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अदम्य बोल्शेविक – नताशा – एक संक्षिप्त जीवनी (दूसरी क़िश्त)

इस काम में भी नताशा लाजवाब थीं। उस समय वह बड़ी सभाओं में नहीं बोलती थीं – यह यूरिन का और मेरा दायित्व था, लेकिन वह कमेटी की जान और उसकी आत्मा थीं। बेहतरीन संगठनकर्ता, क्रान्ति के मकसद के प्रति पूरी तरह निष्ठावान, मुखर और स्पष्टवादी, एक असाधारण, उच्च विचारों वाली और नेक इंसान थीं। जो भी उनसे मिलता था उन्हें प्यार करने लगता था। वह अन्तोन की देखभाल करती थीं जो हम लोगों को हमेशा एक ऐसे बड़े बच्चे की तरह प्रतीत होता था जो मानो इस दुनिया के लिए न बना हो। वह हमारी देखभाल करती थीं, एक अध्‍ययन मण्डल चलाती थीं, और तकनीकी कार्यों का निर्देशन करती थीं, पूरे दिन सांगठनिक गतिविधियों में दौड़-भाग करती थीं और कभी शिकायत नहीं करती थीं। सर्वहारा की अन्तिम जीत में गहन आस्था की ज्वाला उनमें सदा जलती रहती थी। उनमें काम करने की ज़बरदस्त क्षमता थी और वह हमेशा ऊर्जा से लबरेज़ रहती थीं और इसी के साथ असाधारण शालीनता उनकी अनूठी पहचान थी।

अदम्य बोल्शेविक – नताशा – एक संक्षिप्त जीवनी (पहली किश्त)

रूस की अक्टूबर क्रान्ति के लिए मज़दूरों को संगठित, शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिए हज़ारों बोल्शेविक कार्यकर्ताओं ने बरसों तक बेहद कठिन हालात में, ज़बर्दस्त कुर्बानियों से भरा जीवन जीते हुए काम किया। उनमें बहुत बड़ी संख्या में महिला बोल्शेविक कार्यकर्ता भी थीं। ऐसी ही एक बोल्शेविक मज़दूर संगठनकर्ता थीं नताशा समोइलोवा जो आख़िरी साँस तक मज़दूरों के बीच काम करती रहीं। हम ‘बिगुल‘ के पाठकों के लिए उनकी एक संक्षिप्त जीवनी का धारावाहिक प्रकाशन कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि आम मज़दूरों और मज़दूर कार्यकर्ताओं को इससे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।