करावल नगर (दिल्ली) के बादाम मज़दूरों की हड़ताल को मिली जीत!
विजय जुलूस निकाल कर मनाया संघर्ष की जीत का जश्न!

यूनियन संवाददाता

हर हड़ताल पूँजीपतियों को यह याद दिलाती है कि ये मज़दूर ही हैं जो असली मालिक हैंवो मज़दूर जो अधिक से अधिक जोरशोर से अपने अधिकारों की घोषणा कर रहे हैं। प्रत्येक हड़ताल मज़दूरों को यह याद दिलाती है कि उन्हें हताश होने की ज़रूरत नहीं है और वे अकेले नहीं हैं।” – लेनिन (हड़तालों के बारे में)

पूर्वी दिल्ली में करावल नगर के बादाम मज़दूरों ने 25 दिनों तक चली अपनी जुझारू हड़ताल के ज़रिये लेनिन की उपरोक्त बात को सही साबित किया और मालिकों को झुकने पर मज़बूर कर दिया। 26 मार्च 2024 का दिन दिल्ली के मज़दूर आन्दोलन के किसी भी विवरण में बादाम मज़दूरों की एक अहम जीत के नाम दर्ज़ होगा। अपनी उजरत बढ़वाने की माँग व बेहतर कार्यस्थितियों की माँग को लेकर हड़ताल पर बैठे बादाम मज़दूरों ने मालिकों के तमाम हथकण्डों को धराशायी किया। 25 दिनों की कामबन्दी से मालिकों को हुए नुकसान ने मज़दूरों को अपनी एकता और ताकत का एहसास दिलाया।

मालिकों को यूनियन के साथ जिन माँगों पर लिखित समझौता करना पड़ा वे निम्नलिखित हैं :

  1. दिनांक 23 मार्च, 2024 से बादाम की गिरी छँटाई का रेट 2 रुपये प्रति किलो से बढ़ाकर 3 रुपए प्रति किलो किया गया।
  2. हर माह की 1 से 7 तारीख़ तक मज़दूरी का भुगतान किया जायेगा।
  3. हड़ताल खत्म होने के बाद किसी भी मज़दूर को काम से नहीं निकाला जायेगा।
  4. बादाम छँटाई करने वाले मज़दूरों से छालना नहीं मरवाया जायेगा।
  5. मशीन से बादाम तुड़ाई का रेट प्रति कट्टा 5 रुपये से बढ़ाकर 7 रुपए किया गया।
  6. मज़दूरों का बकाया पैसा दिनांक 5 अप्रैल 2024 तक दे दिया जायेगा।
  7. महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग साफ़ टॉयलेट की व्यवस्था की जायेगी।
  8. सभी मज़दूरों को सुरक्षा के सामान (अच्छी क्वालिटी का मास्क आदि) मुहैया कराये जायेंगे।

यूनियन द्वारा 26 मार्च को किये गये जीत के ऐलान के साथ गोदामों के ताले खुलने शुरू हुए और हड़ताली मज़दूर काम पर वापस लौटे। जीत के जश्न के दिन लाल झण्डे फहराते, लाल रंग उड़ाते और जोशीले नारों-गीतों के साथ निकले मज़दूरों ने करावल नगर की गलियों को गुँजा दिया। विजय जुलूस में गलियों-मोहल्लों से लेकर अलग-अलग चौक-चौराहों पर अपनी सभा जमाते जा रहे बादाम मज़दूरों ने न सिर्फ़ अपने संघर्ष की कहानी लोगों तक पहुँचायी बल्कि इस अँधेरे वक़्त में लड़ने की ज़रूरत का भी एहसास कराया। हड़ताल के दौरान बादाम मज़दूरों ने कई चुनौतियों का सामना किया। 2008, 2009 और 2013 की हड़ताल के बाद 2024 में हुई यह हड़ताल सफल रही मगर कुछ मायनों में प्रयास और बेहतरीन किये जा सकते थे जिसपर हम आगे चर्चा करेंगे।

