Category Archives: महान मज़दूर नेता

‘जो जलता नहीं, वह धुएँ में अपने आपको नष्ट कर देता है’

हज़ारों सालों से जिनके कन्धे जानलेवा मेहनत से चूर हैं, जिन्हें अरसे से हिक़ारत की निगाहों से देखा गया हो, उस मेहनतकश आबादी ने अपने बीच से समय-समय पर ऐसे मज़दूर नायकों को जन्म दिया है जिनका जीवन हमें आज के युग में तो बहुत कुछ सिखाता ही है पर भावी समाज में भी सिखाता रहेगा। निकोलाई ओस्त्रोवस्की मज़दूर नायकों की आकाशगंगा का एक ऐसा ही चमकता ध्रुवतारा है।

ओस्त्रोवस्की का जीवन युवा क्रान्तिकारियों के लिए एक महान आदर्श है। जनता के लिए, कम्युनिज़्म के उदात्त लक्ष्य के लिए जीना किसे कहते हैं; और क्रान्ति के प्रति सच्चे एवं नि:स्वार्थ समपर्ण की भावना कैसी होती है; समाजवाद के लक्ष्य के लिए एक उत्साही, क्रियाशील और अडिग सैनिक का दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए इसका प्रातिनिधिक उदाहरण ओस्त्रोवस्की का छोटा मगर सार्थक जीवन है।

अख़बार और मज़दूर

सर्वोपरि, मज़दूर को बुर्जुआ अख़बार के साथ किसी भी प्रकार की एकजुटता को दृढ़ता से ख़ारिज करना चाहिए। और उसे हमेशा, हमेशा, हमेशा यह याद रखना चाहिए कि बुर्जुआ अख़बार (इसका रंग जो भी हो) उन विचारों एवं हितों से प्रेरित संघर्ष का एक उपकरण होता है जो आपके विचार और हित के विपरीत होते हैं। इसमें छपने वाली सभी बातें एक ही विचार से प्रभावित होती हैं: वह है प्रभुत्वशाली वर्ग की सेवा करना, और जो आवश्यकता पड़ने पर इस तथ्य में परिवर्तित हो जाती है: मज़दूर वर्ग का विरोध करना। और वास्तव में, बुर्जुआ अख़बार की पहली से आखि़री लाइन तक इस पूर्वाधिकार की गन्ध आती है और यह दिखायी देता है।

मई दिवस के महान शहीद आगस्‍ट स्‍पाइस के दो उद्धरण

सच बोलने की सज़ा अगर मौत है तो गर्व के साथ निडर होकर वह महँगी क़ीमत मैं चुका दूँगा। बुलाइये अपने जल्लाद को! सुकरात, ईसा मसीह, जिआदर्नो ब्रुनो, हसऊ, गेलिलियो के वध के ज़रिये जिस सच को सूली चढ़ाया गया वह अभी ज़िन्दा है। ये सब महापुरुष और इन जैसे अनेक लोगों ने हमारे से पहले सच कहने के रास्ते पर चलते हुए मौत को गले लगाकर यह क़ीमत चुकाई है। हम भी उसी रास्ते पर चलने को तैयार हैं

स्‍तालिन – पार्टी मजदूर वर्ग का संगठित दस्ता है

पार्टी मज़दूर वर्ग का केवल अग्रदल ही नहीं है। यदि वह अपने वर्ग के संघर्षों का वास्तविक संचालन करना चाहती है तो उसे सर्वहारा का संगठित दस्ता भी होना पड़ेगा, पूँजीवाद की परिस्थितियों में पार्टी के कार्य अत्यन्त गम्भीर और विविध हैं। भीतरी और बाहरी विकास की अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में उसे सर्वहारा वर्ग के संघर्षों का नेतृत्व करना होगा। जब परिस्थिति आक्रमण के अनुकूल हो तब उसे अपने वर्ग को लेकर चढ़ाई करनी होगी; और जब स्थिति प्रतिकूल हो जाए तो शक्तिशाली दुश्मन के प्रहार से उसे बचाने के लिए अपने वर्ग को पीछे हटा लाना होगा। साथ ही पार्टी के बाहर के करोड़ों असंगठित मज़दूरों को संघर्ष का ढंग और अनुशासन सिखलाना होगा और उनमें संगठन और सहनशीलता की भावना उत्पन्न करनी होगी। पार्टी यह सब काम तभी पूरा कर सकती है जब वह स्वयं संगठन और अनुशासन का आदर्श रूप हो, जब वह स्वयं सर्वहारा वर्ग का संगठित दस्ता हो। पार्टी में अगर ये गुण न हों तो वह करोड़ों सर्वहारा का पथ प्रदर्शन करने की बात भी नहीं सोच सकती।

