Category Archives: स्‍मृति शेष

शेखर जोशी की याद में

हमारे समय के सबसे बड़े कथाकारों में से एक, शेखर जोशी का इसी महीने की 4 तारीख़ को निधन हो गया। वे 91 वर्ष के थे और अब भी सक्रिय थे। वे हिन्दी के उन बिरले कहानीकारों में से थे जिन्होंने मज़दूरों, ख़ासकर औद्योगिक मज़दूरों के जीवन को अपनी कहानियों का विषय बनाया। उनकी याद में हम यहाँ उनके संस्मरणों के कुछ अंश दे रहे हैं जो बताते हैं कि मज़दूरों की जीवन और उनके संघर्षों की उनकी समझ एक श्रमिक के रूप में ख़ुद उनके जीवन से आयी थी। इन अंशों को हमने वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी के ‘आजकल’ में प्रकाशित लेख से साभार लिया है। ‘मज़दूर बिगुल’ में हमने शेखर जी की कहानियाँ पहले प्रकाशित की हैं और अपने पाठकों के लिए हम श्रमिक जीवन के इस चितेरे की और रचनाएँ आगामी अंकों में प्रस्तुत करेंगे। – सं.

मज़दूरों और मेहनतकशों की मुक्ति को समर्पित महान क्रान्तिकारी और चिन्तक थे हमारे भगतसिंह

23 साल की उम्र में देश की आज़ादी के लिए फाँसी के फन्दे पर झूल जाने वाले एक बहादुर नौजवान भगतसिंह की तनी हुई मूँछें और टोपी वाली तस्वीर तो आपने देखी होगी। असेम्बली में बम फेंकने और वहाँ से भागने के बजाय अपनी गिरफ़्तारी देकर बहरी अंग्रेज़ी सरकार को चुनौती देने वाली कहानियों से कई लोग परिचित होंगे। भारतीय शासक वर्ग की पूरी जमात हमारे महान पूर्वज शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिवस और शहादत दिवस पर उनके जीवन के केवल इन्हीं पक्षों पर ज़ोर देते रहते हैं क्योंकि उन्हें यह डर लगातार सताता रहता है कि कहीं जनता इनके विचारों को जानकर अन्याय के विरुद्ध विद्रोह न कर दे।

नहीं रहे कॉमरेड रामनाथ! अलविदा कॉमरेड! लाल सलाम!!

कॉमरेड रामनाथ नहीं रहे। 31 अगस्त को तड़के ही सोते समय दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।
कॉमरेड रामनाथ की आयु लगभग 83 वर्ष की थी। अस्वस्थ तो वे विगत कई वर्षों से थे लेकिन पिछले कुछ समय से उनका स्वास्थ्य बहुत ख़राब हो गया था। भारत के कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन का इतिहास का. रामनाथ की भूमिका और अवदानों की चर्चा के बग़ैर लिखा ही नहीं जा सकता। निस्सन्देह उनकी भूमिका ऐतिहासिक थी और ‘पाथब्रेकिंग’ थी।

मेहनतकश जनता के सच्चे लेखक मक्सिम गोर्की के स्मृति दिवस पर एक साहित्यिक परिचय

दुनिया में ऐसे लेखकों की कमी नहीं, जिन्हें पढ़ाई-लिखाई का मौक़ा मिला, पुस्तकालय मिला, शान्त वातावरण मिला, जिसमें उन्होंने अपनी लेखनी की धार तेज़ की। लेकिन बिरले ही ऐसे लोग होंगे जो समाज के रसातल से उठकर आम-जन के सच्चे लेखक बने। मक्सिम गोर्की ऐसे ही लेखक थे।

जन्मदिवस (14 जून) के अवसर पर क्यूबा की क्रान्ति के नायक चे ग्वेरा को याद करते हुए कुछ कविताएँ

जन्मदिवस (14 जून) के अवसर पर क्यूबा की क्रान्ति के नायक चे ग्वेरा को याद करते हुए कुछ कविताएँ चे कमांडेंट – निकोलस गिएन (1902-1989), क्यूबा के राष्ट्रकवि यद्यपि बुझा…

विदा कॉमरेड मीनाक्षी, लाल सलाम!

