हरियाणा के रोहतक में हुई एक और “निर्भया” के साथ दरिन्दगी

रोज़-रोज़ होने वाले स्त्री विरोधी अपराधों की कड़ी में एक और नया मामला जुड़ गया है और यह ख़बर छपने तक देश में कहीं न कहीं और भी स्त्री विरोधी अपराधों को अंजाम दिया जा चुका होगा। मानवता को शर्मसार करने वाला यह मामला हरियाणा के ज़िला रोहतक का है। एक नेपाली मूल की मानसिक रूप से अस्वस्थ युवती अपनी बहन के पास इलाज करवाने के लिए आयी थी। इनकी बहन का परिवार पूरी तरह से मज़दूर पृष्ठभूमि का है। इनकी बहन घरों में काम करती हैं व बहनोई एक फ़ैक्टरी मज़दूर हैं। रोहतक शहर से इस युवती का 1 फ़रवरी को अपहरण किया गया। युवती का शव 4 फ़रवरी को रोहतक-हिसार रोड स्थित बहु अकबरपुर गाँव की ड्रेन के पास नोची हुई और नग्न अवस्था में पाया गया। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक़ युवती को, पाश्विकता से सामूहिक बलात्कार करके बेरहमी से मार दिया गया। पुलिस प्रशासन ने मामले को बिल्कुल भी गम्भीरता से नहीं लिया। हर बार की तरह प्रशासन कान में रूई-तेल डालकर सोता रहा। बकौल युवती की बहन पुलिस के ढीले-ढाले रुख़ का एक कारण उनका ग़रीब होना भी है। रोहतक में हुए विरोध प्रदर्शन के बाद ही पुलिस हरकत में आ सकी। इस तरह का जघन्य अपराध कोई पहला नहीं है। अभी पिछले दिनों ही पंजाब के लुधियाना में भी एक बहादुर लड़की शहनाज़ को गुण्डा गिरोह ने बलात्कार के बाद आवाज़ उठाने पर ज़िन्दा जला दिया था। दिल्ली के निर्भया काण्ड के समय पूरे देश में हुए ज़बरदस्त विरोध के बाद भी न जाने कितनी निर्भयाओं के साथ बलात्कार हुए, और बहुतों को मौत की नींद सुला दिया गया।

2015-02-13-Rohtak-gangrape-6हरियाणा में तो पिछले दिनों ही बलात्कार की एक के बाद एक घटनाएँ हमारे सामने आयी थीं। लगता है हरियाणा की जनता इन स्त्री विरोधी अपराधों को अपना भाग्य मान चुकी है, यही कारण है कि ऐसे मामले हो जाने पर कुछ विरोध प्रदर्शन कर लिये जाते हैं, मोमबत्ती जुलूस निकाल लिये जाते हैं, ज्ञापनपत्र देने का दौर-दौरा चलता है, लेकिन उसके बाद सबकुछ पहले की तरह ही बदस्तूर जारी रहता है। बसों-ट्रेनों में आये दिन छेड़छाड़ की घटनाएँ होती हैं, बलात्कार की घटनाएँ भी आये दिन अख़बारों की सुर्खियाँ बनती हैं। और समाज के पाखण्ड की हद देखिये कि एक तरफ़ तो ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता’ का ढोल पीटा जाता है, “प्राचीन संस्कृति” का यशोगान होता है लेकिन दूसरी तरफ़ स्त्रियों के साथ बर्बरता के सबसे घृणित मामले यहीं देखने को मिलते हैं। स्त्री विरोधी मानसिकता का ही नतीजा है कि हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या होती है और लड़के-लड़कियों की लैंगिक असमानता बहुत ज़्यादा है। हिन्दू धर्म के तमाम ठेकेदार आये दिन अपनी दिमाग़ी गन्दगी और स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक मानने की अपनी मंशा का प्रदर्शन; कपड़ों, रहन-सहन और बाहर निकलने को लेकर बेहूदा बयानबाज़ियाँ करके करते रहते हैं लेकिन तमाम स्त्री विरोधी अपराधों के ख़िलाफ़ बेशर्म चुप्पी साध लेते हैं। यह हमारे समाज का दोगलापन ही है कि पीड़ा भोगने वालों को ही दोषी करार दे दिया जाता है और नृशंसता के कर्ता-धर्ता अपराधी आमतौर पर बेख़ौफ़ होकर घूमते हैं। अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए, जब हरियाणा के मौजूदा मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर फ़रमा रहे थे कि लड़कियों और महिलाओं को कपड़े पहनने की आज़ादी लेनी है तो सड़कों पर निर्वस्त्र क्यों नहीं घूमती!

