रायल की बातों, अवस्थिति, राय, शिकायतों और तकलीफ़ों को तवज्जो दी गई जबकि फ़िलिस्तीन और गाज़ा के पक्ष को नज़रअंदाज़ किया गया। सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे फ़ेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम आदि तो गाज़ा और फ़िलिस्तीन के कंटेंट ग़ायब कर दे रहे हैं या उनकी रीच नहीं बनने दे रहे हैं। यूरोप और अमेरिका के हुक्मरानों के साथ-साथ उनके मीडिया हाउस भी इज़रायल की भाषा बोल रहे हैं। अपने अनुभव से हम मज़दूरों को समझना होगा कि किस तरह पूँजीवादी शासक हक़, न्याय और अधिकार की आवाज़ कुचलते हैं। जब हम भी सड़कों पर अपने हक़ और अधिकार के लिए उतरते हैं तो हमें भी बदनाम किया जाता है। कहा जाता है कि हम शान्ति-व्यवस्था बिगाड़ रहे हैं। सरकारें हम पर पुलिस की लाठियों से हमले करवाती है और हमें थानों में भर देती है। अरब लीग के देशों, यूरोप और अमेरिका के शासक फ़िलिस्तीन की जनता की आवाज़ दबाना चाहते हैं इसलिए इनकी ख़बर पहुँचने नहीं देते या इज़रायल के नज़रिये से खबर जनता के सामने रखते हैं। 

इतना ही नहीं इज़रायल गाज़ा और वेस्ट बैंक में फ़िलिस्तीन समर्थक पत्रकारों को ख़ास कर निशाना बनाया जा रहा है ताकि कोई ख़बर बाहर ना आ सके। अब तक 100 साहसी पत्रकारों को जिसमें अधिक फ़िलिस्तीनी पत्रकार है इज़रायली सेना ने मौत के घाट उतार दिये है। 

गाज़ा में चल रहा युद्ध ऐतिहासिक अन्याय, विश्वासघात और षड्यंत्र के ख़िलाफ़ है। गाज़ा की जनता अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। हम मज़दूरों मेहनतकशों को इस युद्ध में गाज़ा और फ़िलिस्तीन की जनता का साथ देना चाहिए। मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश जनता हमेशा शोषकों-उत्पीड़कों के ख़िलाफ़ होती है और अन्याय और शोषण के विरुद्ध लड़ रहे मज़दूरों-मेहनतकशों के साथ खड़ी होती है, चाहे वे दुनिया के किसी भी हिस्से में क्यों न लड़ रहे हों। फिलिस्तीन का मसला आज हर न्यायप्रिय व्यक्ति का मसला है। इसलिए भी क्योंकि फिलिस्तीन का सवाल आज साम्राज्यवाद के सबसे प्रमुख अन्तरविरोधों में से एक बना हुआ है और इसका विकास साम्राज्यवाद के संकट को और भी बढ़ाने वाला है।

मज़दूर बिगुल, मार्च 2024


 

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मज़दूरों के महान नेता लेनिन

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