इस शानदार हड़ताल ने भाजपा-आरएसएस से जुड़े मालिकों और उनकी गुण्डा वाहिनियों का मुकाबला बख़ूबी किया। बादाम मज़दूरों के संघर्ष ने करावल नगर के मेहनतकशों के सामने तमाम पूँजीवादी पार्टियों और उनकी मालिकों के साथ गठजोड़ को सीधे तौर पर खोलकर रख दिया। भाजपा-आरएसएस की शह पर इस पूरे इलाके में चल रही गोदाम-मालिकों की गुण्डागर्दी को जहाँ एक तरफ़ मज़दूरों ने चुनौती दी वहीं दूसरी तरफ़ उनकी लूट को भी मानने से इन्कार कर दिया। उत्तर-पूर्वी दिल्ली के इस क्षेत्र में निगम पार्षद से लेकर विधायक,सांसद तक सभी भाजपा के हैं और इस पूरे मसले में मालिकों के साथ इनकी साँठ-गाँठ बिल्कुल साफ़ हो गयी।

हड़ताल के दौरान श्रम विभाग से लेकर पुलिस प्रशासन तक के मज़दूर-विरोधी चेहरे बादाम मज़दूरों के सामने और अधिक स्पष्ट हो गये। तमाम श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाकर ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से इस इलाके में चलाये जा रहे बादाम उद्योग के असल सरगना भाजपा और आरएसएस के लोग हैं जिनके संरक्षण में यहाँ मज़दूरों की लूट और शोषण का बोलबाला है। करावल नगर मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में जारी हड़ताल के जरिये मज़दूरों ने अपनी कई माँगों पर न सिर्फ़ मालिकों को झुकाया और उन्हें यूनियन के साथ लिखित समझौते के लिये मज़बूर किया बल्कि भाजपा-आरएसएस के गुण्डा गिरोह का भी डटकर मुक़ाबला किया।

हड़ताल के दौरान आयी विपरीत परिस्थितियों में मज़दूरों ने हार नहीं मानी और मजबूती से लड़ते रहे। काम बन्द होने के साथ ही मालिकों के समूह ने मज़दूरों को तरह-तरह की धमकियाँ देनी शुरू कीं और झूठी अफ़वाहों के दम पर हड़ताल को कमजोर करने और तोड़ने की साज़िशें रची। हड़ताल के शुरुआती दौर में ही मालिकों ने बहुत बेशर्मी के साथ पूरे इलाके में पोस्टर लगाकर पिछले 12 सालों से बिना किसी बढ़ोतरी के मिल रही 2 रुपये प्रति किलो की मज़दूरी को और कम करके 1 रुपये और 1.5 रुपये करने की गीदड़ भभकी दी। उसके बाद वे लगातार मज़दूरों को काम पर वापस न रखने और गोदामों को अन्य इलाके में ले जाने की धमकी देते रहे।

इन सभी खोखली धमकियों को जब मज़दूरों ने धता बता दिया तो मालिकों ने पुलिस, क़ानून और गुण्डों के ज़ोर पर हड़ताल को तुड़वाने के लिये कई तिकड़में लगायीं। मज़दूर महिलाओं पर कायराना हमले करवाये, लोगों से उनके किराये के घर ख़ाली कराने का दबाव बनाने जैसी घटिया हरकतों पर उतारू हो गये मगर इससे भी हड़ताल कमज़ोर नहीं हुई। अपने सभी हथकण्डों को नाकाम होता हुआ देख मालिकों ने मज़दूरों के बीच क्षेत्रीय बँटवारा करना चाहा और उन्हें यूपी और बिहारी के नाम पर बाँटने की कोशिश की। सिर्फ़ यही नहीं अपने दलालों के जरिये मालिकों ने मज़दूरों को यूनियन नेतृत्व से काटने की चालें चलनी शुरू कीं। मालिकों के इन सभी चालों को नाकाम करते हुए हर क़दम पर बादाम मज़दूरों का संघर्ष और तेज़ होता गया।

दूसरी तरफ़ हर बीतते दिन के साथ हड़ताली मज़दूरों के घर में पैदा होते आर्थिक संकट से निपटने के लिये हड़ताल कोष की स्थापना की गयी। राशन से लेकर दवा-इला की बुनियादी ज़रूरत के लिए हड़ताल स्थल पर सामूहिक रसोई और मेडिकल कैम्प का आयोजन किया गया। यह हड़ताल पूरी तरह जनसहयोग के दम पर चलायी गयी। करावल नगर के नागरिकों और दिल्ली के इन्साफ़पसन्द छात्रों, चिकित्सकों, शिक्षकों ने भी हड़ताल के लिए सहयोग किया और मजदूरों की माँगों के साथ खड़े हुए।

