Category Archives: आर्काइव
बनारस का डी.एल.डब्ल्यू. कारखाना निजी पूँजीपतियों के हाथों औने-पौने बेचने की कोशिश
ग्रामीण विकास योजनाओं की असलियत
निजीकरण-कुचक्र और ट्रेड यूनियन आंदोलन की बुनियादी समस्याएं
इस तरह से चूसती हैं बहुराष्ट्रीय कम्पनियां गरीब मुल्कों की मेहनतकश औरतों का खून-पसीना
कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और उसका ढांचा (चौथी किश्त) / व्ला.इ. लेनिन
बोल्शेविकों ने सत्ता पर कब्जा कैसे किया? (दूसरी किश्त)
अक्टूबर क्रान्ति की मशाल बुझी नहीं है, बुझ नहीं सकती
डाक-तार कर्मचारियों की सात दिनों की सफल हड़ताल : कुछ जरूरी सबक
अक्टूबर क्रान्ति के दिनों की वीरांगनाएं
भूमण्डलीकरण की नीतियों के साथ बाल मज़दूरों के बर्बर शोषण में भारी वृद्धि
बोल्शेविकों ने सत्ता पर कब्जा कैसे किया? (पहली किश्त)
कविता – 7 नवम्बर : जीतों के दिन की शान में गीत / पाब्लो नेरूदा
उत्त्रप्रदेश विधान सभा चुनाव 96 : अवसरवादी गठबन्धन और जाति, धर्म एवं गुण्डागर्दी का खुला खेल
स्कूटर्स इंडिया के मज़दूरों के आन्दोलन की आंशिक जीत : आगे के लिए कुछ जरूरी सबक, सोचने के लिए कुछ जरूरी सवालात / ओ.पी. सिन्हा
रूस और पूर्वी यूरोप के मुक्त बाजार का “स्वर्ग” : वहां सब कुछ महंगा है, पर काफी सस्ता है औरत का श्रम और शरीर / कात्यायनी
धनबाद में धरती के नीचे धधक रही आग से लाखों लोगों का जीवन खतरे में
कहानी – पारमा के बच्चे / मक्सिम गोर्की
इलेक्शन या इंकलाब? : सच्चाई से नजरें मिलाने की हिम्मत करो! सही राह चुनने का संकल्प बांधो!!
पूँजीवादी राज्य में सार्वजनिक उद्योग : श्रमशक्ति के सार्वजनिक लूट का जरिया
श्रम कानून और पूँजीपति वर्ग द्वारा श्रमिकों का कानूनी-गैर कानूनी शोषण
कम्युनिस्ट पार्टी, सरकारी सत्ता और वर्ग संघर्ष / जी. प्लेखानोव
बिहार में स्त्री-श्रमिकों की स्थिति : उनकी दुनिया का अंधेरा और अधिक गहरा है
कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और उसका ढांचा / व्ला.इ. लेनिन
लोकसभा चुनाव 1996 और उसके बाद : सरकार चाहे जिसकी बने, नई आर्थिक नीतियां जारी रहेंगी
सिर चढ़कर बोलती सच्चाई : मज़दूरों की बढ़ती लूट, घटती पगार
मज़दूरों के अधिकारों पर एक नये हमले की तैयारी में जुटा है पूँजीपति वर्ग
गांवों में पूँजी की घुसपैठ की कहानी : एक उजड़े हुए मज़दूर की जुबानी
बोलिविया के मेहनतकश बग़ावत की राह पर
उपन्यास अंश – मक्सिम गोर्की के उपन्यास ‘माँ’ से