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केन्द्रीय बजट : पूँजीपरस्त नीतियों पर जनपक्षधरता का मुलम्मा चढ़ाने का प्रयास

गत एक फ़रवरी को केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा संसद में वित्तीय वर्ष 2021-22 का बजट प्रस्तुत करने के बाद शेयर बाज़ार में रिकॉर्डतोड़ उछाल देखने में आया। वजह साफ़ थी! यह बजट पूँजीपतियों के लिए मुँहमाँगे तोहफ़े से कम नहीं था।
टीवी चैनलों पर पूँजीपतियों के भाड़े पर काम करने वाले भाँति-भाँति के विशेषज्ञों ने इस बजट की तारीफ़ों के पुल बाँधने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किसी ने बजट को ऐतिहासिक बताया तो किसी ने इसे अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी की संज्ञा दी। लेकिन सच्चाई तो यह थी कि यह बजट आर्थिक संकट के दौर में मुनाफ़े की गिरती दर के ख़तरे से बिलबिलाये पूँजीपति वर्ग के लिए संजीवनी के समान था।

मेहनतकश अवाम के बजट पर डाका डालने वाला केन्द्रीय बजट

इस बार पेश किये गये बजट के लिए निर्मला सीतारमण ने ‘ईज़ आफ़ लिविंग’ यानी “जीवनशैली की सुगमता” को विषयवस्तु बनाया। आइए देखें कि क्या वाकई में इस बजट से लोगों की ज़िन्दगी सुगम होने वाली है। अगर होने वाली है, तो क्या सभी लोगों की होने वाली है या कुछ ख़ास लोगों की?

बजट और आर्थिक सर्वेक्षण : झूठ का एक और पुलिन्दा

सबके लिए स्वास्थ्य की व्यवस्था के बजाय 10 करोड़ ग़रीब परिवारों के लिए घोषित की गयी बीमा योजना का फ़ायदा कृषि बीमा की तरह बीमा कम्पनियों को ही होगा। स्वास्थ्य बीमा योजना स्वास्थ्य सेवाओं के पूर्ण निजीकरण का ऐलान ही है, जिसका फ़ायदा निजी सामान्य बीमा कम्पनियों और मुनाफ़े के लिए मरीज के साथ कुछ भी करने को तैयार फ़ोर्टिस, अपोलो, जैसे निजी कॉर्पोरेट अस्पतालों को ही होगा। कृषि बीमा के नाम पर ऐसा पहले ही हो चुका है जहाँ 22 हज़ार करोड़ रुपये का प्रीमियम जमा हुआ और 8 हज़ार करोड़ के दावे का भुगतान – बीमा कम्पनियों को 14 हज़ार करोड़ रुपये का सीधा लाभ जिसका एक हिस्सा तो बैंकों ने किसानों के खातों से ज़बरदस्ती निकाला और दूसरा आम जनता के टैक्स के पैसे से गया।