1 मई की तैयारी के लिए दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में जमकर चला मज़दूर माँगपत्रक प्रचार अभियान

बिगुल संवाददाता 

मार्च और अप्रैल के महीनों में दिल्ली के अनेक औद्योगिक क्षेत्रों और उनसे लगी विभिन्न मज़दूर बस्तियों में मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन की प्रचार टोली ने मज़दूरों की व्यापक आबादी को इस आन्दोलन के बारे में बताने और इससे जोड़ने के लिए सघन अभियान चलाया। इस दौरान छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाओं, प्रभात फेरियों तथा घर-घर सम्पर्क के अलावा कई मज़दूर बस्तियों में बड़ी जनसभाएँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किये गये। अप्रैल के महीने में हुए विभिन्न कार्यक्रमों में मज़दूरों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं पर आधारित एक डॉक्यूमेण्‍ट्री फिल्म भी दिखायी गयी।

प्रेमनगर में मज़दूर दुर्घटनाओं पर फिल्‍म शो और जनसभा में बड़ी संख्‍या में मज़दूर जुटे

प्रेमनगर में मज़दूर दुर्घटनाओं पर फिल्‍म शो और जनसभा में बड़ी संख्‍या में मज़दूर जुटे

उत्तर पश्चिम दिल्ली में 17 मार्च  से 23 मार्च (भगतसिंह का शहादत दिवस) तक चलाया गया क्रान्तिकारी जागृति अभियान भी मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन पर ही केन्द्रित रहा और मज़दूरों का आह्नान किया गया कि शहीदों की क्रान्तिकारी विरासत से प्रेरणा लेकर वे अपने जीवन और समाज को बदलने के लिए आगे बढ़ें।

इस अभियान के तहत बादली रेलवे स्टेशन के पास, सूरजपार्क, और सेक्टर-27, रोहिणी की पुनर्वास बस्ती में तीन बड़ी जनसभाएँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गये। इनकी तैयारी के दौरान प्रचार टोली ने आसपास की बस्तियों में घर-घर जाकर मज़दूर माँगपत्रक के बारे में बताया, मज़दूरों से माँगपत्रक पर हस्ताक्षर कराये और आन्दोलन के लिए पैसे जुटाये। सभी कार्यक्रमों में आसपास की मज़दूर आबादी बड़ी संख्या में एकत्र हुई और बहुत से मज़दूरों ने उत्साहपूर्वक आन्दोलन से जुड़ने की इच्छा व्यक्त की।

इससे पहले मार्च महीने में प्रचार टोली ने बवाना, और होलम्बी कलाँ स्थित मेट्रो विहार की विशाल मज़दूर बस्तियों में कई दिनों तक रुककर प्रचार अभियान चलाया। इन दोनों बस्तियों में लगभग दो-दो लाख मज़दूर आबादी रहती है। तेजी से विकसित हो रहे बवाना औद्योगिक क्षेत्र तथा नरेला के भोरगढ़ औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों के बीच भी टोली ने बड़े पैमाने पर पर्चे बाँटे और माँगपत्रक पर हस्ताक्षर कराए।

दिल्ली के सभी औद्योगिक क्षेत्रों में मज़दूर बारह से चौदह घण्टे काम करते हैं इसलिए सुबह आठ-साढ़े आठ बजे से लेकर देर रात तक मज़दूर बस्तियाँ लगभग सुनसान रहती हैं। अधिकांश कारखानों में लंच के समय भी मज़दूर बाहर नहीं निकलते। ऐसे में मज़दूरों की व्यापक आबादी से सम्पर्क करना ही काफी कठिन काम होता है। प्रचार टोली के सदस्य सुबह-सुबह और देर रात तक मज़दूरों के कमरे-कमरे जाकर उनसे मिलते और बात करते थे।

अप्रैल में, दिल्ली के आनन्द पर्वत और रामा रोड औद्योगिक क्षेत्रों के बीच बसी प्रेम नगर, नेहरू नगर और बलजीत नगर की बड़ी मज़दूर बस्तियों में प्रचार अभियान चलाया गया तथा जनसभा और फिल्म शो आयोजित किया गया। अप्रैल में ही शाहबाद डेयरी की झुग्गी बस्तियों में स्त्री मज़दूरों के बीच प्रचार चलाया गया और क्षेत्र के मुख्य बाज़ार में जनसभा तथा फिल्म शो के माध्यम से मज़दूरों का 1 मई को जन्तर-मन्तर चलने का आह्नवान किया गया। राजा विहार और सूरजपार्क गड्ढा बस्ती में भी फिल्म शो तथा जनसभा आयोजित किये गये।

पूर्वी दिल्ली के करावल नगर और झिलमिल औद्योगिक क्षेत्र में भी इस बीच अनेक नुक्कड़ सभाएँ, प्रभात फेरियाँ और जनसभाएँ करके मज़दूरों से मई दिवस की 125वीं वर्षगाँठ पर संसद पर होने वाले प्रदर्शन में शामिल होने का आह्नान किया गया।