स्तालिन: पहले समाजवादी राज्य के निर्माता

मज़दूर वर्ग के पहले राज्य सोवियत संघ की बुनियाद रखी थी महान लेनिन ने, और पूरी पूँजीवादी दुनिया के प्रत्यक्ष और खुफ़ि‍या हमलों, साज़िशों, घेरेबन्दी और फ़ासिस्टों के हमले को नाकाम करते हुए पहले समाजवादी राज्य का निर्माण करने वाले थे जोसेफ़ स्तालिन। स्तालिन शब्द का मतलब होता है इस्पात का इन्सान – और स्तालिन सचमुच एक फ़ौलादी इन्सान थे। मेहनतकशों के पहले राज्य को नेस्तनाबूद कर देने की पूँजीवादी लुटेरों की हर कोशिश को धूल चटाते हुए स्तालिन ने एक फ़ौलादी दीवार की तरह उसकी रक्षा की, उसे विकसित किया और उसे दुनिया के सबसे समृद्ध और ताक़तवर समाजों की कतार में ला खड़ा किया। उन्होंने साबित कर दिखाया कि मेहनतकश जनता अपने बलबूते पर एक नया समाज बना सकती है और विकास के ऐसे कीर्तिमान रच सकती है जिन्हें देखकर पूरी दुनिया दाँतों तले उँगली दबा ले। उनके प्रेरक नेतृत्व और कुशल सेनापतित्व में सोवियत जनता ने हिटलर की फ़ासिस्ट फ़ौजों को मटियामेट करके दुनिया को फ़ासीवाद के कहर से बचाया। यही वजह है कि दुनिया भर के पूँजीवादी स्तालिन से जी-जान से नफ़रत करते हैं और उन्हें बदनाम करने और उन पर लांछन लगाने तथा कीचड़ उछालने का कोई मौका नहीं छोड़ते। सर्वहारा वर्ग के इस महान शिक्षक और नेता के निधन के 56 वर्ष बाद भी मानो उन्हें स्तालिन का हौवा सताता रहता है। वे आज भी स्तालिन से डरते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि रूस की और दुनिया भर की मेहनतकश जनता के दिलों में स्तालिन आज भी ज़िन्दा हैं।

माओ त्से-तुङ : हमारे समय के एक महानतम क्रान्तिकारी

माओ ने पहली बार यह स्पष्ट किया कि समाजवादी समाज में क्रान्तिपूर्ण समाज के अवशेष के रूप में बूर्जुआ विचार, परम्पराएं, मूल्य एवं आदतें एक लम्बे समय तक मौजूद रहती हैं और पर्याप्त अवधि तक छोटे पैमाने के पूँजीवादी उत्पादन तथा लोगों के बीच असमानताओं एवं बुर्जुआ अधिकारों की मौजूदगी के कारण पैदा हुई तरह-तरह की बुर्जुआ प्रवृत्तियाँ भी कम्युनिस्ट समाज की ओर गति की प्रतिकूल भौतिक शक्ति के रूप में काम करती रहती हैं। पार्टी के भीतर राज्य के संगठन में बुर्जुआ वर्ग के प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं। जिसके कारण समाजवादी समाज में अन्तर्विरोध मौजूद रहते हैं जो समाजवादी संक्रमण की प्रक्रिया को बाधित करते रहते हैं। इस अन्तर्विरोध को हल करने के लिये माओ ने समाज के राजनीतिक-सांस्कृतिक (अधिरचना) दायरे में समाजवादी क्रान्ति को अन्त तक चलाने को अनिवार्य बताया।

लेनिन – फ्रेडरिक एंगेल्स की स्मृति में (जन्मतिथिः 28 नवम्बर, 1820)