मानवता को झकझोरने वाले ये जघन्य स्त्री विरोधी अपराध हमारे समाज में होते ही क्यों हैं और क्या यह महज़ क़ानून और व्यवस्था का मसला है पहली बात तो यह है ही कि स्त्री विरोधी अपराधों पर तमाम सरकारों को घेरा जाना चाहिए। सरकार का काम ही क्या होता है यदि वह स्त्रियों को सुरक्षा नहीं दे सकती, जनता को उसके बुनियादी हक़ नहीं दे सकती तो उसका औचित्य ही क्या है सरकार एक तरफ़ तो बेटी बचाओ की नौटंकी करती है लेकिन दूसरी तरफ़ महिला सुरक्षा के लिए कत्तई गम्भीर नहीं है। दूसरी बात इन स्त्री विरोधी अपराधों का मूल कारण मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था में है। आज के समाज में स्त्रियों को महज़ एक बिकाऊ माल बनाकर रख दिया है जिसे कोई भी ख़रीद सकता है और नोच-खसोट सकता है। संसद-विधानसभाओं से लेकर पुलिस थानों तक में बलात्कार और स्त्री विरोधी अपराधियों के दर्शन किये जा सकते हैं। इसके अलावा समाज के पोर-पोर में पैठी पितृसत्ता की मानसिकता भी इस तरह के अपराधों के लिए ज़िम्मेदार है। यह मानसिकता स्त्रियों को केवल भोग की वस्तु और बच्चा पैदा करने की मशीन समझती है। पितृसत्ता स्त्रियों को चूल्हे-चौखट में क़ैद करके रखना चाहती है।

आज हम स्त्रियों पर होने वाले बर्बर हमलों को रोकने की उम्मीद सरकारों से, जिनमें ख़ुद बलात्कार के दोषी शामिल हों, उस पुलिस व्यवस्था से जहाँ थानों में भी बलात्कार हो जाते हों और उस न्याय व्यवस्था से जहाँ न्याय अमीरों की बपौती बन गया हो, कत्तई नहीं कर सकते। बेशक हम इन्हें बार-बार घेरेंगे लेकिन स्त्री सुरक्षा का ठेका इनके भरोसे छोड़कर चैन से बैठना आज अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। स्त्री उत्पीड़न के तमाम रूपों के ख़िलाफ़ जगह-जगह संगठन खड़े किये जायें, चौकसी दस्ते बनाये जायें जिनमें स्त्रियाँ भी आगे बढ़कर भागीदारी करें। स्त्री-पुरुष असमानता, पितृसत्तात्मक पिछड़ेपन और हर किस्म के दमन-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आज बड़ी जन-गोलबन्दी बेहद ज़रूरी है। दूसरा स्त्री मुक्ति के सवाल को व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई के साथ जोड़ना बेहद ज़रूरी है। पूँजीवाद के रहते स्त्री मुक्ति के संघर्ष को परवान नहीं चढ़या जा सकता और न ही समाज की आधी आबादी की भागीदारी के बिना ऐसे मानवद्रोही समाज को नष्ट किया जा सकता है जिसने हर चीज़ को ख़रीदे-बेचे जाने वाले माल में तब्दील कर दिया है।

