होण्डा मानेसर के ठेका मज़दूरों का संघर्ष जारी

– अनन्त वत्स

आईएमटी मानेसर स्थित होण्डा मोटरसाइकिल ऐण्‍ड स्कूटर्स इण्डिया के ठेका मज़दूरों का संघर्ष पिछले 5 नवम्बर से जारी है। मन्दी का हवाला देकर बिना किसी पूर्वसूचना के मज़दूरों की छँटनी किये जाने के विरोध में मज़दूर संघर्ष की राह पर हैं।

कम्पनी द्वारा पिछले लम्बे समय से ठेका मज़दूरों को बिना किसी पूर्वसूचना के काम से निकाला जा रहा था। संघर्षरत मज़दूर पिछले 5-7 साल से अधिक समय से कम्पनी में काम कर रहे थे। कम्पनी मज़दूरों को “रिलीविंग” के नाम पर छुट्टी पर भेजती है और दुबारा काम पर वापस नहीं बुलाती। ऑटोमोबाइल सेक्टर में मज़दूरों का 85 फ़ीसदी हिस्सा अस्थाई, ठेका मज़दूरों के तौर पर काम करता है। ये मज़दूर कारख़ाना प्रबन्धन की देखरेख में मुख्य उत्पादन पट्टी पर स्थाई प्रकृति का काम करते हैं। किन्तु, इनकी नियुक्ति व वेतन का भुगतान ठेकेदार के द्वारा किया जाता है। आमतौर पर मज़दूरों को ग्यारह महीने के लिए काम पर रखा जाता है। ग्यारह महीने बाद मज़दूर का ठेकेदार बदल दिया जाता है। ठेका बदलने के वक़्त मज़दूर को 3 से 15 दिनों के “रिलीविंग पीरियड” पर रखा जाता था, उसके बाद ठेकेदार बदलकर उनकी दुबारा ज्वाइनिंग करायी जाती थी। इस तरह से सालों से कम्पनी के लिए काम करने वाला मज़दूर काग़ज़ात में महज़ कुछ महीने से ही कार्यरत दिखाया जाता है। एक कम्पनी के अन्दर दो से तीन ठेका एजेंसियों के द्वारा मज़दूरों की भर्ती की जाती है। होण्डा कम्पनी सुकमा सन्स ऐण्ड एसोसिएट्स, कैसी इण्टरप्राइज़ेज़ और कमल इण्टरप्राइज़ेज़ नामक ठेका एजेंसियों के तले मज़दूरों की भर्ती करती है। रिलीविंग के वक़्त मज़दूरों की ठेका एजेंसी को बदल दिया जाता है यानी पिछले सत्र में जो मज़दूर कमल इण्टरप्राइज़ेज़ का मज़दूर था अगले सत्र में कैसी या सुकमा सन्स ऐण्ड एसोसिएट्स का मज़दूर हो जाता है। इस तरह सालों साल तक मुख्य उत्पादन पट्टी पर स्थाई प्रकृति का काम कर रहे मज़दूर महज़ कुछ माह से काम करने वाले ठेका मज़दूर के तौर पर दिखाये जाते हैं।

इस प्लाण्ट से पिछले कई महीने से सालों से काम कर रहे मज़दूरों को इसी तरीक़े से रिलीविंग कर घर बैठा दिया जा रहा है। मज़दूरों को झूठा आश्वासन दिया जाता है कि जब काम दुबारा गति पकड़ेगा तो उन्हें दुबारा वापस काम पर बुलाया जायेगा। इन ठेका मज़दूरों के ख़ून-पसीने को लूटकर कम्पनी अपनी तिजोरी भरती है, लेकिन उनके प्रति किसी भी तरह की ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है। और यह सब श्रम विभाग, सरकार, मीडिया की नाक के नीचे अंजाम दिया जाता है।