1848-1849 के आन्दोलन के बाद निर्वासन-काल में मार्क्स और एंगेल्स केवल वैज्ञानिक शोधकार्य में ही व्यस्त नहीं रहे। 1864 में मार्क्स ने ‘अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर संघ’ की स्थापना की और पूरे दशक भर इस संस्था का नेतृत्व किया। एंगेल्स ने भी इस संस्था के कार्य में सक्रिय भाग लिया। ‘अन्तर्राष्ट्रीय संघ’ का कार्य, जिसने मार्क्स के विचारानुसार सभी देशों के सर्वहारा को एकजुट किया, मज़दूर आन्दोलन के विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण था। पर 19वीं शताब्दी के आठवें दशक में उक्त संघ के बन्द होने के बाद भी मार्क्स और एंगेल्स की एकजुटता विषयक भूमिका नहीं समाप्त हुई। इसके विपरीत, कहा जा सकता है, मज़दूर आन्दोलन के वैचारिक नेताओं के रूप में उनका महत्व सतत बढ़ता रहा, क्योंकि यह आन्दोलन स्वयं भी अरोध्य रूप से प्रगति करता रहा। मार्क्स की मृत्यु के बाद अकेले एंगेल्स यूरोपीय समाजवादियों के परामर्शदाता और नेता बने रहे। उनका परामर्श और मार्गदर्शन जर्मन समाजवादी, जिनकी शक्ति सरकारी यन्त्रणाओं के बावजूद शीघ्रता से और सतत बढ़ रही थी, और स्पेन, रूमानिया, रूस आदि जैसे पिछड़े देशों के प्रतिनिधि, जो अपने पहले कदम बहुत सोच-विचार कर और सम्भल कर रखने को विवश थे, सभी समान रूप से चाहते थे। वे सब वृद्ध एंगेल्स के ज्ञान और अनुभव के समृद्ध भण्डार से लाभ उठाते थे।

फ़ाँसी के तख़्ते से

जो आदमी यहाँ हिम्मत हार बैठता है और अपनी आत्मा को खो देता है, उसकी सूरत उस आदमी की अपेक्षा कहीं अधिक बुरी होती है जिसका शरीर यहाँ पंगु बना दिया गया है। यदि आपकी आँखों को यहाँ विचरने वाली मृत्यु पोंछ चुकी है, यदि आपकी इन्द्रियों में पुनर्जन्म फिर प्राणों का संचार कर चुका है, तो शब्दों के बिना भी आपको यह पहचानने में देर नहीं लगती कि कौन डगमगा चुका है, किसने दूसरे के साथ विश्वासघात किया है; और आप झट से उसे पहचान लेते हैं जिसने क्षण भर के लिए भी इस विचार को मन में आश्रय दिया है कि घुटने टेक देना और अपने सबसे कम महत्वपूर्ण सहकर्मियों का पता बता देना बेहतर है। जो लोग दुर्बल पड़ जाते हैं, उनकी हालत दयनीय है। अपनी वह ज़िन्दगी वे किस तरह बितायेंगे जिसे बचाने के लिए उन्होंने अपने एक साथी की ज़िन्दगी बेच डाली है।

लेनिन कथा के दो अंश…

लेनिन मज़दूरों के और पास खिसक आये और समझाने लगे कि यह सही है कि मज़दूरों को जानकारी, अनुभव के बग़ैर जन-कमिसारियतों में कठिनाई हो रही है मगर सर्वहारा के पास एक तरह की जन्मजात समझ-बूझ है। जन-कमिसारियतों में हमारी अपनी, पार्टी की, सोवियतों की नीति पर अमल करवाने की ज़रूरत है। यह काम अगर मज़दूर नहीं करेंगे, तो और कौन करेगा? सब जगह मज़दूरों के नेतृत्व, मज़दूरों के नियन्त्रण की ज़रूरत है।

“और अगर ग़लती हो गयी तो?”

“ग़लती होगी, तो सुधारेंगे। नहीं जानते तो सीखेंगे। इस तरह साथियो,” खड़े होते हुए व्लादीमिर इल्यीच ने दृढ़तापूर्वक कहा, “कि पार्टी ने अगर आपको भेजा है, तो अपना कर्त्तव्य निभाइये।” और फिर अपनी उत्साहवर्धक मुस्कान के साथ दोहराया, “नहीं जानते तो सीखेंगे।”

मार्क्स – क्रान्तिकारियों के शिक्षक और गुरु

मार्क्स बहुत अच्छे ढंग से सिखाते थे। वे संक्षिप्ततम सम्भव रूप में किसी प्रस्थापना का निरूपण करते और फिर अधिकतम सावधानी के साथ मज़दूरों की समझ में न आनेवाली अभिव्यक्तियों से बचते हुए उसकी विस्तृत व्याख्या करते। उसके बाद अपने श्रोताओं को प्रश्न पूछने के लिए आमन्त्रित करते थे। अगर प्रश्न न पूछे जाते, तो वे जाँच करना शुरू कर देते और ऐसी शैक्षणिक निपुणता के साथ जाँच करते कि कोई ख़ामी, कोई ग़लतफ़हमी उनकी निगाह से बच नहीं रहती थी।