Tag Archives: मक्सिम गोर्की

एक सच्चा सर्वहारा लेखक -मक्सिम गोर्की

गोर्की ने अपने जीवन और लेखन से सिद्ध कर दिया कि दर्शन और साहित्य विश्‍वविद्यालयों, कॉलेजों में पढ़े-लिखे विद्वानों की बपौती नहीं है बल्कि सच्चा साहित्य आम जनता के जीवन और लड़ाई में शामिल होकर ही लिखा जा सकता है। उन्होंने अपने अनुभव से यह जाना कि अपढ़, अज्ञानी कहे जाने वाले लोग ही पूरी दुनिया के वैभव के असली हक़दार हैं। आज एक बार फिर साहित्य आम जन से दूर होकर महफ़िलों, गोष्ठियों यहाँ तक कि सिर्फ़ लिखने वालों तक सीमित होकर रह गया है। आज लेखक एक बार फिर समाज से विमुख होकर साहित्य को आम लोगों की ज़िन्दगी की चौहद्दी से बाहर कर रहा है।

कहानी – कोलुशा / मक्सिम गोर्की

आखि़र हम अस्पताल पहुँचे। कोलुशा पलंग पर पड़ा पट्टियों का बण्डल मालूम होता था। वह मेरी ओर मुस्कुराया, और उसके गालों पर आँसू ढुरक आये…. फिर फुसफुसाकर बोला – ‘मुझे माफ़ करना, माँ। पैसा पुलिसमैन के पास है।’ ‘पैसा….कैसा पैसा? यह तुम क्या कह रहे हो?’ मैंने पूछा। ‘वही, जो लोगों ने मुझे सड़क पर दिया था और आनोखिन ने भी’, उसने कहा। ‘किसलिए?’ मैंने पूछा। ‘इसलिए’, उसने कहा और एक हल्की-सी कराह उसके मुँह से निकल गयी। उसकी आँखें फटकर ख़ूब बड़ी हो गयीं, कटोरा जितनी बड़ी। ‘कोलुशा’, मैंने कहा – ‘यह कैसे हुआ? क्या तुम घोड़ों को आता हुआ नहीं देख सके?’ और तब वह बोला, बहुत ही साफ़ और सीधे-सीधे, ‘मैंने उन्हें देखा था, माँ, लेकिन मैं जान-बूझकर रास्ते में से नहीं हटा। मैंने सोचा कि अगर मैं कुचला गया तो लोग मुझे पैसा देंगे। और उन्होंने दिया।’ ठीक यही शब्द उसने कहे। और तब मेरी आँखें खुलीं और मैं समझी कि उसने – मेरे फ़रिश्ते ने – क्या कुछ कर डाला है। लेकिन मौका चूक गया था। अगली सुबह वह मर गया। उसका मस्तिष्क अन्त तक साफ़ था और वह बराबर कहता रहा – ‘दद्दा के लिए यह ख़रीदना, वह ख़रीदना और अपने लिए भी कुछ ले लेना।’ मानो धन का अम्बार लगा हो। वस्तुतः वे कुल सैंतालीस रूबल थे। मैं सौदागर आनोखिन के पास पहुँची, लेकिन उसने मुझे केवल पाँच रूबल दिये, सो भी भुनभुनाते हुए। कहने लगा – ‘लड़का ख़ुद जान-बूझकर घोड़ों के नीचे आ गया। पूरा बाज़ार इसका साक्षी है। सो तुम क्यों रोज़ आ-आकर मेरी जान खाती हो? मैं कुछ नहीं दूँगा।’ मैं फिर कभी उसके पास नहीं गयी। इस प्रकार वह घटना घटी, समझे युवक!

कहानी – बाज़ का गीत / मक्सिम गोर्की Story – The song of falcon / Maxim Gorky

‘साहस के उन्मादियों की हम गौरव-गाथा गाते हैं! गाते हैं उनके यश का गीत!’
‘साहस का उन्माद-यही है जीवन का मूलमन्त्र ओह, दिलेर बाज! दुश्मन से लड़कर तूने रक्त बहाया…लेकिन वह समय आयेगा जब तेरा यह रक्त जीवन के अन्धकार में चिनगारी बनकर चमकेगा और अनेक साहसी हृदयों को आज़ादी तथा प्रकाश के उन्माद से अनुप्राणित करेगा!’
‘बेशक तू मर गया!…लेकिन दिल के दिलेरों और बहादुरों के गीतों में तू सदा जीवित रहेगा, आज़ादी और प्रकाश के लिए संघर्ष की गर्वीली ललकार बनकर गूँजता रहेगा!’

