अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस 1 मई को रस्म या छुट्टी का दिन नहीं, अपने क्रान्तिकारी पुरखों की जीत के जश्न और पूँजी की जकड़बन्दी को छिन्न-भिन्न करने के फ़ौलादी संकल्प का दिन बनाओ!
मज़दूरों ने जब आठ घण्टे के काम की माँग की थी तब उस समय तकनीक और मशीनें आज की मशीनों और तकनीक के मुक़ाबले बहुत पिछड़ी हुई थीं। अब जबकि मशीनें और तकनीक इतनी उन्नत हो चुकी हैं कि काम व समूचे माल के निर्माण को छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़कर काम को सरल व तेज़ रफ़्तार से किया जाना सम्भव बना दिया गया है। तब मज़दूर की मज़दूरी का हिस्सा घटता जा रहा है और काम के घण्टे बढ़ते जा रहे हैं। 1984 में जहाँ कुल उत्पादन लागत का 45 प्रतिशत हिस्सा मज़दूरी के रूप में दिया जाता था वो 2010 तक घटकर 25 प्रतिशत रह गया। संगठित क्षेत्र में पैदा होने वाले हर 10 रूपये में मज़दूर वर्ग को केवल 23 पैसे मिलता है। ऑटो सेक्टर में एक विश्लेषण के अनुसार तकनीकी विकास के हिसाब से ऑटो सेक्टर का मज़दूर 8 घण्टे के कार्यदिवस में अपनी मज़दूरी के बराबर का मूल्य मात्र 1 घण्टे 12 मिनट में पैदा कर देता है, जबकि 6 घण्टे 48 मिनट मज़दूर बिना भुगतान के काम करता है। मज़दूरों की मेहनत की इसी लूट से एक ओर ग़रीबी और दूसरी ओर पूँजी का अम्बार खड़ा होता है।