एवन साइकिल के मजदूरों की हड़ताल
चुप्पी अब टूट रही है!

बिगुल प्रतिनिधि

लुधियाना। देश के बड़े औद्योगिक नगरों में से एक लुधियाना। यहां लाखों मजदूर गुलामों से भी बदतर जिन्दगी जीने को मजबूर हैं। भारतीय हुक्मरानों ने जब से भूमण्डलकरण, उदारीकरण की नीतियां अपनाई हैं, मजदूरों की जिन्दगी बदतर ही होती गई है। पूंजीपतियों की तरक्की मजदूरों की जिन्दगी को लगातार बदतर बनाने पर ही निर्भर है। पिछले डेढ़ दशक से यह प्रक्रिया पूरे देश में जारी है। लुधियाना में भी वही सब कुछ घटित हो रहा है जो देश के अन्य औद्योगिक नगरों में।

पूंजी की ताकतों को बेलगाम छोड़ दिये जाने से, देशी–विदेशी पूंजीपतियों में मंडी और मुनाफे के लिए होड़ तीखी हुई है। मंडी में अपने मुनाफे को वही पूंजीपति बरकरार रख पाते हैं, जिनका माल सस्ता या अच्छी क्वालिटी का हो। सस्ता माल तैयार करने का एकमात्र साधन है मजदूरों की तनख्वाहों में कटौती या तनख्वाहें जाम करना तथा मजदूरों को हासिल अन्य सुविधाओं का खत्म किया जाना। यही प्रक्रिया लुधियाना में पिछले कई सालों से जारी है। मजदूरों की तनख्वाहें कम हो रही हैं, काम का लोड़ बढ़ता जा रहा है, काम के घण्टे बढ़ाये जा रहे हैं, काम करवा कर मालिकों द्वारा मजदूरों को पैसा न देना, जरा भी चूं–चपड़ करने पर फैक्टरी गेट से बाहर कर देना, यहां आम बात है। मगर इस सबके बावजूद यहां मजदूरों द्वारा इस जुल्मो–सितम के खिलाफ कोई संघर्ष उठता नजर नहीं आ रहा था। इस पूरे औद्योगिक इलाके पर एक कब्रिस्तान जैसी चुप्पी छाई हुई दिखती थी। मगर पिछले कुछ महीनों से यहां की बड़ी फैक्टरियों में हड़तालों का जो सिलसिला चला है, वह इस चुप्पी के टूटने का संकेत है। मालिकों के शोषण–उत्पीड़न–अन्याय के खिलाफ मजदूरों के हितों में जो गुस्सा और नफरत जमा हो रही थी, वह अब विस्फोटक रूप में सामने आ रही है। कोई ढाई तीन महीने पहले हीरो साइकिल में जबर्दस्त हड़ताल हुई थी। उससे कुछ समय पहले ही भोगल इंडस्ट्रीज में भी हड़ताल हुई। एक और साइकिल कम्पनी की दो यूनिटों के मजदूर सड़कों पर हैं।

एवन साइकिल में बहुत देर से अन्दर ही अन्दर आग धधक रही थी, जिसने अब लपटों का रूप धारण कर लिया है। कुछ समय पहले जी.टी. रोड पर स्थित यूनिट दो के मजदूरों ने कुछ घंटों के लिए हड़ताल की थी, जिस पर मजदूरों को धमकाने के लिए मालिकों ने गुंडों की मदद ली थी। इस पर मजदूरों का गुस्सा और भी भड़क उठा था। हजारों मजबूत हाथ जब एकजुट हुए तो मालिकों के टुकड़ों पर पलने वाले गुंडों को भागने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। एक बार तो मजदूरों और मालिकों में समझौता हो गया और मजदूरों ने हड़ताल वापस ले ली, पर मजदूरों की मांगें वैसे ही लटकती रहीं। पिछले 15 जनवरी को मजदूरों ने काम बंद करके फिर से संघर्ष का बिगुल बजा दिया। मजदूरों की मुख्य मांग भी–पिछले लम्बे समय से मालिकों ने मजदूरों की तरक्की (तनख्वाह में बढ़ोत्तरी पर) जो रोक लगा रखी थी, उसको हटवाना। 16 जनवरी को हजारों मजदूरों ने लेबर दफ्तर पर जोरदार प्रदर्शन किया। मजदूरों के इस संघर्ष को एवन तथा हीरो की सभी यूनिटों के मजदूरों के अलावा, कंगारू इंडस्ट्रीज, भोगल इंडस्ट्रीज, खन्ना इंडस्ट्रीज तथा ग्रेटवे इंडस्ट्रीज के हजारों मजदूरों का समर्थन प्राप्त हुआ। 16 जनवरी के प्रदर्शन में इन तमाम फैक्टरियों के मजदूर भी शामिल हुए। लेबर दफ्तर पर प्रदर्शन के बाद नारे लगाते हुए हजारों मजदूर जनता नगर स्थित एवन साइकिल की यूनिट एक के सामने से गुजरे। जिससे उत्साहित होकर यूनिट एक के मजदूरों ने भी हड़ताल का ऐलान कर दिया और अपने अन्य संघर्षशील मजदूरों के कंधे से कंधा मिलाते हुए प्रदर्शन में शामिल हो गये। हजारों मजदूरों का यह प्रदर्शन अभी प्रताप चौक ही पहुंचा था कि मजदूरों को खबर मिली कि पीछे रह गये कुछ मजदूरों पर मालिकों के गुंडों ने हमला कर दिया है। इस घटना ने मजदूरों के गुस्से को और भी भड़का दिया। हजारों मजदूर फैक्टरी की तरफ भागे, मालिकों, गुण्डों तथा मैनेजरों की गाड़ियां मजदूरों के गुस्से का शिकार हुई। फैक्टरी में पहले से ही तैनात सैकड़ों पुलिस वाले गलियों में छुपकर अपनी जान बचाते हुए देखे गये।

यह रिपोर्ट लिखे जाने तक मजदूरों का संघर्ष जारी था। मजदूरों के इस जबर्दस्त संघर्ष को देखते हुए जिला प्रशासन भी अपने असली रंग में आ गया। मालिकों की पीठ थपथपाते हुए जिला प्रशासन ने 18 मार्च तक पूरे जिले में धारा 144 लागू कर दी, तथा हर तरह के धरने–प्रदर्शन पर पाबंदी लगा दी, मगर प्रशासन के ये कदम भी नाकाम साबित हो रहे हैं। 19 जनवरी को हजारों मजूदरों ने दरेसी मैदान में जबर्दस्त रैली की।

एक लम्बे समय की चुप्पी के बाद लुधियाना में मजदूरों का स्वत:स्फूर्त ढंग से इस तरह सड़कों पर आना आने वाले दिनों का संकेत है। वहीं इसका एक दुखद पहलू यह है कि यहां क्रान्तिकारी शक्तियां बेहद कमजोर स्थिति में हैं। इन मजदूर आंदोलनों में क्रान्तिकारी शक्तियों की गैर हाजिरी जैसी स्थिति अब भी बनी हुई है।

21 जनवरी 2004

बिगुल, फरवरी 2004


 

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