Category Archives: आर्काइव

जनवरी 1997

  • बनारस का डी.एल.डब्‍ल्‍यू. कारखाना निजी पूँजीपतियों के हाथों औने-पौने बेचने की कोशिश
  • ग्रामीण विकास योजनाओं की असलियत
  • निजीकरण-कुचक्र और ट्रेड यूनियन आंदोलन की बुनियादी समस्‍याएं
  • इस तरह से चूसती हैं बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनियां गरीब मुल्‍कों की मेहनतकश औरतों का खून-पसीना
  • कम्‍युनिस्‍ट पार्टी का संगठन और उसका ढांचा (चौथी कि‍श्‍त) / व्‍ला.इ. लेनिन
  • बोल्‍शेविकों ने सत्‍ता पर कब्‍जा कैसे किया? (दूसरी कि‍श्‍त)
  • नवम्‍बर-दिसम्‍बर 1996

  • अक्‍टूबर क्रान्ति की मशाल बुझी नहीं है, बुझ नहीं सकती
  • डाक-तार कर्मचारियों की सात दिनों की सफल हड़ताल : कुछ जरूरी सबक
  • अक्‍टूबर क्रान्ति के दिनों की वीरांगनाएं
  • भूमण्‍डलीकरण की नीतियों के साथ बाल मज़दूरों के बर्बर शोषण में भारी वृद्धि
  • बोल्‍शेविकों ने सत्‍ता पर कब्‍जा कैसे किया? (पहली कि‍श्‍त)
  • कविता – 7 नवम्‍बर : जीतों के दिन की शान में गीत / पाब्लो नेरूदा
  • अक्‍टूबर 1996

  • उत्‍त्‍रप्रदेश विधान सभा चुनाव 96 : अवसरवादी गठबन्‍धन और जाति, धर्म एवं गुण्‍डागर्दी का खुला खेल
  • स्‍कूटर्स इंडिया के मज़दूरों के आन्‍दोलन की आंशिक जीत : आगे के लिए कुछ जरूरी सबक, सोचने के लिए कुछ जरूरी सवालात / ओ.पी. सिन्‍हा
  • रूस और पूर्वी यूरोप के मुक्‍त बाजार का “स्‍वर्ग” : वहां सब कुछ महंगा है, पर काफी सस्‍ता है औरत का श्रम और शरीर / कात्‍यायनी
  • धनबाद में धरती के नीचे धधक रही आग से लाखों लोगों का जीवन खतरे में
  • कहानी – पारमा के बच्चे / मक्सिम गोर्की
  • सितम्‍बर 1996

  • इलेक्‍शन या इंकलाब? : सच्‍चाई से नजरें मिलाने की हिम्‍मत करो! सही राह चुनने का संकल्‍प बांधो!!
  • पूँजीवादी राज्‍य में सार्वजनिक उद्योग : श्रमशक्ति के सार्वजनिक लूट का जरिया
  • श्रम कानून और पूँजीपति वर्ग द्वारा श्रमिकों का कानूनी-गैर कानूनी शोषण
  • कम्‍युनिस्‍ट पार्टी, सरकारी सत्‍ता और वर्ग संघर्ष / जी. प्‍लेखानोव
  • बिहार में स्‍त्री-श्रमिकों की स्थिति : उनकी दुनिया का अंधेरा और अधिक गहरा है
  • कम्‍युनिस्‍ट पार्टी का संगठन और उसका ढांचा / व्‍ला.इ. लेनिन
  • जुलाई-अगस्‍त 1996

  • साझा सरकार का साझा बजट : मेहनतकश अवाम के लिए कपट ही कपट
  • मज़दूरों द्वारा आत्‍महत्‍या नहीं पूँजीवाद द्वारा उनकी हत्‍या
  • इंसाफ के लिए केरल की औरतों की चूल्‍हा-चौका हड़ताल
  • संसदीय मार्ग का खण्‍डन / महान बहस का एक अंश
  • कुछ ज्‍़यादा ही लाल… कुछ ज्‍़यादा  ही अन्तरराष्ट्रीय
  • इतने ही लाल… और इतने ही अन्तरराष्ट्रीय की आज ज़रूरत है
  • मकड़ा और मक्‍खी / विल्‍हेलम लीब्‍कनेख्‍त
  • जून 1996

  • लोकसभा चुनाव 1996 और उसके बाद : सरकार चाहे जिसकी बने, नई आर्थिक नीतियां जारी रहेंगी
  • सिर चढ़कर बोलती सच्‍चाई : मज़दूरों की बढ़ती लूट, घटती पगार
  • मज़दूरों के अधिकारों पर एक नये हमले की तैयारी में जुटा है पूँजीपति वर्ग
  • गांवों में पूँजी की घुसपैठ की कहानी : एक उजड़े हुए मज़दूर की जुबानी
  • बोलिविया के मेहनतकश बग़ावत की राह पर
  • उपन्‍यास अंश – मक्सिम गोर्की के उपन्‍यास ‘माँ’ से
  • मई 1996

  • अर्न्‍तराष्‍ट्रीय मज़दूर दिवस का संदेश – चुनाव और सुधार के भ्रमजालों से बाहर आओ, नई समाजवादी क्रान्ति की ज्‍वाला भड़काओ
  • डोमिनगढ़ ट्रेन दुर्घटना की असलियत
  • मेहनतकश वर्ग के चेतना की दुनिया में प्रवेश करने का जश्‍न / लेनिन
  • मई दिवस अमर रहे / स्‍तालिन
  • भारत में मई दिवस और मज़दूर संघर्षों की परम्‍परा
  • मई 1886 का वह रक्तरंजित दिन जब मज़दूरों के बहते ख़ून से जन्मा लाल झण्डा
  • जश्‍न बपा है कुटियाओं में ऊंचे ऐवां कांप रहे हैं / साहिर लुधियानवी
  • अप्रैल 1996 (बिगुल प्रवेशांक)

  • चुनाव सिर्फ यह है कि ठगों-लुटेरों-अपराधियों का कौनसा गिरोह हमारे ऊपर हुकूमत करेगा
  • एक नये क्रान्तिकारी मजदूर अख़बार की जरूरत
  • पेरू : जुल्‍म के अंधेरे में चमकता लाल निशान
  • श्रमिक क्रान्ति निश्‍चय की साम्राज्‍यवाद-पूँजीवाद का नाश करेगी / भगतसिंह
  • मजदूरों के लिए आजादी और खुशहाली का रास्‍ता क्‍या है – लेनिन
  • मैक्सिम गोर्की : मेहनतकश जनता का सच्‍चा लेखक
  • बोल मजूरे हल्‍ला बोल / कान्तिमोहन
  • नई पेंशन योजना : मजदूरों को ठगने-लूटने की एक और साजिश