अनिल सदा

अमिताभ बच्चन
(कवि अमिताभ बच्चन का इसी नाम के फिल्मी अभिनेता से कोई सम्बन्ध नहीं है)

मधुबनी की सुदूर छोटी सी दलित बस्ती के
भूमिहीन युवा खेत मज़दूर
अनिल सदा जी का जीवन ख़तरे में है
महामहिम प्रणव दा, सोनिया जी, बाबू नरेंद्र मोदी, युवा नेता राहुल गांधी जी, रामविलास जी,
रोते को हँसाने वाले लालू प्रसाद जी, नीतीश जी, सबके चहेते उदीयमान अरविंद केजरीवाल जी
हमारे नये मुख्यमंत्री जीतन मांझी जी
और हर खासोआम को सूचित किया जाता है कि
अभी बस आठ दिनों पहले
हमारे युवा मज़दूर गाँव से लुधियाने गये थे
उनके साथ मज़दूरों का पूरा काफिला रवाना हुआ था
ठेकेदार भी साथ था
बड़े अफसोस की बात है
कि लुधियाने में ट्रेन रुकते ही
उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गयी
उन्हें लगा जैसे उनके मुंह में धूल उड़ रही हो
जल्दी ही वे ख़ून की उल्टियाँ करने लगे
अपना नुकसान जोड़कर ठेकेदार बड़ा परेशान हुआ
जो अनिल जी की अनिच्छा के बावजूद
उन्हें लुधियाने ले आया था
दुख की इस महान घड़ी में
मुल्क के हर आदमी
और बिहार के हर सुसंस्कृत सुशिक्षित छोटे-बड़े ज़मीन मालिकों
के लिए ये जानना जरूरी है
कि युवा मज़दूर की हालत ज़्यादा बिगड़ने पर
ठेकेदार दुम दबाकर भाग निकला
और तब मज़दूरों ने फैसला किया
कि देश के गौरव अनिल सदा जी को क्यों न गाँव वापस भेज दिया जाये
क्योंकि लुधियाने में उनकी सेवा और इलाज का अच्छा इंतजाम नहीं हो सकता
मिलजुल कर रकम इकठ्ठी कर ली गयी
युवा मज़दूर गाँव वापस भेज दिये गये
मगर चिन्ताजनक बात ये है
कि गाँव में ज़मीन और शहर में मकान बनाकर रहने वाले भाइयो कि
अनिल सदा जी का इलाज अभी तक शुरू नहीं हो पाया है
उनकी निसहाय पत्नी का कहना है
यहाँ न दवा है न दाना
पहले से सर पर कर्ज का बोझ है
कोई उधार देने वाला नहीं
खेत पानी में डूबे हैं
गाँव में कोई काम नहीं है
अनिल जी मर गये तो मर ही गये
जीये बचे तो सधाएंगे कर्ज
देश की चिन्ता करने वाले
आप सब विद्वानों, विशेषज्ञों को
जो ज़मीन मालिक होने का अन्दरूनी गौरव छुपाते हैं
खेत बँटाई पर देते हैं
और किसान के रूप में दुनिया से विदा होने की इच्छा नहीं रखते
मालूम हो कि
हमारे युवा प्रवासी भूमिहीन मज़दूर अनिल सदा जी के तीन जीवित बच्चे हैं
चार मर चुके हैं
आप सज्जनों की जानकारी के लिए
उनके नाम
बड़ा रामसेवक था
मझला लक्ष्मण
सझला अजय कुमार
और चौथे का नाम न पत्नी को याद है
न अनिल जी इस हालत में हैं कि वे बता सकें
एक ही साल फागुन भादो अगहन चैत में वे चारों मरे थे
कालाअजार से
और बच्चों की मौत से एक साल पहले
अनिल जी के मज़दूर माँ पिता का देहान्त हुआ था
अनिल जी की पत्नी बताती हैं
कि उनके बदन में भी ख़ून नहीं है
ये राष्ट्रीय शोक की घड़ी है
बड़े दुख के साथ बताना पड़ रहा है कि
किसी तरह जीवित रहने
फिर भी मुल्क के कई राज्यों में जाकर
कृषि और निर्माण उद्योग में
भारी योगदान देने वाले
हमारे सम्मानित
मरणासन्न युवा मज़दूर अनिल सदा जी की
खोज-खबर लेने के लिए हमारे सांसदों को
फुरसत नहीं मिल पायी है
विधायकों को उनके गाँव लौट आने का पता नहीं है
जबकि अनिल सदा जी के गाँव
और आस-पास की ज़मीन से
उनके पटना वाले राजकीय निवास पर
बढ़िया अनाज हर साल पहुँचता है
यह बड़ा ही दुखद है
कि धरती के सच्चे लाल
अपने अनिल सदा जी के शोक सन्तप्त परिवार को
इस नाज़ुक घड़ी में दिलासा देने वाला कोई नहीं
आपको जानकर हैरत नहीं होगी कि
कि हमारे अनिल सदा जी
उन बहुत थोड़े कर्मठ और लगनशील लोगों में हैं
जो दस साल की उम्र से
बाल मज़दूर के रूप में
हमारी आपकी सेवा करते आ रहे हैं
उनका इलाज क़ायदे से जसलोक या अपोलो में होना चाहिए था
इससे राष्ट्र
और आप सब विद्वान राष्ट्रभक्तों का गौरव बढ़ता
उनका रोज़ स्वास्थ्य बुलेटिन जारी होना चाहिए था
इससे लोकतंत्र की शान बढ़ती
मगर इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि
उनकी अकाल मौत पर
जब क्रान्ति का बिगुल बज उठना चाहिए
मुनादी करके उन्हें किसी तरह बचाने की
सबसे गुज़ारिश की जा रही है
बहरहाल अनिल सदा जी मर कर भी अमर रहेंगे
उनका नाम उन करोड़ों प्रवासी मज़दूरों की तरह
इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा
जो कब पैदा लेते हैं
कब कहाँ शहीद हो जाते हैं
इसका पता हम सुशिक्षित ज़मीन मालिकों को
जो किसान के रूप में धरती से विदा होना नहीं चाहते
और प्रवासी मज़दूरों की तबाही में
अपनी कोई भूमिका नहीं देखते
पता ही नहीं चलता


 

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