Tag Archives: मानव

दक्षिण चीन सागर की घटनाएँ और साम्राज्यवादी ताक़तों के बीच बढ़ता तनाव

अमेरिका के खिलाफ चीन को रूस में एक स्वाभाविक सहयोगी भी मिल गया है | यह दोनों मुल्क अब यह कोशिश कर रहे हैं कि विश्व में अमेरिका की आर्थिक ताकत के प्रभाव का कोई विकल्प पेश किया जाये | इसीलिए यह अपना खुद का कारोबार भी अमेरिकी डॉलर को छोड़ खुद की मुद्राओं में करने लगे हैं | इनकी अगुवाई में ब्रिक्स का बनना भी अमेरिकी अगुवाई वाले जी-7 जैसे गुटों को एक चुनौती ही थी | वहीं, एशिया में अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए चीन ने 2014 में ‘एशिया अवसंरचनात्मक निवेश बैंक’ की स्थापना की | चीन के बढ़ते इन क़दमों से अमेरिका के कान खड़े होना स्वाभाविक ही था | वहीं, यह भी परेशानी का एक सबब था कि यूरोप में अमेरिका के अब तक सहयोगी रहे ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश भी, इस आर्थिक संकट के चलते चीन के प्रति नरमी दिखाने लगे थे और उन्होंने भी इस बैंक की सदस्य्ता लेने का ऐलान कर दिया | संकट में बुरी तरह फंसे इन देशों की कंपनियों के लिए चीन एक बड़ी मंडी है और चीन खुद भी यूरोप में एक बड़ा निवेशक है | सो यह स्वाभाविक ही था कि यह देश चीन के प्रति नरमी दिखाते | चीन के राष्ट्रपति ज़ाई जिनपिंग के पिछले महीने इंग्लैण्ड दौरे के दौरान उनका जमकर स्वागत हुआ और इंग्लैण्ड और चीन के दरमियान बड़े समझौतों पर दस्तखत हुए। उसके तुरंत बाद जर्मनी और फ़्रांस के राजनेताओं ने भी अपने-अपने देश के पूँजीपतियों के बड़े काफिलों सहत चीन का दौरा किया और चीन-यूरोप के बढ़ते संबंधों को और पक्का किया |

अन्तर-साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा बना सीरिया

2016 में डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्‍ट्रपति पद की प्रमुख उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन और रिपब्लिकन पार्टी के ज़्यादातर नेता सीरिया के ऊपर “उड़ान प्रतिबंधित क्षेत्र” बनाने की तजवीज कर रहे हैं। लेकिन अमेरिकी सरकार के ज़्यादा सूझबूझ वाले राजनीतिज्ञ समझते हैं कि ऐसा करना ख़ुद अमेरिका के लिए घातक होगा क्योंकि “उड़ान प्रतिबंधित क्षेत्र” बनाने का मतलब होगा उन रूसी जहाज़ों को भी निशाना बनाना जो इस समय सीरिया में तैनात हैं, यानी रूस के साथ सीधे युद्ध में उलझना। लेकिन इस समय अमेरिका यह नहीं चाहता। फ़िलहाल वह सीरिया के तथाकथित ‘सेकुलर’ बागियों को मदद पहुँचाने तक ही सीमित रहना चाहता है। आर्थिक संकट की वजह से अमेरिका की राजनीतिक ताकत पर भी असर पड़ा है। इसलिए भी वह रूस के साथ सीधी टक्कर फ़िलहाल नहीं चाहता। अमेरिका की गिरती राजनीतिक ताकत का प्रत्यक्ष संकेत सयुंक्त राष्ट्र संघ की महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का भाषण था। ओबामा ने अपने पहले भाषण में रूस की ओर से आई.एस.आई.एस के अलावा तथाकथित “सेकुलर” बागियों को भी मारने के लिए उसकी ज़ोरदार निंदा की। पुतिन ने भी जब अपनी बारी में सीरिया मामले पर अमेरिका की नीति की आलोचना की तो ओबामा ने अपने दूसरे भाषण में रुख बदलते हुए रूस के साथ बातचीत के लिए तैयार होने की बात कही। ओबामा ने कहा कि सीरिया के साथ किसी भी समझौते की शर्त राष्‍ट्रपति बशर अल-असद का अपने पद से हटना है लेकिन वह तब तक राष्‍ट्रपति बना रह सकता है जब तक कि इस मसले का कोई समाधान नहीं निकल आता। साथ ही ओबामा ने यह भी कहा कि नयी बनने वाली सरकार में मौजूदा बाथ पार्टी के नुमाइंदे भी शामिल हो सकते हैं। सीरिया से किसी भी तरह का समझौता नहीं करने की पोजीशन से लेकर अब उसके नुमाइंदों को नयी सरकार में मौका देने की बात करना साफ़ तौर पर अमेरिका की गिरती साख को दर्शा रहा है।

दुनियाभर में अमानवीय शोषण-उत्पीड़न के शिकार हैं प्रवासी कामगार

असमान आर्थिक विकास की बदौलत देशों के अन्दर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र और एक देश से दूसरे देश की तरफ़ (आमतौर पर अविकसित से विकसित की तरफ़) मज़दूरों का प्रवास जारी रहता है। स्थानीय मज़दूरों की संघर्ष की ताक़त अधिक होने के कारण विश्वभर के लुटेरे पूँजीपति स्थानीय की बजाय प्रवासी मज़दूरों को काम पर रखना पसन्द करते हैं। एक तो इन प्रवासी मज़दूरों से कम तनख़्वाह पर काम लिया जाता है, दूसरा स्थानीय और प्रवासी के झगड़े खड़े करके मज़दूरों की एकता की राह में अड़चनें पैदा की जाती हैं।