Category Archives: स्‍मृति शेष

स्मृति में प्रेरणा, विचारों में दिशा : तीसरे इण्टरनेशनल, मास्को के अध्यक्ष को तार

“लेनिन-दिवस के अवसर पर हम सोवियत रूस में हो रहे महान अनुभव और साथी लेनिन की सफलता को आगे बढ़ाने के लिए अपनी दिली मुबारक़बाद भेजते हैं। हम अपने को विश्व-क्रान्तिकारी आन्दोलन से जोड़ना चाहते हैं। मज़दूर-राज की जीत हो। सरमायादारी का नाश हो।

स्मृति में प्रेरणा, विचारों में दिशा : ‘मॉडर्न रिव्यू’ पत्रिका के सम्पादक के नाम पत्र

लाहौर के स्पेशल मजिस्ट्रेट की अदालत में “इंक़लाब ज़िन्दाबाद” नारा लगाने के जुर्म में छात्रों की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ गुजराँवाला में नौजवान भारत सभा ने एक प्रस्ताव पारित किया। ‘मॉडर्न रिव्यू’ के सम्पादक रामानन्द चट्टोपाध्याय ने इस ख़बर के आधार पर “इंक़लाब ज़िन्दाबाद” के नारे की आलोचना की। भगतसिंह और बी.के. दत्त ने जेल से ‘मॉडर्न रिव्यू’ के सम्पादक को उनके उस सम्पादकीय का निम्नलिखित उत्तर दिया था। – स.

गौरी लंकेश का आख़िरी सम्पादकीय – फ़र्ज़ी ख़बरों के ज़माने में

हाल ही में पश्चिम बंगाल में जब दंगे हुए तो आरएसएस के लोगों ने दो पोस्टर जारी किये। एक पोस्टर का कैप्शन था, बंगाल जल रहा है, उसमें प्रोपर्टी के जलने की तस्वीर थी। दूसरे फ़ोटो में एक महिला की साड़ी खींची जा रही है और कैप्शन है बंगाल में हिन्दु महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है। बहुत जल्दी ही इस फ़ोटो का सच सामने आ गया। पहली तस्वीर 2002 के गुजरात दंगों की थी जब मुख्यमन्त्री मोदी ही सरकार में थे। दूसरी तस्वीर भोजपुरी सिनेमा के एक सीन की थी। सिर्फ़ आरएसएस ही नहीं बीजेपी के केन्द्रीय मन्त्री भी ऐसे फ़ेक न्यूज़ फैलाने में माहिर हैं।

कॉमरेड अमर नदीम को क्रान्तिकारी श्रद्धांजलि

कॉमरेड अमर को व्यक्तिगत तौर पर जानने वाले लोग बता सकते हैं कि कॉमरेड अमर न केवल सहृदय एवं संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी थे बल्कि वे साहसी, और ग़लत को ग़लत बोलने का माद्दा रखने वाले व्यक्ति भी थे। मार्क्सवाद के प्रति उनकी अडिग निष्ठा का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि सीपीएम के संशोधनवाद को समझने के बाद उपजी हताशा-निराशा और विकल्पहीनता तथा दुर्घटना के बाद पैदा हुई शारीरिक अशक्तता के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और क्रान्तिकारी मार्क्सवाद में उनकी अटूट आस्था बनी रही।

कय्यूर के चार शहीदों की गाथा जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए संघर्ष में अपना जीवन न्योछावर कर दिया

यह कय्यूर के उन चार शहीदों की गाथा है जिन्होंने देश की आज़ादी और ग़रीब जनता की बेहतर ज़िन्दगी के लिए संघर्ष में अपना जीवन न्योछावर कर दिया था। 29 मार्च 1943 को कय्यूर के चार बेटों – अप्पू, चिरुकण्डन, कुहाम्बू और अबु बक्र को फाँसी दी गयी थी।

मज़दूर संघर्षों के साथी नितिन नहीं रहे… साथी नितिन को अन्तिम लाल सलाम

नितिन अपनी जि़न्दादिली और युवासुलभता के लिए जाने जाते थे। उसे गाना और गिटार बजाना बेहद पसन्द था। नितिन सभी के प्रिय इसलिए भी थे, क्योंकि उनके अन्दर स्वार्थ या अहं जैसी कोई भावना नहीं थी। अपने से पहले दूसरों के बारे में सोचना, साथियों के लिए किसी से भी लड़ जाना या जोखिम ले लेना उनकी आदतों में शुमार था।

