Tag Archives: गोरखपुर

मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन में मज़दूरों की बढ़ती भागीदारी से घबराये मालिकान घटिया हथकण्डों और तिकड़मों पर उतारू

जब से गोरखपुर के मज़दूरों के बीच ‘मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन’ से जुड़ने की लहर चली है तब से उनकी नींद और भी हराम हो गयी है। उन्हें लग रहा है कि अगर मज़दूर देश के पैमाने पर चल रहे इस आन्दोलन से जुड़ेंगे तो उनकी एकता तथा लड़ाकू क्षमता और भी बढ़ जायेगी तथा उनका मनमाना शोषण करना मुश्किल हो जायेगा। इसलिए वे तरह-तरह की घटिया चालें चलकर मज़दूरों को इस नयी मुहिम से जुड़ने से रोकने तथा 1 मई के प्रदर्शन के लिए दिल्ली जाने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं। इन कोशिशों में उन्हें गोरखपुर के स्थानीय सांसद की पूरी सरपरस्ती मिली हुई है। पाठकों को ध्यान होगा कि दो वर्ष पहले गोरखपुर में चले लम्बे मज़दूर आन्दोलन के दौरान सांसद योगी आदित्यनाथ खुलकर उद्योगपतियों के पक्ष में आ गये थे और आन्दोलन को बदनाम करने के लिए इसे ”माओवादियों द्वारा तथा चर्च के पैसे से चलने वाला” आन्दोलन घोषित कर दिया था।

गोरखपुर में मज़दूर नेताओं को फर्ज़ी आरोप में गिरफ्तार किया। थाने पर बात करने गए मज़दूरों पर बार-बार लाठीचार्ज, कई घायल

गोरखपुर के बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र में आज दोपहर पुलिस ने बिगुल मज़दूर दस्ता और टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन से जुडे़ दो मज़दूर नेताओं तपीश मैन्दोला और प्रमोद कुमार को झूठे आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इसके विरोध में थाने पर गए मज़दूरों पर बुरी तरह लाठीचार्ज किया गया और थानाध्‍यक्ष से बात करने गए दो अन्य मज़दूर नेताओं प्रशांत तथा राजू को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इसकी जानकारी मिलते ही कई कारखानों के मज़दूर जैसे ही थाने पर पहुंचे उन पर फिर से लाठीचार्ज किया गया। मालिकों के इशारे पर कुछ असामाजिक तत्वों ने पथराव करने की कोशिश की जिसे मज़दूरों ने नाकाम कर दिया। स्पष्ट है कि ये कार्रवाइयां मज़दूरों को उकसाने के लिए की जा रही हैं जिससे पुलिस को दमन का बहाना मिल सके। दरअसल, पिछले कुछ समय से मज़दूर ‘मांगपत्रक आन्दोलन-2011’ की तैयारी में गोरखपुर के मज़दूरों की भागीदारी और उत्साह देखकर गोरखपुर के उद्योगपति बौखलाए हुए हैं। उद्योगपतियों और स्थानीय सांसद की शह पर लगातार मज़दूरों को इस आन्दोलन के खिलाफ़ भड़काने की कोशिश की जा रही है और फर्जी नामों से बांटे जा रहे पर्चों-पोस्टरों के जरिए और ज़बानी तौर पर मज़दूरों और आम जनता के बीच यह झूठा प्रचार किया जा रहा है कि यह आन्दोलन माओवादियों द्वारा चलाया जा रहा है।

ग़द्दार भितरघातियों के विरुद्ध गोरखपुर के मज़दूरों का क़ामयाब संघर्ष

मज़दूर आन्दोलन में इस क़िस्म का भितरघात कोई नयी बात नहीं है। यह पहले भी होता रहा है और आगे भी इसकी सम्भावनाएँ बनी रहेंगी। दरअसल आम मज़दूरों का दब्बूपन और संकीर्ण स्वार्थों में डूबे रहना ऐसे ग़द्दारों के लिए अनुकूल हालात पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। कई मज़दूरों में यह मनोवृत्ति काम करती है कि संगठन और आन्दोलन का काम नेताओं की ज़िम्मेदारी है। कभी-कभी वे नेताओं को ऐसे मोहरों की तरह देखने लगते है जिन्हें लड़ाकर मालिकों से ज़्यादा से ज़्यादा सुविधाएँ हासिल की जा सकें। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अर्थव्यवस्था, राजनीति, इतिहास और मज़दूर आन्दोलन के अनुभवों की जानकारी न होने के कारण मज़दूरों को उन सम्बन्धों को समझने में कठिनाई होती होती है जो कि कारख़ानेदार, स्थानीय प्रशासन, नेताशाही तथा सरकारों के बीच परदे के पीछे काम कर रहे होते हैं। उन्हें लगता है कि यूनियन बना लेने मात्र से ही उनके सारे कष्ट मिट जायेंगे। लेकिन हक़ीकत इसके ठीक उलट है। जैसे ही मज़दूर ट्रेड यूनियन में क्रान्तिकारी ढंग से संगठित होने का शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करने लगते हैं वैसे ही कारख़ानेदार तथा सभी मज़दूर विरोधी ताक़तें सबसे पहले उन्हें पतित तथा भ्रष्ट करने का काम करने में जुट जाती हैं। असफल हो जाने पर वे अन्य तरीकों से उनके संगठन को तोड़ने की योजनाएँ बनाने लगते हैं। आज बरगदवा के मज़दूरों के साथ भी यही हो रहा है। भविष्य इस पर निर्भर है कि व्यापक मज़दूर आबादी अपनी मुक्ति की विचारधारा को किस हद तक समझ पाती है।­­­­­­­