कहानी – ‘हिम्मत न हारना, मेरे बच्चो!’ / मक्सिम गोर्की

आप तो जानते ही हैं कि अमीरों को सिर्फ़ तभी जेल भेजा जाता है जब वे बहुत ही ज्यादा बुराइयाँ करते हैं और उन पर पर्दा नहीं डाल पाते। लेकिन गरीब जब जरा-सी भी बेहतरी चाहते हैं तो उसी वक्त जेल में बन्द कर दिये जाते हैं। आपसे मैं सिर्फ़ यही कह सकता हूँ कि आप बहुत खुशकिस्मत बाप हैं!

कहानी – एक पतझड़ / मक्सिम गोर्की Story – One Autumn Night / Maxim Gorky

सांस्कृतिक विकास की इस मंज़िल पर शारीरिक भूख बुझाने के मुक़ाबले आध्यात्मिक भूख बुझाना अधिक आसान है। आप घरों से घिरी हुई सड़कों पर भटकते रहते हैं। घर, जो बाहर से सन्तोषजनक सीमा तक सुन्दर होते हैं और भीतर से – हालाँकि यह लगभग एक अनुमान ही है – सन्तोषजनक सीमा तक आरामदेह होते हैं; ये आपके भीतर वास्तुकला, स्वास्थ्य विज्ञान और बहुतेरे दूसरे उदात्त और बुद्धिमत्तापूर्ण विषयों पर सुखद विचार पैदा कर सकते हैं; सड़कों पर आप गर्म और आरामदेह कपड़े पहने लोगों से मिलते हैं – वे विनम्र होते हैं, अक्सर किनारे हटकर आपके लिए रास्ता छोड़ देते हैं और आपके वजूद के अफ़सोसनाक़ तथ्य पर ध्यान देने से कुशलतापूर्वक इन्कार कर देते हैं। निश्चय ही, एक भूखे आदमी की आत्मा एक भरे पेट वाले की आत्मा की अपेक्षा बेहतर ढंग से और अधिक स्वास्थ्यप्रद ढंग से पोषित होती है – यह एक ऐसा विरोधाभास है जिससे, निस्सन्देह, भरे पेट वालों के पक्ष में कुछ निहायत चालाकी भरे नतीजे निकाल लेना मुमकिन है!…

सच्चाई को ख़ून की नदियों में भी नहीं डुबोया जा सकता – मक्सिम गोर्की के उपन्‍यास माँ का एक अंश

ग़रीबी, भूख और बीमारी – लोगों को अपनी मेहनत के बदले यही मिलता है! हर चीज़ हमारे खि़लाफ़ है – ज़िन्दगी-भर हम रोज़ अपनी रत्ती-रत्ती शक्ति अपने काम में खपा देते हैं, हमेशा गन्दे रहते हैं, हमेशा बेवक़ूफ़ बनाये जाते हैं और दूसरे हमारी मेहनत का सारा फ़ायदा उठाते हैं और ऐश करते हैं, वे हमें जंजीर में बँधे हुए कुत्तों की तरह जाहिल रखते हैं – हम कुछ भी नहीं जानते, वे हमें डराकर रखते हैं – हम हर चीज़ से डरते हैं! हमारी ज़िन्दगी एक लम्बी अँधेरी रात की तरह है!

कहानी – पारमा के बच्चे / मक्सिम गोर्की Story – Childrens of Parma / Maxim Gorky

भीड़ ने भविष्य के इन लोगों का बेहद शोर मचाते हुए स्वागत किया, उनके सम्मुख झण्डे झुका दिये गये। बच्चों की आँखों को चौंधियाते और कानों को बहरे करते हुए बाजे खूब जोरों से बज उठे। ऐसे जोरदार स्वागत से तनिक स्तम्भित होकर घड़ी भर को वे पीछे हटे किन्तु तत्काल ही सँभल गये, मानो लम्बे हो गये, घुल-मिलकर एक शरीर बन गये और सैकड़ों कण्ठों से, किन्तु मानो एक ही छाती से निकलती आवाज में चिल्ला उठेः

“इटली ज़िन्दाबाद!”

“नव पारमा नगर ज़िन्दाबाद!” बच्चों की ओर दौड़ती हुई भीड़ ने ज़ोरदार नारा लगाया।

गोर्की के उपन्‍यास ‘माँ’ का एक अंश : एक समाजवादी का अदालत में बयान

“हम समाजवादी हैं। इसका मतलब है कि हम निजी सम्पत्ति के ख़िलाफ हैं” निजी सम्पत्ति की पद्धति समाज को छिन्न–भिन्न कर देती है, लोगों को एक–दूसरे का दुश्मन बना देती है, लोगों के परस्पर हितों में एक ऐसा द्वेष पैदा कर देती है जिसे मिटाया नहीं जा सकता, इस द्वेष को छुपाने या न्याय–संगत ठहराने के लिए वह झूठ का सहारा लेती है और झूठ, मक्कारी और घृणा से हर आदमी की आत्मा को दूषित कर देती है।