हमारी वरिष्ठतम कामरेड मीनाक्षी 21 अप्रैल की सुबह हमारे बीच नहीं रहीं। कोविड की महामारी और इस हत्यारी सरकार की आपराधिक लापरवाही ने उन्हें हमसे छीन लिया। हम जीवनरक्षक दवाओं और प्लाज़्मा डोनर के लिए तीन दिनों तक ज़मीन-आसमान एक करते रहे, ऑक्सीजन और अस्पताल में बेड के लिए दौड़ते रहे। जब कुछ सफलता मिली, तभी कई दिनों की जद्दोजहद से थकी हुई साँसों ने का. मीनाक्षी का साथ छोड़ दिया। कोविड की महामारी जो क़हर बरपा कर रही है, उसे इस हत्यारी व्यवस्था ने सौ गुना बढ़ा दिया है। हम इस फ़ासिस्ट सत्ता के ऐतिहासिक अपराध को कभी नहीं भूलेंगे, कभी नहीं माफ़ करेंगे।

क्रेमलिन में एक मुलाक़ात

लेनिन अपने पतलून की जेबों में हाथ खोंसे खड़े थे। दो खिड़कियों और ऊँची, मेहराबी छत वाला यह कमरा बहुत ठण्डा और नम था। जाड़े के अन्तिम सप्ताहों में कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी। व्लादीमिर इल्यीच गोलों से छलनी बने शस्त्रागार, क्रेमलिन दीवार के एक हिस्से और बैरक़ों को देख सकते थे। त्रोइत्स्काया मीनार जिसके शिखर पर एक विशाल उकाब धुँधले आकाश की पृष्ठभूमि पर साफ़ नज़र आता था, यहाँ से उतनी बड़ी नहीं लगती थी, जितनी कि मानेज की ओर से। चौक में, जिसमें छोटी और गोल बटियों के जहाँ-तहाँ धँस जाने से गड्ढे बन गये थे, खूँटी की तरह मुड़े हुए तिनकों जैसी बत्तियों की पंक्ति शस्त्रागार से निकोल्स्काया मीनार तक फैली हुई थी।

कॉमरेड अरविन्द के स्मृतिदिवस के अवसर पर : भारतीय मज़दूर वर्ग की पहली राजनीतिक हड़ताल – एक प्रेरक और गौरवशाली इतिहास

23 जुलाई को करीब एक लाख मज़दूरों ने हड़ताल में हिस्सेदारी की। मुंबई की आम जनता भी मज़दूरों के साथ आ खड़ी हुई। 24 जुलाई को संघर्षरत जनता की लड़ाई सेना के हथियारबंद दस्तों के साथ फिर से शुरू हो गयी। गोलियों का जवाब ईंटो और पत्थरों की बारिश से दिया गया। बहुत से मज़दूर आम जनता के साथ शहीद हुए। इसी बीच पुलिस कमिश्नर ने मिल मालिकों से हड़ताल का विरोध करने के लिए कहा। मालिकों ने फैसला किया कि ‘उद्योग की भलाई’ के लिए मजदूरों को हड़ताल बंद कर देनी चाहिए। मिल मालिक एसोसिएशन के अध्यक्ष हरिलाल भाई विश्राम ने मिल मालिकों को सलाह दी -”आपकी ज़ि‍म्मेदारी यह देखना है कि सरकार को किसी तरह परेशान न किया जाए, कानून-कायदों को मानकर चला जाए। आप मज़दूरों को काम पर वापस जाने के लिए दबाव डालिए।” परन्तु मज़दूरों ने मालिकों-पुलिस-प्रशासन की तिकड़मों को धता बताते हुए अपने संघर्ष को जारी रखा। देश की जनता के सामने किये गए 6 दिन की हड़ताल के वायदे को मजदूरों ने शब्दशः निभाकर अपने जुझारूपन को स्थापित कर दिया।

शहीद सुखदेव के जन्म स्थान नौघरा मोहल्ला में हुआ श्रद्धांजलि कार्यक्रम

15 मई को शहीद सुखदेव के जन्म स्थान नौघरा मोहल्ला, लुधियाना में बिगुल मज़दूर दस्ता, लोक मोर्चा पंजाब, इंक़लाबी केन्द्र पंजाब व इंक़लाबी लोक मोर्चा द्वारा संयुक्त तौर पर शहीद सुखदेव का जन्मदिन मनाया गया। घण्टाघर चौक के नज़दीक नगर निगम कार्यालय से लेकर नौघरा मोहल्ला तक पैदल मार्च किया गया। शहीद सुखदेव की यादगार पर लोगों ने श्रद्धांजलि फूल भेंट किये। इस अवसर पर बिगुल मज़दूर दस्ता के राजविन्दर, लोक मोर्चा पंजाब के कस्तूरी लाल, इंक़लाबी केन्द्र पंजाब के नेता कंवलजीत खन्ना व इंक़लाबी लोक मोर्चा के विजय नारायण ने सम्बोधित किया।

कविता : लेनिन की मृत्यु पर कैंटाटा / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट Poem : Cantata on the day of Lenin’s death / Bertolt Brecht

जिस दिन लेनिन नहीं रहे
कहते हैं, शव की निगरानी में तैनात एक सैनिक ने
अपने साथियों को बताया: मैं
यक़ीन नहीं करना चाहता था इस पर।
मैं भीतर गया और उनके कान में चिल्लाया: ‘इलिच
शोषक आ रहे हैं।’ वह हिले भी नहीं।
तब मैं जान गया कि वो जा चुके हैं।