संघर्ष की नयी राहें तलाशते बरगदवाँ के मज़दूर

वी. एन. डायर्स धागा मिल के मज़दूरों ने मैनेजमेण्ट द्वारा गाली-गलौज, मनमानी कार्यबन्दी और 5 अगुआ मज़दूरों को काम से निकाले जाने बावत दिये गये नोटिस के जवाब में 1 अगस्त सुबह 6 बजे से कारख़ाने पर कब्ज़ा कर लिया। रात 10बजे तक पूरी कम्पनी पर मज़दूरों का नियन्त्रण था। रात ही से सार्वजनिक भोजनालय शुरु कर दिया गया। सुबह तक कम्पनी पर कब्ज़े की ख़बर पूरे गाँव में फैल गयी। कई मज़दूरों ने अपने परिवारों को फैक्टरी में ही बुला लिया। महिलाओं और बच्चों के रहने के लिए फैक्टरी खाते में अलग से इन्तजामात किये जाने लगे। कौतूहलवश गाँव की महिलाएँ भी फैक्टरी देखने के लिए उमड़ पड़ीं। मज़दूरों ने उन्हें टोलियों में बाँटकर फैक्टरी दिखायी और धागा उत्पादन की पूरी प्रक्रिया से वाकिफ कराया। फैक्टरी के भीतर और बाहर हर जगह मज़दूर और आम लोगों का ताँता लगा हुआ था। विशालकाय मशीनों और काम की जटिलता से आश्चर्यचकित ग्रामीण एक ही बात कह रहे थे ‘हे भगवान! तुम लोग इतनी बड़ी-बड़ी मशीनें चलाते हो और पगार धेला भर पाते हो!!’

अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर पूँजी की सत्ता के ख़िलाफ लड़ने का संकल्प लिया मजदूरों ने

गोरखपुर में पिछले वर्ष महीनों चला मजदूर आन्दोलन कोई एकाकी घटना नहीं थी, बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में उठती मजदूर आन्दोलन की नयी लहर की शुरुआत थी। आन्दोलन के खत्म होने के बाद बहुत से मजदूर अलग-अलग कारख़ानों या इलाकों में भले ही बिखर गये हों, मजदूरों के संगठित होने की प्रक्रिया बिखरी नहीं बल्कि दिन-ब-दिन मजबूत होकर आगे बढ़ रही है। इस बार गोरखपुर में अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के आयोजन में भारी पैमाने पर मजदूरों की भागीदारी ने यह संकेत दे दिया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश का मजदूर अब अपने जानलेवा शोषण और बर्बर उत्पीड़न के ख़िलाफ जाग रहा है।
यूँ तो विभिन्न संशोधनवादी पार्टियों और यूनियनों की ओर से हर साल मजदूर दिवस मनाया जाता है लेकिन वह बस एक अनुष्ठान होकर रह गया है। मगर बिगुल मजदूर दस्ता की अगुवाई में इस बार गोरखपुर में मई दिवस मजदूरों की जुझारू राजनीतिक चेतना का प्रतीक बन गया।