रोहतक निर्भया काण्ड और स्त्री उत्पीड़न के ख़िलाफ़ जन-अभियान व प्रदर्शन

2015-02-13-Rohtak-gangrape-4रोहतक निर्भया काण्ड की भर्त्सना करते हुए विभिन्न जन संगठनों ने विरोध प्रदर्शन भी किये। इसी कड़ी में रोहतक में नौजवान भारत सभा ने दिशा छात्र संगठन और स्त्री मुक्ति लीग के साथ मिलकर देश और प्रदेश में हो रहे स्त्री उत्पीड़न की घटनाओं के ख़िलाफ़ जन-जागरूकता अभियान चलाकर विरोध प्रदर्शन किया और ज्ञापन सौंपा। नौजवान भारत सभा के रमेश खटकड़ ने बताया कि पुलिस-प्रशासन की भूमिका आज अग्नि शमन विभाग से ज़्यादा नहीं रह गयी है। छेड़छाड़ और बलात्कार की दर्दनाक घटनाएँ हो जाने के बाद ही पुलिस-प्रशासन सकते में आता है। यदि इस देश की सरकारें स्त्रियों को सुरक्षा नहीं दे सकती, रोज़गार और शिक्षा नहीं दे सकती तो उनका काम क्या है दूसरी बात आज समाज को पीछे ले जाने वाली ताक़तें भी समाज में सक्रिय हैं जो लड़कियों को घर की चारदीवारी में ही क़ैद रखना चाहती हैं। इनके ख़िलाफ़ भी हमें एकजुट होना पड़ेगा, इनसे लोहा लेना पड़ेगा। दिशा छात्र संगठन की आदिति ने कहा कि आज छात्रों की भी बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है कि वे स्त्रियों के हक़ों, उनके जनवादी अधिकारों के लिए आवाज़ उठायें। आज नौजवान लड़कियों को भी आगे आने की ज़रूरत है। व्यापक पर्चा वितरण व नुक्कड़ सभाएँ करते हुए जन-जागरूकता अभियान शहर के बस अड्डे, रेलवे स्टेशन, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के कैम्पस, जाट कॉलेज, सर छोटूराम पोलिटेकनिक, प. नेकीराम कॉलेज, सी.आर. कॉलेज आदि में चलाया गया था। 13 फ़रवरी को प्रदर्शन का आयोजन किया गया। सभा को सम्बोधित करते हुए स्त्री मुक्ति लीग की शिवानी ने कहा कि आज हमें न केवल अपने जनवादी अधिकारों के लिए लड़ना पड़ेगा बल्कि पूँजीवादी व्यवस्था से भी टकराना पड़ेगा जिसने स्त्रियों को एक बिकाऊ माल में तब्दील कर दिया है। हमें अपने अधिकारों के लिए तात्कालिक रूप से सत्ता-व्यवस्था पर तो दबाव बनाना ही पड़ेगा लेकिन स्त्री मुक्ति के अपने संघर्ष को व्यवस्था परिवर्तन के साथ भी जोड़ना पड़ेगा। स्त्री उत्पीड़न के ख़ात्मे पर विभिन्न वक्ताओं ने अपनी बातें रखीं। प्रदर्शन के बाद डी.सी. को ज्ञापन सौंपा गया जिसमें रोहतक निर्भया के मामले में फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट, दोषियों को बिना शर्त मृत्युदण्ड देने, पीड़िता के परिवार को उचित मुआवज़ा देने और तमाम स्त्री-विरोधी अपराधों को तुरन्त संज्ञान में लिया जाये आदि माँगें शामिल थीं। उक्त विरोध प्रदर्शन में करीब 100 लोग शामिल थे जिनमें छात्र-छात्राएँ और आम नागरिक शामिल थे।

 

मज़दूर बिगुल, फरवरी 2015

 


 

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