Category Archives: बिगुल पुस्तिकाएँ

बिगुल पुस्तिका – 7 : जंगलनामा : एक राजनीतिक समीक्षा

सतनाम द्वारा पंजाबी भाषा में लिखी किताब ‘जंगलनामा’ की समीक्षा करते हुए इस लेख में बस्तर के जंगलों में आदिवासियों के संघर्ष का नेतृत्व करने वाले क्रान्तिकारी संगठन की राजनीतिक लाइन की आलोचना प्रस्तुत की गयी है।

बिगुल पुस्तिका – 6 : बुझी नहीं है अक्टूबर क्रान्ति की मशाल

‘नयी समाजवादी क्रान्ति का उद्घोषक बिगुल’ में प्रकाशित लेखों का संकलन साम्राज्यवाद के मौजूदा दौर में मज़दूर क्रान्तियों का स्वरूप और रास्ता क्या होगा यह तय करना एक अहम कार्यभार है। इसके लिए अक्टूबर क्रान्ति के इतिहास और उसके मार्गदर्शक सिद्धान्त का गहराई से अध्ययन करना भी ज़रूरी है। यह पुस्तिका इसी दिशा में एक कोशिश है। अक्टूबर क्रान्ति के  ऐतिहासिक महत्व और ऐतिहासिक संवेग को रेखांकित करने के साथ ही इनमें आज के दौर में क्रान्तिकारी मज़दूर आन्दोलन की समस्याओं और चुनौतियों पर विचारोत्तेजक चर्चा की गयी है।

बिगुल पुस्तिका – 5 : मेहनतकशों के खून से लिखी पेरिस कम्यून की अमर कहानी

मेहनतकशों के खून से लिखी पेरिस कम्यून की अमर कहानी फ्रांस की राजधानी पेरिस में इतिहास में पहली बार 1871 में मज़दूरों ने अपनी हुकूमत क़ायम की। हालांकि पेरिस कम्यून सिर्फ 72 दिनों तक टिक सका लेकिन इस दौरान उसने दिखा दिया कि किस तरह शोषण-उत्पीड़न, भेदभाव-गैरबराबरी से मुक्त समाज क़ायम करना कोरी कल्पना नहीं है। पेरिस कम्यून की पराजय ने भी दुनिया के मजदूर वर्ग को बेशकीमती सबक सिखाये। पेरिस कम्यून का इतिहास क्या था, उसके सबक क्या हैं, यह जानना मज़दूरों के लिए बेहद ज़रूरी है। यह पुस्तिका इसी जरूरत को पूरा करने की एक कोशिश है। पुस्तिका में संकलित लेख ‘नई समाजवादी क्रान्ति का उद्घोषक बिगुल’ और क्रान्तिकारी बुद्धिजीवियों की पत्रिका ‘दायित्वबोध’ से लिये गये हैं।

बिगुल पुस्तिका – 4 : मई दिवस का इतिहास

प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक और कम्युनिस्ट साहित्य के प्रकाशक अलेक्ज़ेंडर ट्रैक्टनबर्ग द्वारा 1932 में लिखित यह पुस्तिका मई दिवस के इतिहास, उसके राजनीतिक महत्व और मई दिवस के बारे में मज़दूर आन्दोलन के महान नेताओं के विचारों को रोचक तरीके से प्रस्तुत करती है।

बिगुल पुस्तिका – 3 : ट्रेडयूनियन काम के जनवादी तरीके — सेर्गेई रोस्तोवस्की

सोवियत संघ की पहल पर बनी वर्ल्‍ड फ़ेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स के सेक्रेटरी सर्गेई रोस्तोवस्की द्वारा 1950 में लिखी यह पुस्तिका ट्रेड यूनियनों में नौकरशाही के विरुद्ध संघर्ष करने और यूनियनों में हर स्तर पर जनवाद बहाल करने की ज़रूरत को सरल और पुरज़ोर ढंग से बताती है।

बिगुल पुस्तिका – 2 : मकड़ा और मक्खी

विल्हेल्म लिब्कनेख्त (1826-1900) जर्मन सोशल डेमोक्रेटिक दल के संस्थापकों में से एक थे। वह जर्मनी के मज़दूर वर्ग के ऐसे नेता थे जिनका सारा जीवन मज़दूर वर्ग के क्रान्तिकारी संघर्ष और समाजवाद के लिए समर्पित था। ‘मकड़ा और मक्खी’ जर्मन मज़दूरों के लिए लोकप्रिय शैली में लिखे गये उनके एक पैम्फलेट का अंग्रेज़ी से हिन्दी में भावानुवाद है।

बिगुल पुस्तिका – 1 : कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और उसका ढाँचा

यह पुस्तिका लेनिन द्वारा प्रतिपादित बुनियादी सांगठनिक उसूलों को सरल रूप में और साथ ही सूत्रवत् प्रस्तुत करती है। दरअसल इसे 1921 में कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल की तीसरी कांग्रेस में ‘कम्युनिस्ट पार्टियों के संगठन पर प्रस्ताव’ शीर्षक से दस्तावेज़ के रूप में प्रस्तुत किया गया था और पारित किया गया था। इसका मसविदा स्वयं लेनिन ने तैयार किया था। आज यह दुर्लभ दस्तावेज़ विश्व कम्युनिस्ट आन्दोलन की धरोहर बन चुका है। इसका महत्त्व न सिर्फ़ ऐतिहासिक है बल्कि मज़दूर वर्ग के लिए तथा कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के लिए आज भी यह एक बेहद ज़रूरी किताब है। वे तमाम मज़दूर साथी और कार्यकर्ता कॉमरेडगण जो आज नये सिरे से एक क्रान्तिकारी पार्टी बनाने के बारे में संजीदगी के साथ सोचते हैं, उनसे हमारी पुरज़ोर सिफ़ारिश है कि इस पुस्तिका को ज़रूर पढ़ें और कई बार पढ़ें और इसे आज अपने देश की परिस्थितियों से जोड़कर देखें।