गोरखपुर में अड़ियल मालिकों के ख़िलाफ मज़दूरों का संघर्ष जारी

अंकुर उद्योग लि, वी एन डायर्स धागा व कपड़ा मिल तथा जालानजी पालिटेक्स के मज़दूरों ने लड़कर काम के घण्टे आठ कराये थे लेकिन मालिकान फिर से 12 घण्टे काम कराने की जी-तोड कोशिश में लगे हैं। लगातार मौखिक दबाव बनाने के बाद अन्त में अंकुर के मालिकान ने एक नोटिस लगा दिया कि अब कम्पनी में 12 घण्टा काम होगा। इसके बाद मजदूरों ने टोलियाँ बनाकर रातभर कमरे-कमरे घूमकर प्रचार किया और तैयारी कर लिया कि काम आठ घण्टा ही करेंगे। इसके बाद अगले दिन सुबह वाली शिफ्ट 2 बजे के 10 मिनट पहले ही मशीनें बन्द कर बाहर आ गयी। बाहर खडी दूसरी शिफ्ट ने ताली बजाकर उसका स्वागत किया। दूसरी शिफ्ट को मालिक ने अन्दर नही लिया। फिर गेट पर ही एक मैराथन मीटिंग शाम तक हुई। मजदूरों ने यह तय किया कि रात 10 बजे नहीं आयेंगे। दो बजे ही आयेगे। अपने अधिकारों के प्रति वे जाग गये हैं इसका एहसास मालिक को करा दिया। अगले दिन दूसरी शिफ्ट नही चली। तीसरे दिन फिर काम के घण्टे आठ रहने की नोटिस लग गयी।

गोरखपुर मजदूर आंदोलन को आम नागरिकों का समर्थन

मज़दूर जब धरना-प्रदर्शन या वार्ता से लौटकर आते तो मोहल्ले में घुसते ही सब्ज़ी बेचने वाले से लेकर किराने के दुकानदारों, मकानमालिकों तक की उत्सुकता होती कि आज क्या हुआ? स्थानीय लोग मालिकों द्वारा कई सालों से मज़दूरों के शोषण और अत्याचार को हिकारत से देखते हुए कहते कि हम आपके साथ हैं। एक मकानमालिक ने कहा कि आप लोग लड़िये चाहे जितनी लम्बी लड़ाई हो मेरे किराये की चिंता मत करिये। इसी तरह से भगवानपुर मोहल्ले के एक मकान मालिक ने सभी किरायेदारों के चूल्हों में गैस भराकर कहा तुम बनाओ खाओ जब पैसा होगा तब देना।

सबसे ज्यादा जुझारू तेवर के साथ अन्त तक डटी रहीं स्त्री मज़दूर

गोरखपुर के मज़दूर आन्दोलन ने इतिहास के इस सबक को एक बार फिर साबित कर दिया कि आधी आबादी को साथ लिये बिना मज़दूर वर्ग की मुक्ति असम्भव है। इस आन्दोलन में स्त्री मज़दूरों ने बहादुराना संघर्ष किया और उनके जुझारू तेवर और एकजुटता ने मालिक-प्रशासन के गँठजोड़ को छठी का दूध याद दिला दिया। पवन बथवाल एंड कम्पनी को लगता था कि हमेशा चुपचाप सहन कर जाने वाली स्त्री मज़दूरों को दबाना-धमकाना आसान होगा, लेकिन इस आन्दोलन में उनके होश ठिकाने आ गये। हालत यह हो गई थी कि बथवाल स्त्री मज़दूरों को काम पर वापस नहीं लेने पर अड़ गया। उसे समझ आ गया था कि स्त्री मज़दूरों के जुझारू तेवर को दबाना सम्भव नहीं है।

देशभर से मज़दूर आन्दोलन के साथ खड़े हुए मज़दूर संगठन, नागरिक अधिकार कर्मी, बुद्धिजीवी और छात्र-नौजवान संगठन

गोरखपुर मज़दूर आन्दोलन के समर्थन और इसके दमन के विरोध में देशभर में जितने बड़े पैमाने पर मज़दूर संगठन,नागरिक अधिकार कर्मी, बुद्धिजीवी और छात्र-नौजवान संगठन आगे आये उससे सत्ताधारियों को अच्छी तरह समझ आ गया होगा कि ज़ोरो- ज़ुल्म के ख़िलाफ उठने वाले आवाज़ों की इस मुल्क में कमी नहीं है।

थैली की ताकत से सच्चाई को ढँकने की नाकाम कोशिश

एक बार फिर, खिसियानी बिल्ली उछल-उछलकर खम्भा नोच रही है। तथाकथित ‘उद्योग बचाओ समिति’ के स्वयंभू संयोजक पवन बथवाल ने थैली के ज़ोर से हमारे खिलाफ एक नया प्रचार-युद्ध छेड़ दिया है – झूठ-फरेब, अफवाहबाज़ी, और कुत्सा-प्रचार की नयी गालबजाऊ मुहिम शुरू हुई है। इसकी शुरुआत स्थानीय अख़बारों में छपे एक विज्ञापन से हुई है, जिसमें हमारे ऊपर कुछ नयी और कुछ पुरानी, तरह-तरह की तोहमतें लगाई गयी हैं। इनमें से कुछ घिनौने आरोपों के लिए हम पवन बथवाल को अदालत में भी घसीट सकते हैं, लेकिन उसके पहले हम इस फरेबी प्रचार की असलियत का खुलासा अवाम की अदालत में करना चाहते हैं।