Category Archives: आर्काइव
- आयात-निर्यात नीति 2001-2002 : वाजपेयी सरकार ने मेहनतकश जनता को विनाश की और गहरी खाई में धकेला
- फाजिल अनाज भूख-बेकारी की त्रासदी और अंत्योदय अन्न योजना का नाटक
- खून-पसीना हमारा बंगला-गाड़ी उनकी / विक्रम सिंह, हीरालाल पटेल, लुधियाना
- पश्चिम बंगला में खनन क्षेत्र का निजीकरण : संसदीय वामपंथियों का दुरंगापन
- पार्टी की बुनियादी समझदारी (अध्याय 2) तीसरी किश्त
- जनमुक्ति की अमर गाथा : चीनी क्रान्ति की सचित्र कथा (भाग तेरह)
- देख फकीरे / मनबहकी लाल
- 13 अप्रैल 1978 पन्तनगर : मज़दूर हत्याकाण्ड की याद तेइस वर्षों बाद
सर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबे शासक गिरोह को ध्वस्त करो! चोरों, लुटेरों, भ्रष्ट विलासियों के इस फर्जी लोकतंत्र को खारिज करो!
केन्द्रीय आम बजट 2001-2002 : वजीरे खजाना! यह सौदा महंगा पड़ेगा
भविष्य निधि पर सरकारी डाका
होण्डा पावर प्रोडक्टस रूद्रपुर में ट्रेड यूनियन जनवाद की जीत
बिखराव के कारणों की र्इमानदार पड़ताल जरूरी
भगतसिंह की जेल नोटबुक का एक पन्ना
स्वर्ग का तलघर अंधेरा, यहां भी है, वहां भी! स्वर्ग की मीनार रौशन, वहां भी है, यहां भी!
भूकम्प को महज प्रकृति की विनाशलीला घोषित कर खून सने हाथों को साफ नहीं किया जा सकता
ए.एस.पी. का मजदूर आन्दोलन : वेतन न मिलने से मजदूर भुखमरी के कगार पर
मारुति के मजदूरों का साढ़े तीन माह तक चला जुझारू आन्दोलन समझौते के बाद समाप्त : मजदूर अकेले-अकेले लड़कर जीत हासिल नहीं कर सकते
बागडिगी : एक और सामूहिक हत्याकाण्ड
एनरॉन की लूटपाट के लिए पूरे देश में रास्ता खोलने की तैयारी
काशीपुर (उड़ीसा) में अल्युमिनियम कारखाने के लिए उजाड़ी जा रही आदिवासी जनता पर पुलिस फायरिंग
पार्टी की बुनियादी समझदारी (पहली किश्त)
हैसवेल शहर के सौ मजदूर / जार्ज वेयेर्थ
अयोध्या मुद्दे को उछालकर चुनावी गोटी लाल करने का भाजपाई कुचक्र
चीन में मेहनतकश जनता के संघर्ष : सड़कों पर बह रहा है पिघला गर्म लावा फिर से
डाककर्मियों की चौदह दिनी देशव्यापी हड़ताल : एक जर्बदस्त संघर्ष और उसकी अफसोसनाक हार तथा कुछ जरूरी सबक
कोलार का सोना खदान बन्द : हजारों मज़दूर भुखमरी के हवाले
अब विश्व बैंक तय करेगा कर्मचारियों की कार्य-संस्कृति
संसदीय वामपंथियों का एक और दोगलापन : स्वास्थ्य का निजीकरण और निजीकरण की मुख़ालफत
बाज का गीत / मक्सिम गोर्की
पर्यावरण के नाम पर 25 लाख से भी अधिक मज़दूरों की रोजी छीन रही है सरकार
और कितने कड़े कदम बाकी हैं प्रधानमंत्री महोदय
एकताबद्ध क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट पार्टी के निर्माण की समस्याएं
स्तालिन के जन्मदिवस के अवसर पर : स्तालिन क्या थे – महामानव या भयावह
एक और पुलिसिया ताण्डव / ऐ जुल्म के मारो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक
पंजाब में प्रवासी मज़दूरों पर बढ़ रहे हमले
भूमण्डलीकरण के खिलाफ पूरी दुनिया में तीखे हो रहे हैं मज़दूर संघर्ष
मज़दूर वर्ग का अंतिम लक्ष्य – राजनीतिक सत्ता / कार्ल मार्क्स
कम्यनिस्ट समाज के बारे में / फ्रेडरिक एंगेल्स
परजीवी जमातों की विलासिता का बोझ मेहनतकश जनता क्यों उठाये?
