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आधी आबादी को शामिल किये बिना मानव मुक्ति की लड़ाई सफल नहीं हो सकती!!

पूँजी और पितृसत्ता की सत्ताएँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। पुरुष वर्चस्ववाद के सामन्ती मूल्यों को पूँजीवाद ने अपना लिया है। स्त्रियों की असमान स्थिति और पितृसत्ता का वह अपने लिए इस्तेमाल करता है। आधी आबादी को परिवर्तन के संघर्ष से अलग रखने के लिए भी ज़रूरी है कि पुरुषों और स्त्रियों के बीच समानता के मूल्यों और उसूलों को बढ़ावा न दिया जाये। पितृसत्ता के खिलाफ कोई भी लड़ाई पूँजीवाद विरोधी लड़ाई से अलग रहकर सफल नहीं हो सकती। दूसरी ओर यह भी सही है कि आधी आबादी की भागीदारी के बिना मज़दूर वर्ग भी अपनी मुक्ति की लड़ाई नहीं जीत सकता।

कविता – जो पैदा होंगी हमारे बाद / अज्ञात

ये मत कहो बहनो कि तुम कुछ नहीं कर सकतीं
आस्था की कमी अब और नहीं
हिचक अब और नहीं
आओ, पूछें अपने आप से
क्या चाहते हैं हम?

कविता – मेरे क्रोध की लपटें / एक फिलिस्‍तीनी स्‍त्री

तुमने मुझे बाँधा है
जकड़ा है ज़ंजीरों में
पर लपटें मेरे क्रोध की
धधकती हैं, लपकती हैं।
नहीं कोई आग इतनी तीखी
क्योंकि मेरी पीड़ा के ईंधन से
ये जीती हैं, पनपती हैं।