होण्डा में पिछले कई महीने से मज़दूरों की छँटनी की जा रही थी। दीवाली के पहले अगस्त माह में, ग्यारह महीने का समय पूरा होने से पहले ही, क़रीब 800 मज़दूरों को “रिलीविंग” के नाम पर अवकाश पर भेज दिया गया, जिन्हें दुबारा काम पर नहीं बुलाया गया। इसके विरोध में कारख़ाने में कार्यरत अन्य ठेका मज़दूरों ने स्वतःस्फूर्त ढंग से तीन दिनों तक लंच का बहिष्कार किया था। इसके पहले लम्बे अन्तराल के लिए छुट्टी पर भेजने के बाद कम्पनी कुछ मज़दूरों को दुबारा काम पर बुला लेती थी, तो वहीं कईयों का हमेशा के लिए दरवाज़ा बन्द कर दिया जाता था। मज़दूरों को सोशल मीडिया पोस्ट का हवाला देकर उन्हें काम से निकाल दिया जाता था। मज़दूरों को निकाले जाने पर किसी तरह का कोई मुआवज़ा नहीं दिया जाता था। काम से निकाले जाने से पहले मज़दूर का कारख़ाने के अन्दर कई बार कार्यस्थल बदला जाता। लम्बे अन्तराल के लिए छुट्टी पर भेजने तथा निकाले जाने से पहले कारख़ाने के अन्दर काम की जगह बदलने के कारण जहाँ कारख़ाना प्रबन्धन के लिए मज़दूरों की छँटनी करना आसान होता था, वहीं मज़दूरों के लिए संगठित होकर इसका प्रतिरोध करना कठिन हो जाता था। जहाँ मज़दूर उहापोह में रहते कि उन्हें दुबारा काम पर बुलाया जायेगा, वहीं उन्हें अन्य निकाले गये मज़दूरों के बारे में जानकारी नहीं होती थी।

इस तरह की जा रही छँटनी का मज़दूरों के ऊपर बुरा असर पड़ रहा है। कुछ महीने पहले अनिल कुमार नामक मज़दूर ने अपने हालात से परेशान होकर ख़ुदकुशी कर ली। कई अन्य मज़दूर अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे हैं। ठीक इसी तरह से मज़दूरों की छँटनी करने के मक़सद से 4 नवम्बर को कम्पनी ने एक नोटिस लगाया जिसमें कहा गया था कि ऑटोमोबाइल मार्केट की ख़राब स्थिति के मद्देनज़र कम्पनी का उत्पादन कम हो गया है जिसमें अगले कुछ समय के लिए सुधार के कोई आसार नहीं हैं। इसके चलते कम्पनी के दिशानिर्देशों के अनुसार नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी, फ़रवरी माह की रिलीविंग नवम्बर माह में ही की जा रही है और ब्रेक अवधि तीन माह की रहेगी। इस बाबत मज़दूरों ने जब प्रबन्धन से बातचीत करना चाहा तब प्रबन्धन ने उन्हें अगले रोज़ जनरल शिफ़्ट में, सुबह 8:30 बजे, आने के लिए कहा। जनरल शिफ़्ट में आये मज़दूरों को भारी पुलिस बल की मौजूदगी में कारख़ाने के अन्दर प्रवेश करने से रोक लिया गया। जब इसकी जानकारी अन्दर काम कर रहे, सुबह ए शिफ़्ट में आये मज़दूरों को हुई तो वे लंच टाइम में क़रीब 10:00 बजे से काम बन्द कर हड़ताल पर चले गये। बाहर के मज़दूर बाहर और अन्दर के मज़दूर अन्दर धरने पर बैठ गये। अन्दर बैठे ठेका मज़दूरों ने 14 दिनों तक कारख़ाना परिसर में अपना क़ब्ज़ा जमाये रखा जिसके कारण कारख़ाना प्रबन्धन उत्पादन जारी रखने में असमर्थ था। मज़दूरों के द्वारा किये गये इस अचानक हमले के लिए प्रबन्धन तैयार नहीं था। उसे उम्मीद नहीं थी कि मज़दूरों के एक हिस्से की छँटनी के विरोध में सारे ठेका मज़दूर संघर्ष के रास्ते पर चल पड़ेंगे।

आनन-फ़ानन में कम्पनी ने पहले तीन दिनों के लिए, उसके बाद 11 नवम्बर से अनिश्चितकाल के लिए छुट्टी करने की घोषणा की। ऐसे में काम पर जा रहे स्थाई मज़दूर भी बाहर आ गये। मज़दूर कारख़ाने के अन्दर बेहद अमानवीय परिस्थितियों का सामना करते हुए हौसले के साथ डटे रहे। कारख़ाना प्रबन्धन ने पहले कैण्टीन बन्द कर दिया, फिर मज़दूरों के दबाव में खाने का जो प्रबन्ध किया गया वह बेहद घटिया था। मज़दूरों को कच्चा दूध, बासी फल, बिस्किट आदि दिया जाने लगा। हद तो तब हो गयी जब कारख़ाना प्रबन्धन ने शौचालय तक बन्द कर दिया। मज़दूर कारख़ाने के अन्दर सीढ़ियों पर रात गुज़ार रहे थे। इन परिस्थितियों में कुछ मज़दूरों की सेहत बिगड़ी, किन्तु उनका हौसला नहीं टूटा। वहीं बाहर धरने पर बैठे मज़दूर भी कारख़ाने की चहारदीवारी के साथ सड़क पर दिन-रात ठण्ड में खुले आसमान के नीचे डटे रहे।

