Category Archives: स्‍मृति शेष

विदा कॉमरेड मुकुल सिन्‍हा! लाल सलाम!!

साम्‍प्रदायिक फासीवाद विरोधी अभियान के अनथक योद्धा, नागरिक अधिकार कर्मी और वामपंथी ऐक्टिविस्‍ट कॉमरेड मुकुल सिन्‍हा का निधन आज के कठिन समय में जनवादी अधिकार आंदोलन और वामपंथ के लिए एक भारी क्षति है, जिसकी पूर्ति आसानी से संभव नहीं।

कॉमरेड सुनीति कुमार घोष को लाल सलाम!

का. सुनीति कुमार घोष अपनी अंतिम सांस तक मार्क्सवाद-लेनिनवाद के प्रति समर्पित बने रहे और उसकी क्रान्तिकारी अन्तर्वस्तु की हिफाजत के लिए सचेष्ट रहे। अन्तिम सांस तक वे कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन के पुनर्निर्माण की समस्याओं और चिन्ताओं से जूझते रहे। भारतीय सर्वहारा के इस योद्धा को हम अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनका क्रान्तिकारी अभिवादन करते हैं।

आज़ादी, बराबरी और इंसाफ के लिए लड़ने वाली मरीना को इंक़लाबी सलाम!

स्पेन का गृहयुद्ध सर्वहारा अन्तरराष्ट्रीयतावाद का एक अद्भुत उदाहरण था जब फासिस्टों से गणतांत्रिक स्पेन की रक्षा करने के लिए पूरी दुनिया के 50 से अधिक देशों से कम्युनिस्ट कार्यकर्ता स्पेन पहुँचकर अन्तरराष्ट्रीय ब्रिगेडों में शामिल हुए थे। हज़ारों कम्युनिस्टों ने फासिस्टों से लड़ते हुए स्पेन में अपनी कुर्बानी दी थी। इनमें पूरी दुनिया के बहुत से श्रेष्ठ कवि, लेखक और बुद्धिजीवी भी थे। उस वक़्त जब दुनिया पर फासिज़्म का ख़तरा मँडरा रहा था, जर्मनी में हिटलर और इटली में मुसोलिनी दुनिया को विश्वयुद्ध में झोंकने की तैयारी कर रहे थे, ऐसे में स्पेन में फासिस्ट फ्रांको द्वारा सत्ता हथियाये जाने का मुँहतोड़ जवाब देना ज़रूरी था। जर्मनी और इटली की फासिस्ट सत्ताएँ फ्रांको का साथ दे रही थीं लेकिन पश्चिमी पूँजीवादी देश बेशर्मी से किनारा किये रहे और उसकी मदद भी करते रहे। केवल स्तालिन के नेतृत्व में सोवियत संघ ने फ्रांकों को परास्त करने का आह्वान किया और कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल के आह्वान पर हज़ारों- हज़ार कम्युनिस्टों ने स्पेन की मेहनतकश जनता के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ते हुए बलिदान दिया।

मज़दूर-मुक्ति के लक्ष्य को समर्पित एक युवा, ऊर्जस्वी जीवन का अन्त

युवा क्रान्तिकारी और जनमुक्ति समर की वैचारिक-सांस्कृतिक बुनियाद खड़ी करने के अनेक क्रान्तिकारी उपक्रमों की एक प्रमुख संगठनकर्ता कॉमरेड शालिनी नहीं रहीं। पिछले 29 मार्च की रात को दिल्ली के धर्मशिला कैंसर अस्पताल में उनका निधन हो गया। वे सिर्फ़ 38 वर्ष की थीं। जनवरी 2013 के दूसरे सप्ताह में लखनऊ में कैंसर होने का पता चलते ही उन्हें इलाज के लिए दिल्ली के धर्मशिला कैंसर अस्पताल लाया गया था, जहाँ डॉक्टरों ने बता दिया था कि पैंक्रियास का कैंसर काफी उन्नत अवस्था में पहुँच चुका है और मेटास्टैसिस शुरू हो चुका है तथा एलोपैथी में इसका पूर्ण इलाज सम्भव नहीं है। वे केवल दर्द से राहत देने और उम्र को लम्बा खींचने के लिए उपचार कर सकते हैं। हालाँकि धर्मशिला कैंसर अस्पताल के डॉक्टरों से बात करके वैकल्पिक उपचार की दो पद्धतियों से भी उनका उपचार साथ-साथ चल रहा था। कॉ. शालिनी शुरू से ही पूरी स्थिति से अवगत थीं और अद्भुत जिजीविषा, साहस और ख़ुशमिज़ाजी के साथ रोग से लड़ रही थीं।

