Category Archives: कला-साहित्‍य

कविता – वह धरती से आतंकित हो गया / वरवर राव

धमकी पर धमकी देते हुए
डर पर डर फैलाए
वह खुद डर गया
वह निवास स्‍थान से डर गया
वह पानी से डर गया
वह स्‍कूलों से डर गया
वह हवा से डर गया
आज़ादी को उसने बेड़ियां पहना दीं
मगर हथकड़ियां खनकी
वह उस आवाज से डर गया।

कहानी : बदबू / शेखर जोशी

साहब ने तुम्हारी बदली कास्टिक टैंक पर कर दी है, बड़ा सख्त काम हैं, अब भी साहब को खुश कर सको तो बदली रुक सकती है। उत्तर में उसने कुछ नहीं कहा। उठकर कास्टिक टैंक पर चला गया। टैंक पर काम करने वाले मजदूरों ने उसे देखकर भी अनदेखा कर दिया। उसे ऐसा लगा कि जैसे वे लोग जान-बूझकर उससे पृथक रहने का प्रयत्न कर रहे हों। पुराने पेंट’ और जंग लगे हुए सामान को कास्टिक में धोया जा रहा। था। आगे बढ़कर उसने भी उन्हीं की तरह काम शुरु कर दिया।

नज्‍़म – निवाला / अली सरदार जाफ़री

जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारखानों के काम आयेगा
अपने मजबूर पेट की खातिर
भूक सरमाये की बढ़ाएगा

कहानी – ‘हिम्मत न हारना, मेरे बच्चो!’ / मक्सिम गोर्की

आप तो जानते ही हैं कि अमीरों को सिर्फ़ तभी जेल भेजा जाता है जब वे बहुत ही ज्यादा बुराइयाँ करते हैं और उन पर पर्दा नहीं डाल पाते। लेकिन गरीब जब जरा-सी भी बेहतरी चाहते हैं तो उसी वक्त जेल में बन्द कर दिये जाते हैं। आपसे मैं सिर्फ़ यही कह सकता हूँ कि आप बहुत खुशकिस्मत बाप हैं!

कहानी – एक पतझड़ / मक्सिम गोर्की Story – One Autumn Night / Maxim Gorky

सांस्कृतिक विकास की इस मंज़िल पर शारीरिक भूख बुझाने के मुक़ाबले आध्यात्मिक भूख बुझाना अधिक आसान है। आप घरों से घिरी हुई सड़कों पर भटकते रहते हैं। घर, जो बाहर से सन्तोषजनक सीमा तक सुन्दर होते हैं और भीतर से – हालाँकि यह लगभग एक अनुमान ही है – सन्तोषजनक सीमा तक आरामदेह होते हैं; ये आपके भीतर वास्तुकला, स्वास्थ्य विज्ञान और बहुतेरे दूसरे उदात्त और बुद्धिमत्तापूर्ण विषयों पर सुखद विचार पैदा कर सकते हैं; सड़कों पर आप गर्म और आरामदेह कपड़े पहने लोगों से मिलते हैं – वे विनम्र होते हैं, अक्सर किनारे हटकर आपके लिए रास्ता छोड़ देते हैं और आपके वजूद के अफ़सोसनाक़ तथ्य पर ध्यान देने से कुशलतापूर्वक इन्कार कर देते हैं। निश्चय ही, एक भूखे आदमी की आत्मा एक भरे पेट वाले की आत्मा की अपेक्षा बेहतर ढंग से और अधिक स्वास्थ्यप्रद ढंग से पोषित होती है – यह एक ऐसा विरोधाभास है जिससे, निस्सन्देह, भरे पेट वालों के पक्ष में कुछ निहायत चालाकी भरे नतीजे निकाल लेना मुमकिन है!…

कविता – फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे / शशिप्रकाश

सत्ता के महलों से कविता बाहर लानी होगी ।
मानवात्‍मा के शिल्पी बनकर आवाज़ उठानी होगी ।
मरघटी शान्ति की रुदन भरी प्रार्थना रोकनी होगी ।
आशाओं के रण-राग हमें रचने होंगे ।
फिर लोहे के गीत हमें गाने होंगे ।

जोसेफ़ स्तालिन की एक दुर्लभ कविता

उसकी पीठ और कमर झुक गई थी
लगातार काम करते करते।
जो कल तक दासता की बेड़ियों में बंद
घुटने टेके हुए था,
वह अपनी आशा के पंखों पर उड़ेगा
सबसे ऊपर, ऊपर उठेगा।
मैं कहता हूँ उसकी ऊंचाई पर
पहाड़ तक
अचरज और ईर्ष्या करेंगे।

कविता – उन्नीस सौ सत्रह, सात नवम्बर / नाज़ि‍म हिकमत

और यूँ दर्ज की बोल्शेविकों ने इतिहास में
इतिहास के सर्वाधिक गम्भीर मोड़-बिन्दु की तारीख़:
उन्नीस सौ सत्रह
सात नवम्बर!

कविता : अंधेरे के सभी लोगों के लिए सूर्य के फल हों / पाब्‍लो नेरूदा

मैं सोचता हूँ जिन्होंने इतने सारे काम किये
उन सबका मालिक भी उन्हीं को होना चाहिए।
और जो रोटी पकाते हैं उन्हें वह खानी भी चाहिए।
और खदान में काम करने वालों को रोशनी चाहिए।

कविता – असंख्य / नाजिम हिकमत

ज्ञानी जो,
और जो बच्चों से,
जो विध्वंसक हैं।
और निर्माता हैं –
उन्हीं की गाथा हमारी पुस्तक में है।