जनता के व‍िरोध और आन्दोलनों को कुचलने के लिए हरियाणा सरकार का नया काला क़ानून “सम्पत्ति क्षति वसूली क़ानून – 2021”

इस क़ानून का असली मकसद सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनान्दोलनों को निशाना बनाना है!
हरियाणा भाजपा-जजपा की ठगबन्धन सरकार ने 18 मार्च को विधानसभा में ‘सम्पत्ति क्षति वसूली विधेयक – 2021’ नामक विधेयक पेश किया था। विधानसभा में भाजपा-जजपा का बहुमत होने के कारण विधेयक बिना किसी व्यवधान के पारित भी हो गया था। उसके बाद इसे राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य की मुहर लगवाने के लिए उनके पास भेजा गया। राज्यपाल ने विधेयक को अप्रैल में ही मंज़ूरी दे दी थी। इसके बाद 26 मई को हरियाणा प्रदेश में इस विधेयक को क़ानून के तौर पर लागू कर दिया गया।
सरकार के अनुसार इस क़ानून का मकसद सार्वजनिक और निजी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले लोगों पर कार्रवाई करना और उनसे हर्जाना वसूल करना है लेकिन कौन नहीं जानता है कि ऐसे क़ानूनों का निशाना सत्ता के ख़िलाफ़ उठने वाले आन्दोलनों-आन्दोलनकारियों को बनाया जाता है। क़ानून की धारा 14 के अनुसार सम्पत्ति क्षति की वसूली सिर्फ़ हिंसा और तोड़फोड़ करने वालों से ही नहीं की जायेगी बल्कि प्रदर्शन के नेतृत्वकारियों, आयोजकों, योजनाकर्ताओं, प्रोत्साहित करने वालों और भागीदारों से भी की जायेगी। यह धारा साफ़ तौर पर जनता के जनवादी हक़ों पर ख़तरनाक क़िस्म का हमला करती है। यदि किसी शान्तिपूर्ण आन्दोलन में सरकार द्वारा भेजे गये उपद्रवी ही तोड़-फोड़ मचा गये तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा? बहुत बार आन्दोलनों को कुचलते हुए ख़ुद पुलिस के लोग भी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने जैसी गतिविधियों को अंजाम देते हुए देखे गये हैं। दिल्ली में पिछले साल हुए दंगों के दौरान तो दिल्ली पुलिस ही कैमरे तोड़ते हुए पायी गयी थी। क्या इनपर भी यह क़ानून लागू होगा?
यदि किसी आन्दोलन में चन्द अराजक तत्त्वों ने कुछ तोड़-फोड़ कर दी तो उनपर कार्रवाई करने के बजाय शान्तिपूर्ण ढंग से हिस्सेदारी कर रहे लोगों और आयोजकों को लपेटना सरकारी तानाशाही के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क़ानून के अनुसार सम्पत्ति क्षति हर्जाना नहीं चुकाने पर आरोपी की सम्पत्ति को भी कुर्क किया जा सकेगा। यह क़ानून जिस ख़ास समय में आया है उससे साफ़ है कि क़ानून का मकसद लोगों के जनवादी हक़ों पर हमला बोलना है। इससे पहले इसी तरह सम्पत्ति क्षति वसूली के आदेश उत्तर प्रदेश सरकार भी दे चुकी है। इन आदेशों का इस्तेमाल सीएए-एनआरसी-एनपीआर के साम्प्रदायिक, असंवैधानिक और गैर-जनवादी क़ानूनों के ख़िलाफ़ खड़े हुए शान्तिपूर्ण आन्दोलन को कुचलने के लिए ही किया गया था। चन्द अराजक तत्त्वों (और किसको पता है कि वे किसके आदमी थे) को सजा देने की बजाय सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाते हुए उन्हें जेलों में डाल दिया गया था और चौक-चौराहों पर उनके फ़ोटो लगा दिये गये थे।
कमाल की बात तो यह है कि सम्पत्ति की रक्षा के क़ानून उन पार्टियों की सरकारें पारित कर रही हैं जिनका दंगों की आग भड़काने और सरकारी-गैर सरकारी सम्पत्तियों को फूँकने का लम्बा इतिहास रहा है। राम जन्मभूमि के तथाकथित आन्दोलन के इतिहास को हम भूले नहीं होंगे जिस दौरान हुए दंगों के बाद हज़ारों लोगों की जान गयी थी और अरबों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ था। उत्तर प्रदेश-हरियाणा सहित पूरा उत्तर भारत इस विनाशलीला का साक्षी बना था। साल 2013 में मुज़फ़्फ़रनगर, उत्तर प्रदेश में दंगों की राजनीति करके जान-माल का नुकसान करने वाले कौन लोग थे और क्या उनपर कोई कार्रवाई हुई थी? जवाब है नहीं। ख़ुद योगी आदित्यनाथ के ही ख़िलाफ़ दंगे भड़काने और सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने के दर्जनों मामले थे जिन्हें उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद ख़ुद ही रद्द करवा दिया। क्या 2016 में जातिवाद की आग भड़काकर हरियाणा को जलवाने वाले राजकुमार सैनी और यशपाल मालिक जैसे भाजपा के प्यादों के ऊपर कोई कार्रवाई हुई थी? जवाब है नहीं। मेवात में साम्प्रदायिकता की आग भड़काने की तैयारी करने वालों पर कोई कार्रवाई हो रही है? इसका भी जवाब है नहीं। और आगे भी इसकी कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है कि साम्प्रदायिक दंगों को भड़काकर वोट की गोट लाल करने वालों पर कोई कार्रवाई होगी। कहा जाता है, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति और इसी की तर्ज़ पर भाजपा कहती है संघी हिंसा हिंसा न भवति। हरियाणा का मौजूदा “सम्पत्ति क्षति वसूली क़ानून – 2021” भी इसी का दूसरा नाम है।

मज़दूर बिगुल, जून 2021


 

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