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एनआरसी का आर्थिक पहलू

सीएए क़ानून बनने के पहले और बाद तक गृह मंत्री अमित शाह बार-बार कहते रहे हैं कि इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी ज़रूर आयेगा। तभी से इसको लेकर विभिन्न पहलुओं पर चर्चा और प्रदर्शन होते रहे हैं। जिस एक राज्य असम में इसको लागू किया गया है, वहाँ इसे लागू करने की जिन मुख्य लोगों ने माँग की थी, वे ही अब इसे एक व्यर्थ और जोश में होश खोने वाली क़वायद बता रहे हैं। इसके दूसरे विनाशकारी पहलुओं पर तो अलग से चर्चा हो ही रही है, आइए एक बार इसके आर्थिक पहलू पर भी एक नज़र डालते हैं।

सीएए पर केन्द्र सरकार द्वारा जारी प्रश्नोत्तरी (FAQ) का नुक़्तेवार खण्डन

सीएए/एनआरसी पर केन्द्र सरकार द्वारा जारी प्रश्नोत्तरी (FAQ) पूरी तरह गुमराह करनेवाली है और कई बार तो यह बिल्कुल झूठी जानकारी देती है। यह जितना बताती है उससे कहीं अधिक छिपाती है। सरकार ने हर सवाल के जो जवाब जारी किये हैं, उनमें से हर जवाब के अन्त में एडवोकेट मिहिर देसाई की टिप्पणियाँ भी हैं।

सीएए और एनआरसी क्या हैं और इनसे आप कैसे प्रभावित होंगे?

नागरिकता संशोधन क़ानून 2019 के तहत अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, पारसी, जैन, ईसाई और बौद्ध धर्म को मानने वालों में से जो लोग 31 दिसंबर 2014 के पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं वे भारत की नागरिकता पाने के हक़दार हैं। इस संशोधन में इन तीन देशों के मुस्लिमों और भारत के अन्य पड़ोसी देशों के सभी लोगों को नागरिकता पाने के अधिकार से वंचित रखा गया है।

भारत में विदेशी कौन माना जायेगा?

सवाल : भारत में विदेशी कौन माना जायेगा?
जवाब : जो एनआरसी में अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पायेगा।
सवाल : नागरिकता कौन साबित नहीं कर पायेगा?
जवाब : जिसके पास उसे साबित करने के लिए दस्तावेज़ नहीं होंगे।

एनआरसी और नागरिकता संशोधन क़ानून : भारत को हिटलरी युग में धकेलने का फ़ासिस्ट क़दम

दिसम्बर महीने की 9 तारीख़ को लोकसभा और 11 तारीख़ को राज्यसभा से पारित होने के बाद भारतीय नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) क़ानून बनकर अस्तित्व में आ चुका है। यह लेख लिखे जाने तक इस नये क़ानून के ख़िलाफ़ देशभर के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन जारी है, ख़ासकर त्रिपुरा और असम में यह विरोध उग्र रूप ले चुका है।