कॉमरेड दीपांकर चक्रवर्ती को इंक़लाबी सलाम!

दीपांकर दा सच्चे अर्थों में एक कम्युनिस्ट बुद्धिजीवी थे। वह वास्तव में जनता के आदमी थे। क्रान्तिकारी वाम आन्दोलन के वह आजीवन शुभचिन्तक-सहयात्री बने रहे। भारत के जनवादी अधिकार आन्दोलन के वह एक अग्रणी सेनानी थे। ए.पी.डी.आर. के वह संस्थापक सदस्य थे और अन्तिम समय तक उसके उपाध्यक्ष थे।

नहीं रहे प्रो. के. बालगोपाल

जनवादी अधिकार आन्दोलन के एक अग्रणी संगठनकर्ता के रूप में प्रो. बालगोपाल विगत लगभग पच्चीस वर्षों से आन्ध्र प्रदेश में सक्रिय थे। एक दशक पहले काकतीय विश्वविद्यालय में प्राध्यापक की नौकरी छोड़कर उन्होंने वकालत की शुरुआत की थी। 1980 के दशक में ‘आन्ध्र प्रदेश सिविल लिबर्टीज़ कमेटी’ (ए-पी-सी-एल-सी) के गठन के समय से ही वे उसमें सक्रिय थे। गिरफ्तारी, फ़र्जी मुक्‍़दमों और पुलिसिया आतंक झेलने की क़ीमत चुकाने के बावजूद बालगोपाल नक्सलवाद के दमन के नाम पर आम जनता पर पुलिसिया आतंक राज क़ायम करने, फ़र्जी मुठभेड़ों, पुलिस हिरासत में यन्त्रणा और मौतों, फ़र्जी मुक़दमों और क़ाले क़ानूनों के विरुद्ध लगातार निर्भीकतापूर्वक आवाज़ उठाते रहे। नक्सलवादी क़ैदियों को राजनीतिक बन्दी का अधिकार दिलाने के लिए भी वे लगातार संघर्ष करते रहे।

कॉमरेड हरभजन सिंह सोही को क्रान्तिकारी श्रद्धांजलि

देश के कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन की एक अजीम हस्ती कॉमरेड हरभजन सिंह सोही अब हमारे बीच नहीं रहे। इस देश के कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी हलकों में कॉमरेड हरभजन का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। देश के कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन ने जिन चन्द एक बेहद मेधावी नेताओं को जन्म दिया है, उनमें से एक थे कॉमरेड हरभजन।

क्रान्तिकारी कवि ज्वालामुखी नहीं रहे

तेलुगु भाषा के क्रान्तिकारी कवि और जनपक्ष के प्रखर सांस्कृतिक योद्धा ज्वालामुखी का पिछले 14 दिसम्बर को हैदराबाद में निधन हो गया। ज्वालामुखी एक कवि ही नहीं, अत्यन्त ओजस्वी वक्ता, सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर लिखने वाले प्रखर टिप्पणीकार, उपन्यासकार और राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता भी थे।हम ‘बिगुल’ की पूरी टीम और ‘बिगुल’ के सभी पाठकों की ओर से जनसंघर्षों के इस सहयोद्धा कवि को क्रान्तिकारी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।