इस हड़ताल ने यह साबित कर दिया कि अगर मेहनतकशों की एकजुटता को सही दिशा में क्रान्तिकारी नेतृत्व के साथ बढ़ाया जाये तो मालिकों की सभी चालों को शिकस्त दी जा सकती है।

बादाम मज़दूरों की हड़ताल में उपरोक्त सकारात्मक पहलुओं  के अलावा कुछ कमियाँ भी रहीं जिसमें से एक प्रमुख कमी मज़दूरों के एक हिस्से को (मशीन चलाने वाले मज़दूर और मासिक वेतन पर काम कर रहे स्टाफ़) हड़ताल में सक्रिय भागीदार बनाने में कमी रही। इसका एक कारण पिछले लम्बे समय से यूनियन द्वारा मज़दूर आबादी में राजनीतिक प्रचार और शिक्षण-प्रशिक्षण की कमी थी। इस पर हड़ताल की विजय के बाद हुई बैठक में समाहार किया गया।

बादाम मज़दूरों की इस हड़ताल को दिल्ली की कई मज़दूर यूनियनों, छात्र व नौजवान संगठनों ने अपना समर्थन दिया। 23 मार्च (भगतसिंह,सुखदेव,राजगुरु के शहादत दिवस) के अवसर पर नौजवान भारत सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष ने हड़ताली मज़दूरों को समर्थन दिया। इण्डियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन (IFTU) के साथियों ने भी हड़ताल में भागीदारी करते हुए अपनी बात रखी। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) ने भी हड़ताल को बिना शर्त समर्थन दिया। हड़ताल के समापन के मौक़े पर भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) की तरफ़ से भारत ने कार्यक्रम में शामिल होकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि “आने वाले लोकसभा चुनाव में मज़दूरों-मेहनतकशों को अपनी पार्टी के बैनर तले एक होना होगा। आज भाजपा से लेकर आम आदमी पार्टी, कांग्रेस सभी इन्हीं धन्नासेठों, गोदाम मालिकों के लिए काम करने वाली पार्टियाँ है, हमें इन विकल्पों को ख़ारिज करते हुए मेहनतकशों के स्वतंत्र विकल्प को मज़बूत करना होगा। मेहनतकशों के संसाधनों के दम पर चलने वाली पार्टी ही उनका नेतृत्व कर सकती है और उनकी माँगों के लिए जुझारू तरीक़े से लड़ सकती है।”

26 मार्च को निकाले गये विजय जुलूस के बाद हुई सभा में न सिर्फ़ एक स्वतन्त्र और क्रान्तिकारी इलाक़ाई यूनियन को खड़ा करने की ज़रूरत पर बात हुई बल्कि मुनाफ़े पर टिकी इस व्यवस्था के ख़िलाफ़ संघर्ष तेज़ करने की भी बात हुई। जीत के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में क्रान्तिकारी गीतों की प्रस्तुति की गयी। सफ़दर हाशमी द्वारा लिखित नाटक ‘एक मेहनतकश औरत की कहानी’ का मंचन किया गया। एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर हड़ताल की सफलता को मज़दूरों ने मनाया और एक स्वर में यह ऐलान किया कि आने वाले दिनों में अपने संघर्ष को अगली मंज़िल में ले जाने की तैयारी करेंगे व साथ में मेहनतकशों की लूट पर टिकी इस व्यवस्था को चकनाचूर करने के लिए भी संघर्ष जारी रखेंगे।

हड़तालें मज़दूरों को एकजुट होना सिखाती हैं; वे उन्हें दिखाती हैं कि मज़दूर पूँजीपतियों के ख़िलाफ़ तभी संघर्ष कर सकते हैं जब वे एकजुट हों। हड़तालें मज़दूरों को फैक्ट्री मालिकों के पूरे वर्ग और पुलिससरकार के ख़िलाफ़ समूचे मज़दूर वर्ग के संघर्ष के बारे में सोचना सिखाती हैं। यही कारण है कि समाजवाद के विचारों को मानने वाले हड़तालों कोयुद्ध की पाठशालाकहते हैं। एक ऐसी पाठशाला जिसमें मज़दूर श्रम करने वाले सभी लोगों की सरकारी अधिकारियों के जुए से और पूँजी के जुए से मानवता की मुक्ति के लिये अपने दुश्मनों से युद्ध करना सीखते हैं।लेनिन

 

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2024


 

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