सूचना प्रौद्योगिकी का मिथक और आम जनजीवन का यथार्थ
आधुनिक दास-यात्रा : पूँजीवादी बर्बरता की एक और लोमहर्षक मिसाल
संघ परिवार के कई मुंह और भाजपा की बदली-बदली बातें: दुविधा, अंतरविरोध या सोची-समझी रणनीति?
तराई के मज़दूर आन्दोलन को कमजोर करने की कोशिश : व्यापक एकजुटता से ही मुकाबला सम्भव
एक बार फिर उठेगा काम के घण्टों एवं वाजिब मज़दूरी का सवाल
मज़दूरों की गैरक़ानूनी लूट का बाजार बनीं लुधियाना की स्टील फैक्टरियां
पार्टी के बोल्शेविकीकरण की बुनियादी शर्तें / स्तालिन
वाजपेयी की अमेरिका-यात्रा : साम्राज्यवादी महाप्रभु के दरबार में “स्वदेशी” साष्टांग दण्डवत
‘योर ऑनर’ हम अच्छी तरह जानते हैं फालतू कर्मचारियों की परिभाषा
आन्ध्रप्रदेश में बिजली मूल्य वृद्धि के खिलाफ शांतिपूर्ण जन प्रदर्शन पर पुलिस की गोलीबारी
पडरौना में गन्ना किसानों-मज़दूरों पर लाठियों-गोलियों की बरसात के बाद लाशों पर सियासत करने वाले चुनावी गिद्धों का जमावडा
भूमिपतियों के जुल्मों-सितम के शिकार : गुजरात के लाखों खेत मजदूर
मज़दूरों का समाजवाद क्या है / स्तालिन
वह धरती से आतंकित हो गया / वरवर राव
प्रधानमंत्री से बातचीत के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की तीन दिन की देशव्यापी हड़ताल का फैसला रद्द, घुटनाटेकू ट्रेड यूनियन नेतृत्व एक बार फिर नंगा हुआ
राजस्थान की खनिज-सम्पदा के दोहन के लिए गुपचुप सर्वेक्षण में लगी हैं आठ बहुराष्ट्रीय कम्पनियां
सरैया चीनी मिल मज़दूरों की स्वतंत्रता दिवस पर आत्मदाह की कोशिश
पूँजीवादी न्यायपालिका का “पवित्र कार्य” सत्ताधारियों के हितों की सेवा
रेलवे स्टेशनों के रखरखाव की जिम्मेदारी अब ठेके पर
फतहपुर तालरतोय और उसके मछुआरों की तबाही की कहानी (पहली किश्त)
मंडी गोविन्दगढ़ की मिलों में 6 महीनों के दौरान 26 मज़दूरों की मौत
आपातकाल के पच्चीस वर्ष बाद अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति : संशोधित टाडा बिल के बहाने जीने के अधिकार पर एक और हमला
किसान अब गुर्दा बेचने को मज़बूर
चिकित्सा के भी बाजारीकरण ने साबित कर दिया है कि राज कर रहे कफनखसोट मुर्दाखोर
मुनाफाखोरों की नजर में एक मज़दूर की जिन्दगी कीड़ों- मकोड़ों से अधिक कुछ भी नहीं
शाहदरा के केबिल उद्योग में मज़दूरों की दयनीय स्थिति
एकता के सवाल पर सही रूख अपनाने की जरूरत
बीमा का निजीकरण और ट्रेड यूनियन की भूमिका : एक
क्रान्तिकारी सिद्धांत के बिना क्रान्तिकारी आन्दोलन असंभव / लेनिन
वाजपेयी सरकार के मजदूरों के खिलाफ आक्रामक तेवर : किसी का इंतजार न करो! अपनी एकता मजबूत करो!
दिहाड़ी मज़दूरों को भी अपने आन्दोलन का साझीदार बनाना एक शानदार शुरूआत है
सूखा : यह प्राकृतिक आपदा नहीं है, इसे मुनाफे की हवस पर टिकी व्यवस्था ने पैदा किया है
नई आर्थिक नीतियों का कहर बच्चों पर – देश में बाल मज़दूरों की सरकारी संख्या सवा दो करोड़ पहुँची
‘भारत का मानचेस्टर’ अहमदाबाद अब कपड़ा मिलों के कब्रगाह में
हमारे आंदोलन के आवश्यक काम / लेनिन
बदली हुई विश्व परिस्थिति में क्रान्ति के स्तर निर्णय का प्रश्न