इसी बीच कम्पनी 16 मज़दूरों के ख़िलाफ़ कोर्ट से कारख़ाना परिसर ख़ाली करने का आदेश ले आयी। होण्डा के संघर्षरत ठेका मज़दूरों ने स्थाई मज़दूरों की यूनियन के नेतृत्व में, जोकि एटक से सम्बन्धित है, अपना संघर्ष आगे बढ़ाया। यूनियन और ट्रेड यूनियन काउण्सिल के आश्वासन पर मज़दूरों ने कारख़ाना परिसर ख़ाली कर दिया और कारख़ाने के पास ही एक मैदान को अपना धरनास्थल बना लिया। यूनियन नेतृत्व ने मज़दूरों से कहा कि कारख़ाना प्रबन्धन इसी शर्त पर बात करने के लिए तैयार है कि मज़दूर पहले कारख़ाना परिसर ख़ाली करें! जिसकी सम्भावना थी वही हुआ, प्रबन्धन आगे भी किसी तरह की बातचीत के लिए तैयार नहीं हुआ। होण्डा प्रबन्धन का अड़ियल रवैया जगज़ाहिर है। यूनियन प्रबन्धन के बीच होने वाले त्रैवार्षिक समझौते को प्रबन्धन पिछले डेढ़ साल से अधिक समय से लटकाये हुए है। होण्डा प्रबन्धन ने दुबारा उत्पादन शुरू करने के मक़सद से 25 नवम्बर से स्थाई मज़दूरों को ‘गुड कण्डक्ट अण्डरटेकिंग’ भरकर काम पर वापस बुला लिया। साथ ही यूनियन के पदाधिकारियों समेत छह मज़दूरों को निलम्बित कर दिया। अपने संघर्ष के दरमियान होण्डा मज़दूरों ने दो बार अपने धरनास्थल से लेकर डीसी कार्यालय तक रैली निकाली।

प्रबन्धन मज़दूरों की एकता तोड़ने का भरसक प्रयास कर रहा है। प्रबन्धन मज़दूरों के बीच अलग-अलग माध्यम से वहम फैलाने और उनकी एकता को कमज़ोर करने के मक़सद से कई तरह की बातें फैला रहा है। मज़दूरों को क्लियरेंस लेकर दुबारा नयी ज्वाइनिंग करने की बात कर रहा है। प्रबन्धन कभी नोटिस के ज़रिये प्रतिवर्ष रु. 15000 सालाना के अनुसार मुआवज़े के रूप में चुकता हिसाब देने की पेशकश कर रहा है तो कभी उसके बाद ठेकेदारों के ज़रिये फ़ोन पर प्रतिवर्ष रु. 35000 मुआवज़े की पेशकश कर रहा है। मज़दूरों के ऊपर दबाव बनाने के मक़सद से उनके घर पर पत्र भेज रहा है जिसमें मज़दूरों के घरवालों से कहा जा रहा है कि वे मज़दूरों को धरने से वापस घर बुला लें और ऑफ़िस में सम्पर्क कर अपना पूरा चुकता हिसाब प्राप्त करने को कहें! इन हास्यास्पद हथकण्डों व पेशकशों को मज़दूरों ने ठुकरा दिया है। मज़दूरों की मुख्य माँग है कि निकाले जा रहे मज़दूरों को काम पर लिया जाये और कॉण्ट्रैक्ट, कैज़ुअल आदि श्रेणियों को ख़त्म कर उन्हें स्थाई मज़दूर का दर्जा दिया जाये, या फिर न्यूनतम एक लाख रुपये सालाना की दर से उनका हिसाब किया जाये।

होण्डा मोटरसाइकिल ऐण्ड स्कूटर्स इण्डिया, मानेसर के संघर्षरत मज़दूर लम्बे समय से कम्पनी में कार्यरत हैं। बहुतों को तो यहाँ दस साल से भी ज़्यादा का अनुभव है। पहले हर साल 50 मज़दूरों को वरिष्ठता के आधार पर और 50 मज़दूरों को परीक्षा और अनुभव के आधार पर स्थाई किया जाता था। किन्तु परीक्षा पिछले चार साल से बन्द है और वरिष्ठता के आधार पर भी साल 2019 में एक भी मज़दूर को स्थाई नहीं किया गया। मज़दूरों ने अस्थाई मज़दूरों को स्थाई मज़दूर का दर्जा दिलाने का अधिकार भी संघर्ष लड़कर ही हासिल किया था।