साथी नवकरण की याद में

नवकरण पंजाब के संगरूर का रहने वाला था और तीन साल पहले क्रान्तिकारी आन्दोलन के सम्पर्क में आया था। भगतसिंह को वह अपना आदर्श मानता था। इस व्यवस्था की सभी नेमतों – गरीबी, शोषण, बहुसंख्यक आबादी का पिस-पिस कर जीना – को उसने अपनी आँखों से देखा था और भोगा था। वह जनता के दुख-दर्द को महसूस करता था। क्रान्तिकारी आन्दोलन से जुड़कर समाज की सभी दिक्कतों को उसने वैज्ञानिक नज़रिये से समझना शुरू किया और एक नयी दुनिया का सपना अपनी आँखों में भरकर इस काम में पूरे जी-जान से जुट गया। अक्टूबर 2013 में उसने पेशेवर क्रान्तिकारी कार्यकर्ता का जीवन चुना और अपनी आखिरी साँस तक अपने मकसद के लिए कर्मठता से काम करता रहा। नयी चीज़ें सीखना व मुश्किल काम हाथ में लेना उसकी फ़ितरत थी। कुछ समय तक वह नौजवान भारत सभा की लुधियाना इकाई का संचालक रहा। साथ ही वह पंजाब स्टूडेण्ट्स यूनियन (ललकार) की नेतृत्वकारी कमिटी का भी सदस्य था। उसके सहयोग से लुधियाना में नौजवान भारत सभा व पंजाब स्टूडेण्ट्स यूनियन के कामों ने तेज़ी से विकास किया। वह सभी मोर्चों पर समान रूप से सक्रिय था – चाहे वह मज़दूर मोर्चा हो अथवा छात्र-नौजवान मोर्चा, सभी में उसकी अहम भूमिका थी। मज़दूर बस्तियों में जाकर विभिन्न तरीकों से प्रचार करना, मज़दूरों के बच्चों को पढ़ाना, जनता को विभिन्न मुद्दों पर लामबन्द करना, अखबार-पत्रिका-किताबें लेकर सघन रूप से क्रान्तिकारी साहित्य का प्रचार करना–इन सभी में वह जल्दी ही पारंगत हो गया था। वह बेहद उद्वेलित करने वाला भाषण भी देता था। अध्ययन वह लगातार करता था और पंजाबी पत्रिका ‘ललकार’ के लिए उसने विभिन्न राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर लिखने की भी शुरुआत की थी। एक धूमकेतु की तरह वह थोड़े से समय के लिए ही अपनी रोशनी बिखेरकर हमारे बीच से चला गया।

जन सरोकारों के कवि वीरेन डंगवाल की स्मृति में उनकी कविता – हमारा समाज

कुछ चिंताएँ भी हों, हाँ कोई हरज नहीं
पर ऐसी भी नहीं कि मन उनमें ही गले घुने
हौसला दिलाने और बरजने आसपास
हों संगी-साथी, अपने प्यारे, ख़ूब घने।
पापड़-चटनी, आँचा-पाँचा, हल्ला-गुल्ला
दो चार जशन भी कभी, कभी कुछ धूम-धांय
जितना संभव हो देख सकें, इस धरती को
हो सके जहाँ तक, उतनी दुनिया घूम आयें
यह कौन नहीं चाहेगा?

तर्कवादी चिन्तक कलबुर्गी की हत्या – धार्मिक कट्टरपंथी ताकतों की एक और कायरतापूर्ण हरकत

प्रसिद्ध साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुके प्रोफेसर कलबुर्गी धारवाड़ स्थिति कर्नाटक विश्वविद्यालय में कन्नड़ विभाग के विभागाध्यक्ष रहे व बाद में हम्पी स्थित कन्नड़ विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। एक मुखर बुद्धिजीवी और तर्कवादी के रूप में कलबुर्गी का जीवन धार्मिक कुरीतियों, अन्धविश्वास, जाति-प्रथा, आडम्बरों और सड़ी-गली पुरानी मान्यताओं और परम्पराओं के विरुद्ध बहादुराना संघर्ष की मिसाल रहा। इस दौरान कट्टरपंथी संगठनों की तरफ से उन्हें लगातार धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ा पर इन धमकियों और हमलों को मुंह चिढ़ाते हुए कलबुर्गी अपने शोध-कार्य और उसके प्रचार-प्रसार में सदा मग्न रहे। प्रोफेसर कलबुर्गी एक ऐसे शोधकर्ता और इतिहासकार थे जिनकी इतिहास के अध्ययन, शोध और उद्देश्य को लेकर समझ यथास्थितिवाद के विरुद्ध निरंतर संघर्ष करती थी। साथ ही कलबुर्गी अपने शोध कार्यों को अकादमिक गलियारों से बाहर नाटक, कहानियों, बहस-मुहाबसों के रूप में व्यवहार में लाने को हमेशा तत्पर रहते थे और यथास्थितिवाद के संरक्षकों, धार्मिक कट्टरपंथियों को उनकी यही बात सबसे ज्यादा असहज करती थी और इसीलिए उनकी कायरतापूर्ण हत्या कर दी गई

जनता के एक सच्चे लेखक एदुआर्दो गालिआनो की स्मृति में

जब किसानों-मज़दूरों सहित आबादी के बड़े हिस्से की आज़ादी ख़त्म की जा रही है तब सिर्फ लेखकों के लिए कुछ रियायतों या सुविधाओं की बात से मैं सहमत नही हूँ। व्यवस्था में बड़े बदलावों से ही हमारी आवाज़ अभिजात महफिलों से निकल कर खुले और छिपे सभी प्रतिबन्धों को भेद कर उस जनता तक पहुँचेगी जिसे हमारी ज़रूरत है और जिसकी लड़ाई का हिस्सा हमें बनना है। अभी के दौर में तो साहित्य को इस गुलाम समाज की आज़ादी की लड़ाई की उम्मीद ही बनना है।