बेरोज़गार छात्रों-युवाओं से हज़ारों करोड़ की कमाई कर रही बेशर्म सरकारें

देश की करोड़ों युवा आबादी पिछले 45 वर्षों में अब तक की सबसे भयंकर बेरोज़गारी का सामना कर रही है। करोड़ों मज़दूरों के साथ ही उच्च शिक्षा पाये हुए युवा भी नौकरी की तलाश में ठोकरें खा रहे हैं। हर साल दो करोड़ रोज़गार पैदा करने के दावों से लेकर स्किल इण्डिया, स्टैण्ड अप इण्डिया, कौशल विकास जैसी योजनाओं की पोल खुल चुकी है। ऊपर से सरकार बेशर्मी के साथ बेरोज़गारों से भी करोड़ों की कमाई करने में लगी हुई है।

अभी ताज़ा उदाहरण चिकित्सा शिक्षा एवं दन्त चिकित्सा शिक्षा महाविद्यालयों में एमबीबीएस व बीडीएस पाठ्यक्रमों में दाख़िले के लिए होने वाली परीक्षा ‘नीट-2019’ (राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा) का है जिसके आवेदन शुल्क से नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को 192 करोड़ रुपये से ज़्यादा राशि बटोरी गयी है। इस परीक्षा में भाग लेने के लिए सामान्य एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए पंजीयन शुल्क 1400 रुपये एवं एससी-एसटी के लिए 750 रुपये रखा गया था। इसमें कुल 15,19,375 अभ्यर्थियों ने पंजीयन कराया, जिनमें से 14,10,755 अभ्यर्थियों ने परीक्षा में भाग लिया और लगभग 70,000, यानी क़रीब 5 प्रतिशत का चयन हुआ। आरटीआई के तहत जब पूछा गया कि नीट-2019 परीक्षा के आयोजन पर आयी लागत और बची हुई राशि का कब, कहाँ और कैसे उपयोग किया गया है तो नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने गोलमोल जवाब देकर टाल दिया। इससे पहले मेडिकल प्रवेश परीक्षा में चुने गये छात्रों की काउण्सलिंग पर 18.32 करोड़ वसूले गये थे जबकि ख़र्च केवल 2.76 करोड़ रुपये हुए।

यह तो एक छोटा-सा उदाहरण है। रेलवे, बैंक, पुलिस, शिक्षक सहित तमाम सरकारी नौकरि‍यों के लिए हर साल करोड़ों नौजवान आवेदन करते हैं। एक-एक पद के लिए हज़ारों-लाखों लोग फ़ॉर्म भरते हैं। एक-एक नौजवान कई-कई परीक्षाओं के लिए फ़ॉर्म भरता है क्योंकि किसी को नहीं पता कि उसे कहाँ नौकरी मिल पायेगी। उत्तर प्रदेश में चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख लोगों के आवेदन करने की चर्चा अक्सर होती है। लेकिन लगभग यही हाल सभी नौकरियों का है। पिछले वर्ष रेलवे के 90 हज़ार पदों के लिए 1.5 करोड़ नौजवानों ने आवेदन किया था। पूरे देश में होने वाली केन्द्र और राज्य सरकार की नौकरी की परीक्षाओं का अगर मोटा-मोटा हिसाब लगाया जाये तो भी यह संख्या हर साल दसियों करोड़ तक जा पहुँचेगी। इन सभी के लिए फ़ॉर्म भरने का शुल्क, परीक्षा की तैयारी के लिए गाइडबुक, कोचिंग आदि का ख़र्च, परीक्षा देने के लिए एक शहर से दूसरे शहर की यात्रा आदि का ख़र्च जोड़ा जाये तो समझना मुश्किल नहीं है कि देशभर में बेरोज़गारों की आबादी से हर साल हज़ारों करोड़ रुपये वसूल लिये जाते हैं। जो सरकार नौजवानों को रोज़गार देने की अपनी बुनियादी ज़िम्मेदारी नहीं पूरी कर सकती, उसे कम से कम नौकरी तलाशने में होने वाले ख़र्च का बोझ तो बेरोज़गारों पर नहीं डालना चाहिए। केवल प्रधानमंत्री के प्रचार पर 5600 करोड़ रुपये और मंत्रियों-सांसदों-विधायकों के ठाठ-बाट पर हज़ारों करोड़ रुपये जिस देश में फूँक दिये जाते हों, वहाँ तो ऐसा करना और भी अश्लील लगता है। लेकिन इसीलिए तो नौजवानों को नकली राष्ट्रवाद और धार्मिक-जातीय नफ़रत की अफ़ीम पिलायी जा रही है, ताकि वे अपनी फटी जेब पर पड़ रहे इस डाके का भी विरोध न कर सकें।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2019

 

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