Category Archives: आर्काइव

अप्रैल 2001

  • आयात-निर्यात नीति 2001-2002 : वाजपेयी सरकार ने मेहनतकश जनता को विनाश की और गहरी खाई में धकेला
  • फाजिल अनाज भूख-बेकारी की त्रासदी और अंत्‍योदय अन्‍न योजना का नाटक
  • खून-पसीना हमारा बंगला-गाड़ी उनकी / विक्रम सिंह, हीरालाल पटेल, लुधियाना
  • पश्चिम बंगला में खनन क्षेत्र का निजीकरण : संसदीय वामपंथियों का दुरंगापन
  • पार्टी की बुनियादी समझदारी (अध्‍याय 2) तीसरी किश्‍त
  • जनमुक्ति की अमर गाथा : चीनी क्रान्ति की सचित्र कथा (भाग तेरह)
  • देख फकीरे / मनबहकी लाल
  • 13 अप्रैल 1978 पन्‍तनगर : मज़दूर हत्‍याकाण्‍ड की याद तेइस वर्षों बाद

मार्च 2001

  • सर से पांव तक भ्रष्‍टाचार में डूबे शासक गिरोह को ध्‍वस्‍त करो! चोरों, लुटेरों, भ्रष्‍ट विलासियों के इस फर्जी लोकतंत्र को खारिज करो!
  • केन्‍द्रीय आम बजट 2001-2002 : वजीरे खजाना! यह सौदा महंगा पड़ेगा
  • भविष्‍य निधि पर सरकारी डाका
  • होण्‍डा पावर प्रोडक्‍टस रूद्रपुर में ट्रेड यूनियन जनवाद की जीत
  • बिखराव के कारणों की र्इमानदार पड़ताल जरूरी
  • भगतसिंह की जेल नोटबुक का एक पन्‍ना
  • स्‍वर्ग का तलघर अंधेरा, यहां भी है, वहां भी! स्‍वर्ग की मीनार रौशन, वहां भी है, यहां भी!
  • फरवरी 2001

  • भूकम्‍प को महज प्रकृति की विनाशलीला घोषित कर खून सने हाथों को साफ नहीं किया जा सकता
  • ए.एस.पी. का मजदूर आन्‍दोलन : वेतन न मिलने से मजदूर भुखमरी के कगार पर
  • मारुति के मजदूरों का साढ़े तीन माह तक चला जुझारू आन्‍दोलन समझौते के बाद समाप्‍त : मजदूर अकेले-अकेले लड़कर जीत हासिल नहीं कर सकते
  • बागडिगी : एक और सामूहिक हत्‍याकाण्‍ड
  • एनरॉन की लूटपाट के लिए पूरे देश में रास्‍ता खोलने की तैयारी
  • काशीपुर (उड़ीसा) में अल्‍युमिनियम कारखाने के लिए उजाड़ी जा रही आदिवासी जनता पर पुलिस फायरिंग
  • पार्टी की बुनियादी समझदारी (पहली किश्‍त)
  • हैसवेल शहर के सौ मजदूर / जार्ज वेयेर्थ
  • जनवरी 2001

  • अयोध्‍या मुद्दे को उछालकर चुनावी गोटी लाल करने का भाजपाई कुचक्र
  • चीन में मेहनतकश जनता के संघर्ष : सड़कों पर बह रहा है पिघला गर्म लावा फिर से
  • डाककर्मियों की चौदह दिनी देशव्‍यापी हड़ताल : एक जर्बदस्‍त संघर्ष और उसकी अफसोसनाक हार तथा कुछ जरूरी सबक
  • कोलार का सोना खदान बन्‍द : हजारों मज़दूर भुखमरी के हवाले
  • अब विश्‍व बैंक तय करेगा कर्मचारियों की कार्य-संस्‍कृति
  • संसदीय वामपंथियों का एक और दोगलापन : स्‍वास्‍थ्‍य का निजीकरण और निजीकरण की मुख़ालफत
  • बाज का गीत / मक्सिम गोर्की
  • नवम्‍बर-दिसम्‍बर 2000

  • पर्यावरण के नाम पर 25 लाख से भी अधिक मज़दूरों की रोजी छीन रही है सरकार
  • और कितने कड़े कदम बाकी हैं प्रधानमंत्री महोदय
  • एकताबद्ध क्रान्तिकारी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के निर्माण की समस्‍याएं
  • स्‍तालिन के जन्‍मदिवस के अवसर पर : स्‍तालिन क्‍या थे – महामानव या भयावह
  • एक और पुलिसिया ताण्‍डव / ऐ जुल्‍म के मारो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक
  • पंजाब में प्रवासी मज़दूरों पर बढ़ रहे हमले
  • भूमण्‍डलीकरण के खिलाफ पूरी दुनिया में तीखे हो रहे हैं मज़दूर संघर्ष
  • मज़दूर वर्ग का अंतिम लक्ष्‍य – राजनीतिक सत्‍ता / कार्ल मार्क्‍स
  • कम्‍यनिस्‍ट समाज के बारे में / फ्रेडरिक  एंगेल्‍स
  • अक्‍टूबर 2000