होण्डा के जुझारू मज़दूरों के संघर्ष का अपना इतिहास रहा है। 2005 में मज़दूरों ने लड़कर आईएमटी मानेसर में मज़दूरों की पहली यूनियन बनायी थी। इसके लिए मज़दूरों ने कई तरह की परेशानियाँ झेलीं और लाठियाँ तक खाईं। होण्डा मज़दूरों के 2005 के संघर्ष ने कई कारख़ानों के मज़दूरों को यूनियन बनाने के अपने संवैधानिक अधिकार को इस्तेमाल करने की प्रेरणा दी थी। उस संघर्ष में जीत की मुख्य कुंजी स्थाई और अस्थाई मज़दूरों की आपसी एकता थी। किन्तु, आज की सच्चाई यह है स्थाई और अस्थाई मज़दूरों के वेतन के बीच कई गुना का अन्तर है। साथ ही उत्पादन का अधिकांश भार अस्थाई मज़दूरों के ऊपर आ गया है। होण्डा प्रबन्धन ने यह हथकण्डा किसी “नेक” भावना के तहत नहीं बल्कि “फूट डालो और राज करो” की नीति के तहत अपनाया है। कारख़ाना प्रबन्धन मज़दूरों की जुझारू एकता को कुन्द करने के मक़सद से स्थाई और अस्थाई मज़दूरों के बीच दीवार खड़ी करने का प्रयास करता है, उसके बाद बारी-बारी से मज़दूरों पर हमला करता है। आज पूरे ऑटोमोबाइल सेक्टर में मालिकान ठेका मज़दूरों के साथ-साथ स्थाई मज़दूरों के प्रति भी हमलावर है। कम्पनी हर कारख़ाने में यूनियन को कमज़ोर करने, स्थाई मज़दूरों की संख्या कम करने की ताक में लगी रहती है। आज होण्डा के मज़दूरों को फिर से अपनी एकजुटता स्थापित कर इस संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा।

आगे का रास्ता

ऑटोमोबाइल सेक्टर में पिछले कई महीने में हर जगह मज़दूरों की बेहिसाब छँटनी की जा रही है। हर कारख़ाने से मज़दूर निकाले जा रहे हैं, उनमें से कुछ संघर्ष कर रहे हैं तो कई छँटनी को नियति मानकर कहीं और काम की तलाश में लग जा रहे हैं। ऑटोमोबाइल सेक्टर में जारी मन्दी का सबसे ज़्यादा शिकार अस्थाई ठेका मज़दूर हैं। डेंसो, शिरॉकी टेक्निको, एनएसके स्टीयरिंग, कन्साई नेरॉलेक, आदि कई कारख़ाने हैं जहाँ से ठेका मज़दूरों को काम से निकाला जा रहा है। होण्डा के मज़दूरों का यह संघर्ष मूल रूप से ठेकेदारी प्रथा के ख़िलाफ़ है। इसलिए इस संघर्ष को ठेकेदारी प्रथा के जुए के नीचे पिस रहे तमाम मज़दूरों को अपने संघर्ष से जोड़ना होगा। इसे कारख़ाने की चौहद्दी से विस्तारित कर पूरे सेक्टर में फैलाना होगा। ठेकेदारी प्रथा के साथ-साथ हर कारख़ाने के मज़दूरों की अन्य समस्याएँ कमोबेश एक-सी हैं, मुद्दे, माँगें और सामने शत्रु भी एक है, इसलिए संघर्ष को भी एक हो जाने की ज़रूरत है। समझौता पत्रों और श्रम क़ानूनों के उल्लघंन के मुद्दे पूरी औद्योगिक पट्टी में बढ़ते जा रहे हैं। बावल की कन्साई नेरॉलेक पेंट्स, मानेसर की होण्डा मेटरसाइकल ऐण्ड स्कूटर इण्डिया, मुंजाल शोवा, नपीनो ऑटो, कपारो मरूति समेत गुड़गाँव की मुंजाल शोवा, आदि कम्पनियों के मुद्दे एक जैसे हैं। साथ ही आर्कोटेक बावल, रॉकमैन बावल, आरजीपी बिनौला, मेट्रोआर्टम सिधरावली आदि कम्पनियों में मज़दूरों के विवाद चल रहे हैं।

मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2019


 

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