Category Archives: कला-साहित्‍य

कहानी – पारमा के बच्चे / मक्सिम गोर्की Story – Childrens of Parma / Maxim Gorky

भीड़ ने भविष्य के इन लोगों का बेहद शोर मचाते हुए स्वागत किया, उनके सम्मुख झण्डे झुका दिये गये। बच्चों की आँखों को चौंधियाते और कानों को बहरे करते हुए बाजे खूब जोरों से बज उठे। ऐसे जोरदार स्वागत से तनिक स्तम्भित होकर घड़ी भर को वे पीछे हटे किन्तु तत्काल ही सँभल गये, मानो लम्बे हो गये, घुल-मिलकर एक शरीर बन गये और सैकड़ों कण्ठों से, किन्तु मानो एक ही छाती से निकलती आवाज में चिल्ला उठेः

“इटली ज़िन्दाबाद!”

“नव पारमा नगर ज़िन्दाबाद!” बच्चों की ओर दौड़ती हुई भीड़ ने ज़ोरदार नारा लगाया।

कविता – कुर्सीनामा / गोरख पाण्‍डेय

ख़ून के समन्दर पर सिक्के रखे हैं
सिक्कों पर रखी है कुर्सी
कुर्सी पर रखा हुआ
तानाशाह
एक बार फिर
क़त्ले-आम का आदेश देता है।

कविता – पूँजीवादी समाज के प्रति / मुक्तिबोध

तेरे हृास में भी रोग-कृमि हैं उग्र
तेरा नाश तुझ पर क्रुद्ध, तुझ पर व्यग्र।
मेरी ज्वाल, जन की ज्वाल होकर एक
अपनी उष्णता में धो चलें अविवेक
तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ
तेरा ध्वंस केवल एक तेरा अर्थ।

नज्‍़म – कौन आज़ाद हुआ ? / अली सरदार जाफ़री

किसके माथे से गुलामी की सियाही छुटी ?
मेरे सीने मे दर्द है महकुमी का
मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है वही
कौन आज़ाद हुआ ?

गोर्की के उपन्‍यास ‘माँ’ का एक अंश : एक समाजवादी का अदालत में बयान

“हम समाजवादी हैं। इसका मतलब है कि हम निजी सम्पत्ति के ख़िलाफ हैं” निजी सम्पत्ति की पद्धति समाज को छिन्न–भिन्न कर देती है, लोगों को एक–दूसरे का दुश्मन बना देती है, लोगों के परस्पर हितों में एक ऐसा द्वेष पैदा कर देती है जिसे मिटाया नहीं जा सकता, इस द्वेष को छुपाने या न्याय–संगत ठहराने के लिए वह झूठ का सहारा लेती है और झूठ, मक्कारी और घृणा से हर आदमी की आत्मा को दूषित कर देती है।

साहिर लुधियानवी – जश्न बपा है कुटियाओं में, ऊंचे ऐवां कांप रहे हैं

कांप रहे हैं जालिम सुल्तां टूट गए दिल जब्बारों के
भाग रहे हैं जिल्ले-इलाही मुंह उतरे हैं गद्दारों के।
एक नया सूरज ख्‍मका है, एक अनोखी ज़ौबारी है
खत्म हुई अफरात की शाही, अब जम्हूर की सालारी है।

कान्ति मोहन – बोल मजूरे हल्ला बोल

सिहर उठेगी लहर नदी की सुलग उठेगी फुलवारी
काँप उठेगी पत्ती-पत्ती चटखेगी डारी-डारी
सरमायेदारों का पल में नशा हिरन हो जायेगा
आग लगेगी नन्दन वन में दहक उठेगी हर क्यारी
सुन-सुन कर तेरे नारों को धरती होगी डाँवाडोल
बोल मजूरे हल्ला बोल…