  • परजीवी जमातों की विलासिता का बोझ मेहनतकश जनता क्‍यों उठाये?
  • सूचना प्रौद्योगिकी का मिथक और आम जनजीवन का यथार्थ
  • आधुनिक दास-यात्रा : पूँजीवादी बर्बरता की एक और लोमहर्षक मिसाल
  • संघ परिवार के कई मुंह और भाजपा की बदली-बदली बातें: दुविधा, अंतरविरोध या सोची-समझी रणनीति?
  • तराई के मज़दूर आन्‍दोलन  को कमजोर करने की कोशिश : व्‍यापक एकजुटता से ही मुकाबला सम्‍भव
  • एक बार फिर उठेगा काम के घण्‍टों एवं वाजिब मज़दूरी का सवाल
  • मज़दूरों की गैरक़ानूनी लूट का बाजार बनीं लुधियाना की स्‍टील फैक्‍टरियां
  • पार्टी के बोल्‍शेविकीकरण की बुनियादी शर्तें / स्‍तालिन
  • सितम्‍बर 2000

  • वाजपेयी की अमेरिका-यात्रा : साम्राज्‍यवादी महाप्रभु के दरबार में “स्‍वदेशी” साष्‍टांग दण्‍डवत
  • ‘योर ऑनर’ हम अच्‍छी तरह जानते हैं फालतू कर्मचारियों की परिभाषा
  • आन्‍ध्रप्रदेश में बिजली मूल्‍य वृद्धि‍ के‍ खिलाफ शांतिपूर्ण जन प्रदर्शन पर पुलिस की गोलीबारी
  • पडरौना में गन्‍ना किसानों-मज़दूरों पर लाठियों-गोलियों की बरसात के बाद लाशों पर सियासत करने वाले चुनावी गिद्धों का जमावडा
  • भूमिपतियों के जुल्‍मों-सितम के शिकार : गुजरात के लाखों खेत मजदूर
  • मज़दूरों का समाजवाद क्‍या है / स्‍तालिन
  • वह धरती से आतंकित हो गया / वरवर राव
  • अगस्‍त 2000

  • प्रधानमंत्री से बातचीत के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की तीन दिन की देशव्‍यापी हड़ताल का फैसला रद्द, घुटनाटेकू ट्रेड यूनियन नेतृत्‍व एक बार फिर नंगा हुआ
  • राजस्‍थान की खनिज-सम्‍पदा के दोहन के लिए गुपचुप सर्वेक्षण में लगी हैं आठ बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनियां
  • सरैया चीनी मि‍ल मज़दूरों की स्‍वतंत्रता दिवस पर आत्‍मदाह की कोशिश
  • पूँजीवादी न्‍यायपालिका का “पवित्र कार्य” सत्‍ताधारियों के हितों की सेवा
  • रेलवे स्‍टेशनों के रखरखाव की जिम्‍मेदारी अब ठेके पर
  • फतहपुर तालरतोय और उसके मछुआरों की तबाही की कहानी (पहली किश्‍त)
  • मंडी गोवि‍न्‍दगढ़ की मिलों में 6 महीनों के दौरान 26 मज़दूरों की मौत
  • जून-जुलाई 2000

  • आपातकाल के पच्‍चीस वर्ष बाद अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति : संशोधित टाडा बिल के बहाने जीने के अधिकार पर एक और हमला
  • किसान अब गुर्दा बेचने को मज़बूर
  • चिकित्‍सा के भी बाजारीकरण ने साबित कर दिया है कि राज कर रहे कफनखसोट मुर्दाखोर
  • मुनाफाखोरों की नजर में एक मज़दूर की जिन्‍दगी कीड़ों- मकोड़ों से अधिक कुछ भी नहीं
  • शाहदरा के केबिल उद्योग में मज़दूरों की दयनीय स्थिति
  • एकता के सवाल पर सही रूख अपनाने की जरूरत
  • बीमा का निजीकरण और ट्रेड यूनियन की भूमिका : एक
  • क्रान्तिकारी सि‍द्धांत के बिना क्रान्तिकारी आन्‍दोलन असंभव / लेनिन
  • मई 2000

  • वाजपेयी सरकार के मजदूरों के खिलाफ आक्रामक तेवर : किसी का इंतजार न करो! अपनी एकता मजबूत करो!
  • दिहाड़ी मज़दूरों को भी अपने आन्‍दोलन का साझीदार बनाना एक शानदार शुरूआत है
  • सूखा : यह प्राकृतिक आपदा नहीं है, इसे मुनाफे की हवस पर टिकी व्‍यवस्‍था ने पैदा किया है
  • नई आर्थिक नीतियों का कहर बच्‍चों पर – देश में बाल मज़दूरों की सरकारी संख्‍या सवा दो करोड़ पहुँची
  • ‘भारत का मानचेस्‍टर’ अहमदाबाद अब कपड़ा मिलों के कब्रगाह में
  • हमारे आंदोलन के आवश्‍यक काम / लेनिन
  • बदली हुई विश्‍व परिस्थिति में क्रान्ति के स्‍तर निर्णय का प्रश्‍न