पंजाब में लुधियाना, मण्डी गोविन्दगढ़, चण्डीगढ़, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और लखनऊ में मज़दूर माँगपत्रक के समर्थन में प्रचार अभियान तेज़ कर दिया गया। इलाहाबाद, बलिया, जौनपुर और मऊ के कुछ क्षेत्रों में भी माँगपत्रक के पोस्टर तथा पर्चों के माध्यम से प्रचार किया गया।

मज़दूर माँगपत्रक आन्‍दोलन की प्रचार टोली के सदस्‍य एक मज़दूर बस्‍ती में प्रचार के लिए जाते हुए

मज़दूर माँगपत्रक आन्‍दोलन की प्रचार टोली के सदस्‍य एक मज़दूर बस्‍ती में प्रचार के लिए जाते हुए

मज़दूरों ने उत्साह के साथ प्रचार टोली की बातों को सुना, आन्दोलन के पर्चे लिये, कई मज़दूरों ने माँगपत्रक पुस्तिका खरीदी और इसके बारे में और जानने तथा इससे जुड़ने के लिए अपने नाम-पते-फोन नम्बर नोट कराये।

‘बिगुल’ के पिछले अंकों में प्रकाशित रिपोर्टों से पाठक जानते होंगे कि देश के विभिन्न हिस्सों में माँगपत्रक आन्दोलन 2011 क़ी शुरुआत की गयी है। इसमें भारत के मज़दूर वर्ग का एक व्यापक माँगपत्रक तैयार करते हुए भारत की सरकार से यह माँग की गयी है कि उसने मज़दूर वर्ग से जो-जो वायदे किये हैं उन्हें पूरा करे, श्रम क़ानूनों को लागू करे, नये श्रम क़ानून बनाये और पुराने पड़ चुके श्रम क़ानूनों को रद्द करे। इस माँगपत्रक में 26 श्रेणी की माँगें हैं जो आज के भारत के मज़दूर वर्ग की लगभग सभी प्रमुख आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं और साथ ही उसकी राजनीतिक माँगों को भी अभिव्यक्त करती हैं।

यह नयी पहल इस मायने में महत्वपूर्ण है कि मज़दूर अलग-अलग झण्डे-बैनर के तले नहीं बल्कि ‘मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन’ के एक ही साझा बैनर के तले अपनी माँगें रख रहे हैं। अलग-अलग लड़ने में मज़दूर खण्ड-खण्ड में बँट जाते हैं जिससे उनकी ताक़त कमज़ोर हो जाती है। इसलिए ‘मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन’ पूरे मज़दूर वर्ग की माँगों को देश की हुक़ूमत के सामने रखकर एक लम्बे ‘मज़दूर सत्याग्रह’ की शुरुआत कर रहा है।

इस आन्दोलन की माँगों को गढ़ने में देश के अलग-अलग हिस्सों के कुछ स्वतन्त्र मज़दूर संगठनों, यूनियनों और मज़दूर अख़बार ने पहल की है, कुछ इलाक़ों में हुई मज़दूरों की छोटी-छोटी पंचायतों की भी इसमें भूमिका है, लेकिन यह आन्दोलन किसी यूनियन, संगठन या राजनीतिक पार्टी के बैनर तले नहीं है। इसका लक्ष्य है कि ‘मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन’ उन सबका आन्दोलन बने जिनकी माँगें इसमें उठायी गयी हैं, यानी देश के समस्त मज़दूर वर्ग का साझा आन्दोलन बने। यह आन्दोलन कई चक्रों में चलेगा। ऐतिहासिक मई दिवस की 125वीं वर्षगाँठ के अवसर पर एक प्रतीकात्मक आरम्भ किया जा रहा है।

माँगपत्रक की कुछ प्रमुख माँगें हैं : काम के घण्टे 8 करना, जबरन ओवरटाइम पर रोक लगाना, न्यूनतम मज़दूरी रु. 11,000 मासिक करना, ठेका प्रथा खत्म करना, कारखानों में सुरक्षा के पूरे इन्तज़ाम करना और दुर्घटनाओं का उचित मुआवज़ा देना, स्त्री मज़दूरों को बराबर अधिकार सुनिश्चित करना, प्रवासी मज़दूरों के हितों की सुरक्षा करना, सभी घरेलू और स्वतन्‍त्र दिहाड़ी मज़दूरों तथा निर्माण मज़दूरों का पंजीकरण करना, मालिकों की अन्धेरगर्दी तथा श्रम विभाग के भ्रष्टाचार पर रोक लगाना और श्रम कानूनों के प्रभावी अमल एवं समीक्षा के लिए कार्रवाई करना।

आन्दोलन का मानना है कि आज भ्रष्टाचार के मसले पर देश का मध्यवर्ग काफी उद्वेलित है लेकिन दरअसल सबसे बड़ा भ्रष्टाचार तो वह है जो देश के तमाम मेहनतकशों को उनकी मेहनत के फल से लगातार वंचित रखता है। इस क़ानूनी तथा ग़ैर-क़ानूनी भ्रष्टाचरण के विरुद्ध कोई आवाज़ नहीं उठाता। पिछले 20 वर्ष में देश में जिस स्वर्ग का निर्माण हुआ है उसके तलघर के अँधेरे में रहने वाली 80 फ़ीसदी आबादी को मूलभूत अधिकारों से भी वंचित करके न्याय की दुहाइयाँ नहीं दी जा सकतीं।

 

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2011

 


 

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